हमारी कार यात्रा विजयवाड़ा से अमरावती होती हुई नागार्जुन कोण्डा पहुंची. दो दिन का पड़ाव इस शहर के एक बजट होटल में रहा. नागार्जुन कोण्डा एक छोटा सा पर महत्वपूर्ण ऐतिहासिक शहर है. इसके मशहूर होने के कई कारण हैं. एक तो यहाँ बहुत बड़ा बाँध है जो कृष्णा नदी पर बना हुआ है. बाँध के साथ जुड़ा हुआ विशाल जलाशय है जिसका नाम नागार्जुन सागर है. इसमें पानी का फैलाव - FRL 285 Sq Km है. सागर के बीच में पहाड़ियां भी है और मुख्य पहाड़ी याने कोण्डा का नाम नागार्जुन कोण्डा है. इस कोण्डा के ऊपर एक बहुत बड़ा म्यूजियम, स्तूप और बाग़ बगीचे हैं जो देखने लायक हैं.
प्राचीन समय में यहाँ नागार्जुन कोण्डा में और आसपास के शहरों में जैसे की अमरावती, धरणीकोटा और विजयपुरी में बहुत से बौद्ध स्तूप, विहार और विद्यालय भी थे. इस कारण से बाँध का काम पूरा होने से पहले यहाँ पुरातत्व विभाग ने बहुत बड़े इलाके में खुदाई की. यहाँ से सैकड़ों सिक्के, एक विश्वविद्यालय, स्तूप, बौद्ध मंदिर या चैत्य और विद्यार्थियों के हॉस्टल के ईंट, पत्थर और मूर्तियों को निकला गया और उन्हें ऊँचे स्थान पर फिर से स्थापित किया. बहुत से अवशेष म्यूजियम में सजा दिए गए. विश्वविद्यालय और एक बड़ी खुली नाट्यशाला (या amphitheatre) को अनूपु गांव में स्थापित कर दिया गया.
यह जगह नागार्जुन के नाम पर है जो की पहली / दूसरी शताब्दी के एक महान बौद्ध दार्शनिक, लेखक और तर्कशास्त्री थे. उनकी लिखी किताबों में से एक मूलमध्यमककारिका ने बुद्ध के प्रवचनों की पुष्टि की. साथ ही बुद्ध के सूत्रों पर आधारित दार्शनिक निष्कर्ष 'शून्यवाद' का प्रतिपादन किया. बाद में बौद्ध सम्प्रदाय 'महायान' इसी व्याख्या को लेकर बना. बाद में महायान बौद्ध सम्प्रदाय तिब्बत, चीन कोरिया और जापान तक फ़ैल गया. मूलमध्यमककारिका इन देशों में अब भी काफी प्रचलित है.
प्राचीन काल में यह इलाका आन्ध्रा या आंध्र-देश कहलाता था. आंध्र-देश का इतिहास भी कम रोचक नहीं है. सम्राट अशोक के बाद में यहाँ सातवाहन, इक्ष्वाकु, पल्लव, चालुक्य, काकातिया, दिल्ली सुल्तान, विजयनगर राज्य, क़ुतुब शाही, मुग़ल और अंत में ब्रिटिश का राज या प्रभुत्व रहा.
शहर से कोण्डा म्यूजियम पहुँचने के लिए केवल सागर फ़ेरी ही एक साधन है. उसमें भी लगभग 40+40 मिनट आने जाने में लग जाते हैं. छोटी नौका या स्पीड बोट उपलब्ध नहीं हैं. फ़ेरी भी तब चलती है जब ठीक ठाक संख्या में यात्री जमा हो जाएं. हमें काफी इंतज़ार करना पड़ा. एक बौद्ध ग्रुप तवांग, अरुणाचल प्रदेश से अचानक वहां आ पहुंचा जिसके कारण म्यूजियम जाना संभव हो पाया. नौ बजे से शाम पांच बजे तक तेज़ गर्मी होती है. टोपी, तौलिया और पानी का इंतज़ाम जरूरी है. नागार्जुन कोण्डा और आस पास के कुछ चित्र प्रस्तुत हैं.
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1. चलिए नागार्जुन कोण्डा म्यूजियम देखने |
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2. फ़ेरी की सवारी मज़ेदार है |
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3. नागार्जुन सागर के बीच में पहाड़ियाँ भी हैं |
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4. यहाँ की चट्टानों का रंग-रूप अलग है |
👇 म्यूजियम में ली गई कुछ फोटो 👇
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5. पंचमुखी नाग राजा मुचिलिन्दा |
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6. चौकोर नक्काशीदार स्तम्भ. तीसरी शताब्दी का साक्य चित्रण |
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7. गौतम बुद्ध देवों को उपदेश देते हुए |
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8. तीसरी सदी का प्राकृत लेख |
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9. तीसरी/चौथी शताब्दी का लाइमस्टोन पैनल जिसमें सिद्धार्थ गौतम बुद्ध का जन्म से महापरिनिर्वाण का चित्रण किया गया है
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10. तीसरी सदी, लाइमस्टोन से बना स्तूप - फलक, अग्नि स्कंध, बोधि वृक्ष, धम्म चक्र और आसपास यक्ष |
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11. तीसरी सदी की गौतम बुद्ध की खंडित मूर्ति |
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12. तीसरी सदी का प्राकृत में लिखा स्तम्भ. राजा श्री विजय सतकन्नी के राजकाल के छठे वर्ष में बनाया गया. अभिलेख का अनुवाद :- * Namo Bhagvato Agapogalasa, * Rano Gotamiputasa Siri Vijaya Satakanissa * Sava 6 gi pa diva Vesakha punima |
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13. नागार्जुन कोंडा पर पुनर्निर्माण कर के बनाया गया स्तूप |
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14. दो मीटर ऊँची मूर्ति जिसके माथे पर एक गोल निशान है जिसे 'महापुरुषा-लक्षणा' कहा जाता है. सलवट वाली चादर या संघटि सुंदरता से बनाई गई है. दाहिना हाथ शायद अभय मुद्रा में रहा होगा. तीसरी शताब्दी में बनी मूर्ति अमरावती, आंध्र प्रदेश से प्राप्त हुई थी
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15. नागार्जुन कोंडा आने जाने के लिए तेलंगाना सरकार की फ़ेरी. आंध्र सरकार की फ़ेरी अलग चलती है. ऊपर कोंडा घूमने के लिए गोल्फ कार्ट मिल सकती है. इस पहाड़ी के ऊपर म्यूजियम भी है जहां खुदाई में प्राप्त वस्तुएं रखी गई हैं
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16. कृष्णा नदी पर बना नागार्जुन सागर बाँध. 1955 में इस बाँध की नींव तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू द्वारा रखी गई थी. बाँध 1967 में चालू किया गया. बाँध का कुछ भाग जिला नलगोंडा, तेलंगाना में और कुछ जिला पालनाडु आंध्र प्रदेश में है
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18. फ़ेरी की सैर
19. फ़ेरी की सैर |
20. नीले पानी के बीच लाल निशान नागार्जुन कोण्डा दर्शाता है |
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21. पास ही एक गांव चिंताला टांडा में गुरुद्वारे का झंडा दिखाई पड़ा. पूछने पर मालुम हुआ कि फूल सिंह नामक सिख अनुयायी ने ये गुरुद्वारा बनाया है और अंदर गुरु ग्रन्थ साहिब भी सही तरीके से सजा कर रखा गया है. यहाँ से बिदर और नांदेड़ की तरफ जाते हुए कई आदिवासियों से मुलाकात हुई जो कई दशकों पहले सिख बन गए थे |
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22. हाईवे सबके लिए है! इस तरह के काफी दृश्य देखने को मिले |
3 comments:
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ATI sunder HARSH ji
सुन्दर
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