Pages

Monday, 31 August 2015

साहब का ड्राईवर

साहब के टेबल पर डाक रख दी गई थी. साहब एक एक लिफाफा उठाते, आगे पीछे पलट कर देखते, फिर लकड़ी के चाकू से लिफाफा खोलते और चिठ्ठी पर कुछ नोटिंग लिख देते थे. लिफाफे ख़त्म हुए तो फिर नंबर आया एक मैगज़ीन का. मैगज़ीन के पन्ने उलटे पलटे कुछ फोटो देखीं और घंटी बजा दी.
- जी साब ?
- ड्राईवर को भेजो.
ड्राईवर आया.
- जी साब ?
- ये मैगज़ीन घर पर दे आओ.
चालीस मिनट बाद ड्राईवर फिर आया.
- जी साब मैगज़ीन दे आया. मेम साब ने ये पर्ची दी है.
साहब ने पर्ची पढ़ी और पांच सौ का नोट निकाल  कर दिया.
- जाओ सामान ले लो और घर पर दे आओ.

साहब से आपका परिचय करा दूं ? गोयल साब हमारे रीजनल मैनेजर हैं. पूरे का पूरा झुमरी तल्लैय्या का इलाका इनके अंडर आता है. बड़े हाकिम हैं दस करोड़ का लोन तो चुटकी बजाते ही कर देते हैं. इसीलिए तो बैंक से कार मिली हुई है और साथ में ड्राईवर भी मिला हुआ है. लगभग 58 साल की उमर, सांवला रंग और मटके सा पेट. बियर के शौक़ीन हैं शायद इसलिए पेट मटकाकार हो गया है. सिर के बाल उड़ चुके हैं केवल किनारे किनारे एक झालर बची हुई है. उस झालर पर कभी-कभी कलर कर लेते हैं और दिन में सात आठ बार कंघी फेर लेते हैं. प्यार से उन्हें कुछ लोग टकला कह देते हैं कुछ गोलू भी कह देते हैं. पर ये प्यार मोहब्बत की बात आप अपने तक ही रखें क्यूंकि बॉस तो बॉस ही होता है क्या पता कब भड़क जाए.

आप का परिचय साहब के ड्राईवर तेजबीर सिंह उर्फ़ तेजू से भी करा दिया जाए ? आप नोट कर लें बड़े साहब लोगों का ड्राईवर भी बड़ा माना जाता है और उसे ड्राईवर साब कहा जाता है. तेजू पास के गाँव से साइकिल पर साब के घर आता है गाड़ी साफ़ करता है और मेम साब के हाथ की चाय पीता और फिर साब का बस्ता संभाल कर उन्हें ऑफिस ले आता है. बाकी छोटे मोटे काम तो ड्राईवर करते रहते हैं.
एक दिन उसे बुलाया.
- ड्राईवर साब कभी हमारे साथ भी चाय पी लो या फिर मेम साब के हाथ की ही पीनी है ?
- हें हें हें हम तो सेवक हैं साब जी आपके साथ भी पी लेंगे.
- आज साहब का मूड ठीक नहीं है क्या बात है?
- ठीक कहाँ से होगा जी. रात नई फैक्ट्री में गए थे वहां से ताज में डिनर हुआ जी. घर तो वापस पहुंचे 11बजे जी और मैं तो पहुँचा 12 बजे जी.
- ओहो बड़े साहब हैं बड़े होटल में डिनर करेंगे ढाबे में थोड़े ही जाएँगे.
- वो तो ठीक जी पर साब एक आधा पेग ज्यादा मार गए जी. सुबह मेम साब को बोले निम्बु पानी बना दे. बस डांट पड़ गई जी.
- क्या बोल दिया ?
- यूँ कह दिया जी की पेट कहीं जा रहा, वेट कहीं जा रहा पर पीनी जरूर है जाने कब अक्कल आएगी.

सोमवार को तेजू को फिर बुलाया.
- ड्राईवर साहब कई दिन बाद नजर आये हो. ये लो चाय पियो .
- साब जी हम तो सेवक हैं जी. हम तो आपका भी सेवा करेंगे जी.
- आज तो साहब खुश हैं क्यों ? साब को डांट वांट तो नहीं पड़ रही न आजकल ?
- ना जी. बल्कि कल ही तो डिनर हुआ नई फैक्ट्री वाले के यहाँ. काफी सारे डब्बे मिले जी कल तो. एक डिब्बा तो जेवर का था जी वो तो मेम साब खुदी पकड़ें रहीं जी पूरे रस्ते. बाकी मिठाई विठाई होगी जी.
- ड्राईवर साब आपको भी कुछ मिला या नहीं.
- हमें तो पैंट कमीज़ मिली जी.

लैला प्यारी लैला का पिल्ला प्यारा ! मतलब साहब का ध्यान रखना है तो ड्राईवर साहब को चाय जरूर पिलाते रहें.

हमारे ड्राईवर साहब 
 

Saturday, 29 August 2015

रक्षा बंधन की कथाएँ

रक्षा बंधन का धागा हर साल याद कराने आ जाता है कि सुरक्षा के लिए आप जागरूक रहें. सभी जागरूक रहें भाई भी और बहन भी. राखी का यही आयाम बहुत बढ़िया है वर्ना तो इसमें कोई धार्मिक स्वरुप मेरे विचार से नहीं है. काफी समय से चली आ रही एक प्रथा या रिवाज है. रक्षा बंधन याने एक साधारण से धागे का बंधन जिससे जुड़े हुए कई किस्से हैं जिनका स्रोत या प्रूफ ढूँढना मुश्किल काम है. पर राखी के मौके पर ये कथाएँ पढ़ कर आनंद तो ले ही सकते हैं.

* देवताओं और दानवों का युद्ध चल रहा था और ऐसा लगने लगा की दानव बाजी मार ले जाएँगे. इंद्र ने बृहस्पति से अपने मन की घबराहट शेयर करनी चाही और उपाय जानना चाहा. इन्द्राणी भी यह सुन कर दुखी हुईं पर सहायता भी करने की इच्छा प्रकट की. एक रेशम का धागा लेकर उसमें मन्त्रों द्वारा शक्ति फूंक दी. वह रेशम का धागा इंद्र के कलाई पर बांध दिया. संयोग से उस दिन सावन की पूर्णिमा थी. बस उसके बाद युद्ध की दिशा ही बदल गई.

* महाभारत काल की कथा इस प्रकार है कि कृष्ण और शिशुपाल में भयंकर युद्ध छिड़ गया. कृष्ण ने सुदर्शन चक्र उठाया और शिशुपाल की कथा समाप्त कर दी. इस कार्यवाही में उनकी ऊँगली घायल हो गई और रक्त बहने लगा. द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और कृष्ण की ऊँगली पर पट्टी बांध दी और रक्त बहना रुक गया. कृष्ण इस पट्टी या बंधन को भूले नहीं और द्रौपदी के चीर हरण के समय कर्त्तव्य पूरा किया.

* 326 ईसा पूर्व में सिकंदर अपनी बड़ी ताकतवर फ़ौज ले कर भारत आ धमका. तक्षशिला के युद्ध में अश्वाकुओं को पछाड़ दिया. एक स्थानीय राजकुमारी रोक्साना ( या रोशांक या रोशानक ) से शादी भी कर ली. याने साम, दाम, दंड, भेद सारे हथकंडे अपनाए सोने की चिड़िया पर कब्ज़ा करने के लिए. पर झेलम के नजदीक आकर लड़ी गई लड़ाई में राजा पुरु से पार ना पा सका. भीषण लड़ाई के बीच सिकंदर अपने प्रिय घोड़े से नीचे गिर गया और उसकी तलवार भी दूर जा गिरी. राजा पुरु ने गिरे हुए पे वार नहीं किया. क्यूँ? पुरु को याद आया के रोक्साना ने उसकी कलाई पर धागा बांध कर वचन लिया था की वह सिकंदर को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा.

* इसी तरह का एक किस्सा मेवाड़ से है. वहां का राजकाज रानी कर्मावती देख रही थी. गुप्तचरों द्वारा सुचना मिली की बहादुर शाह फौजें ले कर आक्रमण करने आ रहा है. रानी स्वयं मुकाबला करने में असमर्थ थी. राखी का धागा भेज कर मुग़ल बादशाह हुमायूं को राज्य की सुरक्षा का निवेदन किया.  हुमायूँ ने राखी स्वीकार की और लाव लश्कर ले कर मेवाड़ पहुँच गया. मेवाड़ राज्य और रानी सुरक्षित बच गए.

राखी धागों का बाज़ार 



Wednesday, 26 August 2015

धरम का काज

हमारे बैंक का एक पुराना खातेदार था नफे सिंह. यदा कदा बैंक में आता रहता था. कई बार केबिन के बाहर चुपचाप खड़ा रहता और तभी अंदर आता जब मैं फ्री हो जाता. चाहे उमर 60 - 65 की होगी पर कुछ शर्माता कुछ झिझकता हुआ सा बात करता था. पढ़ा लिखा नहीं था शायद इसलिए या कुछ स्वभाव ऐसा ही था.

वैसे तो गाँव की ब्रांच में ज्यादातर लोग नफे सिंह की तरह ही आते हैं याने अनपढ़ या कम पढ़े लिखे. इसलिए काम धीमी गति से चलता है. पास बुक की एंट्री भी समझानी पड़ती है. नफे सिंह भी अपनी पास बुक ले कर कुछ समझना चाहता था. बहुत आराम और धीरज के साथ उसे बताया. जब से उसे जमीन का मोटा कंपनसेशन मिला है उसकी गिनती अब वीआई पी ग्राहकों में होती है और इसलिए उसका ख़याल रखना जरूरी था.

नफे सिंह छे फुटा पर दुबली पतली काठी वाला था. खेतों में काम करते करते हाथ भारी और खुरदरे हो गए थे. सिर पर बड़ा साफ़ा, कानों में सोने की मुर्कियाँ और राजस्थानी स्टाइल की सफ़ेद मूछें ऊपर से नीचे की ओर आती थी और फिर ऊपर घूम जाती थी. मुझे तो उसके चेहरे का मुख्य आकर्षण उसकी बिल्ली जैसी आँखें लगती थीं. पता नहीं  राजस्थान की इस दूर दराज गाँव में यह यूरोपियन कहाँ से आ टपका! सफ़ेद आधी बाजू की कुर्ती और घुटनों से ऊपर धोती और चमड़े के भारी से जूते. बातचीत में पता लगा कि उसकी चार बेटियां थी जिनकी शादियां भी हो चुकी थी. बल्कि उनके भी बाल बच्चे भी थे. पहली घरवाली गुजरने के बाद बुढ़ापे में दूसरी घरवाली भी ले आया था.
- मनीजर साब रोटी टिक्कड़ तो चल गयो बस छोरा न दियो ठाकर जी ने.

इस बात का नफे सिंह को बड़ा अफ़सोस रहता था की उसका बेटा न हुआ. अपनी जमीन अब किसे देगा यह अहम् सवाल था उसके लिए. कुछ जमीन सरकार ने सड़क बनाने के लिए ले ली थी जिसका अच्छा खासा कंपनसेशन मिला था. काफी कुछ लड़कियों में बाँट दिया था पर बचा हुआ किसको दूं? बेटा होता तो अच्छा था. मरने के बाद अग्नि कौन देगा यह सवाल भी उसकी नींद में कभी कभी खलल डाल देता था. उसे समझाने की कोशिश बेकार चली जाती थी.

एक दिन बड़े साफ़ सुथरे कपड़ों में बैंक में आया. हाथ जोड़ कर रविवार को घर आने का न्योता दिया.
- मनीजर साब म्हारा धरम का काज है जी.
रविवार फुर्सत का दिन था. चूँकि मैं अकेला ही रहता था तो सोचा आज खाना भी नहीं बनाना पड़ेगा. मोटर साइकिल पर किक मारी और दावत खाने नफे सिंह के घर पहुँच गए. काफी चहल पहल थी नफे सिंह के घर पर. लाउड स्पीकर पर फ़िल्मी गाने बज रहे थे. झंडों और झंडियों से सजावट की हुई थी. आम के पत्तों की झालरें दरवाजों खिडकियों पर टंगी हुईं थीं. एक शामियाने के नीचे हलवाई व्यस्त था. दुसरे में कुछ लोग गुड़गुड़ी का मजा ले रहे थे और बच्चों का शोर भरा डांस चल रहा था.

नफे सिंह ने बड़ी गर्म जोशी से स्वागत किया और फोटो भी खिंचवाई. मेरे पूछने पर की यह सब किस लिए हो रहा है वह मुझे एक 'पढ़े लिखे' बन्दे के पास ले गया. बन्दे ने बताया की नफे सिंह इस चिंता में रहता था मरने के बाद बेटा अग्नि नहीं देगा और उसकी आत्मा भटकती रहेगी. चार बेटियां और चार जमाई राजा भी हैं पर ये काम उनका नहीं है. भाई भतीजों पे भी उम्मीद नहीं रखी थी. पंडित जी ने सुझाव दिया था कि मरने के बाद की सारी कारवाई अपने रहते रहते नफे सिंह खुद करवा ले. सो आज वही धरम का काज उसने अपनी आँखों के सामने करवा लिया है. अब मरने के बाद उसकी आत्मा भूतों में शामिल नहीं होगी बल्कि पितरों और पूर्वजों में मिल जाएगी.

इसलिए अब नफे सिंह संतुष्ट है.

चलो गाँव की ओर


   

Monday, 24 August 2015

मसला मेज का

नेता लोगों का किस्सा कुर्सी का चलता है और हमारा मसला मेज का चल पड़ा है. दरअसल रिटायर होने के बाद समय काफी होता है और अखबार 10 - 15 मिनट में चाय के साथ ही समाप्त हो जाता है. अगर आप मोदी भक्त, कांग्रेस भक्त, या किरकिट भक्त नहीं हैं तो अखबार में आप के लिये छोटा सा रह जाता है. इसमें से कुछ हिस्सा 'आप' सपा, बसपा, का भी निकाल दें तो बाकी बचे अखबार में आतंकवाद, मर्डर, हड़ताल और दुर्घटनाएँ बचती है वो आप कितना पढ़ लेंगे?

इसलिए विचार आया कि पढने के बजाय लिखना चाहिए. अगर लिखना है तो सोशल मीडिया में प्रकाशित भी करना चाहिए ताकि वाह वाही भी मिले. इसलिए सब जगह याने फेसबुक, ट्विटर वगैरा में बच्चों, दोस्त यारों से सहायता लेकर खाते भी खोल दिए. ओर आप जाणो बढ़िया बढ़िया फोटू खेंच कर डाल दिए भाया !

अब और क्या करना था बस लिखना ही तो था. लैपटॉप सजाया डाइनिंग टेबल पर लेकिन पूरा चार्ज नहीं था. चार्जर की तार लगाई तो डाइनिंग टेबल की एक साइड ब्लाक हो गई. खैर बैठ गए कंप्यूटर देवता के सामने. लैपटॉप हमें देखे और हम लैपटॉप को. वो पूछ रहा है क्या लिखना है और हम भी यही सोच रहे हैं क्या लिखना है? इस उधेड़बुन में थे की आवाज़ आ गई :
- ओहो ये डाइनिंग टेबल पर क्यूँ बैठ गए? अरे ये तारें भी फैला दी. यहाँ न बैठो प्लीज़.
- ओके ओके.

चार्जर की तार निकली, लैपी उठाया और ड्राइंग रूम में अड्डा जमाया. सेंटर टेबल पर लैपी रखा, तार जोड़ी और श्रीगणेश करने की कोशिश की. सोफे पर बैठ कर सेंटर टेबल पर लिखना मुश्किल लग रहा था. सेटिंग जम नहीं रही थी. तब तक आवाज़ आई:
- यहाँ बैठोगे? लगातार यहाँ बैठना तो ठीक नहीं.
- मुझे भी यही लग रहा है.

जब बैंक में नौकरी शुरू की थी तो मेज न होकर काउंटर पर काम करना होता था. अधिकारी बने तो छोटी मेज मिली. मैनेजर बने तो बड़ी मेज मिली. चीफ मैनेजर बने तो और बड़ी मेज मिली और साथ में एक बड़ा केबिन भी मिला. जब एक्स-चीफ मैनेजर बने तो केबिन छोड़िये मेज छोड़िये एक छोटा स्टूल मिलना मुश्किल हो गया. इसीलिए तो यह मुद्दा-ए-मेज पर चिट्ठा लिखना पड़ा !

मेज भी तो कई प्रकार के हैं - छोटा, बड़ा, ऊँचा, नीचा, लम्बा वगैरा. गांधी जी को डांडी यात्रा के बाद फिरंगियों ने गोल मेज सभा में बुलाया. तीन बार लन्दन में गोल मेज सभाएं हुईं. और गोल मेज पर ही आज़ादी की बातें शुरू हुई. ये गोल मेज थी भी लकड़ी की इसलिए इको-फ्रेंडली भी थी. तो देखिये गोल मेज की कितनी महत्ता है बस पूजनीय समझिये !

और सबसे लम्बा मेज ? 05-07-2015 को जेद्दा, सऊदी अरब में इफ्तार पार्टी के लिए बनाया गया. इसकी लम्बाई 1508 मीटर थी जो की एक गिनेस रिकॉर्ड है.

पर हमारे लिए तो स्टोर के किसी कोने से और ही किस्म की मेज खोज निकाली गई:-

मेज-ए-चिट्ठाकार 


Sunday, 23 August 2015

Visit to Badami, Karnataka - Part II

Badami is located in Bagalkot district of Karnataka nearly 600 km from Bangalore, 130 km from Bijapur & 130 Km from Hubli.  Its average elevation is nearly 2000 ft & temperature can go over 40 in summer. Best time of visit is November to March when there is low humidity.

From Bangalore one can reach via Chitradurga & Hubli by tolled NH 4 which is in good condition. Hubli to Badami roads are single & not well maintained. It is connected with rail also. The small but important tourist destination needs better civic amenities.

Badami is situated in between two rocky sand stone hills reddish in colour & a reservoir in between them. The rocks & boulders on these hills have colour like that of Badam or kernel of almond & hence called Badami as per local guide. In ancient texts it has been referred as Vatapi Adhishthana. Vatapi the demon was eliminated by Sage Agasthya here & the reservoir in between the hills is called Agastyatheertha.

Badami was the capital of Chalukyas from 540 to 757 AD. They ruled over large areas of Karnataka & Andhra. Subsequently Chalukyas lost to Rashtrakutas & thereafter the capital Badami never regained its stature & importance. It has thereafter been under the rule of Hoysalas, Vijayanagar empire, Adil Shah & other nawabs, Marathas, Hyder Ali & then British. 

Badami is famous for rock-cut caves one above the other. These have been carved in huge tall rocks of reddish hard sand stone. Cave 1 is dedicated to Lord Shiva, cave 2 & 3 (which is biggest) have statues of Lord Vishnu in various avtaars & cave 4 is dedicated to Jain religion, their Tirthankars, Yakshas & Yakshis. 
Some more photos:

Lord Ganesha sculptured out of the rock. Here the tummy is flatter, arms are two & His personal carrier Mushak is missing

King has crushed his enemy & is enjoying the victory with his queen looking impressed with his feat

Figures of such amorous & happy couples are engraved on top of pillars in largest Cave 3

Happy couple with a child

Statue of Bahubali which perhaps served as a model for 57 ft high statue at Shravanabelagola

Agastyatheertha 

Carving on a ceiling inside the cave. Four swastikas have been carved out without any break in the line

In front of the cave

Artist's palette. They used to mix colours here for decorating the engravings on the ceiling.

Happy couple

View of Agstyatheertha from top. On the other side of the reservoir at the top of the hill there is a small temple & on the ground entrance of the palace can be seen.
Ardhanariswara. Left side of statue is of a female playing veena & the right side that of a male. There are several stories about Ardhanariswara in Puranas - merger of Shiva & Shakti, merger of Purusha & Prakriti etc. Here sage Bhringi is shown as  devotee of Shiva & only Shiva. He does not acknowledge even Parvati. So she reduced him to a skeleton. Bhringi did not relent & kept worshiping only Shiva and was later blessed by Parvati.  

Statue has left-half as Vishnu & right-half as Shiva signifying that creator is one


Friday, 21 August 2015

तो चलें जी ?

इत्मीनान से अखबार की तस्वीरों पर नज़र मार रहा था कि फ़ोन बजा. इधर फ़ोन बंद हुआ तो उधर हमारे लिए आदेश जारी हो गया:
- ज़रा ढंग के कपड़े पहन लो गोयल साहब और उनकी मास्टरनी आ रहे हैं.
- निक्कर बदलूँ ?
सवाल बेकार ही पूछ लिया जबकि पता था कि आदेश नहीं अध्यादेश है जो टाला नहीं जा सकता. पर इस तरह का झन्झट पहले नहीं हुआ करता था. पहले मतलब साइकिल युग में. भई हम तो साइकिल युग की संतान हैं. उस वक़्त घरों में आना जाना बिंदास होता था क्यूंकि पहले बताने का कोई रिवाज नहीं था न ही कोई साधन. ये फॉर्मेलिटी का चक्कर तो कुछ 10-15 सालों से बढ़ गया है जब से हम साइकिल युग से मोटर युग में आ गए हैं.

गोयल साहब पधारे. साठ बासठ की उमर, सांवला रंग और मटके नुमा पेट. सिर पर पांच सात बाल खड़े खड़े पंखे की हवा में लहरा रहे थे पर बाकी मैदान सफाचट हो चूका था. लाला जी के मुकाबले मास्टरनी ज्यादा एक्टिव थी. नमस्ते और हाल चाल वगैरा के बाद पूछा:
- चाय लेंगे या ठंडा?
अब लीजिये साहब घड़ा युग तो रहा नहीं बल्कि अब रेफ्रीजिरेटर युग आ गया है. पहले कौन पूछता था ठंडा या गरम? या चाय? घड़े का पानी पियो और आनंद लो, छाछ लस्सी पियो बस हो गई खातिरदारी. अब तो चाय चाहिए या ठंडा चाहिए पूछना जरूरी है. चाय या ठंडा तो कोई बात नहीं पर एक अंदाज़ है जो बदल गया. फॉर्मेलिटी है जो बढ़ गई और जो नकली सी लगती है. जिसकी जरूरत नहीं है पर मिडिल क्लास में घर कर गई है.

साइकिल युग में दो क्लासें थी - अमीर और गरीब. ये तो फिरंगियों ने एक शब्द फेंक दिया दोनों के बीच का - मिडिल क्लास. अब आप गरीब से ऊपर हो गए. परन्तु आप जल्द से जल्द अपनी साइकिल छोड़ दो और कार खरीद लो. अगर न ले पाए तो आप निचली क्लास में सरक जाओगे बेईज्ज़ती होगी ज़रा बच के रहो.

कुछ देर की गपशप के बाद गोयल साहब ने मास्टरनी की ओर देखा:
- तो चलें जी?
सभी खड़े हो गए. सज्जनों ने आपस में हाथ मिलाया और महिलाएं आधे गले लगीं ताकि बालों की सेटिंग खराब ना हो. घर आने जाने  के न्योते का आदान प्रदान हुआ. नकली हंसी में 'जरूर जरूर' कहा गया और कहते कहते दरवाजे तक आ गये.
दरवाज़े पर गोयल साहब ने घोषणा कर दी की आज वो बेटे की नई कार पर आये हैं. दुबारा सज्जनों ने हाथ मिलाये और मुबारक बांटी गई और देवियों ने आधा मिलन किया और बधाई दी.
गेट पर पहुँच कर गोयल साहब ने तिबारा हाथ मिलाया;
- तो चलें जी?
पर नई कार थी तो देखना तो बनता था. सभी बाहर आ गए. नई कार का विस्तार से मुआयना किया गया और कार के रंग रूप का गुणगान हुआ.
चौथी बार हाथ मिलाया गया और मुस्कान के साथ मुबारकबाद और बधाई का लेन देन हुआ.
गोयल साहब ने रिमोट दबाया 'पुक पुक' की आवाज़ हुई. दरवाज़ा खोला और कार के अंदर के दर्शन कराए. एक बार फिर कार के अंदरूनी रूप रंग का गुणगान हुआ, अंदर लगे हुए गाजे बाजे का व्याख्यान किया गया.
सज्जनों द्वारा पांचवी बार हाथ मिलाया गया और बधाई और मुबारक दी गई. महिलाओं ने एक दुसरे को थपथपाया. सज्जनों द्वारा महिलाओं को थपकी नहीं दी गई जिसका कारण आपको पता ही है.
गोयल साहब कार में बिराजे. साड़ी समेट कर मास्टरनी भी पधारीं. गोयल साहब ने कार स्टार्ट करी, दरवाज़े बंद किये और शीशा डाउन किया. इस दौरान हमने अपनी मुस्कराहट बरकरार रक्खी.
गोयल साहब ने छठी बार हाथ मिलाया और बोले:
- तो चलें जी?

हमारे गोयल साहब 
 

Thursday, 20 August 2015

Visit to Badami, Karnataka, Part I

Badami Caves - this is first of the four caves

Badami is located in Bagalkot district of Karnataka nearly 600 km from Bangalore, 130 km from Bijapur & 130 Km from Hubli.  Its average elevation is nearly 2000 ft & temperature can go over 40 in summer. Best time of visit is November to March when there is low humidity.

From Bangalore one can reach via Chitradurga & Hubli by tolled NH 4 which is in good condition. Hubli to Badami roads are single & not well maintained. It is connected with rail also.

Badami is situated in between two rocky sand stone hills reddish in colour & a lake in between them. The rocks & boulders on these hills have colour like colour of Badam or kernel of almond & hence called Badami as per our local guide. In ancient texts it has been referred as Vatapi Adhishthana. Vatapi the demon was eliminated by Sage Agastya here & the reservoir in between the hills is called Agastyatheertha.

Badami was the capital of Chalukyas from 540 to 757 AD. They ruled over large areas of Karnataka & Andhra. Subsequently Chalukyas lost to Rashtrakutas & thereafter the capital Badami never regained its stature & importance. It has thereafter been under the rule of Hoysalas, Vijayanagar empire, Adil Shah & other nawabs, Marathas, Hyder Ali & then British. 

Badami is famous for rock-cut caves one above the other. These have been carved in huge tall rocks of reddish hard sand stone. Cave 1 is dedicated to Lord Shiva, cave 2 & 3 (which is biggest) have statues of Lord Vishnu in various avtaars & cave 4 is dedicated to Jain religion, their Tirthankars, Yakshas & Yakshis. Some photos.


Lord Shiva in dancing pose. Nine arms on each side total up to 81 poses. Imagine one right hand stationary & left arms flowing in dance formation. Then second right hand stationary & left arms flowing in dance formation. And so on. Fantastic. He is accompanied by Nandi, Ganesha & a drummer. Here Ganesha has a flatter tummy, two arms & is without his carrier Mushak

Walk up to another cave

Must have toiled hard to dig in the caves

Cave 3 is the largest of four caves. Beautifully carved ceiling with amorous & happy couples engraved on each pillar

Colours filled in the engravings on the ceiling are now fading

Cave walls have lot of idols

Lord Mahaveera in meditation pose

Lord Parshavnath protected by Nagraj & flanked by a Yaksha & Yakshni

View of Badami town from the top. In the foreground is Agatyatheertha. The houses in white are modern addition & in all probability look like encroachments in the old capital of Badami. They give a shabby look to the 1500 year old majestic set up of temples, palace, caves & lake. 
Entrance to the fort on top since closed to public


..... more photos shall be available in Part 2.


Tuesday, 18 August 2015

जुगाड़

भारत की अर्थ व्यवस्था के आँकड़े धाँसू हैं - सकल घरेलू उत्पादन याने GDP के अनुसार भारत विश्व में सातवें स्थान पर है और क्रय शक्ति समता याने PPP के अनुसार भारत का स्थान विश्व में तीसरा है। और तेज़ी से आगे बढ़ने की रेस जारी है। पर जनसंख्या के आँकड़े भी तो गजब ढा रहे हैं। क्यूँकि जब प्रति व्यक्ति फिगर निकालना हो तो सब कुछ बंटाढार !

वर्ष 2013 में प्रति व्यक्ति आय 1570 डॉलर थी और विश्व में भारत 120 वें स्थान पर था। उसी वर्ष की PPP मॉडल से गणना करें तो प्रति व्यक्ति आय 5350 डॉलर थी और भारत विश्व में 106 वें स्थान पर था। लुब्बो लुबाव यह कि रास्ता लम्बा है और रास्ता नापने के लिए रॉकेट, हवाई जहाज, कार स्कूटर सभी कुछ चाहिए। अब चूँकि प्रति व्यक्ति आय कम है तो व्यय भी कम ही होगा तो ज़ाहिर है कि कुछ न कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा। 

वैसे भी NASA के सैटेलाइट और रॉकेट करोड़ों डालर में बनते हैं और उसके मुक़ाबले अपने देसी वाहन चाँद और मंगल ग्रह तक आधी पौनी क़ीमत में ही पहुँच जाते हैं ! पर अपने गाँव शहरों में आने जाने की सुचारू व्यवस्था तो है नहीं इसलिए यहाँ भी लोकल मिस्त्री कलाकारी करते रहते हैं। कुछ नमूने प्रस्तुत हैं:

पधारो म्हारे देस ! राजस्थान और गुजरात में जुगाड़ को 'छकड़ो' कहते हैं. यह रॉयल एनफीलड 350 सीसी के इंजन से बनाया हुआ है. 6 सवारी और उनके सामान सहित दूर दराज इलाकों में खूब चलते हैं ये जुगाड़

रिक्शा या ऑटो या दोनों का गठजोड़ ?

ये हैं मिस्त्री इरफ़ान मेरठ वाले 

स्कूटर का आखरी दम तक उपयोग - पूरा पैसा वसूल !

ये चित्र मेरठ में लिया गया है. यहाँ उत्तर प्रदेश में जुगाड़ों की भरमार है

ठेले के नीचे स्कूटर का छोटा इंजन लगाया हुआ है. माल ढुलाई का सस्ता और आसान तरीका



Thursday, 13 August 2015

कामरेड का चुनाव प्रचार

सितम्बर 1979 में बैंक में बतौर क्लर्क काम कर रहा था और तभी कम्युनिस्ट पार्टी भी ज्वाइन कर ली थी. इन्हीं दिनों बैंक में प्रमोशन का टेस्ट भी हुआ और नवम्बर 1979 में ऑफिसर बन गया था. इस ख़ुशी में बुलेट 350 मोटर साइकिल भी खरीद ली.

उन दिनों राजनीति में भी काफी उथल पुथल हो रही थी. 1977 में जनता पार्टी की सरकार आपसी झगड़ों में लड़खड़ा कर गिर गई. जून 1979 में प्रधान मंत्री चरण सिंह की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था क्यूंकि बहुमत नहीं था. और जनवरी 1980 में सातवीं लोक सभा का चुनाव होना तय हो गया था.

सितम्बर 1979 में कम्युनिस्ट पार्टी ज्वाइन करने के बाद दो तीन मीटिंग में शामिल हुआ. लोक सभा के चुनाव आ रहे थे और दिल्ली सदर से कामरेड प्रेम सागर गुप्ता ने पर्चे दाखिल करने थे. प्रचार के लिए पैसे, बन्दे, पर्चे, पोस्टर वगैरा की तैयारी हो रही थी. मुझे प्रचार के लिए पार्टी के करमपुरा दफ्तर में जाने के लिए कहा गया.

बुलेट पर किक मारी और वहां जा पहुंचे. ऑफिस एक गोदाम में था और वहां तीन वालंटियर बैठे थे. हावभाव और कपड़ों से तीनों किसी फैक्ट्री के वर्कर लग रहे थे. मैंने परिचय दिया तो उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे देखा. जीन, सफ़ेद शर्ट और मोटर साइकिल देख कर एक बोला
- यहाँ तो हम लोग संभाल लेंगे आप ऐसा करो की राजौरी गार्डन ऑफिस चले जाओ वहां के लोगों से आप ढंग से बात कर लोगे.
फिर बुलेट को किक मारी और फटफट करते अपन वहां पहुँच गए. राजौरी गार्डन इलाका थोड़ा सा पॉश और बेहतर इनकम वालों का था. पंजाबी लोग ज्यादा थे. ऑफिस किसी के घर के वरांडे में बना रखा था. वहां तीन लोगों की टीम बनी, हैण्ड बिल्स लिए और चल पड़े घर घर की घंटी बजाने. वहां के लोगों से हुई वार्तालाप के कुछ नमूने पेश हैं.

***
घंटी बजाई तो माताजी निकलीं. हैण्ड बिल दिया और अपने उमीदवार को वोट डालने का निवेदन किया. माताजी ने हैण्ड बिल तो नहीं पढ़ा पर बोलीं -
- काका हमारी तो नालियाँ कोई साफ़ ही नहीं करता. देखो ना कितने मच्छर हो रहे हैं.
इतने में फिर दरवाज़ा खुला और माताजी का 40-45 साल का बेटा आया और माताजी के हाथ से हैण्ड बिल ले कर पढने लगा. पढ़ कर बोला -
- माताजी इन बिचारों ने कभी राज तो किया नहीं ना करना है ये नालियाँ क्या साफ़ कराएंगे.

***
एक गेट पर घंटी बजाई तो सरदार जी निकले. हैण्ड बिल पढ़ते ही तमतमा गए.
- आप यहाँ से जाते हैं या कुत्ते खोल दूं?

***
एक सज्जन निकले, हैण्ड बिल पढ़ा और हंसने लगे.
- आप लोग इतनी मेहनत कर रहे हो पर कुछ होना नहीं है. चाय वाय पीनी है तो आ जाओ. आपको वोट तो हमने देना नहीं है.

***
एक गेट पर नाम के साथ स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया भी लिखा हुआ था. हमें लगा कि यहाँ दाल गल जाएगी. सज्जन बाहर निकले हैण्ड बिल पढ़ा और बोले-
- भई मैं यूनियन में जरूर हूँ पर ये मतलब नहीं की मैं कम्युनिस्ट हूँ. हाँ जब भी यूनियन कहती है तो मैं स्ट्राइक पर भी जाता हूँ. पर वोट की बात अलग है. मेरी  पार्टी तो जनता पार्टी है और वोट तो उसी को ही देना है.

उस चुनाव में कामरेड प्रेम सागर गुप्ता को लगभग 30 हजार वोट मिले और शायद जमानत भी जब्त हो गई थी. जगदीश टाईटलर भारी बहुमत से जीते. उस सातवीं लोक सभा में स्कोर था > कांग्रेस(INC) - 353, सीपीएम - 37, सीपीआई - 10 और जनता पार्टी (सेक्युलर) - 41.

इंदिरा गाँधी 1980 के चुनाव में भाषण देते हुए . चित्र khabar.ibnlive.in.com के सौजन्य से 


Tuesday, 4 August 2015

खजांची का बेटा

बैंक के अंदर प्रवेश करते ही बांये हाथ पर मेरा केबिन था. उससे लगा हुआ एक लम्बा काउंटर था और उसके बाद खजान्चियों के लिए तीन जालीदार केबिन बने हुए थे. पहले दो में कैश जमा होता था और तीसरे केबिन में हैड कैशियर याने प्रधान रोकड़िया बैठता था. आप कभी मिले हमारे हैड कैशियर से या नहीं? तो चलिए मैं ही आपका परिचय करा देता हूँ.

हैड केशियर का नाम मनोहर है पर ज्यादातर स्टाफ के लोग प्यार से उसे 'हैड' पुकारते थे. 'हैड ये पेमेंट कर देना', 'हैड ये नोट बदल देना' वगैरा. हैड का कद छोटा पर गठा हुआ शरीर और रंग गोरा था. हैड अपने सिर के बालों में कोई सुगन्धित सा तेल लगा कर बाल पीछे की ओर कर के रखता था. उमर 60 के नजदीक थी पर बाल घने और बहुत कुछ काले थे. हर वक़्त मुंह में पान वो भी 300 नंबर तम्बाकू वाला रखता था. हैड के पान की एक ख़ास तरह की सुगंध आती थी जो मुझे नापसंद थी. उसके होटों के दोनों कोरों में हमेशा लाली रहती थी. कभी कभी आँखों में सुरमा या काजल सी कोई चीज़ डाल कर आता था. कई बार पूछने पर भी हैड ने आँखों के काले रंग का राज़ नहीं बताया बस हंस कर टाल दिया.

इत्तेफाक से एक बार हैड ने घर में एक धार्मिक अनुष्ठान किया तो सारी ब्रांच को निमंत्रण मिला. उस दिन पहली बार उसके घर जाने का मौका मिला. चावड़ी बाज़ार से गली चूड़ी वालान और उसके अंदर कोई और पतली गली कभी बाएँ और कभी दाएं. आगे आगे हैड चलता जा रहा था और गली मोहल्ले के इतिहास का व्याख्यान करता जा रहा था. मुझे लग रहा था कि अभी कोई इस भूल भुलैया में से बाहर निकलेगा और कहेगा मैं यहाँ का बादशाह हूँ! पता नहीं कभी इन गलियों में धूप भी आई थी या नहीं? हैड की भाषा भी ध्यान देकर समझनी पड़ती थी 'विसने कई' याने उसने कहा और 'आरिया' याने आ रहा हूँ. स्टाफ वाले उसका मज़ाक भी उड़ाते थे 'हैड ना आरिया ना जारिया खड़ा खड़ा मुस्करा रिया'.

दो मंजिले घर में पहुंचे तो धुप अगरबत्ती की खुशबू फैली हुई थी और पंडित जी मन्त्र पढ़ रहे थे. घर में बेटे से मुलाकात हुई. पता लगा कि दसवीं पास करके खाली बैठा था और आदतें बिगड़ रहीं थीं. शकल से और बात करने से भी वह चालाक सा ही लग रहा था. बेटा हैड की चिंता का विषय था. हैड उसके लिए काफी दौड़ भाग कर रहा था. खैर कथा समाप्त हुई प्रशाद बनता और सबनें घर की और प्रस्थान किया. कुछ महीनों बाद जब हैड ने लड्डू बांटे तो पता लगा की हैड ने जनरल मैनेजर से कह कहा के किसी तरह बेटे को भी बैंक में कैशियर लगवा दिया था.

बेटे की नौकरी के बाद हैड संतुष्ट सा नज़र आता था. अब उसे लगता था की बेटे की जल्दी शादी करके फिर रिटायर होकर आराम से जी सकूँगा. आजकल हैड कुछ ज्यादा ही तैयारी से ब्रांच में आने लगा था. प्रेस किये हुए चकाचक कपड़े और कुछ परफ्यूम भी. उड़ती उड़ती खबर पहुंची की हैड ने फिर से मुजरा देखना शुरू कर दिया था और शनिवार को जीबी रोड के कोठों पर जाना शुरू कर दिया था. मुजरों की आड़ में वहां तो हर तरह के काम होते थे. पर इन बातों से मैनेजर को क्या लेना देना था और फिर हैड के काम में भी तो कोई शिकायत नहीं थी.

एक शनिवार शाम को हैड मुजरा देखने पहुंचा गया. चकाचक कपड़े, मुंह में पान की गिल्लोरी और जेब में नोट. गाने की धुन और घुंघरू की छन छन पर दरी पर बैठ और मसनद पर कुहनी टिका के हैड मस्ती में सिर हिला रहा था. सुरूर धीरे धीरे बढ़ रहा था. इस बीच मुजरे के दौरान दरवाज़ा खुला तो हैड ने उत्सुकता वश कनखियों से दरवाज़े की ओर देखा. कौन कमबखत बीच में आ टपका? पर नज़र पड़ते ही हैड की सांस रुक गई और शरीर ठंडा पड़ने लगा. हैड का बेटा ही अंदर आ रहा था. बेटे को अंदर आता देख कर घबराहट से आँखों के आगे अँधेरा छा गया. कुछ पलों बाद संभला और तेज़ी से चोर दरवाज़े से दूसरी तरफ निकल गया. 

बाहर निकल कर देखा तो नंगे पैर था. जूते तो लेने अब नहीं जा सकता. नंगे पैर ही चल पड़ा. जाने कब तक इधर उधर भटकता रहा. फिर दिल्ली स्टेशन पर जा कर एक बेंच पर लुढ़क गया. क्रोध, ग्लानि, खीझ, और शर्म से उसका सिर घूम रहा था. बहुत देर तक सर पे हाथ रख कर ऐसे ही पड़ा रहा और फिर सिसकने लगा. आंसू निकल आये तो मन कुछ हल्का हुआ. हरिद्वार जाने वाली गाड़ी प्लेटफार्म पर आई तो अनजाने ही उस में बैठ गया.

महीने भर तक परिवार और पुलिस को उसका कोई सुराग नहीं मिला. तरह तरह की अटकलबाजी लगीं - आत्महत्या? एक्सीडेंट? पर कोई खबर नहीं. एक दिन मैं ऑफिस में लेट बैठा हुआ था की फोन की घंटी बजी. हैड बोल पड़ा. रोते रोते उस ने अपनी कथा और व्यथा सुनाई. 
अगले दिन हैड के कहे अनुसार उसकी पत्नी को बुलवाया. हैड का भी फोन आ गया और दोनों की बात भी करा दी. कुछ पैसे पत्नी को दे दिए. 

बेटे की शादी करने के बाद पत्नी भी हैड के पास हरिद्वार चली गई थी.

पिछले कई सालों से हैड से बात नहीं हुई है.  

जीवन धारा 



Monday, 3 August 2015

सुखना झील, चंडीगढ़

सुखना लेक चंडीगढ़ के पास शिवालिक पहाड़ियों के तलहटी में है. यह झील तीन वर्ग किमी में फैली हुई है और इसका ज्यादातर पानी पहाड़ियों पर हुई बरसात से इकठ्ठा होता है. यह कुदरती झील न हो कर एक बनाई हुई झील है. 1958 में सुखना खड पर बांध बना और यह झील भी तैयार हो गई. इसकी गहराई 8 फीट से 16 फीट तक है. झील के साथ ही गोल्फ कोर्स और रॉक गार्डन भी हैं.

झील को प्लान करने और बनवाने वाले थे - ली कोर्बुसिए ( Le Corbusier ), चीफ इंजीनियर पी एल वर्मा और इनके सहयोगी पिएरे जेनेरे ( Pierre Jeanneret ). इस झील की शांति और सौम्यता बनाए रखने के लिए प्लान बनाने वालों ने झील में मोटर बोट का चलाना बंद करवा दिया था.

पिएरे ( जो ली कोर्बुसिए के कज़िन थे ) को इस जगह से बहुत लगाव था. यहाँ तक की उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनके पार्थिव शरीर की राख का विसर्जन इसी झील में 1970 में उनकी भतीजी द्वारा किया गया था.

झील के साथ बसा चंडीगढ़ शहर का प्लान भी ली कोर्बुसिए का बनाया हुआ है. ली कोर्बुसिए का असली नाम चार्ली एडवेरो जेनेरे ( Charles Edouard Jeanneret ) था और वे स्विट्ज़रलैंड के रहने वाले थे. वैसे शहर का मूल प्लान अमरीकी वास्तुकार अल्बर्ट मेयर और मैथ्यूज़ नोविकी ने बनाया था. 1950 में नोविकी की मृत्यु होने के बाद शहर की योजना ली कोर्बुसिए के हाथ सौंप दी गई.

सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नाव की सैर लुभावनी लगती है. जब ये फोटो ली गयीं तब शाम को आसमान पर बादल छाए हुए थे:








Saturday, 1 August 2015

चुनरिया

फटफटिया चलाने का जो मज़ा बुलेट में है बस किसी और में नहीं है. बाकी फटफट तो बस बच्चों के खिलौने हैं और चलाने वाले चिड़ीमार! बुलेट चाहे 20 पर चले या 100 की स्पीड पर इसकी एक खास आवाज़ आती है धग धग धग धग. ये आवाज़ तो बस म्यूजिक है म्यूजिक. जैसे जैसे स्पीड बढ़ती है आवाज़ में एक रिदम बन जाती है. कमीज़ के कालर फड़फड़ करने लग जाते हैं और जुल्फें लहराने लग जाती हैं. वाह जनाब वाह! पर उस प्राचीन काल में हेलमेट नहीं हुआ करते थे और ट्रैफिक भी कम था तो लम्बी सड़क में राइड मज़ेदार होती थी.

15 अगस्त को सोमवार था. कमाल का वीकेंड ढाई दिन का - शनिवार आधा दिन, इतवार और सोमवार तो फिर क्यों न लम्बी रेस लगाई जाए. और अगर इस सफ़र में कोई साथ चले तो सफ़र सुहाना हो जाए. मनोहर नरूला उर्फ़ मन्नू भाई ने निचले फ्लोर पर लोन सेक्शन में इण्टरकॉम लगाया. कर्कश आवाज़ आई
- गोयल  बोल रहा हूँ.
फोन बंद कर दिया अरे यार तुमसे बात नहीं करनी गोयल साब. ये साब भी बस अपनी सीट और फ़ोन दोनों से चिपके रहते हैं. दस मिनट बाद फिर घंटी बजाई. वाह कैसी मधुर आवाज़ आई,
- हेलो
- कैसी हैं आप मिस संध्या ?
- ओ आप ! मैं तो ठीक हूँ आप ही सुर में नहीं लग रहे !
- हें हें हें! जी वो सुर तो बदल जाएगा. इस बार दो दिन का वीकेंड है ना. 15 अगस्त तो सोमवार को है ना.
- ओहो तो आप 15 को लाल किले पर बैंड बजाने वाले हैं?
- हें हें हें! ना जी ना. चलिए आपको 15 अगस्त को अपनी बुलेट पर सैर कराता हूँ. मूर्थल के ढाबे के परांठे बड़े मशहूर हैं.
- आप खाएं और अपनी बुलेट को भी खिलाएं.
- हें हें हें! अच्छा अच्छा. तो फिर मिस कोटपुतली की तरफ चलते हैं दाल, बाटी चूरमा?
- हमें तो दाल में कुछ काला नज़र आ रहा है?
- हें हें हें! जी नहीं जी नहीं. फिर आप ही फरमाएं किधर को चलें.
- फरमा देंगे.
फोन बंद. मस्का फेल. परांठे मुरझा गए और दाल बाटी चूरमा ठंडा हो गया. पर मन्नू कोशिश करना अपना फ़र्ज़ है बिना कोशिश के कुछ भी मिलने वाला नहीं है. ये ही तो लिखा है गीता में. और अगले दिन कोशिश जारी रही. घंटी का जवाब मधुर आवाज ने दिया.
- हेल्लो मिस संध्या कैसी हैं आप? तो फिर 15 को ना मूर्थल ना कोटपुतली. पर बंगाली मार्किट के गोलगप्पे के बारे में क्या विचार है जी आपका?
- अच्छा विचार है शाम 4 बजे.
गजब! अरे ये तो गजब हो गया जी! वो तो सामने केबिन में खड़ूस गोयल मैनेजर बैठा था वर्ना जोरदार सिटी बजा दी होती! 15 तारीख 4 बजे से 6 बजे तक गप्पें, गोलगप्पे, गप्पें और गोलगप्पे के दौर चलते रहे. 
- चलिए जनाब अपनी फटफटिया स्टार्ट कीजिए. 
- ओ हाँ हाँ.
बुलेट को किक मारी और विनम्र निवेदन किया,
- आइये बैठिये घर छोड़ देता हूँ.
फटफटिया इंडिया गेट होते हुए किदवई नगर की ओर दौड़ पड़ी. शाम की सुनहरी धूप में इंडिया गेट का खुलापन, पेड़ों की क़तार और हरे भरे लॉन कमाल के लगते हैं. फटफट की आवाज़ और पिछली सीट पर मिस संध्या ! बस गजब का सफ़र! सुहाना सफ़र किदवई नगर के सरकारी क्वार्टरों में समाप्त होने को था. बच्चे खेल रहे थे और कुछ लोग सैर कर रहे थे. बुलेट धीरे कर ली. पर इतने लोगों को देख मिस संध्या कुछ हड़बड़ाईं. पिछली सीट पर कुछ हलचल हुई और अचानक से चुन्नी का एक कोना बाइक की चेन में फंस गया. चुन्नी का बाकी हिस्सा सड़क पर बुलेट के पीछे पीछे लटकता हुआ आने लगा. कमबख्त बच्चों ने तुरंत शोर मचा दिया 
- ओ चुन्नी! चुन्नी!
- अरे चुन्नी फंस गई!
- आंटी की चुन्नी! 
सैर करने वाले लोगों में से कुछ मुस्कराए और कुछ हँसे. कुछेक ने तालीयां भी बजा दी. शोर सुन कर मिस संध्या के मम्मी पापा भी बालकनी से झाँकने लगे. 

ये हिन्दुस्तानी कपड़े भी कमबख्त उलझते रहते हैं ख़ास तौर पर लेडीज़ के. पर आप एक बार बंगाली मार्केट के गोलगप्पे ज़रूर खाएँ और अगर मेरी सलाह मानें तो अकेले ही मजा लें.