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Wednesday, 24 January 2018

स्वभाव

ऑपरेशन थिएटर ले जाते हुए तीन चार मिनट लगे होंगे परन्तु इस दौरान चंद्रा साब के आँखों के आगे अपने जीवन का सारा विडियो घूम गया. बचपन, जवानी और उसके बाद का समय. चंद्रा साब कब बूढ़े हुए ? अभी तो जवान ही हैं और ये ऑपरेशन तो बस छोटा सा ही तो है, फिर से ऑफिस जाना है अभी दो साल और बतौर रीजनल मैनेजर रहना है. क्या पता इस दौरान एक और प्रमोशन भी हो जाए और पेंशन बढ़ी हुई मिले आगे ज़िन्दगी अच्छी चल जाएगी. मिलनी भी चाहिए क्या नहीं किया मैंने इस बैंक के लिए ? कितना बिज़नस बढ़ाया है मैंने इस रीजन का ? और परिवार को भी तो आगे ले आया. दोस्तों और रिश्तेदारी में इतनी धाक है किसी की ? घर में चंद्रा साब का अंदाज़ कुछ यूँ था कि मैं ही ठीक हूँ और तुम दोनों तो किसी काम के नहीं. पर पत्नी और बेटा सुनकर दाएं बाएँ हो जाते थे ताकि घर में शांति बनी रहे.

तब तक डॉक्टर ने इंजेक्शन ठोक दिया और फिर पूछा,
- कैसा फील कर रहे हैं चंद्रा साब ?
- आपका आशीर्वाद रहना...
जवाब देते देते चन्द्र जी बेहोश हो गए और डॉक्टर अपने काम पर लग गए. ऑपरेशन ठीक हो गया और चंद्रा साब स्ट्रेचर पर लेटे हुए बाहर निकले और आई सी यू में आ गए. परिवार जनों ने दूर से देख लिया. चेहरे का रंग हल्का पड़ गया था और अभी बेहोश थे. डॉक्टर के अनुसार दो घंटे बाद बात कर पाएंगे.

पहले तो उन्हें इच्छा हुई पानी पीने की पर हाथ हिल नहीं रहे थे. बड़ी कोशिश के बाद जीभ सूखे होटों पर फेरी. एकदम से उन्हें लगा की माला पानी का गिलास लेकर खड़ी है पर दूसरे ही क्षण सब कुछ गुल हो गया अँधेरा सा हो गया. कुछ मिनटों बाद हलकी सी हाय निकली और दाहिने हाथ में हरकत हुई. लगा की कुछ बोलना चाहते हैं पर फिर शांत हो गए. बेहोशी फिर हल्की हुई तो उन्हें अपनी पत्नी माला धुंधली सी नज़र आई. कुछ घबराई हुई उन पर झुक रही थी. माला पर प्यार का एक झोंका आया तो हाथ बढ़ाने की कोशिश की पर माला गायब हो गई. चंद्रा साब को लगा कि लाइट चली गयी शायद.

कुछ मिनटों बाद फिर से उन्होंने सूखे हुए होंटों से तीन चार बार जीभ लगाकर पानी पीने की कोशिश की पर कोशिश बेकार गई और अँधेरा छा गया. इस बार माला को आवाज़ दी की पानी पिला दो. होंट तो फड़के पर आवाज़ बाहर नहीं आई. अँधेरे उजाले में चंद्रा साब हिचकोले खा रहे थे. लाचारी उन्हें पसंद नहीं थी. रोब से काम करवाना पसंद था. मैं जो कह दूं वो तो होना ही चाहिए. ना का क्या मतलब. पर उतरे हुए कपड़े और दवाइयों की महक से अपने को असहाय महसूस कर रहे थे. बिस्तर से कूद कर अस्पताल से बाहर पार्क में भागने का मन हो रहा था. कुछ क्षणों के लिए घर में बना मंदिर याद आ गया. एक बार अपने ऑफिस की बड़ी सी टेबल नज़र आई पर उस पर हाथ नहीं रख पा रहे थे. बबलू की तेज़ भागती मोटर साइकिल नज़र आई तो उन्होंने हाथ उठाकर रोकने की कोशिश की पर नाकाम रहे.

धीरे धीरे होश में आ गए. छुट्टी मिली तो घर आ गए. घर में रेस्ट किया और माला - बबलू की सेवा का आनंद लेते रहे. दोनों के गौर से देखते तो सोचने लगते की दोनों कितने अच्छे हैं. मन में विचार आये की कम से कम इन दोनों से तो ढंग से बोल लिया करूँ. अब इन्हें नहीं डांटना है. दोनों ने बहुत सेवा की है. पर ये शब्द जबान पर नहीं आए और माँ बेटे से दूरी घटी नहीं. ऑफिस के लोग भी हालचाल पूछते रहे हैं. उन्होंने सोचा अब ऑफिस में भी ज़रा नरमी बरतनी है.

कुछ दिनों बाद चंद्रा साब ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया. फाइलें फिर से चालू हो गईं. दस बारह दिनों में काम नार्मल होने लग गया. अब फिर से स्टाफ को डांट पड़ने लगी. स्टाफ के हिस्से की डांट कभी कभी घर में माला को पड़ जाती और कभी बेटे को. घरेेेलू मसलों की डांट फटकार यदा कदा ऑफिस तक भी पहुँचने लग गई.

चंद्रा साब का अहंकार और गुस्सा धीरे धीरे फिर से वापिस आ गया अब वो नार्मल हो गए.

जीवन प्रवाह 


7 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2018/01/blog-post_24.html

A.K.SAXENA said...

बहुत सुन्दर चारित्र चित्रण। हम नहीं सुधरेंगें। धन्यवाद्।

Unknown said...

So true

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद सक्सेना जी.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद 'Unkonwn'

Subhash Mittal said...

Normal ka matlab sudharna nahi.But were you having telepathic communication with Chandra saheb?

Rajinder Singh said...

Imandari se Kam karney wale ki fitrat aisi hi Ho jati Hai. Thanx Sir,very interesting.