हमारी कार नांदेड़ से बुरहानपुर मध्य प्रदेश की तरफ चली. बुरहानपुर का नाम तो सुना था और लग रहा था की मध्य प्रदेश का कोई खोया सा और सोया सा शहर होगा. शहर की मैन रोड पर एम्. पी. टूरिज्म का होटल नज़र आया तो अंदर खाना खाने चले गए. कमरे अच्छे थे और पता लगा की कई पर्यटन स्थल भी हैं तो वहीँ दो दिन के लिए डेरा डाल दिया.
छोटा सा शहर है और ऑटो ले कर दिन में किला वगैरह देखा. शाम को शाही किले में साउंड और लाइट शो देखा जिसमें हम दोनों के अलावा दो दर्शक और थे! बहुत काम टूरिस्ट आते हैं यहाँ. शहर पुराना है और पुराने इलाके में तंग गलियां और भीड़ तो होती ही है. किले के अंदर भी बसावट है और बाज़ार हैं. किले के साथ ही ताप्ती नदी बहती है. दो छोटी नदियां और भी हैं - उतावली और मोहना. पावर लूम, कॉटन मिल और कपड़े का काफी व्यापार है. यहाँ की केले और उड़द की दाल मशहूर हैं.
सन 753 से 982 तक यहाँ राष्ट्रकूट राज रहा. उस समय के सिक्के और छोटी मूर्तियां यहाँ मिली हैं. बाद में यहाँ फारूकी खानदान, मुग़ल, हैदरबाद के निज़ाम, मराठा होल्कर, सिंदिया और ब्रिटिश राज रहा. यहाँ शाहजहां बतौर सूबेदार रहा और उसकी बेगम मुमताज़ महल भी यहीं के अमीर परिवार की बताई जाती है. बुरहानपुर का नाम सूफी संत बुरहानउद्दीन के नाम पर है. दो दिन के पड़ाव में देखे पर्यटन स्थलों की कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.
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1. शाही किले का महल शाम के लाइट और साउंड शो में सुन्दर नज़र आता है. पंद्रहवीं शताब्दी में फारूक़ी शासक आदिल शाह प्रथम द्वारा बनवाया गया ये किला ताप्ती नदी के दाहिने किनारे पर है |
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2. 'आहूखाना' सोलहवीं शताब्दी में शाहजहां के लिए आरामगाह या शिकारगाह के तौर पर बनाया गया था. उस वक़्त शाहजहां दक्खिन की ओर हमला करने के लिए तैयारी कर रहा था. यहाँ बहुत बड़ा तालाब, बारादरी और हिरन पार्क भी था. फ़ारसी में हिरन को आहू कहते हैं |
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3. आहूखाने में सैलानी |
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4 . आहूखाने के अंदर |
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5. आहूखाने की बारादरी |
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6. बारादरी की छत अब नहीं है. बारादरी और आहूखाना के बीच तालाब था. ऐसा भी कहा जाता है की मुमताज़ महल को इसी पार्क में दफनाया गया था. शाहजहां का प्लान था की बेगम की याद में बहुत बड़ा और बहुत खूबसूरत मकबरा बनाया जाए. पर वास्तुकारों ने बताया की ना तो यहाँ सफ़ेद संगमरमर मिलता है और न ही यह जमीन बड़ी इमारत बनाने लायक है. बाद में मुमताज़ को आगरा के ताजमहल में दोबारा दफनाया गया
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7. शाही किले का दरवाज़ा |
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8. किले में संगमरमर से बना शाही हमाम |
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9. ताप्ती नदी से पानी लाने के लिए सिस्टर्न का उपयोग किया जाता था और पानी की निकासी के लिए अच्छा प्रबंध किया हुआ था |
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10. किले की मस्जिद की मीनार |
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11. शाही किला. यहाँ शाहजहां कुछ समय के लिए सूबेदार की हैसियत से रहा था |
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12. शाही किला |
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13. शाही किला |
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14. शाही किले के महल का एक हिस्सा |
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15. किले के साथ बहती ताप्ती नदी |
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16. किले की छत से ताप्ती नदी का एक दृश्य |
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17. शहर का जलेबी सेंटर. यहाँ की ख़ास जलेबी है पनीर जलेबी. बड़ी और मोटी पर टेस्टी. ऑटो चालक ने इसकी बड़ी तारीफ़ की और हमें यहाँ ले आया. हमारे लिए तो 1/2 ही काफी थी. पर यहाँ खूब चलती है |
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18. शाही जामा मस्जिद. शहर के बीच में बनी है और ज्यादातर काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है. अंदर एक दीवार पर संस्कृत के कुछ श्लोक छत के नज़दीक दीवार पर लिखे हुए हैं पर न तो पढ़ पाए न मोबाइल से फोटो आ पाई |
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19. शाही जामा मस्जिद बुरहानपुर |
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20. ये आम जनता के लिए हमाम हुआ करता था |
21. हमाम
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22. शाह शुजा का मकबरा |
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23. इस मकबरे को शाहजहां ने सोलहवीं शताब्दी में अपने बेटे शाह शुजा की बेगम बिलकिस बानो के लिए बनवाया था. अंदर शंख के गारे से पलस्तर किया गया है जिस पर सुन्दर चित्रकारी है |
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24. शाह शूजा का मकबरा जिसे आम तौर से खरबूजी मकबरा कहा जाता है. ऊपर का कलश कुछ कुछ हिन्दू शैली से मेल खाता है |
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25. सत्रहवीं शताब्दी में बना शाह नवाज़ खान का मकबरा जिसे 'काला ताजमहल' भी कहा जाता है क्यूंकि इसमें काला पत्थर इस्तेमाल किया गया है. इसे शाह नवाज़ खान के पिता अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ने बनवाया था. अब्दुल रहीम इस सूबे का नौ साल मुग़ल सूबेदार रहा |
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26. काले पत्थर के खम्बे |
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27. जाली और कोर्निस का काम |
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28. 'काला ताजमहल' और सैलानी |
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29. गुरुद्वारा श्री बड़ी संगत साहिब बुरहानपुर. सोलह एकड़ में फैला विशालकाय ऐतिहसिक गुरुद्वारा. मई-जून 1708 में नान्देड़ जाते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी यहाँ ठहरे थे. एक हस्तलिखित गुरु ग्रन्थ साहिब की 'बीर' यहाँ रखी हुई है जो संग्रांद और गुरुपुरब के दिन दर्शन के लिए रखी जाती है |
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30. दाऊदी बोहरा समाज की मस्जिद. दाउदी बोहरा, शिया मुस्लिम की इस्माइली शाखा के तैय्यबी उप-सम्प्रदाय का एक उप-समूह है. इनकी संख्या दस से पंद्रह लाख है और ये भारत के अलावा पाकिस्तान, यमन, मिस्र आदि देशों में रहते हैं. इनकी भाषा 'लिसान अल-दावत' में अरबी, फ़ारसी, गुजराती और संस्कृत के शब्द भी शामिल हैं. बोहरा महिलाएं रंगीन बुर्के पहनती हैं और काफी पढ़ी लिखी हैं. |
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31. दरगाह-ए -हकीमी. ये दरगाह 17 वीं सदी के सैय्यद अब्दुल कादिर हकीमुद्दीन मौला ( 1665-1730 ) की याद में बनवाई गई थी. वे एक धर्म गुरु थे और इसलिए यह एक तीर्थ है और यहाँ बोहरा समाज के काफी लोग दूर दूर से आते हैं. |
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32. दरगाह में शांत वातावरण रहता है. तीर्थ यात्रियों के लिए रहने और खाने की व्यवस्था है |
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33. दरगाह के आसपास सुन्दर बगीचे |
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34. बुरहानपुर शाही किले का गेट |
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35. शाही किले की दीवार |
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36. असीरगढ़ का किला. ये ऐतिहासिक किला बुरहानपुर से लगभग 20 किमी दूर है. सतपुड़ा पहाड़ी पर स्थित यह किला 'दक्खिन की चाबी' कहलाता था. समुद्री स्तर से 701 मी ऊँचे किले में एक महल, शिव मंदिर और मस्जिद बने हुए हैं. तीन बार में विकसित किले के तीन भाग हैं: असिर्ग गढ़, कमगर गढ़ और मलय गढ़. पर अब इसे असीरगढ़ के नाम से ही जाना जाता है |
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37. असीरगढ़ किले का एक हिस्सा |
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38. बुरहानपुर से दूरियां - हैदराबाद 625 किमी, नागपुर 442 किमी, उज्जैन 245 किमी |
2 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2024/05/blog-post_16.html
बहुत सुंदर है, अच्छा लिखा है सर जी आपने, घूमने की अच्छी जगह है जी।।
थैंक्स जी जानकारी देने के लिए 🙏🏻🙏🏻
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