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Friday, 12 August 2016

हीरो से ज़ीरो

ऑफिस अगर बड़ा हो तो स्टाफ भी ज्यादा होता है. और स्टाफ ज्यादा हो तो उसमें तरह तरह के प्राणी होते हैं - जवान, अधेड़ और रिटायर होने वाले. कुछ खुशदिल और कुछ खडूस. कुछ पाव-भाजी वाले, कुछ इडली-साम्भर वाले और कुछ छोले- भठूरे वाले. ऐसे ऑफिस में काम करने के कई फायदे रहते हैं. आप जिससे मर्ज़ी दोस्ती कर लो और अगर ना करनी हो तो भी चलेगा गुमनाम हो जाओ. अपने बॉस को फिट रखो तो लंच टाइम में कनाट प्लेस में शौपिंग कर लो या फिर पिक्चर देख लो किसी को पता नहीं चलेगा. आप खुद बता दें तो बात और है. गुटबंदी और गुटबाज़ी भी चलती रहती है आप चाहो तो अंदर घुस कर मज़ा लो या बाहर रहकर छेड़खानी करते रहो ! 

ऐसे ही कनाट प्लेस के बड़े ऑफिस में मनोहर नरूला की भी नौकरी लग गयी. जिस दिन नरूला ने ऑफिस ज्वाइन किया उसी दिन पांच और नए रंगरूट भी आ गए. इन नए रंगरूटों में एक लड़का और बाकी चार लड़कियां थीं. नए लोगों के आने पर थोड़ी देर के लिए ऑफिस में एक हलचल हुई पर फिर शान्ति छा गई. 

लंच टाइम में महिला मंडल में चर्चा हुई और सभी नए रंगरूटों का विश्लेषण भी हुआ,
- लड़कियां ज्यादा स्मार्ट हैं ना लड़कों से नहीं ?
- ना ना वो लड़का है ना नरूला वो तो ठीक लग रहा है. तेरी ननद के लिए बात करके देख. 
- जल्दी क्या है थोड़ा नज़र रखियो. तेरे ही सेक्शन में आ रहा है. वैसे तो दोनों लड़के ठीक-ठाक हैं जिसका भी संजोग मिल जाए क्यूँ जी ? 
- इनमें से दो लड़कियां तो मुझे बहुत पसंद आई. मेरी सहेली भी ना लड़का देख रही है बात करुँगी उससे. 

रिटायर होने वाले स्टाफ की पंचायत में भी बातचीत हुई, 
- तेरे बेटे ने ना दिया था ये टेस्ट?
- अरे सुसरा पढ़ताइ ना. जाने क्या करेगा ?
- ये नया लड़का आ गया है अब सारी फाईलें पटक दो इस की टेबल पर.
- ओहो ये सब तो चलता रहेगा यार, नई भर्ती आई है इनमें से कोई रिश्ता-विश्ता करने की बात कर लो मौका अच्छा है. 

नए रंगरूटों की भी लंच टाइम मीटिंग हुई. आपस में कौन हो, कहाँ से हो और कहाँ पढ़े हो वगैरा पर नोट्स एक्सचेंज हुए. एक बात रंगरूटों में कॉमन थी की सभी कुंवारे थे. 

ऑफिस फिर से ढर्रे पर चल पड़ा. पर कुछ महिलाओं की नज़र दो लड़कियों पर थी, कुछ की नज़र नरूला पर थी और नरूला की नज़र नई रंगरूट पर थी. एक दिन लंच टाइम में नरूला ने पता नहीं क्या खा लिया कि वो तो कवि बन गया. उसने जेब से पर्ची निकाल कर एक नई लड़की को कविता में कुछ यूँ कह दिया :

जब से मिला हूँ तुमसे जी,
लगता है बन गया हूँ हीरो जी,
देखता हूँ जो अपनी पासबुक को,
हीरो से हो गया हूँ ज़ीरो जी !

लग गयी नौकरी, सैलरी मिलेगी जल्द ही,
फिर घूमेंगे करेंगे शौपिंग जी,
तब तक ले आओ ना, 
डैडी की एक दो फिक्स्ड डिपाजिट जी !

लड़की पहले तो हंसी फिर एक हल्की सी चपत लगा दी नरूला के गाल पर. हलकी सी चपत थी तो उसकी आवाज़ भी हलकी थी. पर चपत की गूंज दूर-दूर तक फ़ैल गई. महिला मंडल में चर्चा हुई, रिटायर होने वालों में चर्चा हुई और फिर कुछ कनकौवों ने बात उच्च अधिकारियों के कानों तक पहुँचा दी. आप को तो पता ही है कि उच्च अधिकारियों के कान कच्चे होते हैं और प्यार मोहब्बत के बारे में दिमाग में जंग लगा होता है. आपातकालीन बैठक हुई और उच्च अधिकारियों में गंभीर और लम्बी चर्चा हुई. एकमत से प्रस्ताव पास हुआ कि हमने कभी प्यार नहीं किया तो ये नया छोरा कैसे कर सकता है. फिर वही हुआ जो आम तौर पर उच्च अधिकारी सजा देने के लिए करते हैं. नरूला की ट्रान्सफर 30 किमी दूर पालम ऑफिस में कर दी गई. 

फूल और कांटे 

पर तब तक नरूला के शादी के कार्ड तो छप चुके थे. आपको भी तो कार्ड मिला होगा ?
                  

1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/08/blog-post_12.html