पहले दिन कारवां चलाने में थोड़ी दिक्कत ही रही. एक तो गाड़ी बड़ी और भारी थी दूसरे ऑटो गियर का अभ्यास नहीं था. ऑटो गियर को समझने में भी थोड़ा समय लगा. शहर के बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक बहुत कम था इसलिए थोड़ी स्पीड बढ़ाई. स्पीड बढ़ाने से कारवाँ थोड़ा बहुत दाएं बाएँ झूलने लगा ! ओ तेरे की ! तेरा क्या होगा कारवाँ ? यही फैसला किया कि स्पीड 50 - 60 के आस पास या कम रखी जाए. मोड़ काटने में स्पीड और भी कम और सावधानी और ज्यादा रखनी पड़ी.
न्यूज़ीलैण्ड के साउथ आइलैंड का नाम माओरी भाषा में ते वाइपोनामु है. इस द्वीप में झीलें बहुत हैं. छोटी झील, बड़ी झील, चौड़ी झील, लम्बी झील, गहरी झील जिसमें छोटे जहाज़ भी चल जाएं. याने पानी ज्यादा और जमीन कम! बहारहाल जमीन पर सड़कें अच्छी हैं और रख रखाव भी अच्छा है. पर पहाड़ी इलाका होने के कारण सड़कों की चौड़ाई कम है याने सिर्फ़ दो लेन. सड़क के बीच सफ़ेद लाइन लगाकर दो लेन बना दी हैं बस. ओवरटेकिंग मना है लोग करते भी नहीं. वैसे भी हमने तो ओवरटेकिंग क्या करनी थी. वैसे हर दो चार किमी दूरी पर ओवर टेकिंग के लिए जगह बनी हुई है. इसके लिए सड़क पर निशान लगे हुए थे और किनारे पर बोर्ड भी थे जहां गाड़ी भगा कर आगे निकल सकते थे. यहाँ की ड्राइविंग में ख़तरा चालान का था क्यूंकि यहाँ जुर्माने मोटे होते हैं और वो भी डॉलर्स में. और यहाँ आपके भतीजे के दोस्त के क्लास फेल्लो के बाप को जो मंत्री है, ना कोई जानता है और ना ही परवाह करता है.
शाम को झील किनारे एक सरकारी पार्किंग में गाड़ी लगा दी. दालों के कुछ पैकेट ले गए थे. दाल बनाई, आमलेट बनाया, ब्रेड सेकी और बियर की बोतल खोल ली. बाकी सब कुछ तो महंगा है पर बियर सस्ती है. कैरोना दिल्ली में 200+ की है और यहाँ 100 की ! रात यहाँ ठंडी हैं जैसा की फोटो से अंदाज़ा लगा सकते हैं. बाहर ठण्ड में क्या जाना इसलिए गुड नाईट कर दी. सुबह गजब के नज़ारे देखने को मिले :
- मुकुल वर्धन की प्रस्तुति *** Contributed by Mukul Wardhan
न्यूज़ीलैण्ड के साउथ आइलैंड का नाम माओरी भाषा में ते वाइपोनामु है. इस द्वीप में झीलें बहुत हैं. छोटी झील, बड़ी झील, चौड़ी झील, लम्बी झील, गहरी झील जिसमें छोटे जहाज़ भी चल जाएं. याने पानी ज्यादा और जमीन कम! बहारहाल जमीन पर सड़कें अच्छी हैं और रख रखाव भी अच्छा है. पर पहाड़ी इलाका होने के कारण सड़कों की चौड़ाई कम है याने सिर्फ़ दो लेन. सड़क के बीच सफ़ेद लाइन लगाकर दो लेन बना दी हैं बस. ओवरटेकिंग मना है लोग करते भी नहीं. वैसे भी हमने तो ओवरटेकिंग क्या करनी थी. वैसे हर दो चार किमी दूरी पर ओवर टेकिंग के लिए जगह बनी हुई है. इसके लिए सड़क पर निशान लगे हुए थे और किनारे पर बोर्ड भी थे जहां गाड़ी भगा कर आगे निकल सकते थे. यहाँ की ड्राइविंग में ख़तरा चालान का था क्यूंकि यहाँ जुर्माने मोटे होते हैं और वो भी डॉलर्स में. और यहाँ आपके भतीजे के दोस्त के क्लास फेल्लो के बाप को जो मंत्री है, ना कोई जानता है और ना ही परवाह करता है.
शाम को झील किनारे एक सरकारी पार्किंग में गाड़ी लगा दी. दालों के कुछ पैकेट ले गए थे. दाल बनाई, आमलेट बनाया, ब्रेड सेकी और बियर की बोतल खोल ली. बाकी सब कुछ तो महंगा है पर बियर सस्ती है. कैरोना दिल्ली में 200+ की है और यहाँ 100 की ! रात यहाँ ठंडी हैं जैसा की फोटो से अंदाज़ा लगा सकते हैं. बाहर ठण्ड में क्या जाना इसलिए गुड नाईट कर दी. सुबह गजब के नज़ारे देखने को मिले :
सुबह हो गई चलो नाश्ता ढूंढें |
झील किनारे |
मापूरिका झील 3 किमी लम्बी, 2 किमी चौड़ी और 4 मीटर गहरी है पर शांत है |
एक दिन का लाइसेंस लेकर मछली पकड़ी जा सकती हैं पर शर्तें लागू हैं और सख्ती से लागू होती हैं |
झील और सैलानी |
झील का एक सुंदर दृश्य |
सुबह का चिड़िया स्नान - लेक पीयर्सन में.यहाँ काफी रंग बिरंगे पक्षी दिखे. एक बात और है यहाँ इन पक्षियों को मारने वाले परभक्षी या predators नहीं हैं . यहाँ चिड़ियाँ सुरक्षित हैं और निडर भी हैं |
लेक पीयर्सन का एक और दृश्य |
शांत सुबह |
नज़ारा देख कर सवाल उठता है - ये कौन चित्रकार है ? |
- मुकुल वर्धन की प्रस्तुति *** Contributed by Mukul Wardhan
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