भारत बहुत बड़ा और विभिन्नता से भरा देश है. अगर जोशीमठ से गाड़ी लेकर जयपुर की ओर या फिर दिल्ली से बैंगलोर की ओर निकल पड़ें तो रास्ते में सीनरी तेज़ी से बदलती जाती है, पेड़-पौधे, खाना-पीना, पहनावा और भाषा सभी में बदलाव महसूस होता है. और ये सब देखने के लिए हम पहले तो फटफटिया इस्तेमाल करते रहे और उसके बाद अपनी कार. अब तक लगभग 70% भारत की सैर अपने उड़न खटोलों में ही की है.
इस तरह से घुमने के लिए अपने बस्ते में भारत का एक बड़ा नक्शा, प्रदेशों के नक़्शे और प्रदेशों की राजधानियों के नक़्शे रखने पड़ते थे. पर अब सब कुछ बदल गया है. छोटे से फोन और GPS ने घूमने का अंदाज़ ही बदल दिया है. फोन में गूगल ने नक़्शे डाल दिए हैं और जनता ने होटल, स्मारक, स्कूल, अस्पताल के बारे में फोटो और रिव्यु डाले हुए हैं जो चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं.
मसलन एक बार अपनी कार से मंगलौर से गोवा की ओर जा रहे थे. रास्ते में भटकल में चाय लिए रुके. कैफ़े में मोबाइल देखा कि क्या आस पास कोई देखने लायक जगह है? गूगल ने बताया कि जोग फाल्स 85 किमी दूर है और जाने का टाइम लगेगा 1 घंटा 57 मिनट. कैफ़े के मालिक ने भी कहा कि गूगल बाबा सही फरमा रहे हैं. फिर क्या था अपना उड़न खटोला जोग फाल्स की तरफ मोड़ दिया ! जल प्रपात देख कर बड़ा आनंद आया.
एक बार GPS ने फंसा भी दिया था. पुष्कर के होटल में जाना था और उसके दो रास्ते थे. गूगल की बोलती गुड़िया ने छोटा रास्ता जो बाज़ार के बीच से जाता था, बताना शुरू कर दिया. मात्र 500 मीटर पहले बाज़ार संकरा हो गया, जनता ज्यादा थी और गाड़ी बड़ी. जाम लगने लगा. गूगल की गुड़िया बार बार 'होटल 500 मीटर आगे है' बता रही थी उधर दुकानदार और जनता शोर मचाने लगी. बड़ी मुश्किल से बैक की और दूसरे रास्ते से होटल पहुंचे.
ये GPS क्या है? ये उपग्रह पर आधारित रेडियो नेविगेशन सिस्टम है जिसे Global Positioning System कहते हैं. यह सिस्टम अमरीकी सरकार का है और इसे अमरीकी वायु सेना चलाती है. हमें गूगल के माध्ययम से मिल रही है. यह सेवा मुफ्त है और धरती पर किसी भी स्मार्ट फोन या दूसरे रिसीवर पर इसे इस्तेमाल किया जा सकता है. यह सेवा अमरीकी सेना के लिए 1978 के लिए शुरू हुई पर बाद में आम जनता के लिए भी खोल दी गई. इसके लिए 31 सॅटॅलाइट धरती से 20,000 किमी ऊपर लगातार घूमते रहते हैं.
अब चूँकि ये सेवा अमरीका के आधीन है तो वो जब चाहें जिस एरिया में चाहें बंद भी कर सकते हैं. 1999 के कारगिल युद्ध में उन्होंने ऐसा ही किया. तब भारत ने अपना ही सिस्टम नाविक - NAVIC के नाम से शुरू करने की कोशिश की. इसके लिए पहले उपग्रह 2013 में और अंतिम 2018 में छोड़ा गया पर अभी पूरी तरह से चालू नहीं हुआ है. ( और अधिक जानकारी के लिए कृपया विकिपीडिया देखें ).
ये लोकल गाइड क्या है? गूगल के नक़्शे और GPS तो लाखों लोग इस्तेमाल करते हैं. मसलन अगर गूगल के नक़्शे में मेरठ का औघड़ नाथ मंदिर या फिर हैदराबाद का सालारजंग म्यूजियम देखना चाहें तो उनके नक़्शे, वहां की फोटो, जाने का रास्ता और जनता द्वारा पोस्ट किये हुए रिव्यु भी तुरंत मिल जाएंगे. गूगल के नक्शों में आप भी फोटो, रिव्यु और सवाल पोस्ट कर सकते हैं. इन पोस्ट करने वालों को लोकल गाइड कहा जाता है और गूगल हर पोस्ट पर कुछ पॉइंट्स देता है. पॉइंट्स मिलने के बाद एक से लेकर दस तक लेवल बन जाते हैं. दसवें लेवल तक पहुँचने के लिए एक लाख पॉइंट्स दरकार हैं.
जनवरी 2018 से मैंने भी इसमें 'लोकल गाइड' की तरह हिस्सा लेना शुरू कर दिया और मेरा अब तक का स्कोर इस प्रकार है -
* रिव्यु लिखे ( हिंदी / इंग्लिश में ) - 953 जो 2,31,874 बार देखे गए,
* फोटो डाली - 2933 जो 52,47,327 बार देखी गई,
* एडिट किये - 442,
* सवालों के जवाब दिए - 734 वगैरा.
कुल पॉइंट्स मिले 50,211 और मिला लेवल 9.
अब गूगल मैप्स की मेल आई है - 'keep making heroic attempt to get to Level 10'. चलिए साब अब लेवल 10 तक चलते हैं !
इस तरह से घुमने के लिए अपने बस्ते में भारत का एक बड़ा नक्शा, प्रदेशों के नक़्शे और प्रदेशों की राजधानियों के नक़्शे रखने पड़ते थे. पर अब सब कुछ बदल गया है. छोटे से फोन और GPS ने घूमने का अंदाज़ ही बदल दिया है. फोन में गूगल ने नक़्शे डाल दिए हैं और जनता ने होटल, स्मारक, स्कूल, अस्पताल के बारे में फोटो और रिव्यु डाले हुए हैं जो चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं.
मसलन एक बार अपनी कार से मंगलौर से गोवा की ओर जा रहे थे. रास्ते में भटकल में चाय लिए रुके. कैफ़े में मोबाइल देखा कि क्या आस पास कोई देखने लायक जगह है? गूगल ने बताया कि जोग फाल्स 85 किमी दूर है और जाने का टाइम लगेगा 1 घंटा 57 मिनट. कैफ़े के मालिक ने भी कहा कि गूगल बाबा सही फरमा रहे हैं. फिर क्या था अपना उड़न खटोला जोग फाल्स की तरफ मोड़ दिया ! जल प्रपात देख कर बड़ा आनंद आया.
जोग फाल्स, जिला शिमोगा, कर्णाटक. मानसून और उसके तुरंत बाद यहाँ कई प्रपात बन जाते हैं |
पुष्कर का बाज़ार |
ये GPS क्या है? ये उपग्रह पर आधारित रेडियो नेविगेशन सिस्टम है जिसे Global Positioning System कहते हैं. यह सिस्टम अमरीकी सरकार का है और इसे अमरीकी वायु सेना चलाती है. हमें गूगल के माध्ययम से मिल रही है. यह सेवा मुफ्त है और धरती पर किसी भी स्मार्ट फोन या दूसरे रिसीवर पर इसे इस्तेमाल किया जा सकता है. यह सेवा अमरीकी सेना के लिए 1978 के लिए शुरू हुई पर बाद में आम जनता के लिए भी खोल दी गई. इसके लिए 31 सॅटॅलाइट धरती से 20,000 किमी ऊपर लगातार घूमते रहते हैं.
अब चूँकि ये सेवा अमरीका के आधीन है तो वो जब चाहें जिस एरिया में चाहें बंद भी कर सकते हैं. 1999 के कारगिल युद्ध में उन्होंने ऐसा ही किया. तब भारत ने अपना ही सिस्टम नाविक - NAVIC के नाम से शुरू करने की कोशिश की. इसके लिए पहले उपग्रह 2013 में और अंतिम 2018 में छोड़ा गया पर अभी पूरी तरह से चालू नहीं हुआ है. ( और अधिक जानकारी के लिए कृपया विकिपीडिया देखें ).
ये लोकल गाइड क्या है? गूगल के नक़्शे और GPS तो लाखों लोग इस्तेमाल करते हैं. मसलन अगर गूगल के नक़्शे में मेरठ का औघड़ नाथ मंदिर या फिर हैदराबाद का सालारजंग म्यूजियम देखना चाहें तो उनके नक़्शे, वहां की फोटो, जाने का रास्ता और जनता द्वारा पोस्ट किये हुए रिव्यु भी तुरंत मिल जाएंगे. गूगल के नक्शों में आप भी फोटो, रिव्यु और सवाल पोस्ट कर सकते हैं. इन पोस्ट करने वालों को लोकल गाइड कहा जाता है और गूगल हर पोस्ट पर कुछ पॉइंट्स देता है. पॉइंट्स मिलने के बाद एक से लेकर दस तक लेवल बन जाते हैं. दसवें लेवल तक पहुँचने के लिए एक लाख पॉइंट्स दरकार हैं.
जनवरी 2018 से मैंने भी इसमें 'लोकल गाइड' की तरह हिस्सा लेना शुरू कर दिया और मेरा अब तक का स्कोर इस प्रकार है -
* रिव्यु लिखे ( हिंदी / इंग्लिश में ) - 953 जो 2,31,874 बार देखे गए,
* फोटो डाली - 2933 जो 52,47,327 बार देखी गई,
* एडिट किये - 442,
* सवालों के जवाब दिए - 734 वगैरा.
कुल पॉइंट्स मिले 50,211 और मिला लेवल 9.
Reached Level 9 |
अब गूगल मैप्स की मेल आई है - 'keep making heroic attempt to get to Level 10'. चलिए साब अब लेवल 10 तक चलते हैं !
9 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/07/blog-post.html
मेरा लेवे 8 और अंक 26573 हैं।आपको लेवल 10 पहुंचने की शुभकामनाएं
Thanks Sunil. Continue the process.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 04 जुलाई 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद रविन्द्र
GPS के बारे में ज्यादा नहीं पता था। लोकल गाइड्स के बारे में थोड़ी जानकारी थी। लेख अच्छा लगा। चित्र हमेशा की तरह मनमोहक। सादर।
धन्यवाद मीना शर्मा
सैर सपाटे में हमेशा ही इस्तेमाल करते आए हैं तो मैंने सोचा कुछ अपने ओर से भी लिख दिया जाए.
Good explanation.
Thank You Ashok Gandhi.
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