काली बिल्ली ने रास्ता काट दिया - थाम्बा ! बस थम जाओ वरना बनता काम बिगड़ने की आशंका है । आप इस अंधविश्वास को न माने पर यार दोस्त याद करा देते हैं । पूरे विश्व में काली बिल्लियों को लेकर अंधविश्वास का आतंक फैला हुआ है । पुरानी कहानियों में इस तरह की चर्चा भी थी की अगर किसी ने काली बिल्ली को मारा तो उसके बदलें में उसे सोने की बिल्ली दान देनी पड़ेगी । घनघोर अन्याय !
काले कौवे की कथा कुछ और ही है । पहली बात ये की आप अगर झूट बोले तो काट लेता है । दूसरे अगर घर की मुँडेर पर काले कागा ने कांव कांव की तो समझिए की हिन्ट दे रहा है की मेहमान टपकने वाला है । चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर लो तुरंत । और अगर बीयर भी आ रही हो तो ख़बर कर देना ।
जर्मनी में एक मान्यता है कि कोई मृत्यु शैय्या पर काफ़ी समय से पड़ा हो तो उसके घर की छत की एक खपरैल या टाइल हटा देनी चाहिए ताकी अंतिम साँस आसानी से निकल सके ! याने सीधा सीधा स्वर्ग की ओर !
कुँवारे लड़के लड़कियों को टेबल की नुक्कड़ याने कोने के सामने नहीं बैठना चाहिए । ये मान्यता है रूस में क्यूँकि ऐसा करने से उनको पार्टनर ढूँढ़ने में दिक़्क़त आ सकती है । लो कर लो बात मतलब की कुँवारों के लिए गोल मेज़ ही ठीक रहती है जिसमें कोई कोना ही न हो !
बहुत से लोगों का मानना है कि बुरी नज़र दूर रखने में घोड़े की नाल बड़ी फ़ायदेमंद है । ये नाल मुख्य दरवज्जे पर टांगनी चाहिए । अब ये तो टेढ़ा सवाल है की नाल घोड़ी के खुर की हो या घोड़े की ! और दूसरा सवाल भी एंवे ही है - नाल का मुँह ऊपर हो या नीचे ? आपको जैसा ठीक लगे वैसा कर लेना ।
फिरंगियो को 13 का आँकड़ा बिलकुल पसंद नहीं है । यहाँ तक की ऊँची इमारत में सें 13वाँ माला ही ग़ायब कर देते हैं । या तो 12वाँ माला होगा या फिर 14वाँ । और सुनिए होटल में 13 नम्बर का कमरा नहीं होगा, अगर सीढ़ी बनेगी ते 13 पायदान की नहीं होगी कम की या ज़्यादा की होगी वग़ैरा । और अगर किसी फ़िरंगी को 13 डालर की पेमेंट मिले तो लेगा या नहीं ?
यही िस्थती जापान में 4 की है । किसी जापानी को चार हिस्सों वाला गिफ़्ट न दें बुरा मनाएगा । वहाँ भी कई होटलों में या अस्पतालों में 4 नम्बर का कमरा नहीं मिलेगा । इसका राज़ तो यह है की '4'और 'मृत्यु' दोनों का उच्चारण जापानी भाषा में एक जैसा है !
अंग्रेज़ों की और मान्यता है की सीढ़ी के नीचे से निकलना या नए जूते टेबल पर रखना क़िस्मत फूटने के बराबर है । दोनों ही चीज़ें अंधविश्वास कम और कामन सेंस ज़्यादा लगती हैं । सीढ़ी के नीचे से निकलते वक़्त क्या पता सीढ़ी टकला फोड़ दे इसलिए न ही जाना अच्छा है ।
वैसे ज़्यादातर शंकाएँ, अंधविश्वास और मान्यताएँ पशु पक्षियों को लेकर हैं चींटी से लेकर हाथी तक और गौरैया से लेकर मोर तक । अब दिल्ली के फ़्लैटों में रहकर ये सब बेमानी सी लगती हैं । भीड़ और गाड़ियों ने जगह घेर ली है और उनके सामने पशु पक्षी नहीं टिक पा रहे तो कहावतें और किंवदंतीयां कहाँ टिकेंगीं ।
हाँ भूत और चुडै़लें कई फ़्लैटों और मकानों में घूमती रहती हैं क्यूँ की किराया तो देना नहीं होता । और इनका लेख तो रात को ही लिखना पड़ेगा अंधेरे में और वो भी किसी खंडहर मकान या क़िले में बैठकर । सही जगह की तलाश जारी है । आपकी नज़र में हो तो बताना ।
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