बचपन से पढ़ते और सुनते आ रहे हैं की भारतीय उपमहाद्वीप बड़ा ही सम्पन्न प्रदेश था । भारत को सोने की चिड़िया कहते थे । और यहाँ दूध घी की नदियाँ बहती थी । ज़रा सुंदर सी भाषा में कहा गया पर कहने का मतलब है की भारत धन धान्य से पूर्ण रहा होगा और ज़्यादातर लोग जीवन का आनंद ले रहे होंगे । धूम धाम से और बार बार त्योहार मनाते होंगे । क्यों क्या कहते हैं आप ?
वैसे मुझे लगता है की ये सोने की चिड़िया आजकल भी यहीं रहती है पर कुछ थोड़े से लोगों के पास क़ैद है । शायद 1000-1200 लोग होंगे जिनके घरों में इस तरह की चिड़िया के घोंसले होंगे । और नहीं तो दस बारह हज़ार लोगों के पास इस चिड़िया के अंडे ज़रूर होंगे । किसी के पास छोटे और किसी के पास बड़े अंडे होंगे । किसी के पास एक अंडा और किसी के पास कई । इसके अलावा और दस बारह हज़ार लोगों ने सोने की चिड़िया के गिरे हुए सुनहरे पंख बटोर लिए होंगे ।
शायद 3.5 करोड़ करदाताओं को छोड़ कर 120 - 22 करोड़ लोग तो ख़ुद के चुग्गे दाने के चक्कर में दिन गुज़ार देते हैं । सोने की चिड़िया की बात तो दूर रह गई । पर ज़रा भारत में सबसे ज़्यादा सालाना 'तनख़्वाह' लेने वालों में से टोप 10 नामों पर नज़र डालिए जिन्होंने वर्ष 2012-13 में सुनहरी चिड़ियां पाली हुई थीं :
कलानिधि मरन -------------₹ 57.01 ( करोड़ )
कावेरी कलानिधी -----------₹ 56.24
नवीन जिंदल ----------------₹ 54.98
कुमार मंगलम बिड़ला --------₹ 49.62
पवन कुमार मुंझाल ----------₹ 32.80
ब्रिज मोहन लाल -------------₹ 32.73
सुनील कांत मुंझाल ----------₹ 31.51
पी आर सुब्रामनिया राजा------₹ 30.96
सज्जन जिंदल ---------------₹ 27.50
मुरली के़. दिवी --------------₹ 26.46
इस लिस्ट में मुकेश अम्बानी ₹ 15 करोड़ की सालाना 'तनख़्वाह' ले कर 22 वें स्थान पर हैं । मुकेश इतने पैसे सन 2008-09 से ले रहे हैं हालाँकि RIL के शेयर होल्डरों ने ₹ 38.93 करोड़ की मंजूरी दे दी थी । वाह क्या बात है !
पर यहाँ नेताओं की बात करना बेकार है उनके पास तो सोने की चिड़िया, सोने के पिंजरों में रहती है और हीरे मोती चुगती है और पाँच सालों में बहुत से अंडे दे जाती है ।
और आपका ये पेंशनर मित्र हर्ष वर्धन जोग अंदाज़न 96,17,670 वें स्थान पर है ।
कारण ? अरे साब अपने जाल में न तो ये चिड़िया फँसी और न ही कोई अंडा हाथ लगा हालाँकि हाथ पैर मारने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी थी । निकले तो थे चिड़िया फँसाने पर कौवे, चील और गिद्ध चोंच मारने लग गए ।
हम तो उल्टे अपनी तनख्वाह में से इनकम टैक्स ही देते रहे । अब तो रिटायर हो गए तो भी इनकम टैक्स ने अभी तक पीछा नहीं छोड़ा है । पता नहीं जो टैक्स अब तक अदा किया उसका किसी ने अंडा बनाया या ओमलेट !
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