आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में एक जगह है लेपाक्षी. इसे बड़ा गाँव समझ लें या कस्बा. यहाँ एक सुंदर मंदिर है जिसे आम तौर पर लेपाक्षी मंदिर कहा जाता है पर वास्तविक नाम वीरभद्र मंदिर है जो सोलहवीं शताब्दी में बनाया गया था. उस वक़्त आस पास के इलाके में विजयनगर साम्राज्य था. लेपाक्षी से लगभग 40 किमी दूर पेनुकोंडा में राजा अचुत्या राय थे और लेपाक्षी में दो भाई वीरुपन्ना नायका और वीरन्ना नायका गवर्नर थे. वीरुपन्ना ने 1530 / 1540 में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कराया था.
बंगलुरु से लेपाक्षी की दूरी 140 किमी है और यह स्थान बंगलुरु-हैदराबाद हाईवे से बारह किमी अंदर है. ये सड़क बहुत अच्छी है इसलिए एक दिन के ट्रिप में बंगलुरु से मंदिर आना जाना हो सकता है. यहाँ आन्ध्रा टूरिज्म का इकलौता होटल और रेस्टोरेंट है इसलिए अपना इंतज़ाम करके चलना ठीक रहेगा. कोई टिकट नहीं है. हिंदी या इंग्लिश गाइड मिलना मुश्किल है. लेपाक्षी नंदी, मंदिर और गरुड़ थीम पार्क आधे किमी के दायरे में हैं और पैदल देखे जा सकते हैं. दोपहर की धूप यहाँ तीखी है और चट्टानें गरम हो जाती हैं अपना ख़याल रखें.
मंदिर बनाने की शैली द्रविड़ियन और विजयनगर जैसी है. पूरे मंदिर में खम्बों और दीवारों के एक एक इंच पर कमाल की नक्काशी है. मूर्तियों में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, पार्वती, गंगा,यमुना, साधू संत, राजा, नृत्यांगना, संगीतकार, पशु पक्षी, फुल पत्ते इत्यादि हैं. छत पर रंगीन चित्रकारी है जो कहीं कहीं फीकी पड़ गई है.
मंदिर एक ऊँची सी चट्टान पर है जिसकी शक्ल कछुए जैसी है और इसलिए चट्टान का स्थानीय नाम कुर्म सैला है. भारत में सबसे बड़ी नंदी की मूर्ति, सबसे बड़ी नाग की मूर्ति और सबसे बड़ी गरुड़ की मूर्ति यहीं है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
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1. नागालिंगा: बारह फुट ऊँचा, सात फना नाग. ये मूर्ति मंदिर परिसर में ही है. मान्यता है की मुख्य मूर्तिकार की माँ खाना बना रही थी तब तक उसकी टीम ने ये नाग तराश दिया. परन्तु मुख्य मूर्तिकार की माँ इस बात पर नाराज़ हो गई कि शिवलिंग नहीं बनाया गया इसलिए मूर्ति में दरार पड़ जाएगी. शिवलिंग भी तुरंत बना दिया गया. अगर आप पास जाकर गौर से देखें तो दाएं से तीसरे और चौथे फन के बीच हल्की सी दरार है. शायद फोटो में ना नज़र आये. |
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2. नागालिंगा पत्थर के पिछले भाग में गणेशजी और उनकी सवारी चूहा |
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3. भारी भरकम नागालिंगा पत्थर पर शिवलिंग की नक्काशी |
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4. मंदिर का सबसे पहले बना भाग - शिवलिंग. दो सौ मीटर दूर बना विशालकाय नंदी इसी शिवलिंग की ओर देख रहा है |
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5. खुला मंडपम. मान्यता है कि यह मंडप राजा से बिना पूछे बनाना शुरू कर दिया गया था. पर राजा जब अपने टूर से वापिस आये तो बहुत नाराज़ हुए और निर्माण बंद करा दिया गया. वरना इस मंडप में छत होती और शिव-पार्वती की शादी होती |
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6. विजयनगर शैली के खम्बे, बरामदा और आँगन. हम्पी, कर्नाटक में भी इस तरह के खम्बे देखे जा सकते हैं |
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7. मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार और दीप स्तम्भ |
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8. फर्श के पत्थर पर बनी भोजन की थाली. इसमें मूर्तिकार भोजन करते थे |
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9. हनुमान का पाँव. इस पाँव की विशेषता है कि इस में हर समय पानी रिस रिस कर आता रहता है. मान्यता है की घायल गरुड़ के लिए हनुमान ने पाँव को पत्थर पर मार कर पानी पीने की व्यवस्था की और गरुड़ को कहा - 'ले पाखी' जिसके कारण नाम हो गया लेपाक्षी |
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10. खम्बे चाहे चार मुखी हों या छे मुखी, खम्बे की हर सतह पर सुंदर नक्काशी |
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11. मुख्य मंडप की छत पर रंगीन चित्रकारी |
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12. छत पर राम, कृष्ण और उस समय के राजाओं से सम्बंधित चित्र हैं |
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13. मंदिर में सत्तर खम्बे हैं जिनमें से ये एक खम्बा फर्श से जुड़ा नहीं है बल्कि लटक रहा है. खम्बे और फर्श के बीच से अखबार या चुन्नी को निकाला जा सकता है. अंग्रेजों ने इसे हिलाने की कोशिश की परन्तु साथ वाले दूसरे खम्बे हिलने लगे और ऐसा लगा कि छत गिर जाएगी. उसके बाद इस खम्बे से छेड़खानी नहीं की गई |
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14. खम्बों पर देवी देवता, संगीतकार, नृत्य और राजाओं से सम्बंधित सुंदर नकाशी |
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15. भृंगी, नृत्य गुरु विभिन्न मुद्राओं में |
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16. ब्रह्मा
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17. विरुपन्ना नायका |
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18. गाय के एक शरीर पर तीन सिर |
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19. सुसज्जित लेपाक्षी नंदी. 20 फीट ऊँचा और 30 फीट लंबा. वहां लगे ASI के बोर्ड के अनुसार भारत का सबसे बड़ा नंदी |
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20. पीछे गरुड़ की बड़ी मूर्ति है जहां एक थीम पार्क बनाया जा रहा है. मान्यता है की सीता को ले जाते हुए गरुड़ घायल हो कर यहीं गिरा था |
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21. थीम पार्क |
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22. नंदी के पास एक तालाब में गुलाबी कमल |
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