थार रेगिस्तान का एक प्रमुख शहर है जैसलमेर. दिल्ली से जैसलमेर की दूरी 770 किमी है और जयपुर से लगभग 560 किमी. जैसलमेर शहर से 18 किमी दूर एक शापित गाँव है कुलधरा जहां लगभग दो सौ सालों से कोई नहीं रहता. इस वीरान बियाबान गाँव में लगभग 400 घरों के खंडहर हैं जिनमें कहा जाता है की भूत प्रेत रहते हैं. कुलधरा नाम के इस गाँव में लोग दिन में अकेले जाने से डरते हैं रात की बात तो दूर है.
यह किस्सा सुनकर तो कुलधरा देखने जाना जरूरी हो गया था. आने जाने के लिए जैसलमेर से सवारियां आसानी से मिल जाती हैं. हम तो अपनी ही गाड़ी में आधे घंटे में लगभग 11 बजे पहुँच गए थे. वहां दिन में ना तो कोई भूत मिला और ना ही किसी मिस या मिसेज़ चुड़ैल से बात हुई.
कुलधरा गाँव काफी बड़ा है और गाँव में मंदिर, कुएँ, तालाब, शमशान, स्मारक या देवली भी हैं. इन स्मारक पत्थरों पर अंकित लेखों के अनुसार दो निवासियों की मृत्यु 1235 और 1238 में हुई जिससे लगता है की गाँव 1200 या उस से भी पहले बस गया होगा. मंदिर विष्णु और महिषासुर मर्दिनी का है साथ ही कुछ घरों के प्रवेश द्वार पर गणेश की मूर्तियाँ भी मिली हैं. कुछ घरों में तहखाने भी मिले हैं जहां सम्भवता खज़ाना रखा जाता हो. यहाँ सोने की चिड़िया रहती थी उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की महाराजा गज सिंह के समय 1820 और 1821 में 14 लाख रूपए के बराबर कैश या काइंड में टैक्स की वसूली हुई! दो दशक पहले कुछ लोग खजाने की खोज में खंडहरों में खुदाई करते पकड़े गए थे. तब से राज्य सरकार ने इस गाँव को कब्जे में कर लिया है.
इतिहासकारों का कहना है कि पाली जिले से आये ब्राह्मण व्यापारीयों ने कुलधरा गाँव बसाया था. कुलधरा के अतिरिक्त ऐसे 83 और गाँव थे जो पालीवालों द्वारा जैसलमेर के आसपास बसाए गए. इनमें से एक मशहूर और बड़ा गाँव है खाभा फोर्ट जिसके बारे में अगले ब्लॉग में चर्चा करेंगे. ये गाँव जैसलमेर में दूर दूर तक फैले हुए हैं और बड़े व्यवस्थित ढंग से बसाए गए थे. कुलधरा गाँव में 400 से ज्यादा मकान थे और गाँव से कुछ दूर 200 मकान अलग से बने हुए थे. मकान बड़े बड़े थे और उत्तर-दक्षिण जाने वाली गलियां लम्बी, चौड़ी और सीधी सीधी थी. पूर्व-पश्चिम वाली गलियां पतली और छोटी थीं याने लिंक और सर्विस लेन का काम करती थी. गाँव के दक्षिण में 2.5 किमी लंबा और 2 किमी चौड़ा तालाब या खड़ीन भी था. इसमें बारिश का पानी संचित किया जाता था. और उसके सूखने पर जवार या चने की फसल लगाई जाती थी.
कुलधरा और आसपास के इन गाँव वासियों का काम था मवेशी पालना, खेती करना, अनाज, नील, सोने और चांदी के जेवर, सिल्क, हाथी दांत और अफीम का व्यापार. ये व्यापार कराची, सिंध के रास्ते इरान, इराक, अफगानिस्तान से ऊँटों द्वारा हुआ करता था. इन गाँव से कर वसूली का काम जैसलमेर राज दरबार के दीवान सलीम सिंह ( या सालेम सिंह ) बड़ी सख्ती से किया करते थे इसलिए जनता ने उनका नाम ज़ालिम सिंह रख दिया था. सालेम सिंह की सात पत्नियाँ बताई जाती हैं पर फिर भी 1825 के शुरू में वसूली के दौरान एक पालीवाल ब्राह्मण कन्या उन्हें भा गई और गाँव प्रधान को हुक्म दिया गया की लड़की को शादी के लिए उनके पास पहुंचा दिया जाए. रात को पंचायत बैठी और फैसला हुआ की 84 गाँव के सभी पालीवाल तुरंत जैसलमेर राज छोड़ कर चले जाएं. रातों रात सारे गाँव खाली कर दिए गए.
इस कहानी का एक और मोड़ भी है की उस लड़की को मार दिया गया (?) और उसके खून से हर मकान के दरवाज़े पर तिलक लगा दिया गया. गाँव वालों ने जाते हुए श्राप दे दिया कि ये गाँव दुबारा नहीं बसेगा और वहां से निकल गए. यहाँ से निकल कर ये पालीवाल लोग मध्य प्रदेश, गुजरात के दूर दराज़ के इलाकों में चले गए. राजा ने बदनामी और वसूली के घाटे से बचने के लिए इन्हें वापिस लाने का प्रयास किया गया. 82 गाँव में कुछ परिवार आ भी गए परन्तु कुलधरा और खाभा में कोई वापिस नहीं आया. बताया जाता है की कुछ समय पहले सिंध, पकिस्तान से आये कुछ हिन्दुओं को यहाँ खाभा में बसाया गया है.
खाभा फोर्ट, जैसलमेर के बारे में इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है : http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/03/blog-post_11.html
कुछ इतिहासकारों का कहना है कि कुलधरा के दक्षिण में केकनी ( केकणी / काकनी / ककनी ) नाम की नदी थी थी जो धीरे धीरे सूखती गई और निवासियों का पलायन होता गया. संख्या घट जाने के बावजूद टैक्स वसूली में कमी नहीं की गई और सख्ती जारी रही इस कारण से लोग गाँव छोड़ कर चले गए ( वित्त मंत्री कृपया ध्यान दें!). पर इतने समृद्ध गाँव एक साथ खाली क्यूँ और कैसे हो गए कहना मुश्किल है. इतिहास की पहेली शायद अनबूझ ही रहेगी.
पर हर पर्यटक को ज़ालिम सिंह के अत्याचार और रातों रात गाँव का खाली होना कौतुहल और अचरज भरा लगता है और गाँव देखने की इच्छा भी होती है. इसीलिए देसी और फिरंगी पर्यटक काफी संख्या में खंडहर देखने आते हैं. सरकार ने कुलधरा को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है और गाँव को ठीक ठाक करवाने का काम जारी है. आसपास निजी रिसोर्ट वगैरा भी बन रहे हैं. प्रवेश शुल्क देकर सुबह से शाम तक खँडहर देखे जा सकते हैं पर रात को जाने पर मनाही है कौन जाने रात को भूत प्रेत घूमते रहते हों?
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
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स्मारक या छतरी |
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खँडहर मकान और दाहिने कोने पर पुराना मंदिर |
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बड़े और व्यवस्थित मकानों के बीच चौड़ी गलियां |
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गर्मी और सर्दी का बचाव करने के लिए मोटी मोटी दीवारें बनाई गई हैं |
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इस बालक ने भी भूतों का किस्सा दोहराया |
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बड़े बड़े कमरे और रसोई घर |
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पीछे ढाल में कभी ककनी नदी बहती थी |
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शायद कभी ऐसा रहा होगा कुलधरा |
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