थार रेगिस्तान का एक प्रमुख शहर है जैसलमेर जो कि भाटी राजपूत महाराजा जैस्सल ने 1178 में बसाया था. इससे पहले भाटी राजपूतों की राजधानी लौद्रवा हुआ करती थी. लौद्रवा जिसे लुद्रावा या लौदर्वा भी कहते हैं जैसलमेर से लगभग 16 किमी दूर है.
जैसलमेर और लौद्रवा के बीच में एक बहुत ही सुंदर मंदिर है जो जैसलमेर के पटवा सेठ हिम्मत मल बाफना ने 1871 में बनवाया था. बाफना समाज के इतिहास कुछ इस तरह से बताया जाता है: परमार राजा पृथ्वीपाल के वशंज राजा जोबनपाल और राजकुमार सच्चीपाल ने कई युद्ध जीते जिसका श्रेय उन्होंने 'बहुफणा पार्श्वनाथ शत्रुंजय महा मन्त्र' के लगातार उच्चारण को दिया. युद्ध जीतने के बाद उन्होंने जैन आचार्य दत्तसुरी जी से जैन धर्म की दीक्षा ली. उसके बाद से वे बहुफणा कहलाने लगे. कालान्तर में बहुफणा, बहुफना, बाफना या बापना में बदल गया. बाफना समाज की कुलदेवी ओसियां की सच्चीय माता हैं. इसीलिए इनके मंदिरों में जैन तीर्थंकर के अतिरिक्त हिन्दू मूर्तियाँ भी स्थापित की जाती हैं.
मंदिर में ज्यादातर जैसलमेर का पीला पत्थर इस्तेमाल किया गया है. पर साथ ही सफ़ेद संगमरमर और हल्का गुलाबी जोधपुरी पत्थर भी कहीं कहीं इस्तेमाल किया गया है. मंदिर के स्तम्भ, झऱोखे और छतों पर कमाल की नक्काशी है.
जैसलमेर से मंदिर तक आने जाने के लिए आसानी से वाहन मिल जाते हैं. प्रवेश के लिए शुल्क है और कैमरा शुल्क देकर फोटो भी ली जा सकती हैं. मंदिर सुबह से शाम तक खुला रहता है. यहाँ की रेगिस्तानी धूप बहुत तीख़ी है और हवा बहुत तेज़ जिसकी वजह से यहाँ सभी सिर ढक कर रखते हैं आप भी अपना ध्यान रखें. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
जैसलमेर और लौद्रवा के बीच में एक बहुत ही सुंदर मंदिर है जो जैसलमेर के पटवा सेठ हिम्मत मल बाफना ने 1871 में बनवाया था. बाफना समाज के इतिहास कुछ इस तरह से बताया जाता है: परमार राजा पृथ्वीपाल के वशंज राजा जोबनपाल और राजकुमार सच्चीपाल ने कई युद्ध जीते जिसका श्रेय उन्होंने 'बहुफणा पार्श्वनाथ शत्रुंजय महा मन्त्र' के लगातार उच्चारण को दिया. युद्ध जीतने के बाद उन्होंने जैन आचार्य दत्तसुरी जी से जैन धर्म की दीक्षा ली. उसके बाद से वे बहुफणा कहलाने लगे. कालान्तर में बहुफणा, बहुफना, बाफना या बापना में बदल गया. बाफना समाज की कुलदेवी ओसियां की सच्चीय माता हैं. इसीलिए इनके मंदिरों में जैन तीर्थंकर के अतिरिक्त हिन्दू मूर्तियाँ भी स्थापित की जाती हैं.
मंदिर में ज्यादातर जैसलमेर का पीला पत्थर इस्तेमाल किया गया है. पर साथ ही सफ़ेद संगमरमर और हल्का गुलाबी जोधपुरी पत्थर भी कहीं कहीं इस्तेमाल किया गया है. मंदिर के स्तम्भ, झऱोखे और छतों पर कमाल की नक्काशी है.
जैसलमेर से मंदिर तक आने जाने के लिए आसानी से वाहन मिल जाते हैं. प्रवेश के लिए शुल्क है और कैमरा शुल्क देकर फोटो भी ली जा सकती हैं. मंदिर सुबह से शाम तक खुला रहता है. यहाँ की रेगिस्तानी धूप बहुत तीख़ी है और हवा बहुत तेज़ जिसकी वजह से यहाँ सभी सिर ढक कर रखते हैं आप भी अपना ध्यान रखें. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
जैन मंदिर |
मंदिर का कुआं |
सुंदर प्रवेश द्वार |
भगवान आदिनाथ |
सुंदर नक्काशी |
छत पर नक्काशी |
छत पर नक्काशी |
मंदिर |
द्वारपाल |
भैरू जी |
चबूतरे पर नक्काशी |
ऊपरली मंजिल पर |
मंदिर की परछाई सूखे तालाब पर |
गोल गुम्बद |
पटवा सेठ श्री हिम्मत मल जी बाफना का स्मारक |
3 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/03/blog-post_18.html
We all should make a joint programme to visit all these places.
Yes Mittal ji. We could visit many such places in group.
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