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Tuesday, 15 March 2016

बाप बेटा

सन्डे का दिन जल्दी उठने का दिन नहीं है जनाब. सभी जवान छोरे-छोरियां देर से उठते हैं. नौकरी वाले देर से उठते हैं और नौजवान माँ बाप देर से उठते हैं इसलिए छोटे बच्चे भी देर से उठते हैं. अखबार भी देर से आता है इसलिए रविवार को सुबह पार्क शांत और खाली पड़ा रहता है. मैं पार्क में पहुँचा तो केवल एक बुज़ुर्ग लगभग 50 मीटर आगे छड़ी लेकर धीरे धीरे चलते नज़र आ रहे थे. उनको पहचाना नहीं इसलिए अपनी ही धुन में आगे निकल गया.

यकायक पीछे से घबराहट भरी आवाज़ आई 'भाई साब'! मुड़ कर पीछे देखा तो बुज़ुर्गवार चारों खाने चित्त गिरे पड़े थे. भाग कर उनका हाल पूछा. चश्मा उठाकर पहनाया और छड़ी हाथ में थमा दी. पर उन्हें उठने में और मुझे उठाने में दिक्कत हुई क्यूंकि शरीर भारी था, वो हांफ रहे थे और खड़े होने में तकलीफ महसूस कर रहे थे. धीरे धीरे किसी तरह खड़े हुए और पास वाले पेड़ की ओर इशारा किया. उन्हें पेड़ के साथ पीठ लगा कर खड़े होना था. सांस धीरे धीरे नार्मल हो रहा था पर चेहरे पर तनाव और पीड़ा थी. रुकते अटकते बात करने लगे.
- मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था. ओवर कॉन्फिडेंस में इतनी दूर आ गया.
- कोई बात नहीं थोड़ा रुकिए यहीं पर सुस्ता लीजिये. फिर आपको मैं घर छोड़ आता हूँ. मुझे कौन सा ऑफिस जाना है मैं भी आप की तरह पेंशनर हूँ.
- मुझे नहीं आना चाहिए था यहाँ.
- कौन से नम्बर में हैं आप? पहले आपको कभी पार्क में देखा नहीं.
- मैं 116 में हूँ. ओह राजेश नाराज़ हो जाएगा. मुझे यहाँ नहीं आना चाहिए था. वो मेरा बड़ा बेटा है ना. मुझे गाड़ी में यहाँ अपने घर ले आया था चार दिन पहले. रुक-रुक कर बोले जा रहे थे बुजुर्गवार.
- हाँ 116 वाले नरूला जी को मैं जानता हूँ. अभी आप चल सकते हो तो मैं वहां तक छोड़ आता हूँ. या अगर आप कहो तो राजेश को यहीं बुला लाता हूँ.
- न न न मुझे अभी दस मिनट रुकने दो यहीं. नार्मल होने दो ज़रा. राजेश गुस्सा करेगा की मैं यहाँ तक क्यूँ आ गया. हाँ यहीं रुकता हूँ ज़रा. प्लीज़ आप भी रुको मेरे पास. आप के साथ धीरे धीरे चलता जाऊँगा. हांफते हुए और रुक रुक कर नरूला साब बात कर रहे थे.
- 85 पूरे हो गए हैं जी मैं आपको बताऊँ. बाएँ कूल्हे का ऑपरेशन हुआ है जी. एक बेटा और एक बेटी और भी है जी. बच्चों की माँ तो 20 साल पहले ही चली गई.
कहते कहते नरूला जी का गला रुंध गया और आँखों में आंसू आ गए. वो थोड़ी देर के लिए चुप हो गए. संभल कर फिर रुकते अटकते बोलने लगे.
- राजेश सुनेगा तो गुस्सा करेगा उसे मत बताना जी. मैंने ही तीनों शादियां कराई, दोनों बेटे के मकान बनवाए जी और दोनों के केमिकल के बिजनेस भी सेट करा दिए जी.
नरूला साब की आँखों में फिर से आंसू आ गए. छोटा तौलिया जेब से निकाल कर मुंह पोंछा.
अब हम दोनों 116 नम्बर की तरफ एक एक कदम बढ़ा रहे थे. निरुला साब रुक रुक कर भावुकता में बोलते जा रहे थे और मैं हाँ हूँ करता जा रहा था.
गेट पर जैसे ही मैंने घंटी बजाई राजेश नरूला तपाक से बाहर आ गए. कोई नमस्ते या गुड मोर्निंग नहीं की. क्रोध और खीझ से भरी आवाज़ में तुनक के बोले,
- क्या करते हो पापा? बिना बताए बाहर निकल गए? चला आप से जाता नहीं और बताते भी नहीं.
- नमस्ते राजेश. अरे हम तो गपशप लगा रहे थे बस, मैंने कहा तो राजेश झेंप कर बोले ,
- जी नमस्ते अंकल. क्या करूँ पापा ने परेशान कर रखा है.

बाप बेटा


3 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/03/blog-post_15.html

ns said...

Who is responsible for blocking the communication channel with aged parents.

Harsh Wardhan Jog said...

Could be many reasons. Who knows?