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Saturday, 3 May 2014

मानसून का इंतज़ार

पहली मई को ही मेरठ का पारा ४३.१ पर पहुँच गया है तो ३० जून को कहाँ पहुँचेगा ये तो राम ही जाने । और सर जी मेरठ की बिजली सप्लाई का क्या होगा ये तो राम भी न जाने !

विश्वस्त सूत्रों की ऐसी आशंका है की ज़्यादा गरमी का कारण यह चुनाव भी है । उम्मीदवार गरमा गरमी में कुछ का कुछ बोले चले जा रहे हैं और पारा ऊँचा चढ़ता जा रहा है । १६ मई को चुनावी गरमी तो शांत हो जाएगी पर हाँ मंत्री बनने की मशक़्क़त पारा बढ़ा देगी । देखिए अब जून की गरमी क्या गुल खिलाती है । पर सरकार कोई भी आए गरमी नहीं घटा पाएगी । 

गरमी तो साब तब तक जारी रहेगी जब तक की मानसून के छींटें न पड़ें । सुना है की मानसून के िदल्ली पहुँचने की तारीख़ ३० जून है । अब मानसून भी तो साब अपनी मर्ज़ी का मालिक है चाहे तो ३० जून को आए चाहे तो न आए । कोई जवाबदेही नहीं है जी उसकी । न कोई पूछने वाला की भई क्यूँ देर कर रहा है तू बरसता क्यूँ नहीं ? और देर करने की पेनालटी लगाएँ तो िकस पे लगाएं ?

मई जून में उत्तरी भारत की ज़मीन तपने लग जाती है और पारा ४० से ४५ तक पहुँच जाता है । कहीं कहीं जैसे राजस्थान में पारा और भी उपर उठ जाता है । ज़मीन गरमाने के कारण गरम हवा ऊपर की ओर उठने लग जाती है और हवा का दबाव कम होता जाता है । परन्तु बंगाल की खाड़ी, िहंद महासागर और अरब सागर का पानी उतना गरम नहीं होता है । इस कारण वहाँ से ठंडी और नमी भरी हवाएँ उत्तर की ओर चल पड़ती है । और इस तरह मानसून शुरू हो जाता है । 

मज़े की बात ये है की ये हवाएँ हिमालय को पार नहीं कर पाती और साथ में लाए बादलों का पानी यहीं टपका जाती हैं । बढ़िया देश है भई एक तरफ़ समंदर और दूसरी तरफ़ पर्बत । 

मानसून से मिलते जुलते शब्द दूसरी भाषाओं में भी हैं जैसे मानसेओ (पुर्तगाली), मावसिम (अरबी) और मानसन (डच) । 

यह मानसून तिब्बती पठार और हिमालय के उभरने के साथ साथ शुरू हुआ लगभग ५ करोड़ साल पहले । वैज्ञानिकों का मानना है की प्रशांत महासागर का ठंडा पानी कई प्राकृतिक कारणों से  लगभग पचास लाख साल पहले िहंद महासागर में मिलना बंद हो गया और इस कारण से मानसून और प्रभावी हो गया । 

वैसे मानसून कभी एक समान और एक ख़ास समय पर नहीं आता है ।  प्रदूषण ने भी मानसून का मूड ख़राब कर रखा है । मानसून की बारिश का अंदाज़ा लगाना एक मुश्किल काम है । मौसम विभाग १८८४ से इस मानसून के चक्कर में चक्कर खा रहा है । 

पर मानसून की गड़बड़ का कोई उपाय नहीं किया जा रहा ये ठीक नहीं है । इन नेताओं को यह बात समझ में नहीं आती की पानी का इंतज़ाम बहुत ज़रूरी है । नदियों को छोटी बड़ी नहरों से जोड़ा जा सकता है । १९७२ में सिंचाई मंत्री के एल राव ने गंगा को कावेरी से जोड़ने की बात कही थी । इस नहर की लम्बाई २६४० किमी होती अगर यह नहर बनती । इंजीनियर िदनशा दस्तूर ने १९७४ में 'गारलैंड केनाल' की बात कही थी । १९८२ में National Water Development Agency  की स्थापना हुई । परन्तु अभी दिल्ली दूर है और नौकरशाही की फ़ाइलों पर धूल ज़मीं हुई है । 

मानसून लगभग १ जून से शुरू होता है और लगभग १५ अक्तूबर तक समाप्त हो जाता है । पर बारिश के आने के बाद आती है हरियाली, पशु पक्षियों की चाल और उड़ान बदलनी शुरू हो जाती है और दोपायों की धुन भी बदलने लगती है । कुछ गुमनाम शायर इस तरह से मानसून का बयान करते हैं:

"तौबा की थी मैं न पियूँगा कभी शराब,
बादल का रंग देख कर नीयत बदल गई ।"

"बूँदों से बना ये छोटा सा समंदर,
बारिश में भीगी ये छोटी सी बस्ती,
चलो ढूँढ़े बारिश में दोस्तों को,
हाथ में लेकर काग़ज़ की कशती । "

अभी तो मानसून दूर है तब तक आप लस्सी, जलजीरा, आम का पना, ठंडाई, िनम्बूपानी, बीयर वग़ैरा का आनंद लें और फुहार का इंतज़ार करें । आशा है की मानसून समय पर आ जाएगा ।

बादल और बर्फ़ 

1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2014/05/blog-post_3.html