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Thursday, 2 April 2015

मछुआरे

भारत की तटरेखा 8118 किमी लम्बी है और सागर तटों पर मछुआरों के लगभग 4000 गाँव हैं। क़रीब ढेड़ करोड़ लोग मछली पकड़ने या उससे सम्बन्धित कार्यों में लगे हुए हैं और यह ₹ 40,000 करोड़ का व्यवसाय है। इसके अलावा नदियों, तालाबों और झीलों में भी मछली उद्योग चल रहा है। 

पर छोटे किसानों या खेतिहर मज़दूरों की तरह अकेले मछुआरे या पारिवारिक मछुआरे भी बहुतायत में हैं। एक मीडियम साइज़ की मोटरबोट 20 से लेकर 50 लाख तक की हो सकती है। पर पूँजी की कमी होने के कारण छोटे मछुआरों का छोटी नावों और डोंगियाँ में ही गुज़ारा चलता है। काम आसान नहीं है पर पापी पेट का सवाल है !

भारत भ्रमण के दौरान लिए गए कुछ मछुआरों के चित्र प्रस्तुत हैं :



कोचिन तट पर चाइनीज़ फ़िशिंग नेट। कहा जाता है की हज़ारों वर्ष पूर्व चीनी व्यापारी मसालों की ख़रीद के लिए आते थे और ये नेट का जुगाड़ उन्हीं की देन है। तिकोनी बल्लियों पर नेट बाँध कर पानी में छोड़ दिया जाता है। दूसरी ओर बैलेंस रखने के लिए रस्सियों में पत्थर बाँध दिये जाते हैं। रस्सियों को नीचे खींचने से तिकोना जाल फँसी हुई मछलियों के साथ उपर आ जाता है

यह द्रश्य सागरतट पर होटल की बालकनी से लिया गया - मुरूदेश्वर, कर्नाटक 

कोचिन बैकवाटर में एक मछुआरा। मोटर बोट आती देख उसने दूर ही रहने का इशारा किया। मोटर बंद कर के और पास जा कर यह फ़ोटो ली। मोटर की आवाज और कंपन से मछलियाँ भाग सकती हैं या मछुआरे का बैलेंस बिगड़ सकता है 

कर्नाटक में तुंगभद्रा बाँध से बनी झील। मछुआरों की गोल डोंगी पर ग़ौर करें दो तीन लोग आराम से बैठ सकते हैं

डोंगी में मछुआरे

पोंडीचेरी तट पर एक मछुआरा 




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