टोंक से बूंदी का रास्ता लगभग 120 किमी है जो शायद दो घंटे में पूरा हुआ. सड़कें अच्छी हैं राजस्थान में. पर हाँ टोल की चपत भी अच्छी खासी है जो आपकी जेब खाली करती रहती है. बूंदी पहुँचने से पहले ही किला दिखाई पड़ने लगा. पर मेन रोड छोड़ कर अंदर पुराने बूंदी शहर में सड़कें तंग हैं. गली गलियारों में दोनों ओर घर दुकानें हैं. इसलिए गाड़ी मेन रोड पर ही छोड़ के पैदल अंदर पहुंचे। दो तीन गेस्ट हाउस देखे और फिर एक हवेली में बने गेस्ट हाउस में डेरा डाल दिया.
हवेली में गेस्ट हाउस बना तो देते हैं पर गेस्ट का ध्यान काम रखते हैं. मसलन कहीं पर आपको एक दिन में एक लिटर पानी की बोतल फ्री मिलेगी, कहीं पर आधे लिटर की. राजस्थान की गर्मी में अब आप पानी की बोतलें खरीदते रहिये! कोई गेस्ट हाउस वाला ब्रेकफास्ट फ्री देगा और कोई टरका देगा। कोई चाय की केतली, चाय पत्ती और चीनी कमरे में सजा कर रख देगा बनाओ और पियो। कोई मंगाने पर देगा। कपल के लिए कोई बाथरूम में एक ही तौलिया टांग देगा ! दूसरा माँगना पड़ेगा। मांगने के लिए फ़ोन करेंगें तो इण्टरकॉम बंद मिलेगा। खैर, घुमक्कड़ी में छुटर पुटर बातें चलती रहती हैं. इस मामले में सबसे बढ़िया ताज होटल हैं हर चीज़ टिप टॉप और रेडी मिलेगी( वो भी बढ़िया तभी तक है जब आपके मोटे से बिल का भुगतान कोई और कर रहा हो 😜 )!
बूंदी जून 1242 में राव देवा सिंह ने बसाया था. पहले यहाँ ज्यादातर मीणा, गुर्जर,अहीर और आदिवासी रहा करते थे. राव देवा सिंह हाड़ा राजपूत थे इस कारण ये इलाका हाड़ोती क्षेत्र कहलाने लगा जिसमें कोटा, सवाई और आसपास का एरिया भी शामिल था. यहाँ के राजाओं में से राव उम्मेद सिंह ( 1749 से 1773 तक राज किया ) बहुत वीर, कला प्रेमी और जनप्रिय राजा थे. जीवन के अंतिम दिनों में राज-पाट बेटे को सौंप कर वो साधु बन गए थे.
यहाँ की राजस्थानी हिंदी के साथ साथ हड़ौती और मेवाड़ी भी बोली जाती हैं. गेस्ट हाउस के मालिक से बातचीत में कई हाड़ा कहावतें सुनने को मिलीं पर अब एक कहावत ही याद रह गई है - आटे में लूण समावे, लूण में आटो नहीं ! मतलब आप समझ ही गए होंगे कि आटे में नमक खप जाता है पर नमक में आटा नहीं। यहाँ दिन का मौसम गर्म है पर शाम सुहानी है. घूमने के लिए सुन्दर सुन्दर स्पॉट हैं जिनकी चर्चा आगे करेंगे। मानसून और उसके तुरंत बाद बहुत हरा भरा हो जाता है इसलिए सितम्बर से मार्च तक का मौसम घूमने के लिहाज से ठीक है.
फिलहाल शहर की कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.
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1. बूंदी की शान और प्रमुख आकर्षण - तारा गढ़, या बूंदी का किला, 1345 में बना ये क़िला राजस्थान के किलों में से सबसे सुंदर लगता है. |
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2. बूंदी छोटा सा शहर है पर पतली संकरी गलियों के बीच में सुंदर मंदिर, हवेलियाँ और बावड़ी हैं |
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3. हवेली के झरोखे से दिखता जैत सागर. सामने पहाड़ी पर जाती दीवार काफ़ी चौड़ी है जिस पर घुड़सवारी करते हुए राजा, रानी या सैनिक किले से पहाड़ी बुर्ज तक जा सकते थे. सड़क बनाने के लिए दीवार का एक बड़ा भाग तोड़ दिया गया है |
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4. बूंदी की एक गली
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5. हवेली की सुंदर ड्योढ़ी, ऐसी हवेलियां अब गेस्ट हाउस और होटल बन गई हैं
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6. एक और गली और मेहराब जो कभी बॉउंड्री वाल का हिस्सा रही होगी
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7. राव राजा उम्मेद सिंह का प्रिय ईरानी ( या शायद अरबी ) घोड़ा हुंजा. ये घोड़ा कई लड़ाइयों में काम आया. घोड़े के मरने के बाद सफ़ेद संगमरमर का घोड़ा शहर के बुलबुल चबूतरे पर लगाया गया था जो हमले में टूट फूट गया. बाद में इसे छतों पर लगाया गया. मान्यता थी कि घोड़े में दैविक शक्ति थी जो घायल सैनिकों को ठीक कर देती थी. |
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8. एक गली में यह सुंदर मंदिर भी है. नागरी शैली में बना हुआ है और खजुराहो के मंदिरों से मिलता जुलता है पर इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई.
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9. राजस्थान में बहुत से लोग घोटा लगाते हैं. आप घोटा किसमें पसंद करेंगे - छाछ में या दही में या फिर दूध में ?😄
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10. जैत सागर के बीच में बारादरी। सागर किनारे बैठ कर चाय, कॉफी या बियर का आनंद लिया जा सकता है ! |
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11. गेस्ट हाउस और होटलों में घर दुकान की सजावट पुरातन समान के साथ देखने को मिलती है.
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12. ये था राजा का प्रिय हाथी जिसका नाम रखा गया था शिव प्रसाद. बूंदी में हुंजा घोड़े और शिव प्रसाद हाथी की कई मूर्तियाँ नज़र आती हैं
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13. छोटे से मंदिर के ऊपर हुंजा |
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14. बूंदी के बाद अपनी कार कोटा में पहुँची. यहां रुके नहीं इसलिए चलते चलते जो भी फोटो खींची वही पेश हैं
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15. कोटा एक उद्योग नगरी है. और कोटा शहर बहुत से कोचिंग सेंटर होने की वजह से भी मशहूर है. बहरहाल शहर खुला खुला है, अच्छी सड़कें और बाजार हैं. इसे और खूबसूरत बनाया जा रहा है. |
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16. स्वामी विवेकानंद की मूर्ति |
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17. एक और गेट बनाने की तैयारी |
3 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2023/12/4.html
Very nice information and description.
A.K.SAXENA जी धन्यवाद!
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