अठारहवीं शताब्दी के अंत में स्काट इंजीनियर जेम्स वाट ने भाप के इंजन का अविष्कार किया तो ये सवाल उठा की इंजन की पावर कितनी मानी जाए और कैसे नापी जाए। जेम्स वाट ने इसका सीधा सा जवाब दिया की अगर इंजन दो घोड़ों की छुट्टी कर दे तो दो होर्सपावर का और अगर पाँच घोड़ों जितना काम कर दे तो इंजन की क्षमता पाँच होर्सपावर की है।
खैर अब तो वैज्ञानिक परिभाषा बना दी गई है : एक मेट्रिक होर्सपावर वो पावर है जिससे 75 किलो वज़न उठाकर एक सेकेंड में एक मीटर दूर तक ले जाया जा सके। और इससे आगे वाट या किलोवॉट आ गए : एक होर्सपावर = 745.5 वाट।
पर अपने हिन्दुस्तान में पशु-पावर बहुत ज़्यादा है। यहां न केवल होर्स-पावर है बल्कि खच्चर-पावर, गधा-पावर, भैंसा-पावर और बैल-पावर भी है। किसी भी शहर या गाँव में ये बोझा ढोते मिल जाएँगे। पशु-पावर से कितने डालर का इंधन बचता है या कितने लोगों का जीवन यापन होता है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। इस पर इंटरनेट में कोई सरकारी आँकड़े भी नहीं मिले। बहरहाल पेश हैं कुछ फ़ोटो जो चलते चलाते लिए गए थे :
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गर्दभ-पावर : मेरठ की एक बिल्डिंग का काम करते हुए। एक गधे की क़ीमत ₹ 6000 से लेकर ₹ 10,000 तक हो सकती है |
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मेरठ शहर के ट्रैफ़िक जाम में फँसी बैलगाड़ी |
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शिरड़ी, महाराष्ट्र का एक टांगा। टाँगे में अभी भी लोहे के पहिए ही लगाए जाते हैं जिनपर रबड़ चढ़ी है |
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1985 में सोना टावर, मिलर रोड, बैंगलोर में IBM का सामान जिसमें सैटेलाइट डिश भी थी बैलगाड़ी में आया था ( इंटरनेट से उतारा गया चित्र ) ! |
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बदामी, कर्नाटक के पास एक गाँव में बैलगाड़ी और 'हीरा मोती'। यहाँ बैलों के सींग बड़े बड़े और घुमावदार हैं। इनके लोहे के पहियों पर भी रबड़ चढ़ा रखा है |
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दिल्ली की आउटर रिंग रोड पर पुरातन बैलगाड़ी और यहीं चल रही है आधुनिक मेट्रो |
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