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Friday, 13 June 2014

क़िस्सा-ए-बैंकर

विजय कुमार घोटाले उर्फ़ विज्जू का मन कभी पढ़ाई लिखाई में नहीं लगा । अक्सर इस बात पर पिताजी से पिटता रहा और माँ से डाँट खाता रहा । ज़्यादातर दोस्तों के साथ खेलना पसंद था । या कभी माँ के कहने पर भैंस को तलैय्या तक ले जाता था । भैंस भी वहाँ डुबकी मारती और विज्जू भी । रोते पीटते बी ए पास कर ली तो अब नौकरी करने का मन नहीं था । बस अपना काम करूँगा सोचता रहता था । क्या काम करेगा ये तो पता नहीं था । गाँव शहर से बारह किमी दूर था । काम ढूँढने और शहर जाने के लिए फटफटिया भी चाहिए थी और पिताजी पैसे देने को तैयार नहीं थे ।

एक दिन गाँव में बैंक की शाखा खुल गई और पूरा गाँव उद्घाटन के लड्डू खाने के लिए उमड़ पड़ा । विजय भी अपने दोस्त लछमन दास घपले उर्फ़ लच्छू के साथ पहुँच गया । जब रीजनल मैनेजर ने भाषण में कहा की बैंक हर तरह का लोन देने के लिए तैयार है चाहे गाय भैंस हो या दुकान या फ़ैक्टरी विज्जू  के कान खड़े हो गए । उसने लच्छू को कुहनी मारी 'यो क्या कहरा है' । 

उस रात 11 बजे तक विज्जू और लच्छू बात करते रहे की बैंक से कैसे पैसा लिया जाए । अगले दिन धुला हुआ कुरता पजामा पहन कर विज्जू मैनेजर साब से मिला । 
- मैनेजर साहेब लोन दे दो ।
- क्या काम करोगे लोन ले कर ?
- अरे साब कुछियो कर लेंगे । 
- क्या मतलब ? ऐसे थोड़े ही होता है । किसी काम के लिए ही तो लोन होगा या वैसे ही तिजोरी से नोट निकाल कर पकड़ा देंगे ? 
  और फ़िलहाल तो नया ओफिस खुला है अभी तो आप 10-12 खाते खुलवाओ फिर अगले महीने देखते हैं । 

विज्जू को कुछ बुरा सा लगा की भाषण में कमबख्त कुछ बोलते हैं करते कुछ ओर हैं । पर और कोई काम नहीं था और ये भी आशा थी की अगले महीने कुछ बात बन सकती है ये सोचकर वह खाते खुलाने में लग गया । 40 खाते खुलवा दिए और चुपचाप फ़ार्म भरने के दो सौ रूपए भी कमा लिए । मैनेजर साहब को आश्वासन दिया की और 60 खाते दस दिन में खुल जाएँगे । मैनेजर ख़ुश हुआ । धीरे धीरे विज्जू को बैंक के तौर तरीक़े समझ में आने लगे । सारे स्टाफ़ से मेल जोल बढ़ गया ।  बीच बीच में विज्जू लोन के बारे में भी पूछता रहा । 

कभी कभी मैनेजर साब को गाँव में घुमाने के लिए या शनिवार को उन्हें शहर छोड़ने के लिए किसी की मोटर साइकिल का इंतज़ाम कर देता था । साथ में कभी खेत के ताज़े मटर या मूली या गन्ने पैक कर के साहब के लिए ले आता था । अच्छी सेवा कर रहा था । जो सेवा करेगा वही न मेवा खाएगा क्यूँ ?

अब ब्रांच का लोन बजट आ गया और विज्जू की लॉटरी खुल गई । गाय भैंस की लोन फ़ाइल तैयार करने का रेट दो सौ, ट्रेक्टर की लोन फ़ाईल के पाँच सौ कर दिया । मैनेजर और लोन अफ़सर का काम कुछ हल्का हुआ साथ में कुछ धन प्राप्ति भी हुई । लोन लेने वाले को कुछ सुविधा हुई और विज्जू के चेहरे पर लाली आने लग गई ।

कुछ समय बाद पता लगा की तीन किमी दूर किलारी गाँव में एक नया बैंक खुल रहा है । विज्जू ने उससे पहले वहाँ अपनी ब्रांच खोल दी और लच्छू को इंचार्ज नियुक्त कर दिया । अब विज्जू विजय भाई और लच्छू लछमन जी हो गए और उनका कुर्ता पजामा इस्तरी होने लग गया । दोनों ने दिवाली बाँटनी भी शुरू कर दी । दोनों ने पाँच पाँच लाख के होम लोन की भी दरख्वासत लगा दी । होने ही थे और हो भी गए । अब उन्हें मैनेजर या लोन अफ़सर की ट्रांसफ़र से फ़र्क़ नहीं पड़ता था और ये भी समझ आ गया था की बैंक को काग़ज़ों से बड़ा प्यार है । 

एक साल बाद दोनों ने मकान बेच दिए और पैसे खीसों में भर लिए । बैंक की किश्तें जारी रखीं ताकी बैंक नाराज़ न हो । और भी तो काम कराने हैं बैंक से ! जमा हुए पैसों में से इंडस्ट्रीयल एरिया में ज़मीन ली और 25 लाख के लोन के लिए दरख्वासत दी । नीचे से ऊपर सेवा की और ऊपर से नीचे फ़ाईल चलवा दी । चल पड़ा काम और दो सीज़न अच्छे निकले पिछले होम लोन बंद करा दिए । नई गाड़ीयां भी आ गई दोनों के पास । 

विज्जू और लच्छू ने सोचा की इन 6-7 सालों में जो कुछ सीखा है उसके आधार पर तो कुछ और बड़ा करना चाहिए । काग़ज़ों का ही तो खेल है सारा । पैन हो या आईटीआर या ज़मीन के काग़ज़ सभी कुछ तो बनवाया जा सकता है । इस बार पाँच करोड़ के लोन की तैयारी शुरू हो गई । वक़ील, आरकीटेक्ट, सीए और बैंक अधिकारियों के लिए पर्स का मुँह खोल दिया । काग़ज़ों की कमज़ोरियों को दबाया और कुछ अच्छी चीज़ों को और अच्छा कर के उजागर किया । डिनर और कोकटेल की बहार आ गई और तीन महीने की मशक्कत के बाद पाँच करोड़ की स्वीकृति मिल गई । 

अब चूँकि पहले कभी इतनी बड़ी यूनिट विजय कुमार घोटाले और लछमन दास घपले ने चलाई नहीं थी इसलिए लड़खड़ाने लगी । बैंक से नोटिस पे नोटिस फ़ोन पे फ़ोन आने लगे । सपना ध्वस्त होता नज़र आ रहा था । विज्जू ने लच्छू को फैकट्री सौंपी और पुराने बैंकर की तलाश की । फिर एक बार पटाउ कार्यक्रम चला और पुराने बैंकर ने नया सैंक्शन दे दिया वो भी सात करोड़ का । पाँच करोड़ के बेकार लोन में जान आ गई और सात करोड़ के ताज़ा लोन में बदल गया । 

मिलते हैं ब्रेक के बाद । 

गई भैंस पानी में



1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2014/06/blog-post_13.html