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Wednesday, 30 December 2015

झूले लाल मंदिर, जयपुर

झूले लाल जलदेवता वरुण के अवतार माने जाते हैं. उनका अवतरण सिन्धी हिन्दुओं का उद्धार करने के लिए हुआ था. उन दिनों सिंध में एक बेरहम राजा मिरख शाह का राज था. प्रजा पर अत्याचार हो रहे थे और धर्मंतारण कराया जा रहा था. सिन्धी समाज ने सिन्धु नदी के किनारे 40 दिन तक तपस्या की. फिर नदी में मत्स्य पर भगवान झूले लाल प्रकट हुए और आश्वासन दिया कि जल्द ही स्थिति का निवारण कर देंगे.

चैत्र याने अप्रैल 1007 में झूले लाल ने नसरपुर, सिंध प्रदेश में जन्म लिया. उनकी माता का नाम देवकी और पिता का नाम रतन राय था. बालक का नाम उदेरो लाल रखा गया. झूले में ही बालक ने विलक्षण प्रतिभा दिखाई इसलिए बाद में झूले लाल या लाल साईं कहलाए. उनके अन्य नाम हैं - घोड़ेवारो, पल्लेवारो, ज्योतिवारो और अमर लाल. मुस्लिम भक्तों की ओर से नाम है पीर जिन्दाह.

बालक उदेरो की चर्चा शाह के दरबार में भी पहुंची और बालक को तलब किया गया. शाह के दरबार में सिपाहियों ने उदेरो को पकड़ने की बड़ी कोशिश की पर बालक हाथ ना आया. शाह ने चमत्कार देख बालक उदेरो से माफ़ी मांगी और सभी लोगों से अच्छा व्यवहार करने का वादा किया.

भगवान झूले लाल का अवतरण दिवस 'चेती चंड' के रूप में मनाया जाता है. इस दिन झूले लाल जी के सम्मान में शोभा यात्रा निकली जाती है, भजन गाए जाते हैं और लोक नृत्य भी होते हैं. भगवान झूले लाल का वाहन मछली है जो ताजे पानी की 'पालो' मछली है और सिन्धु नदी में पाई जाती है.

झूले लाल जी मंदिर, जयपुर की कुछ फोटो:

जेको चवेंदो झूले लाल, तहेंजा बेड़ा पार, बेड़ा पार, सदा बहार !
इश्वर अल्लाह हिक आहे, सजि सृष्टि हिक आहे एं असां सभ हिक परिवार आहियू  
सभनी हद खुशहाली हुजे 
लाल साईं  (इन्टरनेट से लिया गया चित्र )



Tuesday, 29 December 2015

दो व्यापारी

चलो काम पर चलें 

बनारस में दो अमीर व्यापारी रहा करते थे. दोनों में अच्छी मित्रता भी थी पर व्यापार की नज़र से देखें तो दोनों में मारकाट भी मची रहती थी और एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ भी लगी रहती थी. दोनों अपने साथ 50 - 60 बैलगाड़ियों मैं सामान भर कर दूर दराज इलाकों में बेचने जाते और स्वर्ण मुद्राएँ बटोर कर लाते थे. कभी कभी वापसी में माल के बदले माल भी ले आते और उसे यहाँ बेच देते. दोनों का कारोबार अच्छा चलता था.

इस बार माल भरते समय उनका इरादा बना की रेगिस्तान के उस पार जाकर माल बेचा जाए. दोनों में बातचीत हुई. उन्हें लगा की अगर दोनों एक साथ सामान लाद कर अपनी अपनी बैलगाड़ियाँ लेकर निकले तो काफी भीड़ हो जाएगी. तो क्यूँ न अलग अलग समय पर निकला जाए?

एक ने पहले जाने की पेशकश की तो दूसरे ने मान ली. इस पर पहले वाले ने सोचा 'पहले जाएंगे तो रास्ता ज्यादा उबड़ खाबड़ नहीं होगा. बैलों के लिए काफी मात्रा में हरी घास भी मिल जाएगी. बढ़िया फल और सब्जियां भी मिल जाएंगी. पहले जाने से माल आसानी से ज्यादा मुनाफे में बिकेगा और मेरे कारिंदे भी खुश हो जाएंगे. मैंने दूसरे व्यापारी का कैसा उल्लू बना दिया.'

दूसरे व्यापारी ने स्थिति पर गौर किया. 'पहले व्यापारी की बैलगाड़ियाँ रास्ता बना देंगी तो हमारे बैलों को हांकने में परेशानी कम होगी. घास थोड़ी सूख तो जाएगी पर कम नहीं होगी. फल सब्जियां भी कुछ सस्ती हो जाएंगी. पहला व्यापारी जाकर माल का रेट भी तय कर देगा इसलिए दाम लगाने में ज्यादा झिक झिक नहीं करनी पड़ेगी. पहला व्यापारी सोचता होगा की मुझे उल्लू बना दिया पर मैं ही फायदे में रहूँगा.'

पहले व्यापारी ने माल बैलगाड़ियों पर लदवाया और काफिला चल पड़ा रेगिस्तान की ओर. रेगिस्तान के छोर पर जो गाँव था उस गाँव वालों ने समझाया की पानी खूब भर लो. आगे कोसों तक पानी नहीं मिलेगा. बीच रेगिस्तान में राक्षस भी मिलेंगे उनकी बातों में ना आना वरना खा जाएंगे तुम्हें. पहले व्यापारी ने हंस कर बात टाल दी.

बैलगाड़ियाँ बीच रेगिस्तान में पहुंची तब तक बैल और गाड़ीवान बुरी तरह थक चुके थे और तपते तपते झुलस चुके थे. कपड़ों और गाड़ियों में धूल भर गई थी. तभी सामने से कुछ लोग बैलगाड़ियों में नज़र आये. सब नहाए धोये लग रहे थे और उनकी गाड़ियों में कीचड़ लगा हुआ था. उनका प्रधान जोर से हंसा और बोला' अरे मूर्खो अपनी गाड़ियों से ये घड़े उतार फेंको. गाड़ी हलकी होगी तभी तो बैल चल पायेंगे. अधमरे हो गए हो तुम भी और तुम्हारे बैल भी. रात का डेरा यहीं लगा लो. पानी तो बस थोड़ा ही दूर है सुबह नहा धो लेना. तो हम तो चले अपने रस्ते.'  रात का डेरा वहीं लग गया हालाँकि गाँव वालों ने मना भी किया था. अँधेरी रात में भयानक राक्षसों ने हमला बोल दिया.

दो महीने बाद दूसरे व्यापारी की बैलगाड़ियाँ रेगिस्तान की ओर निकलीं. व्यापारी ने गाड़ीवानों की पंचायत बुलाई और बोला 'देखो रास्ता कठिन है और मैंने सुना है की बीच रेगिस्तान में भयंकर राक्षस भी रहते हैं जो भेस बदल कर झांसा देकर मनुष्यों और पशुओं को खा जाते हैं. हमें पानी बचा कर रखना होगा और बहुत सावधान रहना होगा.'

बीच रास्ते में उन्हें वही राक्षस मिले 'अरे इस धूप और धूल में तुम और तुम्हारे बैल अधमरे हो गए हो. आज रात यहीं विश्राम कर लो और गाड़ियाँ हलकी कर लो. घड़े फेंक दो सुबह तो पानी मिल ही जाएगा. क्यूँ परेशान हो? हम तो जा रहे हैं अब अपने रस्ते'. व्यापारी ने जवाब दिया 'पानी तो नहीं फेंकेंगे और डेरा भी आगे ही डालेंगे यहाँ नहीं'.

पर कई गाड़ीवान बड़बड़ाने लगे की हमें इनकी बात मान लेनी चाहिए थी. बैल तो चल भी नहीं पा रहे. तेज धूप में बदन झुलस रहा है और गला सूख रहा है. हमें यहीं डेरा डाल देना चाहिए था. पर व्यापारी नहीं माना. फिर पंचायत बुलाई और कहा 'बस बढे चलो. एक भी बूँद पानी नहीं गिराना है, आज रात हमें मशालें भी तैयार रखनी हैं और चौकन्ना रहना भी जरूरी है'. ये लोग मुझे बहरूपिये लगते हैं'. लुढ़कते पुढ़कते वे आगे बढ़ते रहे. शाम को वे उस स्थान पर पहुंचे जहाँ पहले व्यापारी पर नरभक्षी राक्षसों ने हमला किया था.

चारों ओर बैलों और मनुष्यों की हड्डियाँ बिखरी पड़ी थी जबकि बैलगाड़ियों पर सामान वैसा का वैसा ही लदा हुआ था. दूसरे व्यापारी ने थोडा सा दूर डेरा डाल दिया. मशालें जला दी गईं और चौकसी कड़ी कर दी गई. सुबह का सूरज उगा तो सब कुछ सुरक्षित था. सभी ने डट कर जलपान किया और बैलों को भी चारा देकर तैयार कर दिया गया. पुराने कारवां से सामान निकाल कर अपनी गाड़ियों में भर लिया गया.

इस यात्रा में दूसरे व्यापारी ने अच्छा लाभ कमाया.

चलो घर चलें 
यह कहानी सिखाती है कि दूसरों की बात जरूर सुन लें पर झांसे में ना आये और अपना विवेक न खोएं. यह कहानी एक जातक कथा पर आधारित है. जातक कथाएँ 2500 साल पहले गौतम बुद्ध के समय प्रचलित हुईं. ये कथाएँ गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बंधित हैं या उन्होंने अपने प्रवचनों में सुनाई हैं. बुद्ध अपने प्रवचन में बहुत सी छोटी छोटी कथाएँ उदहारण के रूप में बताया करते थे. कुछेक कथाएँ दूसरे अर्हन्तों की भी हैं. धम्म प्रचार के साथ साथ ये जातक कथाएँ भी बहुत से देशों - श्रीलंका, म्यांमार, कम्बोडिया, तिब्बत, चीन से लेकर ग्रीस - तक पहुँच गईं.



Saturday, 26 December 2015

बाग में नया साल

बनारस के महाराज का एक बहुत बड़ा और बहुत ही सुंदर बाग था. शहर से थोड़ा हटकर जंगल के पास था और उसमें फूलों और फलों के बहुत से पेड़ पौधे लगे हुए थे. पास ही पहाड़ी नदी बहती थी इसलिए सुबह और शाम ठंडी सुहावनी बयार बहती थी. सुबह बहुत से पक्षियों को चहकते देखा जा सकता था. इनमें से बहुत से पक्षियों का बसेरा भी इसी बगीचे में था. महाराज ने बाग़ की देखभाल के लिए एक माली रख छोड़ा था.

फलों के पेड़ हों तो बंदर कैसे दूर रह सकते हैं ? बाग के पास ही बंदरों का एक झुण्ड भी रहता था. उनका अपना एक महाराजा था. बंदर महाराज अपने बंदर समाज के सभी गुणों से संपन्न थे. बन्दर महाराज और बाग के माली के बीच अच्छा तालमेल था. कभी टकराव तो कभी लगाव.

नया साल आने वाला था. इसलिए माली ने बंदर महाराज को बुलवाया और सप्रेम कहा:

- देखो बंदर महाराज कल नया साल है और मुझे अपने बच्चों के साथ मिल कर मनाना है. आज मैं अपने गाँव जाना चाहता हूँ.
- तो जाओ. हमारे समाज में तो कोई नया साल नहीं होता - बंदर महाराज ने जवाब दिया.
-  मुझे वापसी में तीन चार दिन का समय लग जाएगा. इस बीच राजा के बगीचे की देखभाल का जिम्मा तुम्हारा है.
- ठीक है भाई तुम जाओ. और चिंता न करो मैं भी तो महाराजा हूँ और राजपाट चलाना जानता हूँ - बंदर महाराज बोले.
- घड़े रखे हैं, नदी से पानी लेकर पौधों में डलवा देना.
- बहुत आसान काम है ये तो. करवा दूंगा अब तुम निश्चिन्त हो कर नया साल मनाओ - बंदर महाराज बोले.

आश्वस्त हो कर माली नया साल मनाने अपने गाँव की ओर चल पड़ा.

अगली सुबह नया साल आ गया. बंदर महाराज की एक ही घुड़की में सारी वानर सेना इकट्ठी हो गई. महाराज ने आदेश दिया की नदी से घड़ों में पानी भरो और पौधों में डालना शुरू कर दो. आनन फानन में सैनिकों ने नदी की ओर दौड़ लगा दी और पानी भर भर कर पौधों में डालने लगे. पहले तो बंदर महाराज खुश हुए फिर सोच में पड़ गए की सभी पौधों में पानी डालेंगे तो कहीं नदी का पानी ना समाप्त हो जाए. केवल जरूरतमंद पौधों में ही डाला जाये तो ठीक रहेगा. तुरंत घुड़की लगाई और सारे वानर सैनिक फिर हाजिर हो गए.

- इस तरह से पानी डालते रहे तो कमबख्तो नदी सूख जाएगी. पानी पीने के लिए भी नहीं बचेगा. देख तो लो पानी किस पौधे में डालना है और किसमें नहीं.
- परन्तु महाराज ये तो हमें पता नहीं है. हम कैसे पहचानें?
- अरे मूर्खों जिस पौधे की जड़ें लम्बी हैं उसमें मत डालो. और जिस पौधे की जड़ें छोटी हैं सिर्फ उसी में पानी डालो बस.
- ठीक है महाराज अभी जड़ें निकाल कर देख लेते हैं !

* * * * *
बेवक़ूफ़ दोस्त से दोस्ती करने का नतीजा. यह किस्सा मैंने चालू भाषा में लिख दिया है पर यह एक जातक कथा पर आधारित है. जातक कथाएँ 2500 साल पहले गौतम बुद्ध के समय से प्रचलित हुईं. ये कथाएँ गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बंधित हैं या उनके द्वारा प्रवचनों में सुनाई गईं हैं. गौतम बुद्ध को 35 वर्ष में ज्ञान प्राप्त हुआ और उसके बाद जीवन पर्यंत याने 80 वर्ष की आयु तक ज्ञान बांटते रहे. अपने प्रवचनों में बहुत से उदाहरण या लघु कथाएं सुनाया करते थे. कुछ कथाएँ दूसरे सिद्ध मह्नुभावों की भी है. यही जातक कथाएँ धम्म प्रचार के साथ साथ बहुत से  देशों - श्री लंका, म्यांमार, तिब्बत, चीन से लेकर ग्रीस तक - पहुँच गईं.

मुर्ख मित्र की मित्रता ठीक नहीं (बंगलुरु के पास शिवासमुद्रम जलप्रपात का एक चित्र)


Friday, 25 December 2015

मैरी क्रिसमस !

सभी को क्रिसमस की शुभकामनाएं !

सैंटा आपकी घर की ओर जा रहा है !

सभी सैंटा आप से मिलने आ रहे हैं !


Wednesday, 23 December 2015

गोमतेश्वर


बाहुबली की मूर्ति, श्रवणबेलगोला, कर्णाटक 

गोमतेश्वर या बाहुबली की ये विशाल और सुंदर मूर्ति कर्णाटक के जिला हासन में श्रवणबेलगोला में स्थित है. यह स्थान बंगलुरु से 160 किमी और मैसूरू से लगभग 60 किमी की दूरी पर है. करीबी रेलवे स्टेशन श्रीरंगापतन है और नजदीकी हवाई अड्डा बंगलुरु में है.

श्रवणबेलगोला का अनुवाद कन्नड़ से हिंदी में इस तरह से कर सकते है : श्रवण (बाहुबली के लिए सादर संबोधन ) + बेल ( श्वेत ) + गोला ( सरोवर ).  और कन्नड़ में गोमत के माने विशाल हैं जिससे नाम पड़ा गोमतेश्वर. संस्कृत में इस जगह को श्वेतसरोवर या धवलसरोवर के नाम से भी पुकारा गया है और इन्हीं पहाड़ियों में चट्टानों पर ये नाम खुदे हुए पाए गए हैं. नीचे चित्र में आप सरोवर देख सकते हैं जो दो पहाड़ियों - चंद्रगिरी और विन्ध्यगिरी के बीच में है. विन्ध्यगिरी ज्यादा बड़ी पहाड़ी है. बल्कि ऐसा लगता है की एक ऊँची और विशालकाय चट्टान धरती से 470 फीट ऊपर उठ गई हो.

इसी ऊँचे पत्थर पर चढ़ने के लिए चट्टान में ही 660 सीढियाँ खोदी गई हैं जिन पर नंगे पाँव चढ़ कर ऊपर स्थित जैन मंदिर में दर्शन किये जा सकते हैं. चोटी पर पहुँच कर 57 फीट ऊँची एक ही पत्थर में तराशी हुई बाहुबली की भव्य मूर्ति बनी हुई है. मूर्ति के सबसे नीचे उकेरे गए शब्दों के अनुसार यह मूर्ति 981 में स्थापित की गई, इसके लिए धन की व्यवस्था राजा रचमल्ला ने की और उनके सैन्य मंत्री चावुंडाराय  ने इसे अपनी माँ के लिए बनवाया. मूर्ति 12 साल में तैयार हुई और इसके शिल्पकार थे अरिष्ठानेमी. एक ही पत्थर से तराशी यह मूर्ति विश्व में विशालतम मूर्ति है.

हर 12 साल में बाहुबली का अभिषेक धूमधाम किया जाता है. यह महामस्तकाभिषेक कहलाता है. अगला अभिषेक 2018 में होगा. अभिषेक में मूर्ति को नारियल पानी, सभी नदियों के जल, दूध घी इत्यादि से स्नान कराया जाता है. अंत में हेलीकाप्टर से पुष्प-वर्षा भी की जाती है.

सागर तल से श्रवणबेलगोला की ऊंचाई लगभग 3350 फीट है. मौसम ज्यादातर सुहाना रहता है और बंगलुरु की तरह हवा लगातार चलती रहती है. तापमान लगभग 18 से लेकर 30 डिग्री तक के बीच रहता है. चारों तरफ हरियाली और पहाड़ियां होने के कारण दृश्य सुंदर और मनमोहक हैं.

चलते चलो 

भगवान बाहुबली की बड़ी रोचक कथा है. अयोध्या के राजा, जो बाद में तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभ कहलाये की दो रानियाँ थीं. पहली रानी सुमंगला से ज्येष्ठ पुत्र भरत का जन्म हुआ और दूसरी रानी सुनंदा से द्वितीय पुत्र बाहुबली का जन्म हुआ. राजा ने संन्यास लेने की घोषणा के बाद अयोध्या का राज्य बड़े पुत्र भरत को सौंप दिया. बाहुबली को पौडनपुर का हिस्सा दे दिया गया.

राजा भरत बहुत ही महत्वाकांशी थे और चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहते थे. उन्होंने बहुत से राजा रजवाड़ों को जीत लिया और फिर अपने ही भाई बाहुबली को ललकारा की वो या तो आत्मसमर्पण कर के राज्य दे दे या युद्ध के लिए तैयार हो जाए. बाहुबली ने आत्मसमर्पण से या राज्य देने से इनकार कर दिया. अब युद्ध होना अवश्यम्भावी हो गया था.

बड़े बुजुर्गों ने हस्तक्षेप किया और कहा की दोनों ओर से जान माल का बहुत नुकसान होगा. इसलिए यह तय हुआ की केवल भरत और बाहुबली में ही युद्ध होगा और इस युद्ध की शर्तें इस प्रकार से होंगी :
1. द्र्ष्टियुद्ध - दोनों भाई एक दुसरे को बिना पलक झपकाए देखेंगे. पहले पलक झपकाने वाला पराजित माना जाएगा.
2. मल्लयुद्ध - फिर दोनों की कुश्ती होगी. और अंत में
3. जलयुद्ध - दोनों भाई एक दुसरे के मुख पर पानी फेंकेगे और जो पहले मुख मोड़ लेगा वो पराजित माना जाएगा.
बाहुबली ने तीनों युद्ध जीत लिए. पर अचानक भरे दरबार में भरत ने बाहुबली पर चक्र फेंका. पर दर्शक अवाक् रह गए जब चक्र ने बाहुबली का चक्कर काटा और बिना वार किये दाहिनी ओर गिर पड़ा. बाहुबली को इन घटनाओं से आघात लगा. वे सोच में पड़ गए और फिर राजपाट त्याग कर जंगल की ओर प्रस्थान कर दिया.

एक साल तक घनघोर तप चला. शरीर पर बाम्बियाँ बन गई और लताएँ चढ़ गई. इस बीच भगवान बाहुबली की बहनें ब्राह्मी और सुंदरी ने पिता तीर्थंकर आदिनाथ ऋषभ से भाई के बारे में पूछताछ की. उन्होंने बताया की बाहुबली ज्ञान प्राप्ति से कुछ क्षणों की दूरी पर हैं. पर अहंकार और अभिमान आड़े आ रहा है. वह किसी के आगे हाथ नहीं जोड़ना चाहता क्यूंकि राजा जो था - 'अभी वह हाथी पर खड़ा है'. बहनों ने बाहुबली से निवेदन किया 'ओ मोरे भाई अवि तो गज ती उतरो' (भाई हाथी से नीचे उतरो). यह सुनकर बाहुबली को पश्चाताप हुआ और अभिमान और अहंकार त्याग दिया. वह चलकर पिता के सम्मुख उपस्थित हुए और दंडवत प्रणाम किया. इसके बाद बाहुबली धर्म अध्यापन में लग गए.

जो चक्रवर्ती राजा बन सकता था वो सन्यासी बन गया.

तपस्या में शरीर से लिपटती लताएं 

चरणों की सुंदर बनावट 

उँगलियों और पत्तों का बारीक और सुंदर काम 
पूजा की जा रही है. सांप देखिये - बांयी ओर से पैर की नीचे बिल में जा रहा है और दांयी ओर अक्षरों के ऊपर निकल कर फन फैला रहा है  


पूजा से सम्बंधित एक विडियो youtube में देखा जा सकता है. उसका लिंक है:
https://youtu.be/83rS5T3a_AI



Sunday, 20 December 2015

पहला पैकेज

आजकल तनख्वाह की चर्चा कम होती है और उसकी जगह पैकेज आ गए हैं. तनख़्वाह या पगार प्रति महीने होती है जबके पैकेज सालाना. जैसे 7 लाख का पैकेज, 15 लाख का पैकेज वगैरा. बीच बीच में कोई खबर आ जाती है की फलां-फलां को एक करोड़ का पैकेज किसी फ़िरंगी कम्पनी ने दिया. पिछले महीने ही दिल्ली के चेतन कक्कड़ को गूगल ने सालाना 1.25 करोड़ का पैकेज ऑफर किया है. वैसे चेतन की फ़िलहाल पढ़ाई चल रही है और 2016 में ख़तम होनी है.

पैकेज तो साहब हमारा भी तय हुआ था अलबत्ता उसके 12 टुकड़े कर के हमें महीने की तनख़्वाह के रूप में एक टुकड़ा पकड़ा दिया गया था : पूरे 362 रूपये और 50 पैसे. जीवन बीमा होता नहीं था, यातायात / यात्रा का भत्ता मिलता नहीं था इसलिए सन 1972 के पैकेज का पता लगाना आसान था > 362.50 x 12 = 4350.00 सालाना. तो 4350 रुप्पली में सारा साल ऐश करो ! गूगल वूगल तो तब पैदा भी नहीं हुए थे.

करोड़ के पैकेज किसी को मिले तो अखबार में छपना ही था. पर हमारे सन 1972 के पैकेज की भी कम चर्चा नहीं हुई साहब. पूरे गाँव कसेरू खेड़े में खबर फ़ैल गई थी की लड़का बैंक में लग गया है. प्रसिद्ध पत्रकारों की तरह गाँव वालों ने इंटरव्यू लिए और टिपण्णी भी की :
'बड़ा हुसिय्यार छोरा है जी यो',
'हम तो लड्डू खावेंगे जी लड्डू',
'साबास बेटा माँ बाप का नाम रोसन कर दिया तैने',
'बस इब सादी कर दो लौंडे की'
'बेटा माँ बाप के आसिर्वाद से मिली है नौकरी इनकी सेवा करता रहियो'.

इन पैकेजों में कहीं तो बोनस शामिल होता है और कहीं लिखा होता है की साल बाद में देखा जाएगा. हमारे सन 1972 के पैकेज में ऐसा कुछ नहीं था पर हाँ ओवरटाइम की सुविधा थी. पर वो भी तब जब आपका प्रोबेशन पूरा हो जाएगा याने आप पक्के हो जाओगे तब. जब छे महीने के बाद पक्के हो गए तो सातवें महीने में ओवरटाइम मिला लगभग 20 रुपये. क्या मस्त रकम थी इंडियन कॉफ़ी हाउस, कनाट प्लेस में अड्डा जमाने के काम आती थी. कॉफ़ी और सैंडविच या कॉफ़ी और सांभर वड़ा का बिल 5 रुपये के नीचे नीचे निपट जाता था. टिप देने का कोई मतलब नहीं होता था. इसलिए तीन चार सिटिंग आराम से हो जाती थी.

अब पैकेज देने वाला कहता है की इतने पैसे दूंगा बोल इतना काम करेगा ? ठीक है तो चल शुरू हो जा. ठीक वैसे ही लेने वाले की पसंद नापसंद भी अब चलने लगी है. पैसा लेने वाला भी कह सकता है की मेरी पगार बढ़ाते हो या मैं छोड़ूँ ? हमारे पंगे कुछ और ही थे. सभी बैंक वाले क्लर्कों की एक सी तनख्वाह होगी और तनख्वाह बढ़ेगी तो सबकी बढ़ेगी. और नहीं बढ़ाओगे तो सभी क्लर्क हड़ताल करेंगे. और हड़ताल हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. और हड़ताल में नारे लगाना हमारा अधिकार है :
'तन्खा में बढ़ोतरी - करनी होगी करनी होगी',
'वर्ना बैंक में क्या होगा - हड़ताल होगी हड़ताल होगी',
'इस हड़ताल का जिम्मेवार कौन - ये निक्कम्मी सरकार',
'जब हम ना बैंक खोलेंगे - बैंक में उल्लू बोलेंगे'.

हमारे पैकेज तो इस तरह समाजवादी जमाने में हड़ताल कर के बढ़ते थे. ज़माना समाजवाद का हो या पूँजीवाद का पैकेज देने वाला कंजूसी दिखाता ही है. शायद ही किसी देसी कंपनी ने किसी नए रंगरूट को एक करोड़ का पैकेज दिया हो. जब समाजवाद था तो हम समाजवादी ना हुए और जब पूँजीवाद आया तो हम पूंजीवादी न हुए. यहाँ तो खिचड़ी पैकेज ही मिलते थे और मिलते रहेंगे.

फिरंगी किरकिट का देसी पैकेज


Wednesday, 16 December 2015

बेघर बंदर

पिछले दिनों खबर छपी की उत्तराखंड के मुख्य वन अधिकारी ने पुलिस और यातायात विभाग को शिकायत भेजी की उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों से बंदर लाकर उत्तरखंड में छोड़े जा रहे हैं.

वाह साब वाह उत्तराखंड के साथ सरासर नाइंसाफी है ये. पडोसी प्रदेश अपने अपने बंदरों को संभाल कर क्यों नहीं रखते ? एक तो उनका ध्यान नहीं रखते और दूसरे पकड़-पकड़ कर रात के अँधेरे में उत्तराखंडी जंगलों में छोड़ देते हैं. बहुत नाइंसाफी है रे !

उत्तराखंड से सटे हैं उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश. और पास ही हैं हरयाणा, चंडीगढ़ और पंजाब भी. किसी राज्य में कोई पार्टी राज कर रही है किसी में कोई. क्या जाने कोई राजनैतिक चाल ही ना हो इसके पीछे. इधर के बंदर उधर करना वो भी रात के समय ? जरूर कोई रहस्य है इस चाल में.

अरे साहब यह भी सम्भावना है की इस प्रक्रिया में और गूढ़ रहस्य हो. अगर हम गौर करें तो नेपाल और चीन भी उत्तराखंड से ज्यादा दूर नहीं हैं. मसला अन्तर-राज्यीय  ना होकर अन्तर-राष्ट्रीय भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो मामला ट्रिब्यूनल में ना जाकर यू एन ओ में ले जाना पड़ सकता है.

अब इसका दारोमदार तो जांच एजेंसी पर ही निर्भर करता है. देश में कई गुप्तचर एजेंसियां है, जाने माने जासूस हैं जिनकी सहायता ली जा सकती है. और नहीं तो हमारे कुछेक मीडिया चैनल भी इस में महारत रखते हैं. दो तीन एंकर तो ऐसे हैं जो सीनियर बंदरों का साक्षात्कार रातों रात पेश कर सकते हैं -
एक्सक्लूसिव !
ब्रेकिंग न्यूज़ !
केवल हमारे चैनल पर !
सबसे पहले !
रहस्य खुला !

एक पहलू ये भी है कि पंछी हों या चौपाये ये सीमाओं को कुछ समझते ही नहीं. इनका तो कहना है की सारे देश, प्रदेश और धरती अपनी ही है. जावेद अख्तर का गाना सुना होगा आपने - "पंछी, नदिया पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके". अब इन बंदरों को प्रदेशों की सरहद कौन समझाए.

पर इस चक्कलस में पड़ने से पहले ये भी तो समझ लेना चाहिए की बंदर स्मार्ट और इंटेलीजेंट भी हैं. आखिरकार हमारे पूर्वज रहे हैं. हो सकता है की कुछ सीनियर बंदर प्रदूषण से बचने के लिए अपनी टोलियाँ लेकर कर पहाड़ों की तरफ प्रस्थान कर गए हों ?  
  



Tuesday, 15 December 2015

लगाव

हमारे पेंशनर ग्रुप में श्री वीरवानी भी हैं जो की दादा के नाम से जाने जाते हैं. कुछ लोग प्यार से दादा को 'मॉडल वीरवानी' भी पुकारते हैं. 'मॉडल' का ख़िताब दादा को इसलिए दिया गया है की हमारी मीटिंग में चाहे सुबह की हो, दोपहर की या शाम की, दादा के कपड़े टिपटॉप और जूते चमकते मिलेंगे, चाल में एक अंदाज़ मिलेगा और हल्की सी परफ्यूम भी महसूस हो जाएगी.

उमर 68 साल, कद 5 फुट 6 इन्च, रंग गोरा, सर पर सात आठ बाल खड़े लहराते हुए. बालों की बाकी फसल ख़तम हो चुकी थी बस किनारे किनारे एक सफ़ेद झालर रह गई थी. आँखों पर मोटा चश्मा लगा रहता था जो धूप में काला हो जाता था. रेलवे के बड़े अफसर रह चुके थे दादा. 

दादा की एक बिटिया बाम्बे में ब्याही थी और दूसरी हांगकांग में. नतीजा ये की दादा हर दूसरे महीने हवाई जहाज में 'दादी' को लेकर उड़ जाते थे. हम आपस में तो श्रीमती वीरवानी को दादी ही कहते थे पर उनके सामने नहीं वर्ना दादी हमारा हुक्का पानी बंद कर देती. 

हमें ऐसा लगता था की दादी और उनकी बेटियां दादा का बहुत ख़याल रखती थीं. दादा कभी पुराने या मैले कपड़ों में नहीं दिखाई पड़े. बताते रहते थे की ये शू 8000 का हांगकांग से लिया, ये (मोबाइल) फून सिंगापुर से लिया, ये ट्रैक सूट बॉम्बे से आया और ये बोतल ड्यूटी फ्री खरीदी वगैरा. इन सब चीज़ों से ग्रुप में उनका रुतबा था. 

इधर कुछ दिनों से दादी की तबियत खराब चल रही थी. दादा कभी एक स्पेशलिस्ट के पास ले जाते कभी दूसरे के पास. कभी हांगकांग या कभी बोम्बे में अच्छे डॉक्टर को दिखाने की बात करते. पर दादी एक दिन बिना दादा से पूछे भगवान के पास चली गई. अंतिम विदाई के बाद दादा अकेले रह गए. बैंक के लाकर में सामान था वो निकल कर बेटियों को दे दिया. खातों और मकान का हिसाब किताब भी तो करना था. पर फिलहाल दोनों बेटियां के पास टाइम नहीं था इसलिए जल्दी वापिस जाना चाहती थीं. दादा को छोड़ कर अपने अपने घरों को प्रस्थान कर गईं. फिर कभी आ जाएंगी हिसाब किताब करने.

कुछ दिन बाद दादा हमारी पेंशनर मीटिंग में पधारे. इस बार परफ्यूम की महक नहीं थी. कपड़ों की चमक में भी कमी थी और जूतों पर पोलिश भी नहीं थी. गमगीन माहौल में हाल चाल बताया. जाते जाते मुझ से मुखातिब हो कर बोले 'कल आप मेरे साथ बैंक चलना'.

पर 11 बजे तक नहीं आए तो जाकर दादा के दरवाज़े की घंटी बजा दी. देखा दादा तैयार नहीं हैं बल्कि अस्त व्यस्त हैं. बोले 'बस तैयार हो रहा हूँ. पैन्ट के साथ की मैचिंग शर्ट नहीं मिल रही है कम्बखत. जूते भी पोलिश नहीं हैं. वो ही ख़याल रखती थी. घड़ी भी जाने कहाँ रख बैठा हूँ. पास बुक तो मिल गई है पर फिक्स डिपाजिट नहीं मिली. वो ही सब कुछ सँभालती थी'. 

घर से बैंक और बैंक से घर आने तक दादा ने लगातार अपनी कथा व्यथा बताई. जाहिर था की अब दादा 'मॉडल दादा' की तरह टिपटॉप तो नहीं रह पाएंगे. मुझे महसूस हुआ की दादा को इसी बात को लेकर ज्यादा दुःख है और दादी के ना रहने का अफ़सोस कम है.

पता नहीं दादा के इस लगाव के बारे में मेरा विचार कहाँ तक ठीक है?

जीवन की राहें   


Friday, 4 December 2015

Big Banyan Tree, Bangalore

Big Banyan Tree or Doda Alada Mara is located in village Ramohalli near Kengeri approx 60 kms west of Bangalore City.

This single tree covers 3 acres (approx 12000sq mtrs) & is one of the largest of its kind in India. The tree is said to be 400 years old. Main trunk of this tree is no more due to natural causes. The tree now looks a cluster of trees. Due to aerial roots coming down in to the earth, this tree can live for hundreds of years.

Banyan Tree is National Tree of India.

Largest Banyan tree is named Great Banyan & is in Botanical Garden in Howrah spread in 4 Acres (approx14500sq mtrs) & is said to be 250 years old. Another famous Banyan tree is in Kabirvad island Gujrat. It is said to be 300 years old.

Botanical name of this tree - which is native of India, is Ficus Benghalensis.

Portuguese traders who landed on Gujrat coast observed that Hindu merchants or Baniyas sat under the shade of this tree for trading. They conveyed this to English traders who began using the name ‘Banyan’ for tree itself! 

The tree finds mention in Bhagwad Gita 15.1 also:

'urdhva-mulam adhah-sakham, ashvattham prahur avyayam,
chandamsi yasya parnani yas tam veda sa veda-vit' 

'It is said that there is an imperishable banyan tree that has its roots upward and its branches down and whose leaves are Vedic hymns. One who knows this tree is the knower of the Vedas'.)

Elsewhere in Bhagwad Gita(10.26) Krishna says ‘Of all the trees I am the Banyan tree.....

Banyan tree is also known as Barh, Bargad, Vat, Vatvriksh (Sanskrit), Marri Vrikshamu (Telugu), & Ala Maram (Tamil). In fact the city of Vadodra in Gujrat  is named after this tree.

To reach Big Banyan Tree in Banglore, bus can had from Majestic cinema to Kengeri & from there change to reach Doda Alada Mara. For own vehicles NICE toll road can be taken.

Cool walk under the tree

Roots in to the earth 

Ariel roots are becoming trees 

Ariel roots directed to earth via a bin

Thick & heavy

Network of leaves, branches & roots 



Sunday, 22 November 2015

Hawa Mahal, Jaipur

Pink City was established by Maharaja Jai Singh II. The construction started on 18 November 1727 & was completed in four years. Most of the construction of walls, ramparts, shops & other buildings is in pink or reddish sand stone & hence the name Pink City. Another anecdote about the colour of city is that in 1878 Prince of Wales visited Jaipur when the city was painted pink all over.

The Pink City has an fortified enclosure having seven huge strong gates. It is spread over large nine rectangular blocks two of which were retained for palace, gardens & administrative buildings and rest seven blocks were allocated to the general public.

In 1799 five story high Hawa Mahal was added to the Palace complex during the reign of Maharaja Sawai Pratap Singh. It was designed by Lal Chand to facilitate royal family members to watch processions & street scenes without being seen as they had to maintain purdah. Some photos:

Hawa Mahal 

Rear view from first floor

View of Pink City from a Jharokha. 

View of the street below

View from the top

Back side of Hawa Mahal



Friday, 6 November 2015

मणिपुर और इरोम शर्मिला

इन दिनों मणिपुर की एक महिला इरोम चानू शर्मिला पर कई लेख प्रकाशित हुए हैं. शर्मिला पिछले 15 बरसों से भूख हड़ताल पर हैं. इतनी लम्बी भूख हड़ताल ? एक महिला द्वारा ? किसलिए ?

आम तौर पर उत्तर-पूर्व भारत की खबर दिल्ली में कम ही मायने रखती है क्यूंकि दिल्ली के मसले और ही हैं. इस मसले पर इन्टरनेट में खोजबीन की तो पाया कि मसला राजनैतिक भी है, सामाजिक भी है, स्ट्रेटेजिक भी है और मानवीय भी है. इस मसले का हल कब निकलेगा पता नहीं. जो भी जानकारी मिली संक्षेप में इस प्रकार है :

भारत के उत्तर-पूर्व में एक छोटा सा पहाड़ी राज्य है मणिपुर जिसकी राजधानी इम्फाल है. इस पहाड़ी राज्य में 9 जिले हैं और इसकी आबादी लगभग 28.56 लाख है. आबादी का 42% भाग हिन्दू हैं, लगभग इतना ही भाग ईसाईयों का है और लगभग 9% सनमाही (स्थानीय आदिवासी धर्म) हैं. इनके अलावा मणिपुर में मुस्लिम, बौद्ध, जैन और सिक्ख भी हैं.

* मणिपुर में मेइतिलोन या मणिपुरी भाषा बोली जाती जो संविधान में राष्ट्रीय भाषा के तौर पर दर्ज है. इसके अलावा बांग्ला और असमिया भाषा भी प्रचलित हैं.

* मणिपुर एक संवेदनशील राज्य है जो बर्मा, असम, मिजोरम और नागालैंड से घिरा हुआ है जैसा की आप नक़्शे में देख सकते हैं. मणिपुर 22,300 वर्ग किमी पहाड़ी इलाके में फैला हुआ है. सालाना बारिश करीब 65 इंच तक हो जाती है जिसके कारण यहाँ भरपूर हरियाली है. इसी बारिश के चलते पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों में बहुत विविधता है. सालाना तापमान 32 डिग्री से शुन्य डिग्री तक हो सकता है. यहाँ की मुख्य नदियाँ इम्फाल और बराक हैं.

* मणिपुर की प्रमुख जनजातियाँ (ट्राइब्स) हैं मीतइ जो ज्यादातर घाटियों में रहते हैं, नागा और कुकी-चिन जो पहाड़ी इलाको में रहते हैं. इन जनजातियों की 50 से भी ज्यादा उप-जनजातियाँ बताई जाती हैं.

* इस क्षेत्र का दक्षिण-पूर्व एशिया से भी पुराना सम्बन्ध रहा है. और अभी जो भारत - बर्मा - थाईलैंड सड़क चालू की गई है वो भी मणिपुर से ही होकर जाती है. हो सकता है इस सड़क का प्रयोग बढ़ने से यहाँ रोज़गार और व्यापार के अवसर खुलें.

* मणिपुर विभिन्न राजाओं के अंतर्गत एक स्वतंत्र राज रहा है. सन 33 से मणिपुर में राजे रजवाड़े राज करते चले आ रहे हैं. कुछ समय के लिए 1819 - 1825 यहाँ बर्मी राजाओं का भी कब्ज़ा रहा है. सन 1891 में यहाँ फिरंगियों का राज आ गया.

* द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी सेना ने इम्फाल कब्जाने की कोशिश की पर वे सफल नहीं हो पाए.
 
* विश्व युद्ध के बाद मणिपुर में राजा के अंतर्गत लोकतंत्र चलाने के लिए Manipur Constitution Act 1947 बना. 1949 में महाराज भोज चन्द्र ने भारत में शामिल होने का निर्णय लिया और मणिपुर अक्टूबर 1949 में भारत गणराज्य में विधिवत शामिल हो गया.

* 1956 में मणिपुर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया.

* 1964 में यहाँ एक ग्रुप बना UNLF जिसका उद्देश्य था मणिपुर को स्वतंत्र देश बनाना. बाद में इस तरह के बहुत से ग्रुप बन गए. कई ग्रुप आपस में भी लड़ते हैं. बर्मा, बांग्लादेश और चीन नजदीक होने के कारण स्थिति और विषम है. हथियार और ड्रग्स की तस्करी भी चलती है. पहाड़ियां, घने जंगल और विकास का अभाव भी विषमता बढ़ा रहे हैं.

* 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया.

* 1980 में मणिपुर राज्य में अफ्स्पा या AFSPA (Armed Forces (Special Powers) Act, 1958) लगा दिया गया. इस एक्ट के अनुसार शक की स्थिति में भी किसी के भी घर की तलाशी बिना वारंट के ली जा सकती है और जरूरी हो तो भरपूर बल प्रयोग भी किया जा सकता है. यही क़ानून जम्मू कश्मीर में भी लागू है.


* 2 नवम्बर 2000 को इम्फाल में एक बस स्टैंड पर खड़े लोगों पर असम राइफल्स के जवानों ने गोली चला दी. दस लोग मारे गए और वहाँ की जनता में काफी रोष फैल गया.

* 4 नवम्बर 2000 को इरोम चानू शर्मिला अनशन पर बैठ गईं और उनकी माँग थी की सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम 1958, (AFSPA) को हटाया जाए. पर अब तक एक्ट नहीं हटाया गया और शर्मिला भी भूख हड़ताल से नहीं हटी. उस वक्त वे 28 वर्ष की थीं और अब भूख हड़ताल को 15 साल गुजर चुके हैं.

* शर्मिला पर आत्महत्या का मुक़दमा भी चला. कई बार छोड़ कर तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया. खाना ना खाने की एवज़ में नाक पर नलकी द्वारा तरल खाना दिया जा रहा है. और गिरफ्तारी भी जारी है. धीरे धीरे 'Iron Women' शर्मिला का नाम पूरे विश्व में फ़ैल गया है.

* 2013 में बीबीसी हिंदी को दिए गए एक इंटरव्यू में शर्मिला ने कहा-
"मैं अब शादी करना चाहती हूँ. एक बार मेरा मकसद हासिल हो जाए, तो मैं डेस्मंड के साथ पति-पत्नी के रिश्ते में रहना चाहती हूँ."

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इरोम चानू शर्मिला (फोटो deccanchronicle.com से साभार) 



Happy cracker free Diwali - 4


Hawa Mahal, Jaipur

Wednesday, 4 November 2015

Monday, 26 October 2015

Happy Cracker Free Diwali!

Festivities have started with change in weather.
Best wishes to all.

This weather brings fog also. 
Burning of garbage, wood, cow dung, & vehicular emission increases the pollution level. 
Crackers shall add sulphuric smoke to already polluted atmosphere.
Pollution can damage eyes, ear, nose, throat & respiratory system.

Therefore let's have a cracker free Diwali.
Please!






Thursday, 22 October 2015

Happy Dussehra!

Victory of good over evil - a short story:

Evil peaks, gives a crooked smile
Evil ignores impending danger  
Evil gets hit by Good 
Evil gets demolished!



Wednesday, 21 October 2015

In Pink City, Jaipur

Pink City Jaipur was established by Maharaja Jai Singh II in 1727. Most of the construction of walled city is in pink or reddish sand stone & hence the name. Another anecdote about the city is that the city was painted pink all over during visit of Prince of Wales in 1878.

The city was designed by Vidyadhar Bhattacharya based on ancient Vastu Shastra. It has an fortified enclosure having seven large strong gates. It is spread over huge nine rectangular blocks two of which were retained for palace, gardens & administrative buildings and rest seven blocks were allocated to the general public.

In 1799 five story high Hawa Mahal was added to the Palace complex to enable royal ladies to watch processions & street scenes without being seen as they had to maintain purdah. The Palace & Hawa Mahal were meant for royals & the elite. All commoners now & no royals. Some photos of commoners in walled city:

View of Pink City from Hawa Mahal. In the year 1900 population was 1.6 lacs & now it is 66 lacs 
Royal couple in Royal City

Flower sellers of Pink city in the morning 

Open air saloon near Hawa Mahal- Rs. 20 for hair cut & Rs. 10 for shave 

Near Jantar Mantar the Observatory. In the end it is the birds who occupy palaces 

Near Hawa Mahal 

Waiting for the customers 

A group of foreign tourists enjoying rickshaw ride near City Palace