दिल्ली से टेहरी 320 किमी की दूरी पर है. पहाड़ी सड़क ऋषिकेश से शुरू हो जाती है पर इस सड़क में आड़े टेड़े घूम और कट कम हैं. इसलिए हमें अपनी गाड़ी ले जाने में दिक्कत नहीं हुई. बीच बीच में चौथा और पांचवां गियर भी लग गया था.
टेहरी की उंचाई लगभग 2000 मीटर है और तापमान गर्मी में 30 तक और सर्दी में 2 डिग्री तक जा सकता है. सालाना बारिश 70 सेंमी तक हो जाती है याने ठंडी जगह है. गर्मी में भी आधी जैकेट की ज़रुरत पड़ सकती है.
टेहरी का पुराना नाम त्रिहरि बताया जाता है. उससे भी एक पुराना नाम है गणेशप्रयाग. यहाँ भागीरथी और भिलांगना नदियाँ मिलती हैं और मिलकर ऋषिकेश की ओर चल पड़ती हैं.
टेहरी का नाम टेहरी बाँध से जुड़ा हुआ है. इस बाँध की परिकल्पना पहले पहल 1961 में की गई. बहुत सी सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी बाधाओं को पार करने के बाद 2006 में परियोजना चालू हुई. भारत का सबसे ऊँचा और विश्व में पांचवे नंबर का ऊँचा बाँध है जो 2400 मेगावाट बिजली, 102 करोड़ लिटर पीने का पानी और 2,70,000 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई की क्षमता रखता है. सुरक्षा कारणों से अंदर जाना मना है और अगर किसी उच्च अधिकारी की सिफारिश पर पहुंच भी गए तो फोटो खींचना मना है. बाँध बनने के बाद पुराना टेहरी शहर और किला डूब गए थे. अब टेहरी का मतलब हैं नई टेहरी.
बाँध से दूर बहुत बड़ी झील है जिस में बोटिंग, वाटर स्कीइंग वगैरा की जा सकती है. झील के बीच में नाव की सवारी रोमांचक है. पर जब नाविक ने बताया की कहीं कहीं पानी की गहराई 800 मीटर तक भी है तो एक बार तो नौका सवारी भयभीत और रौंगटे खड़े करने वाली लगती है.
सन् 888 तक गढ़वाल में छोटे छोटे 52 गढ़ हुआ करते थे जो सभी स्वतंत्र राज्य थे. इनके मुखिया ठाकुर या राणा या राय कहलाते थे. एक बार मालवा के राजा कनक पाल सिंह बद्रीनाथ दर्शन के लिए आये. एक गढ़ के राजा भानु प्रताप ने अपनी इकलौती बेटी की शादी कनक पाल सिंह से कर दी. इसके बाद कनक पाल सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने धीरे धीरे सारे गढ़ जीत कर एक गढ़वाल राज्य बना लिया. 1803 से 1815 तक गढ़वाल में नेपाली राज रहा. ईस्ट इंडिया कंपनी और स्थानीय छोटे राजाओं ने एंग्लो-नेपाल युद्ध में नेपाली शासन को हरा दिया और टेहरी रियासत राजा सुदर्शन शाह को दे दी गयी.
सुदर्शन शाह और उनके वंशजों ने रियासत का भारत में विलय होने तक राज किया. इनमें से प्रमुख थे प्रताप शाह जिसने प्रताप नगर बसाया, कीर्ति शाह जिसने कीर्ति नगर बसाया और नरेंद्र शाह जिसने नरेंद्र नगर बसाया. ऋषिकेश से टेहरी जाते हुए नरेंद्र नगर रास्ते में देखा जा सकता है.
रास्ते में आते जाते हुए ली गई कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
नई टेहरी गढ़वाल के कुछ और फोटो इस लिंक पर क्लिक करके देखे जा सकते हैं : >
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/04/blog-post_27.html
राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस मरणोपरांत पर एक लेख इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है : >
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/04/blog-post_17.html
टेहरी की उंचाई लगभग 2000 मीटर है और तापमान गर्मी में 30 तक और सर्दी में 2 डिग्री तक जा सकता है. सालाना बारिश 70 सेंमी तक हो जाती है याने ठंडी जगह है. गर्मी में भी आधी जैकेट की ज़रुरत पड़ सकती है.
टेहरी का पुराना नाम त्रिहरि बताया जाता है. उससे भी एक पुराना नाम है गणेशप्रयाग. यहाँ भागीरथी और भिलांगना नदियाँ मिलती हैं और मिलकर ऋषिकेश की ओर चल पड़ती हैं.
टेहरी का नाम टेहरी बाँध से जुड़ा हुआ है. इस बाँध की परिकल्पना पहले पहल 1961 में की गई. बहुत सी सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी बाधाओं को पार करने के बाद 2006 में परियोजना चालू हुई. भारत का सबसे ऊँचा और विश्व में पांचवे नंबर का ऊँचा बाँध है जो 2400 मेगावाट बिजली, 102 करोड़ लिटर पीने का पानी और 2,70,000 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई की क्षमता रखता है. सुरक्षा कारणों से अंदर जाना मना है और अगर किसी उच्च अधिकारी की सिफारिश पर पहुंच भी गए तो फोटो खींचना मना है. बाँध बनने के बाद पुराना टेहरी शहर और किला डूब गए थे. अब टेहरी का मतलब हैं नई टेहरी.
बाँध से दूर बहुत बड़ी झील है जिस में बोटिंग, वाटर स्कीइंग वगैरा की जा सकती है. झील के बीच में नाव की सवारी रोमांचक है. पर जब नाविक ने बताया की कहीं कहीं पानी की गहराई 800 मीटर तक भी है तो एक बार तो नौका सवारी भयभीत और रौंगटे खड़े करने वाली लगती है.
सन् 888 तक गढ़वाल में छोटे छोटे 52 गढ़ हुआ करते थे जो सभी स्वतंत्र राज्य थे. इनके मुखिया ठाकुर या राणा या राय कहलाते थे. एक बार मालवा के राजा कनक पाल सिंह बद्रीनाथ दर्शन के लिए आये. एक गढ़ के राजा भानु प्रताप ने अपनी इकलौती बेटी की शादी कनक पाल सिंह से कर दी. इसके बाद कनक पाल सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने धीरे धीरे सारे गढ़ जीत कर एक गढ़वाल राज्य बना लिया. 1803 से 1815 तक गढ़वाल में नेपाली राज रहा. ईस्ट इंडिया कंपनी और स्थानीय छोटे राजाओं ने एंग्लो-नेपाल युद्ध में नेपाली शासन को हरा दिया और टेहरी रियासत राजा सुदर्शन शाह को दे दी गयी.
सुदर्शन शाह और उनके वंशजों ने रियासत का भारत में विलय होने तक राज किया. इनमें से प्रमुख थे प्रताप शाह जिसने प्रताप नगर बसाया, कीर्ति शाह जिसने कीर्ति नगर बसाया और नरेंद्र शाह जिसने नरेंद्र नगर बसाया. ऋषिकेश से टेहरी जाते हुए नरेंद्र नगर रास्ते में देखा जा सकता है.
रास्ते में आते जाते हुए ली गई कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
1. हमारे जैसे लोगों का पहाड़ों पर खाली हाथ चलना भी मुश्किल होता है और इन्हें देखिये सिर पर लकड़ी या घास के गट्ठर. कितनी सरकारें आईं और चली गईं पर सिर का बोझ कम ना हुआ |
2. सुहाना सफ़र. चालक और उड़न खटोला. ऋषिकेश से टेहरी तक सड़क बहुत अच्छी है |
3. सबला ! चलते चलते महिला पर नज़र पड़ी तो गाड़ी रोक ली और इनसे आज्ञा लेकर ही ये फोटो खिंची. पशुओं के लिए पेड़ों से पत्ते इकट्ठे कर रही थी |
4. एक और सबला दूसरे पेड़ पर चढ़ी हुई थी |
5. सबलाएं आपस में बतिया भी रही थीं और चारा भी इकठ्ठा करती जा रहीं थी |
6. खतरनाक उंचाई पर |
7. तीन सहेलियां धूप सेकते हुए. ज्यादातर पुरुष फौजी हैं या मैदानों में नौकरी करते हैं क्यूंकि यहाँ नौकरियां कम हैं |
8. बहुत कठिन है डगर पनघट की. पीने के पानी की समस्या सभी जगह है |
9. नरेंद्र नगर का सुंदर बाज़ार |
10. नंदी की मूर्ती नरेंद्र नगर में. बैंक और नगर दोनों का रक्षक |
12. स्कूल की छुट्टी |
13. गंगा, ऋषिकेश और जंगल |
14. चंबा में कोहरा |
चंबा की ये नेकी की दीवार पसंद आई. जिसे जरूरत नहीं है वो रख जाए जिसे जरूरत है वो ले जाए |
नई टेहरी गढ़वाल के कुछ और फोटो इस लिंक पर क्लिक करके देखे जा सकते हैं : >
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/04/blog-post_27.html
राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस मरणोपरांत पर एक लेख इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है : >
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/04/blog-post_17.html
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