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Friday, 19 August 2016

ना मिली

कनाट प्लेस ऑफिस में हरेंदर की नौकरी लगे एक महीना हो गया था. अब उसे ऑफिस की चाल समझ आने लगी थी. ऊँची ऊँची बिल्डिंगें और उनमें ऊपर नीची जाती लिफ्ट भी ठीक लगने लगी थी. पहले पहल तो लिफ्ट में घुसने से कतराता था ख़ास तौर पर अकेला जाने पड़े तो हरेंदर सोचता था,
- ये सुसरी कब अटक जावगी कोई बेरा ना. नूं ही उप्पर निच्चे हांडे जा. कोई चलान वाला भी ना सै.
चौथे माले के ऑफिस में सीढ़ियाँ कूदता हुआ चढ़ जाता था. कोई पूछे तो कहता,
- जी म्हारे धोरे गाँव में लिप्ट ना है जी.
अब तो खैर बाबूगिरी करके उसे समझ आया की लिफ्ट से ऊपर जाने को ही अच्छा माना जाता है. फिर भी उसे अभी कई बातें अजीब सी लगती थीं.
- सुसरे डिब्बे में दो दो रोटी लावें. म्हारे को तो कम से कम चार रोटी, हरी मिर्च अर प्याज जरूरी सै भाई.
शुरू में लंच में हरेंदर ने सोचा की कहाँ बैठ के खाऊं ? एक तरफ तो रोहित नरूला का ग्रुप था और दूसरी तरफ था शशि बाला का ग्रुप. हरेंदर को शशि पसंद थी इसलिए डिब्बा लेकर वहां पहुँच गया.
- ससी जी हम भी रोटी यहीं खाएंगे जी.
दोनों ग्रुपों में खलबली और खिलखिलाहट फ़ैल गई. नया जोकर आ गया. शशि बोली,
- क्यों नहीं हरेंदर जी. पर आपकी ये वाली रोटी तो हम नहीं चबा सकते. देखने में ही मोटी और सख्त लग रही हैं.
- ससी जी अरे तम खाओ ना. कल से हम थारे लिए नीम का दातन भी ले आएँगे कोई दिक्कत ना ए. दाँत घणे .....
ग्रुप ने ठहाकेदार हंसी में जवाब दिया. उस दिन से लड़कियों ने हरेंदर का नामकरण कर दिया - हरिया. कई बार इस ग्रुप को हरिया ने घर से गुड़ लाकर खिलाया. ससी को तो गुड़ के अलावा घर का घी भी अलग से भेंट किया. हरिया की बात पर ससी हंसे तो थी पर फंसे ना थी.

एक दिन शशि की कोई सहेली मिलने आ गई. हरिया की नज़र उस सहेली पे पड़ी तो बस उसी पे टिक गयी. शशि ने इधर उधर नज़र मारी की कोई कुर्सी मिले तो सहेली को बिठा दूँ पर मिली नहीं. हरिया ने तुरंत अपनी कुर्सी लाकर दी,
- ये लो जी कुर्सी. आप ससी के मेहमान तो म्हारे भी तो मेहमान हो जी.
हरिया दस मिनट बाद आया और पुछा,
- ससी जी आपके सुंदर मेहमान चले गए क्या ?
- चली गई. इसी बिल्डिंग में ही काम करती है दसवें माले पे. बड़ी सुंदर लगी आपको ?
- हें हें हें आपसे सुंदर ना है जी. आई डाई ऑन यू ससी जी.
- पागल !

पर हरिया का गुड़ और देसी घी नहीं चला. ससी जी की सगाई जयपुर में हो गई और वो ट्रान्सफर लेकर चली गई. इब हरिया लिफ्ट लेकर दसवें माले का चक्कर लगाने लगा. सुन्दरी को गुड़ भी पेश कर दिया और देसी घी भी. ये भी कह दिया कि ,
- हरेंदर डाईज़ ओन यू लेडी !
सुन्दरी फिर भी ना मानी और देसी घी हजम कर के चल दी. हरेंदर दुखी हो के अपने आप से बोल्या,
- भाई हरेंदर कोई सी ना मिली. यो सहर की छोरियां ना समझ में आई कसम से. इब तो गाँव की ही ढूँढनी पड़ेगी. नौकरी करे या ना करे सुसरी घर की भैंस तो संभाल लेगी.

घर की भैंस 


1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/08/blog-post_19.html