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Tuesday 27 November 2018

गढ़ी पढ़ावली

गढ़ी पढ़ावली जिला मोरेना, मध्य प्रदेश में एक छोटी सी गढ़ी या छोटा किला या fortress है. ये गढ़ी ग्वालियर से 35 किमी दूर है. यहाँ पहुँचने के लिए ग्वालियर से आना जाना आसान है. आप गढ़ी के अलावा यहाँ से कुछ दूर पर बटेसर मंदिर समूह और चौंसठ योगिनी मंदिर, मितावली भी देखने जा सकते हैं. आस पास होटल, रेस्तरां या ढाबे की सुविधा नहीं है इसलिए अपना इंतज़ाम करके चलना ही ठीक रहेगा.

2. ऐसा माना जाता है की ये गढ़ी वास्तव में एक बड़ा मंदिर था. परन्तु अब मंदिर का अगला भाग ही शेष बचा है. इस भाग में प्रवेश द्वार और मुखमण्डप हैं जिनमें बहुत सुंदर नक्काशी है. यहाँ ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शिव, पार्वती, गणेश की मूर्तियों को बेहतरीन तरीके से उकेरा गया है. इसके अलावा मण्डप के खम्बों और छत पर कई पैनल हैं जिनमें महाभारत और रामायण की कथाएँ मूर्तियों में देखी जा सकती हैं. इनमें सेना, संगीतकार, हाथी, घोड़े वगैरह शामिल हैं जो बहुत ही सुंदर हैं. मंदिर की खुदाई में रंग मंडप और गर्भ गृह की नीवें भी मिली हैं. मंदिर की कलाकारी, वास्तु और खुदाई में मिली चीज़ों के आधार पर पुरातत्त्व विभाग ASI द्वारा अंदाजा लगाया गया कि यह मंदिर दसवीं शताब्दी में बनाया गया होगा.

3. तो मंदिर से गढ़ी कैसे बनी? दसवीं शताब्दी से लेकर सत्रहवीं शताब्दी के बीच के इतिहास का रहस्य अब तक खुला नहीं है. सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दियों के दौरान यहाँ जाट राणाओं का राज रहा है. ये गोहद के राणा कहलाते थे और आस पास के इलाकों में जाट राणाओं की बहुत सी गढ़ी थीं - भिलसा, बडेरा, बिलहाटी, बहादुरपुर, गोहद और पड़ावाली. पास ही ग्वालियर है जहां मराठों का राज रहा करता था. मराठा और राणा के टैक्स को लेकर कई बार युद्ध हुए. इस बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है की मंदिर युद्ध के कारण या फिर किन्हीं प्राकृतिक कारणों से ढह गया. बहरहाल सत्रहवीं शताब्दी में राणा के सैनिकों द्वारा इसे 'पड़ाव' की तरह इस्तेमाल किया गया. सैनिक पड़ाव के लिए मंदिर के गिरे हुए पत्थरों को इस्तेमाल करते हुए गढ़ी का निर्माण हुआ जो अब गढ़ी पढ़ावाली के नाम से जानी जाती है.

4. गढ़ी में गाइड की सुविधा नहीं है. वहीँ एक 'ठेकेदार' ने ज्यादातर जानकारी दी जिसे कहीं से सत्यापित भी नहीं किया जा सका. उसने बताया की यहाँ से निकली कुछ मूर्तियाँ ग्वालियर किले के म्यूजियम और कुछ भोपाल के म्यूजियम में रखी हुई हैं. जो शेर या 'व्याल' नीचे फोटो में हैं उनके मूल भी म्यूजियम में हैं. गढ़ी के बाहर लॉन में बहुत से मूर्तियाँ और पैनल रखे हुए हैं जिनके बारे में जानकारी नहीं मिली.

प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. प्रवेश मंडप या मुख मंडप. ऊपर के शिखर टूट चुके हैं  
2. गढ़ी की रक्षा करते 'व्याल'

3. नंदी और ग्वाला. गढ़ी के बाहर लॉन में रखी मूर्ति. ऐसी ही खंडित मूर्तियाँ पास के बटेश्वर मंदिर में भी हैं   

4. गढ़ी के लॉन में रखा एक सुंदर पैनल 

5. गढ़ी का बायाँ भाग 

6. गढ़ी का प्रवेश. शिव मंदिर बहुत ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया था 

7. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा - मंदिर के गिरे हुए पत्थरों से दोबारा बनाई गई गढ़ी की दीवारें

8. मंडप के नक्काशीदार खम्बे 

9. बीच में है चामुंडा देवी 

10. महाभारत और रामायण पर आधारित कहानी सुनाती हुई मुर्तियां

11. दशावतार 

12. ब्रह्मा, विष्णु और महेश  

13. सूर्य 

14. शिव पार्वती

15. एक पैनल पर खजुराहो स्टाइल में काम कला के दृश्य भी हैं हालांकि ये मंदिर खजुराहो के मंदिरों से पहले बना माना जाता है   

16. मंडप में 2+16 स्तम्भ हैं  
17. ये हिस्सा बाद में बनाया गया लगता है 

18. शिवलिंग तहखाने में यूँ ही पड़ा हुआ है 

19. ASI का नोटिस बोर्ड 

20. गाँव पढ़ावली





4 comments:

Unknown said...

पढ़ाव्ली के बारे में उपयोगी जानकारी पढ़कर खुशी हुई. यह बहुत प्राचीन स्थान है. प्राचीन ऐतिहासिक अनुश्रुति के अनुसार मध्यभारत के नागाओं की राजधानी कान्तिपुरी और पढावली - दोनों नगरियाँ-तीसरी चौथी सती ई. में साथ ही साथ संपन्न तथा समृद्ध दशा में थी. किन्तु ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं यहाँ 9वीं-10वीं शताब्दी की ही पाई गई हैं.

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/11/blog-post_27.html

Unknown said...

Very good historical memory.

Anonymous said...

Good job meine jab iss mandir ko dekhne gayi tab waha itni jankari mujhe nahi mili kunki waha koi gard nahi tha but apki detail padh kar meine apni nazron se waha sub dekha to mujhe bhut accha laga thanks