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Saturday, 10 May 2014

आओ पैदल चलें

पैदल चलना दुनिया की सबसे आसान और शायद सबसे असरदार कसरत है । पैदल चलने में न तो न तो किसी तरह की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है और न ही किसी साजो-सामान की ज़रूरत होती है । पैदल चलना तो हमारी आपकी जन्मपत्री में शामिल है । पहले जन्मदिन से पहले ही बच्चों की पैदल चलने की तैयारी होने लगती है ।

पर आजकल इस युग में समस्या पैदा कर दी है पेट्रोल की खोज ने । कारों और गाड़ियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और सड़कों पर फुटपाथ की जगह कम होती जा रही है । इस के अलावा और बहुत से सुख साधन आ गए हैं और पैदल चलना घटता जा रहा है । और तो और पैदल चलने के लिए मशीनों का उपयोग घर में भी होने लग पड़ा है । अब घर से बाहर पैदल बाज़ार जाना आसान नहीं रहा साहब ! 

ऐसा कहा जाता है की आधुनिक आदमी का विकास अफ़्रीका से शुरू हुआ था ।  और उस वक़्त का आदि मानव पैदल चलते चलते एशिया और यूरोप में जा पहुँचा और बसता चला गया । यह क्रिया हज़ारों साल चलती रही और शायद मानव इतिहास की सबसे लम्बी और बड़ी पैदल यात्रा रही होगी । 

अपने भारत के इतिहास में ही देखिए कितने ही उदाहरण हैं लम्बी लम्बी पैदल यात्रा चलने पर । राम को बनवास दिया गया तो वे लक्ष्मण व सीता को ले कर निकल पड़े जंगल की ओर । अयोध्या से चलते चलते लंका तक पहुँच गये । 

जगदगुरू आदि शंकराचार्य ( आठवीं शताब्दी ) ने दूर दूर तक धार्मिक यात्रा की । देश के चार कोनों में चार धाम (मठ) स्थापित करवाए - बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका और पुरी । और पैदल तीर्थ यात्रा की प्रथा शुरू करा दी ।

गौतम बुद्ध ( 563 से 483 ईसा पूर्व ) को ही लीजिए । बौद्ध होने के पश्चात याने ज्ञान प्राप्त करने के बाद लगभग 45 वर्षों तक पैदल घूमते घूमते उत्तर भारत में लोगों में ज्ञान बाँटा । 

आजकल भी भारत में कई जगहों पर धार्मिक यात्राएं होती हैं । अगस्त के महीने में हरिद्वार की ओर कांवड़ यात्रा में लाखों लोग गंगा जल लाने के लिए पैदल यात्रा करते हैं । 

यहाँ दो चीनी पैदल यात्रियों का नाम भी देना उचित होगा । पहले फाहियान ( 337 - 422 ) लगभग सन 399 में भारत आए और 412 तक यहीं रहे । उसके बाद ह्वेन त्सांग ( 602 -  664 ) लगभग सन 630 में भारत आए और 15 साल तक विभिन्न जगहों पर रहे । 

मार्च 1930 में महात्मा गांधी ने डांडी नमक आंदोलन छेड़ िदया था । साबरमती आऋम अहमदाबाद से 390 किमी दूर डांडी तक की  पैदल यात्रा 24 दिनों में पूरी की गई । 

सन 1987 में फ़िल्मी कलाकार सुनील दत्त ने अपने 80 सहयोगियों के साथ मुम्बई से ले कर अमृतसर की 2000 किमी की शांती पदयात्रा 78 दिनों में पूरी की । 

सैर की बात चली तो उद्योगपती रतन टाटा की एक टिप्पणी याद आ गई जो की बड़ी रोचक है - अगर तेज़ चाल चलनी है तो अकेले चलो और अगर दूर तक जाना है तो किसी को साथ ले चलो । 

यूँ तो पैदल चलना, टहलना या सैर करना किसी भी समय किया जा सकता है परन्तु सुबह सूरज निकलने से पहले हरे भरे पार्क में सैर करने का आनन्द कुछ ज़्यादा है । नियमित, लम्बी और तेज़ चाल की सैर शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक है । 4 - 5 किमी की सैर से टखनों, घुटनों और जंघाओं के जोड़ मज़बूत होते हैं । इसके साथ ही शुगर कम करने और िदल को ओक्सीजन पहुँचाने में भी मदद मिलती है । सुबह की सैर से बच्चों में एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है । मन शांत हो जाता है । 

एक राज़ की बात और है की सुबह की नियमित सैर से उम्र ढलने की रफ़्तार कम हो जाती है । तो बस अब आप जान लो की सैर करोगे तो जवान रहोगे !

तो कल सुबह चलें ?

                                                                                                                                                                  File:Elephant Walking animated.gif    


( चलते रहो - चलचित्र िवकीपीडिया से साभार )



1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2014/05/blog-post_10.html