महाभारत के युद्ध से पहले युधिष्टिर ने निवेदन किया की उन्हें अगर हस्तिनापुर राज्य नहीं दिया जा सकता तो उसके बदले में केवल पांच गाँव ही दे दिए जाएं - पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत और वरुपत. पर कहाँ मिलने थे ये गाँव. दुर्योधन ने जवाब में कहा की सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं दूंगा. बल्कि दुर्योधन ने पांडवों को मारने के लिए लाख का महल बनवाने की तैयारी करनी शुरू कर दी थी.
दुर्योधन ने अपने मंत्री ( या शिल्पकार? ) पुरोचन से सुंदर सा एक महल बनवाया. पर था वो लाख का बना हुआ याने जिसे आग जल्दी से ध्वस्त कर दे. पांचो भाई और कुंती वहां रहने के लिए पहुँच गए. पर समय रहते महात्मा विदुर ने पांडवों को सूचना पहुंचा दी. महल से नदी तक गुफा बना ली गई. फिर एक रात भीम ने महल में आग लगा दी. महल और उसमें सोया पुरोचन अग्नि की भेंट हो गए. पांचो पांडव और कुंती गुफा के रास्ते नदी तट पर सुरक्षित पहुँच गए.
यह कथा बहुत ही संक्षिप्त इसलिए कर दी की आपने पढ़ी, सुनी या टीवी पर देखी जरूर होगी. ये लाक्षा गृह कहाँ था? क्या कोई अवशेष मिले हैं इस किले के? इस विषय पर बहुत से लोगों बात हुई, इंटरनेट पर काफी पड़ताल की तो पता लगा की:
- एक लाक्षा गृह बरनावा में है जहाँ हिंडन नदी बहती है. ये जगह मेरठ से 35 किमी दूर है,
- एक लाक्षा गृह चकराता, देहरादून से 60 किमी आगे यमुना तट पर है और
- एक लाक्षा गृह इलाहाबाद के पूर्व में गंगा तट पर बताया जाता है.
इनमें से प्रामाणिक स्थान कौन सा है पता नहीं. अगर ऊपर लिखे पांच गांव - पानीपत, सोनीपत, बागपत, तिलपत और वरुपत - के नाम सही मान लिए जाएं और अगर हस्तिनापुर से बरनावा की दूरी देखी जाए - जो की 65 किमी है - तो बरनावा में ही लाक्षा गृह होना चाहिए. इसके अतिरिक्त महात्मा विदुर का गाँव बिजनौर भी हस्तिनापुर से दूर नहीं है. पर यहाँ गंगा नदी नहीं बहती बल्कि हिंडन और कृष्णा नदियों का संगम है. कृष्णा को अब काली कहते हैं जो वाकई काली हो चुकी है और लगभग ना के बराबर रह गई है. हिंडन की हालत भी नाज़ुक है जो नोयडा जाकर यमुना में मिल जाती है. बहरहाल मेरठ की रोहटा रोड लेते हुए हम बरनावा पहुँच गए. जब कभी देहरादून और इलाहाबाद की यात्रा होगी तो वहां के भी लाक्षा गृह देख लेंगे. पर देखकर लगा की हमारी तरह पुरातत्व विभाग भी संशय में ही है.
सड़क के साथ ही 100 फुट ऊँचा और 30 एकड़ में फैला हुआ एक विशाल टीला है जिस पर ASI का बोर्ड लगा है कि लाखा मंडल के नाम से प्रसिद्ध टीला. इसे पढ़ कर तसल्ली नहीं हुई कि लाक्षा गृह के लिए हाँ माना जाए या ना. टीले पर एक लाल पत्थर की बारादरी है, दो टूटे हुए गुम्बद हैं. ये कब और किसने बनाए इसके बारे में कुछ लिखा नहीं है. टीले के नीचे दो गुफाऐँ हैं जहाँ से हिंडन नदी 100 - 125 मीटर दूर है. टीले पर एक संस्कृत महाविद्यालय है जिसका एक छात्र ही हमारा गाइड था. गौशाला, यज्ञशाला और छात्र हॉस्टल भी है.
कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
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