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Saturday, 25 July 2020

शरबती

बैंक से बाहर निकलते ही तंग सी सड़क आ जाती है. बाएँ चलें तो सड़क के दोनों तरफ मकान दुकानें हैं. यहाँ अगर दो कारें आमने सामने आ जाएं तो आसानी से क्रॉस नहीं कर पाती है. अगर दाहिनी ओर चलें तो खुली जगह आ जाती है. सड़क से मकान पचास पचास फुट दूर हैं और सड़क के दोनों तरफ काफी खाली जगह है. यहाँ गाड़ियां और स्कूटर खड़े रहते हैं. इक्का दुक्का ठेले वाले भी कुछ देर रुक जाते हैं और माल बेचने के लिए आवाज़ देते हैं, 
- आलू-ऊ टमा-टर!
- ताज़े अमरुद! अलाबाद के पेड़े! 
- दरियां ले लो चद्दर ले लो!

पर ज्यादातर मैदान साफ़ मिलता है. बुधवार को यहाँ बाज़ार लगता है उस वक़्त काफी चहल पहल हो जाती है. सामान नीचे जमीन पर या तिरपाल बिछा कर सजा दिया जाता है. या फिर भैंसा गाड़ी, घोड़ा बुग्गी में ही रखा रहता है. दो तीन दुकानें तो लोहे के सामान की होती हैं जिसमें खुरपे, दराती, फावड़े, तसले और टोकरियाँ बिकती हैं. दो तीन दुकानें मिट्टी के घड़े, हंडिया, गमले, चिलम वगैरा की होती हैं,  दो एक सस्ती चप्पल जूते, कपड़ों और सस्ती प्लास्टिक की चीज़ों की होती है. एक दो जड़ी बूटी और मसालों की होती है. गाँव में जिन चीज़ों का प्रचलन है वो सभी यहाँ मिल जाती है. इन्हीं दुकानों में से एक लोहार वाली दूकान में शरबती भी बैठती है या कई बार उसका पिता बैठा होता है. 

छोटा सा क़स्बा है और जनता जनार्दन कम है इसलिए ब्रांच भी छोटी है. अधिकारी,  खजांची और क्लर्क तीनों फटफटिया पर शहर से आते हैं. केवल नरेश चपड़ासी लोकल है. पक्की नौकरी होने के कारण नरेश का यहाँ काफी मान सम्मान है. बैंक में लोगों के खाते खुलवाता रहता है और आस पास के लोन लेने वालों को ढूंढ निकालता है. नरेश ने ही शरबती का खाता खुलवाया था जो अब अपने पिता के साथ शिकायत लेकर आई है. 
- मनीजर साब यो नरेस को म्हारी छोरी ने पिछले महीने एक एक हजार दिए दो बार जमा कराण को दिए. अब लो खाते में ना चढ़े. कई दिन हो गे नज़र भी ना आता, ना बैंक में ना गाँव में. परेसान हो लिए हम तो. आप तो म्हारे पैसे दे दो जी.
- कोई रसीद दी थी उसने? 
- न जी, शरबती बोली.
- तुम खुद जमा करा दिया करो. तुम क्यूँ नहीं करती? 
- ना जी मैं ना आती बैंक. सरम सी लगै.
- अभी छुट्टी पर है नरेश. सोमवार आएगा तो उससे पूछते हैं.
- ना जी हम तो बुध को आएँगे. बजार में तसले फावड़े की दूकान लगती है जी म्हारी. सुसरा कई सामान भी ले चुक्या है उधारी में. उसका भी हिसाब करणा है.

बुधवार को ब्रांच में शोर मच गया. शरबती, उसके पिता और नरेश की खूब गरमा गर्मी हो गई. इस बहस में नया राज़ भी खुल गया. शरबती का पिता गुस्से में नरेश को बोल रहा था, 
- दो हजार नकद अर औजारन के पैसे तुरंतई दे दे या फेर सरबती से सादी की हाँ भर दे. नहीं तो मेरा फावड़ा अर तेरा सिर!
मुश्किल से बीच बचाव कर के छुड़वाया दोनों को. चार बजे नरेश को बुला कर डांट लगाई,
- तुम्हारी वजह से बैंक में शोर शराबा हो रहा है और बैंक का नाम बदनाम हो रहा है. बोलो ससपेंड करूँ या ट्रान्सफर? 
- ना ना साब जी. दो हजार गुप्ता जी से लेकर उसे वापिस कर दिए हैं जी. बाकी भी कल परसों कर दूंगा जी. अब ना सरबती आएगी जी ना उसका बाप. 
- और तुमने जो शादी की बात थी?
- सादी तो जी संतोस से तय हो गई. 
- संतोष से? तुमने तो शरबती को वादा किया था? दो दो  करनी हैं क्या?
- ना साब जी. एकी सादी करनी है जी. संतोस के पास तो मन लगै है जी. 
- और शरबती को भी कह दिया शादी करूँगा ?
- सरबती तो ठीक है लड़की जी. उस के बाप के पास पैसे भी हैं जी पर आदमी ठीक ना है.

वाह गजब का लॉजिक! इस पर चाँद लाइनें याद आ गईं शायद निदा फज़ली की हैं,
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, 
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता. 
बुध बाज़ार

 

Sunday, 19 July 2020

सलीका

जनरल मैनेजर गोयल साब रिटायर होने वाले हैं. आप नहीं जानते, कमाल है! मैं उनका परिचय करा देता हूँ. उम्र तो आप जान ही गए होंगे साठ के हो गए हैं. चश्में का लेंस थोड़ा मोटा हो गया है. बाल उड़ गए हैं बस पिछली साइड में एक छोटी सी झालर बची हुई है. इस झालर को काला करते रहते हैं. पॉकेट में एक छोटी सी कंघी भी रखते हैं जो बीच बीच में सर पर फेरते रहते हैं. कई बार शक होता है की इस तरह से अनगिनत बार कंघी करने से ही टकले हो गए हैं. पर ठीक से पता नहीं है की ये वैज्ञानिक थ्योरी है या अटकलबाजी. बियर के शौकीन हैं. आप पिला रहे हों तो दो बियर लेंगे खुद पी रहे हों तो एक ही बोतल काफी है. टंकी बड़ी है,पैंट खिसक ना जाए इसलिए चौड़ी बेल्ट लगानी पड़ती है. 

गोयल सा का काम करने का ख़ास सलीका है. उनके टेबल पर पेन, पेंसिल, स्टेपलर वगैरा चुने हुए और खुबसूरत मिलेंगे. टापोटॉप. आने वाली फाइलें, जाने वाली फाइलें सलीके से लगी होंगीं, पानी का गिलास, फूलदान, उसमें ताज़े फूल याने सभी कुछ बढ़िया और सुंदर तरीके से सजा मिलेगा. उनकी महंगी शर्ट और टाईयां देख कर लगता है की गोयल सा पैदाइशी आला अफसर हैं. 

पर जब गोयल सा घर पहुंचाते हैं तो जाने क्यूँ सब उल्टा पुल्टा हो जाता है. जिस मैगज़ीन में से सुबह आधा लेख पढ़ा था वो मैगज़ीन ही शाम को गायब हो जाती है. सुबह जब बिस्तर से उठते हैं तो एक चप्पल मिलती है दूसरी पता नहीं कहाँ छुप जाती है. बाथरूम में तौलिया मिलता है पर साबुन नहीं मिलता. जूते दोनों मिल जाते हैं पर सॉक्स एक ही मिलती है. तभी तो मैडम कहती हैं दफ्तर में पता नहीं कैसे काम करते हो घर में तो खोई चीज़ें ढूंढते ही रहते हो.

अब रिटायर हो गए तो मुश्किल बढ़ गई है. सुबह शाम खींच तान होने लगी है. वैसे भी पत्नी का मतलब है जो पति पर तनी रहे. गोयल सा सोचने लगे की बैंक में तो ऐसी दिक्कत कभी आई नहीं. हड़ताल झेल ली, बड़े बड़े नेताओं को सीधा कर दिया और आड़े टेढ़े कस्टमर निपटा दिए पर यहाँ फेल हो रहा हूँ. अब यहाँ कोई फार्मूला ढूंढना पड़ेगा. ट्रान्सफर या ससपेंड करने की तो सम्भावना ही नहीं है. जबान से मुकाबला तो असंभव है. क्या किया जाए? उधेड़बुन में शाम हो गई. बियर की बोतल खोल ली. बियर के दो घूंट मारने के बाद गोयल सा की दिमाग की बत्ती जल उठी और प्लान बन गया.

सुबह मैडम की अलमारी से एक साड़ी निकाल कर दूसरी अलमारी में हैंगर कर दी. ड्रेसिंग टेबल में से एक परफ्यूम ऊपर के खाने में रख दी और एक लिपस्टिक उठा कर पाउडर के डब्बे के पीछे रख दी. किचन के छोटे बड़े चम्मच मिक्स कर दिए. अब इंतज़ार करने लगे. दो दिन में ही प्लान के नतीजे आने लग गए. 
- मुझे समझ नहीं आ रहा मेरी चीज़ें इधर उधर क्यूँ हो रही हैं? लिपस्टिक नहीं मिल रही है कहाँ गई समझ नहीं आ रहा.
- हूँ?
- क्या हूँ? पहले तुम्हारी चीज़ें ढूंढती रहती थी अब अपनी भी खोजनी पड़ रही हैं. किचन में जाती हूँ तो बर्तन नहीं मिलते और अलमारी खोली तो मेरी साड़ी नहीं मिलती. कहाँ गई?
- हूँ?
- क्या हूँ? तुम अपनी अखबार पढ़ो जी. इधर बैठ उधर बैठ और कोई काम नहीं. जब से तुमने बैंक जाना बंद किया है मेरी तो मुसीबत आ गई है. 
तीसरे दिन कहने लगीं - कोई काम वाम देख लो ना जी?
- हूँ?
- क्या हूँ? अरे रामू गाड़ी बाहर निकाल दे. गेराज सफा करके साब की टेबल कुर्सी लगा दे, अखबार, पानी के गिलास, जग वगैरा रख दे और छोटा टीवी लगा दे. और हाँ गेट पर साब के नाम की एक अलग घंटी लगवा दे. दुलारी ए दुलारी! सुन कल से साब को ग्यारह बजे और चार बजे चाय गेराज में दे देना. 
- हूँ.
- हूँ हूँ करते रहो तुम बस.  

दस से पांच का ऑफिस गेराज में खुल गया है. गोयल सा से दो चार सौ करोड़ का लोन कराना हो तो बताएं. कंसल्टेंसी फीस में छूट दिलवा दूंगा. 
गोयल सा, लोन सलाहकार  


Saturday, 11 July 2020

खबरदार

- सुनो नाश्ता लगा दिया.
- आया. 
- अचार लोगे ?
- नहीं.
- कल की खबर सुनी?
- क्या?
- वो जो कोने वाला मकान है दो मंजिला?
- हाँ गोयल पेट्रोल पंप वाले का?
- वही वही. कल बड़ा तमाशा हुआ. कल शाम को एक औरत गाड़ी चला कर एक बच्चे के साथ आई. गोयल के मकान के सामने गाड़ी खड़ी करके अंदर चली गई. जा कर मिसेज़ गोयल से बोली की मैं अब से यहीं रहूंगी. गोयल साब मेरे हस्बैंड हैं और ये बेटा भी उन्हीं का है. अब हम दोनों यहीं रहेंगे. रामू को बोलो गाड़ी से सामान उतार ले. 
- फिर?
- अरे फिर क्या? मिसेज़ गोयल का भी पांच साल का बेटा है. वो दोनों तो सकते में आ गए. फिर झगड़ा शुरू हो गया. दोनों आपस में तूतू-मैंमैं करने लगीं. अड़ोसी पड़ोसी भी इकट्ठे हो गए. 
- गोयल कहाँ था?
- अरे कहीं जयपुर वयपुर गया हुआ था. मिसेज़ गोयल ने मोबाइल किया तो कहने लगा तुरंत वापिस आ रहा हूँ. लड़ो नहीं शांति रखो. वो तो सुनने को भी तैयार नहीं थी फोन पर ही गोयल से लड़ने लगी. गोयल ने भी देखो ये नहीं कहा की दूसरी को भगा दो. भगवान् जाने दूसरी शादी कब की जबकि उसका भी एक बेटा है और इसका भी. कमाल है दो दो शादियाँ कर रखी हैं और दोनों के बच्चे हैं पर दोनों को एक दूसरे के बारे में पता नहीं? 
- गोयल के दो पेट्रोल पंप हैं, दो मंजिला कोठी है और दो बीवियां हैं. ठीक है एक नीचे रह लेगी दूसरी ऊपर की मंजिल में रह लेगी हाहाहा!
- इसमें हंसने की क्या बात है जी? 
- भई मेरा एक शोरूम है, एक मंजिला मकान है और एक बीवी है. मैंने दूसरी मंजिल नहीं बनाई!
- वैसे याद करो ज़रा तुमने कई बार कहा है बनवाने को.
- अरे बालक गए अमरीका अब क्या करना है. तुम कहो तो दूसरी मंजिल शुरू करा दूँ? हाहाहा!
- देखो जी दूसरी शादी मुझे बिलकुल बर्दाश्त नहीं है बस. खबरदार कर रही हूँ. मेरे मरने के बाद भी मत कर लेना. मेरी अलमारी को हाथ लगाएगी या मेरे बरतनों को हाथ लगाएगी तो छोडूंगी नहीं उसे. 
- अरे कर लूंगा तो तुम्हें कैसे पता चलेगा?
- बाद में भी इसी मकान में रहूंगी याद रखना. चिपट जाउंगी. 
- किसे चिपटोगी? मकान को या दूसरी वाली को?
- जी नहीं तुमको! 
- अच्छा! लो पहले चाय पी लो.

चिपटो रानी 


Sunday, 5 July 2020

शूटिंग

बैंक की नौकरी भी कम उलझाऊ नहीं है. मनोहर नरूला जी ने जब बैंक ज्वाइन किया तो जवान थे और तब नौकरी के लिए भारत के किसी भी कोने में जाने को तैयार थे. पर उन्हें दिल्ली में ही रख लिया गया. पांच साल बाद अफसर बने तो उनकी दिली ख्वाहिश थी की मुम्बई या गोआ भेज दिया जाए. पर बैंक ने गोआ के बजाए गाँव भेज दिया. राजस्थान के धौलपुर जिले की जो सड़क जपवाली जाती है बस उससे थोड़ा सा हटके नगला दुल्हेखान की चिट्ठी दे दी गई. ब्रांच के बारे में बताया गया:
  
- मनोहर नरूला जी ये रही आपकी चिट्ठी. जैसा सुंदर नाम है गाँव का वैसा ही खुबसूरत भी है. आप वहाँ जाकर ब्रांच सम्भालें. लोन बाटें, गाँव और देश प्रदेश की तरक्की कराएं.  और हाँ गाँव में पानी की कमी है पर आपको सिर्फ दस रूपए में एक बाल्टी पानी मिल जाएगा. ब्रांच में एक पनिहारिन भी है. ऐसी सुविधा आसपास के दूसरे इलाकों में नहीं है! गुड लक.
  
खैर समय गुजरा मन्नू जी चीफ मैनेजर बन गए और उन्हें मुम्बई भेज दिया गया. एक साल रह गया था रिटायर होने में और ऐसे में तो दिल्ली ही रखना चाहिए था पर मुम्बई भेज दिया. कमबख्त एच आर डी का दिमाग उलटा ही चलता है. खैर हो सकता है इसी बहाने करीना से मुलाकात हो जाए!  मनोहर नरूला जी की ये खासियत है की वो हर हाल में आशावादी रहते हैं.

मुम्बई ब्रांच के कुछ लोगों से शूटिंग देखने की इच्छा जाहिर की. पता लगा की कभी भी देखी जा सकती है इंतज़ाम हो जाएगा. 
- मुझे सिर्फ करीना की शूटिंग ही देखनी है (शूटिंग भी क्या देखनी है करीना को देखना है बस).

सोमवार को खबर आ गई की करीना की तीन दिन की सुबह की शूटिंग फलां स्टूडियो में हो रही है. बस मनोहर जी ने तीन दिन की छुट्टी ले ली. पता नहीं फिर कब ऐसा चांस मिले?
स्टूडियो पहुँच गए. जब तक करीना नज़र आई तब तक उसे बैठे देखते रहे. किसी और हीरो हीरोइन में या शूटिंग में कोई दिलचस्पी तो थी नहीं. तीसरे और आख़िरी दिन मनोहर जी ने ऑटोग्राफ लेना चाहा ताकि नजदीक से करीना पर नज़र डाली जा सके. डायरी और पेन लेकर नज़दीक पहुंचे तो गार्ड ने मुस्करा कर जाने दिया.
- ऑटोग्राफ प्लीज. मुझे आप बहुत अच्छी लगती हैं, मनोहर जी बोले. वो तो बिलकुल मन्त्र मुग्ध हो गए. क्या गुलाबी रंग है, क्या आँखें हैं और क्या अंदाज़ है.
- थैंक यू अंकल.

'अंकल' शब्द सुन कर मनोहर जी का मोह भंग हो गया और धीरे से वापिस मुड़े. ठंडी साँस भर के डायरी और पेन संभाला. गार्ड देख सुन कर मुस्कुराया और बोला,
 - सर मेरी बात मानें तो आप वहीदा रहमान या आशा पारेख से मिलें. 
- हूँ! किसी ज़माने में आशा पारेख मुझे बहुत पसंद थी और उसकी सारी फ़िल्में देखता था. बहरहाल शुक्रिया याद कराने के लिए. वैसे शूटिंग देखने में क्या रखा है? कुछ नहीं!   
आशा पारेख का एक पुराना पोस्टर ( इन्टरनेट से )


Wednesday, 1 July 2020

गुड़

बैंक का पब्लिक डीलिंग का समय समाप्त हो गया था और गेट बंद हो चुका था. इसलिए बैंकिंग हाल में हलचल घट गई थी. ऐसे में कपूर साब इधर उधर नज़र घुमा रहे थे. 
- कपूर साब किसे ढूंढ रहे हैं जी?
- बच्चे अज स्वेर तों किसी कुड़ी नाल गल नई कित्ती, कह कर कपूर साब मिसेज़ सहगल के पास जाकर बतियाने लगे. मतलब अगर किसी दिन किसी लड़की से बात ना हो तो कपूर साब का दिन अधूरा रह जाता है. आप तो जानते ही हैं जी की बड़े बैंक की बड़ी ब्रांच में हर तरह के लोग मिल जाते हैं. 

वैसे ये कपूर साब भी कमाल हैं. उम्र चालीस की होने वाली है पर बड़े चाक चौबंद रहते हैं. बढ़िया चकाचक कपड़े, उस पर परफ्यूम और चमकते हुए बूट पहनते हैं. जेब में महंगा सा सुनेहरा पेन लगाते हैं जो बैंक में कभी खुलते हुए देखा नहीं. बाहर निकलते ही रंगीन चश्मा लगा लेते हैं. बड़े मिलनसार हैं ख़ास कर महिलाओं से चाहे वो स्टाफ की हों या कस्टमर. महिलाओं को भी कपूर साब से बतियाना बड़ा अच्छा लगता है. शायद इसका राज़ है की कपूर साब अभी तक बैचलर हैं. कनाट प्लेस के पास ही बंगाली मार्किट है वहीँ कहीं रहते हैं. इसलिए इलाके के चप्पे चप्पे से वाकिफ हैं. आपको ड्राई डे में बियर कहाँ मिल सकती है, डिनर के लिए कौन सा रेस्तरां डिस्काउंट देगा, रीगल सिनेमा हाउसफुल हो तो टिकट कैसे मिलेगी वगैरा इसके लिए आप कपूर साब से संपर्क कर सकते हैं. उनका विचार है की उनसे स्मार्ट इतनी बड़ी ब्रांच में कोई नहीं है.  
     
- अब बोल बच्चे मनोहर? कपूर साब ने पूछा.
- कपूर साब चौबीस साल का हूँ जी. साल भर से बैंक की नौकरी कर रहां हूँ जी. घर वाले मेरी शादी के लिए पीछे पड़े आप मुझे बच्चा ....
- तो जा ना कर ले शादी. 
- मैं ना करता जी गाँव में शादी. शादी तो मैं यहीं दिल्ली में करूँगा. 
- पहले हुलिया तो ठीक कर ले बच्चे. बालों में तेल चुपड़ा है, कपड़े ऐसे हैं की खेत में गुड़ाई कर के आया हो. कैसे  होगी तेरी शादी दिल्ली में. 
- फेर कैसे होगी? 
- स्टाइल सीख बच्चे स्टाइल. जीन्स और टी शर्ट, बाल छोटे और बिखरे हुए, परफ्यूम और रंगीन चश्मा. फिर ले एक फटफटिया. थोड़ी थोड़ी अंग्रेजी भी बोला कर - यू नो?, आई नो! दिस इज़ कूल! ओ डीयर! और लड़कियों से चाय नहीं पूछना कॉफ़ी पूछना. मैं तुझे पूरा ट्रेन कर दूंगा.
- अच्छा जी?
- फिर तू ब्रांच क्या इस बिल्डिंग की जिस भी लड़की को कहेगा तेरे से मिलवा दूंगा संध्या को छोड़ कर. वो तेरे से एक दो साल बड़ी है.
- पर कपूर साब मुझे तो वो भी अच्छी लगती है?
- भूल जा उसे. चल तुझे कपड़े दिलवाऊं पहले.

गुरु कपूर के चेले मनोहर नरूला उर्फ़ मन्नू की दस दिनों में शकल ही बदल गई. बड़ी जल्दी दिल्ली की हवा और उड़ती चिड़ियों को पहचानने लगा. एक शुभ महूरत ऐसा आया की वो संध्या की टेबल पर विराजमान हो गया.
- कहाँ के रहने वाले हो मनोहर?
- पास में ही गाँव है जी. मोटरसाइकिल से एक घंटे में पहुँच जाते हैं जी.
- गुड.
- आजकल तो जी गन्ने का सीजन है और घर में गुड़ बन रहा है. आपको ले जाना तो चाहता हूँ जी पर ले जा नहीं सकता.
- मतलब?
- कपूर साब ने मना कर रखा है की संध्या से ज्यादा बात नहीं करनी है.
- अच्छा? 
- हूँ.
- आप कह रहे हो की घर जाने में एक घंटा लगता है तो एक घंटा आने में लगेगा. एक घंटा वहां पर. ऐसा कर सकते हो की सन्डे को 9 बजे मुझे पिकअप कर लो और एक बजे तक वापिस छोड़ दो?
- हाँ जी हाँ जी बिलकुल हो सकता है जी.
- तो डन?
- दिस इज कूल जी!, मनोहर नरूला के दिल में सितार बज गई!

सोमवार को लंच के बाद संध्या ने मन्नू को बुलाया और कहा,
- कॉफ़ी आ रही है बैठो.
- पर वो कपूर साब घूर रहे हैं जी?
- चुप बैठे रहो.
टेबल पर कॉफ़ी के कप, मनोहर और संध्या को देख कर कपूर साब का माथा ठनका. आ गए और बोले,
- बच्चे कोफ्फी पी रहा है?
इससे पहले की मन्नू कुछ बोले संध्या ने जवाब दे दिया,
- ये बच्चा भी है और दिल का सच्चा भी है. कल इसके गाँव भी घूम आई मैं और गुड़ भी ......
तब तक कपूर साब भिन भिन करते हुए वहां से खिसक लिए. 
- मनोहर आपके गुरु का मुख कड़वा हो गया है. अगली बार इनके लिए गाँव से गुड़ ले आना. 
 कॉफ़ी