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Sunday 19 July 2020

सलीका

जनरल मैनेजर गोयल साब रिटायर होने वाले हैं. आप नहीं जानते, कमाल है! मैं उनका परिचय करा देता हूँ. उम्र तो आप जान ही गए होंगे साठ के हो गए हैं. चश्में का लेंस थोड़ा मोटा हो गया है. बाल उड़ गए हैं बस पिछली साइड में एक छोटी सी झालर बची हुई है. इस झालर को काला करते रहते हैं. पॉकेट में एक छोटी सी कंघी भी रखते हैं जो बीच बीच में सर पर फेरते रहते हैं. कई बार शक होता है की इस तरह से अनगिनत बार कंघी करने से ही टकले हो गए हैं. पर ठीक से पता नहीं है की ये वैज्ञानिक थ्योरी है या अटकलबाजी. बियर के शौकीन हैं. आप पिला रहे हों तो दो बियर लेंगे खुद पी रहे हों तो एक ही बोतल काफी है. टंकी बड़ी है,पैंट खिसक ना जाए इसलिए चौड़ी बेल्ट लगानी पड़ती है. 

गोयल सा का काम करने का ख़ास सलीका है. उनके टेबल पर पेन, पेंसिल, स्टेपलर वगैरा चुने हुए और खुबसूरत मिलेंगे. टापोटॉप. आने वाली फाइलें, जाने वाली फाइलें सलीके से लगी होंगीं, पानी का गिलास, फूलदान, उसमें ताज़े फूल याने सभी कुछ बढ़िया और सुंदर तरीके से सजा मिलेगा. उनकी महंगी शर्ट और टाईयां देख कर लगता है की गोयल सा पैदाइशी आला अफसर हैं. 

पर जब गोयल सा घर पहुंचाते हैं तो जाने क्यूँ सब उल्टा पुल्टा हो जाता है. जिस मैगज़ीन में से सुबह आधा लेख पढ़ा था वो मैगज़ीन ही शाम को गायब हो जाती है. सुबह जब बिस्तर से उठते हैं तो एक चप्पल मिलती है दूसरी पता नहीं कहाँ छुप जाती है. बाथरूम में तौलिया मिलता है पर साबुन नहीं मिलता. जूते दोनों मिल जाते हैं पर सॉक्स एक ही मिलती है. तभी तो मैडम कहती हैं दफ्तर में पता नहीं कैसे काम करते हो घर में तो खोई चीज़ें ढूंढते ही रहते हो.

अब रिटायर हो गए तो मुश्किल बढ़ गई है. सुबह शाम खींच तान होने लगी है. वैसे भी पत्नी का मतलब है जो पति पर तनी रहे. गोयल सा सोचने लगे की बैंक में तो ऐसी दिक्कत कभी आई नहीं. हड़ताल झेल ली, बड़े बड़े नेताओं को सीधा कर दिया और आड़े टेढ़े कस्टमर निपटा दिए पर यहाँ फेल हो रहा हूँ. अब यहाँ कोई फार्मूला ढूंढना पड़ेगा. ट्रान्सफर या ससपेंड करने की तो सम्भावना ही नहीं है. जबान से मुकाबला तो असंभव है. क्या किया जाए? उधेड़बुन में शाम हो गई. बियर की बोतल खोल ली. बियर के दो घूंट मारने के बाद गोयल सा की दिमाग की बत्ती जल उठी और प्लान बन गया.

सुबह मैडम की अलमारी से एक साड़ी निकाल कर दूसरी अलमारी में हैंगर कर दी. ड्रेसिंग टेबल में से एक परफ्यूम ऊपर के खाने में रख दी और एक लिपस्टिक उठा कर पाउडर के डब्बे के पीछे रख दी. किचन के छोटे बड़े चम्मच मिक्स कर दिए. अब इंतज़ार करने लगे. दो दिन में ही प्लान के नतीजे आने लग गए. 
- मुझे समझ नहीं आ रहा मेरी चीज़ें इधर उधर क्यूँ हो रही हैं? लिपस्टिक नहीं मिल रही है कहाँ गई समझ नहीं आ रहा.
- हूँ?
- क्या हूँ? पहले तुम्हारी चीज़ें ढूंढती रहती थी अब अपनी भी खोजनी पड़ रही हैं. किचन में जाती हूँ तो बर्तन नहीं मिलते और अलमारी खोली तो मेरी साड़ी नहीं मिलती. कहाँ गई?
- हूँ?
- क्या हूँ? तुम अपनी अखबार पढ़ो जी. इधर बैठ उधर बैठ और कोई काम नहीं. जब से तुमने बैंक जाना बंद किया है मेरी तो मुसीबत आ गई है. 
तीसरे दिन कहने लगीं - कोई काम वाम देख लो ना जी?
- हूँ?
- क्या हूँ? अरे रामू गाड़ी बाहर निकाल दे. गेराज सफा करके साब की टेबल कुर्सी लगा दे, अखबार, पानी के गिलास, जग वगैरा रख दे और छोटा टीवी लगा दे. और हाँ गेट पर साब के नाम की एक अलग घंटी लगवा दे. दुलारी ए दुलारी! सुन कल से साब को ग्यारह बजे और चार बजे चाय गेराज में दे देना. 
- हूँ.
- हूँ हूँ करते रहो तुम बस.  

दस से पांच का ऑफिस गेराज में खुल गया है. गोयल सा से दो चार सौ करोड़ का लोन कराना हो तो बताएं. कंसल्टेंसी फीस में छूट दिलवा दूंगा. 
गोयल सा, लोन सलाहकार  


5 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/07/blog-post_19.html

ns said...

nice

A.K.SAXENA said...

Retirement के बाद की कहानी की एक दर्दभरी दास्तान बड़े चुलबुले अंदाज मे पेश की है आपने।
था इक जमाना,जब चमन हमारा था।
अब तो एक फूल को,तरस्ती है,
तूरबत मेरी।।

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you ns

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद A K Saxena जी. ज़माना बदल गया है रिटायरमेंट के बाद.