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Wednesday, 29 April 2015

चौपहिए और चौपाये

भारत एक बड़ा देश है और इसलिए सड़कों का जाल भी काफ़ी बड़ा है। सड़कों की लम्बाई के अनुसार भारत विश्व में दूसरे नम्बर पर है। विकीपीडीया के अांकडे देखिये :
एक्सप्रेस मार्ग - - - - - - -   1000 किमी
राष्ट्रीय राजमार्ग - - - -- - 93,000 किमी
प्रान्तीय राजमार्ग - - -  - 155,000 किमी
जिलों के मार्ग - - - - - 25,77,000 किमी
गाँव व अन्य मार्ग - - -  14,33,000 किमी      

प्रदेशों की तुलना की जाए जाए तो सड़कों की सबसे ज़्यादा लम्बाई उत्तर प्रदेश में है।  भारत का सबसे लम्बा राष्ट्रीय राजमार्ग NH 7 है जिसे अब NH 44 कहा जाता है। यह 2369 किमी लम्बा है जो बनारस से शुरू होकर नागपुर, हैदराबाद, बैंगलोर होते हुए मदुरै तक जाता है। दिल्ली - कोलकाता रूट याने NH 2 सबसे व्यस्त मार्ग है। इसका काफ़ी हिस्सा जी टी रोड में शामिल है जो एशिया की सबसे पुरानी और लम्बी रोड हुआ करती थी। 

ये सब रिकार्ड पढ़ने में अच्छे लगते हैं पर इसी के साथ एक और रिकार्ड भी है - भारत की सड़कों पर सबसे ज़्यादा दुर्घटनाएँ होती हैं और सबसे ज़्यादा मौतें भी होती हैं। 2013 में 1,30,000 लोग सड़क दुर्घटनाओं में जान गवाँ बैठे। इसके बहुत से कारण हैं जिनमें से एक ये भी है की राजमार्गों के दोनों ओर बैरिकेड या अवरोधक नहीं हैं। क्या दोपाये और क्या चौपाये सब बेरोकटोक सड़क पर आ जाते हैं और दुर्घटना का एक कारण बन जाते हैं। अक्सर राजमार्गों पर कुत्ते, बिल्लियाँ, साँप वग़ैरह कुचले हुए पाए जाते हैं। खेतों और जंगलों में से गुज़रती सड़कों पर कई बार लोमड़ी, भेड़ बकरी, या नीलगाय भी मरी पड़ी नजर आ जाती हैं। 

पर खैर हम नहीं सुधरेंगे या सुधरेंगे तो नुक़सान उठाने के बाद। वैसे भी हम हिन्दुस्तानी लोग पशु प्रेमी हैं और ईको-फ्रेंडली हैं। पशु अगर सड़क पर आ जाए तो कौन सी आफ़त आ गई ? अरे भाया जाण दे ना ! यो भी तो म्हारी तरा जीव हैं भाया जाण दे बेचारे हाथीयां ने ! 

दुपहिया और चौपहिया से भारत भ्रमण के दौरान ली गई कुछ तसवीरें प्रस्तुत हैं : 


सोमनाथ, गुजरात जाते हुए इन जंगली ऊँटों के रेवड़ से मुलाक़ात हुई थी। चरवाहों ने बताया की ये ऊँट बिकने जा रहे हैं।  पर ये नहीं बताया की माल ढुलाई के लिए या फिर मीट के लिए


भेड़ चाल - श्रावणबेलगोला, कर्नाटक के पास। होर्न बजाना बेकार है क्यूँकि कोई सुनवाई तो होती नहीं

जिला डांग गुजरात से सूरत के रास्ते में। धीरज रखें, अपनी गाड़ी धीरे कर लें और इंतज़ार करें जगह मिलने का पों पों करने से कुछ नहीं होगा !


ट्रैफ़िक जाम - श्रीनगर से कारगिल के रास्ते में। इस जाम की फ़ोटो तो ले ही लें ! इन भेड़ बकरियों के बाल घने और काफ़ी ज़्यादा हैं और शायद कान बंद हैं !

हाथी मेरे साथी - आमेर का क़िला, जयपुर के सामने। है कोई मस्तानी चाल का इलाज ? बस गाड़ी किनारे करो और इन्हें जाने दो 







Tuesday, 21 April 2015

मील के पत्थर

मील का पत्थर या मीलपत्थर अंग्रेज़ी के शब्द milestone का पर्याय है जिसकी परिभाषा यूँ है : a stone or a post at the side of the road that shows the distance to various places, especially to nearest large town. यात्रा करते हुए अगर बीच बीच में मील पत्थर नजर आते रहें तो मन आश्वस्त रहता है की सही दिशा में जा रहे हैं। 

प्राचीन काल में रास्ता नापने के लिए 'कोस' शब्द का इस्तेमाल होता था जो चार हज़ार हाथ या दो मील या तीन किमी के क़रीब था। और मील के पत्थरों की जगह थी कोस मीनारें। एक मुहावरा तो अभी भी प्रचलित है नौ दिन चले अढाई कोस पर इसके पीछे क्या क़िस्सा है यह तो पता नहीं लगा। आपको पता हो तो बताएँ।प्रस्तुत हैं विभिन्न यात्राओं के दौरान चलते चलाते लिए गए कुछ चित्र :

राष्ट्रीय राजमार्ग 1 करनाल के पास एक मील का पत्थर या 'कोस मीनार'। यह राजमार्ग भारत का सबसे पुराना और लम्बा राजमार्ग है जो कलकत्ता को अमृतसर और पेशावर, पाकिस्तान से जोड़ता है। यह कोस मीनार सोलहवीं सदी में में बनने शुरू हुए। कहा जाता है की मुगल काल में विभिन्न राजमार्गों पर 3000 मीनारें थीं। हरियाणा और पंजाब में लगभग 70 मीनारें बची हुई हैं और लाहौर में भी कुछ बची हुई हैं। यह मीनार 30 फ़ुट ऊँचीं हैं जिन पर चूने और मौरंग का पलसतर किया हुआ है

बेलगाम रोड पर मील का पत्थर जो बरसाती घास में नजर नहीं आ रहा। ऐसे सुनसान बियाबान रास्ते पर मील पत्थर ही ढाढ़स बँधाता है। पर ऐसा मील का पत्थर जो छुपा हुआ हो उसका यात्री को क्या फ़ायदा ?

यह मील का पत्थर फिर भी बेहतर है दूर से पढ़ा जा सकता है और कमर टिकाने के भी काम आता है !

कर्नाटक टूरिज़म ने एक अच्छा काम किया है। आमतौर पर जो मील के पत्थर सड़कों के किनारे लगे हुए हैं उनके अलावा इस तरह के मीलपत्थर टूरिस्ट स्थानों पर अलग से लगाए हैं जिनसे सैलानियों को बड़ी सुविधा हो जाती है। तीनों नामों के साथ साथ बाँए किनारे पर सांकेतिक चित्र भी  बनाए हुए हैं

और अब यात्रा की रफ़्तार बढ़ गई है इसलिए मील के पत्थर की जगह ले ली साइन बोर्ड ने जो रात में चमकते भी हैं और चलती गाडी में से आसानी से पढ़े जा सकते हैं




Sunday, 19 April 2015

पशु-पावर

अठारहवीं शताब्दी के अंत में स्काट इंजीनियर जेम्स वाट ने भाप के इंजन का अविष्कार किया तो ये सवाल उठा की इंजन की पावर कितनी मानी जाए और कैसे नापी जाए। जेम्स वाट ने इसका सीधा सा जवाब दिया की अगर इंजन दो घोड़ों की छुट्टी कर दे तो दो होर्सपावर का और अगर पाँच घोड़ों जितना काम कर दे तो इंजन की क्षमता पाँच होर्सपावर की है।

खैर अब तो वैज्ञानिक परिभाषा बना दी गई है : एक मेट्रिक होर्सपावर वो पावर है जिससे 75 किलो वज़न उठाकर एक सेकेंड में एक मीटर दूर तक ले जाया जा सके। और इससे आगे वाट या किलोवॉट आ गए : एक होर्सपावर = 745.5 वाट।

पर अपने हिन्दुस्तान में पशु-पावर बहुत ज़्यादा है। यहां न केवल होर्स-पावर है बल्कि खच्चर-पावर, गधा-पावर, भैंसा-पावर और बैल-पावर भी है। किसी भी शहर या गाँव में ये बोझा ढोते मिल जाएँगे। पशु-पावर से कितने डालर का इंधन बचता है या कितने लोगों का जीवन यापन होता है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। इस पर इंटरनेट में कोई सरकारी आँकड़े भी नहीं मिले। बहरहाल पेश हैं कुछ फ़ोटो जो चलते चलाते लिए गए थे :


गर्दभ-पावर : मेरठ की एक बिल्डिंग का काम करते हुए। एक गधे की क़ीमत ₹ 6000 से लेकर ₹ 10,000 तक हो सकती है
मेरठ शहर के ट्रैफ़िक जाम में फँसी बैलगाड़ी
शिरड़ी, महाराष्ट्र का एक टांगा। टाँगे में अभी भी लोहे के पहिए ही लगाए जाते हैं जिनपर रबड़ चढ़ी है 

Image result for first computer shipment brought in bullock carts in ibm office bangalore
1985 में सोना टावर, मिलर रोड, बैंगलोर में IBM का सामान जिसमें सैटेलाइट डिश भी थी बैलगाड़ी में आया था ( इंटरनेट से उतारा गया चित्र ) !

बदामी, कर्नाटक के पास एक गाँव में बैलगाड़ी और 'हीरा मोती'। यहाँ बैलों के सींग बड़े बड़े और घुमावदार हैं। इनके लोहे के पहियों पर भी रबड़ चढ़ा रखा है
दिल्ली की आउटर रिंग रोड पर पुरातन बैलगाड़ी और यहीं चल रही है आधुनिक मेट्रो  
भैंसा-पावर : बागपत उ. प्र. की एक झोटाबुग्गी

Sunday, 12 April 2015

चलते चलाते - 3

'सैर कर दुनिया की गाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां' तो इसको मद्देनज़र रखते हुए हम यात्राएं करते रहते हैं कभी छोटी कभी लम्बी।

और इस कहावत को बदल के कहें तो 'सेल्फी ले ले दुनिया की गाफ़िल याददाश्त फिर कहाँ' तो इसको मद्देनज़र रखते हुए फ़ोटो खींचते रहते हैं। 

भारत के किसी भी राजमार्ग पर निकल जाइए हर दस बारह किमी पर कोई न कोई धार्मिक स्थान मिल जाएगा चाहे मंदिर हो, चर्च हो या गुरुद्वारा हो। सड़क से ज़्यादा दूर भी नहीं जाना पड़ता बल्कि सड़क किनारे ही दर्शन हो जाते हैं। 

इस तरह के तीन चित्र प्रस्तुत हैं:

यह द्वार एक जैन मंदिर का है जिसका शिखर पिछली पहाड़ी पर नजर आ रहा है। यह मंदिर हमें बड़ोदरा से चित्तौड़गढ़ जाते हुए सड़क किनारे नजर आया


मदुरै से कन्याकुमारी जाते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पर चर्च 

रामेश्वरम, तमिलनाडु में बहुत से मंदिर, मस्जिद और चर्च है पर वहाँ की मेन रोड पर गुरुद्वारा देखकर सुखद आश्चर्य हुआ


Thursday, 9 April 2015

चलते चलाते - 2

'सैर कर दुनिया की गाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां' तो इसको मद्देनज़र रखते हुए हम यात्राएं करते रहते हैं। कभी छोटी कभी लम्बी। और इस कहावत को बदल के कहें तो 'सेल्फी ले ले दुनिया की गाफ़िल याददाश्त फिर कहाँ' तो इसको मद्देनज़र रखते हुए फ़ोटो खींचते रहते हैं। 

पिछली लम्बी यात्रा थी लगभग 5000 किमी जो सितम्बर 14 में कार से की - बेंगलूरू > कन्याकुमारी > गोवा > दिल्ली। इस यात्रा के 44 फोटो-ब्लाग  'Long drive to Delhi'  के अंतर्गत आप देख सकते हैं।

इन छोटी बड़ी यात्राओं के दौरान बहुत सी फ़ोटो खींचीं कभी चलती गाड़ी से और कभी रूक कर। उन फ़ोटो में से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं पर इनमें कोई क्रम नहीं है मानों भानमती के पिटारे से निकली हुई हों। इन्हें तीन-तीन का ग्रुप बनाकर पेश किया जा रहा है उम्मीद है पसंद आएँगीं।


श्रीनगर, गढ़वाल से पौड़ी को ओर जाते हुए कोई भैंस तो दिखाई नहीं पड़ी पर 'भैंसकोट' ज़रूर दिखाई पड़ा !

गोकरना, कर्नाटक से गोवा जाते हुए हम गोवा के एक होटल में ठहरे जो Ponda इलाक़े में था ( पर देवनागरी में फोंडा लिखा हुआ था ) ।फोंडा से हमने प्रस्थान किया बेलगाम, कर्नाटक की ओर हमें रास्ते में मिला 'लोंडा' ! 
पोंडा और लोंडा दोनों गोवा में ही हैं। बेलगाम का भी नाम अब बेलगवी कर दिया गया है। 

और ये 'पुट्ठे'का साइन बोर्ड मिला मेरठ बाईपास NH 58 पर



Saturday, 4 April 2015

चलते चलाते - 1

'सैर कर दुनिया की गाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां' तो इसको मद्देनज़र रखते हुए हम यात्राएं करते रहते हैं। कभी छोटी कभी लम्बी। और इस कहावत को बदल के कहें तो 'सेल्फी ले ले दुनिया की गाफ़िल याददाश्त फिर कहाँ' तो इसको मद्देनज़र रखते हुए फ़ोटो खींचते रहते हैं। 

पिछली लम्बी यात्रा थी लगभग 5000 किमी जो सितम्बर 14 में कार से की - बेंगलूरू > कन्याकुमारी > गोवा > दिल्ली। इस यात्रा के 44 फोटो-ब्लाग  'Long drive to Delhi'  के अंतर्गत आप देख सकते हैं।

इन छोटी बड़ी यात्राओं के दौरान बहुत सी फ़ोटो खींचीं कभी चलती गाड़ी से और कभी रूक कर। उन फ़ोटो में से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं पर इनमें कोई क्रम नहीं है, कोई विषय नहीं है मानों भानमती के पिटारे से निकली हुई हों। इन्हें तीन-तीन का ग्रुप बनाकर पेश किया जा रहा है उम्मीद है पसंद आएँगीं।


 यह फ़ोटो कन्याकुमारी की है जहां भारत का दक्षिणी छोर, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर और हिन्द महासागर का संगम होता है। इसलिए यहाँ वो गीत याद आता है - 'लो आसमां झुक रहा है ज़मीं पर, ये मिलन हमने देखा यहीं पर'

केरल का एक हराभरा सुंदर राजमार्ग। केरल में ज़्यादातर सड़कें इसी प्रकार सुंदर हैं पर चार लेन की सड़कें कम हैं और गाड़ी की स्पीड ज़्यादा नही हो पाती। पर फिकरनाट धीरे चलाएं और सीनरी का आनंद लें

 त्रिचूर के रास्ते में खींची फ़ोटो। केरल के मंदिर, मस्जिद और चर्च साफ़ सुथरे, सुंदर और सुव्यवस्थित हैं। और इनकी वास्तु कला में भी काफ़ी नयापन और विभिन्नता है




Thursday, 2 April 2015

मछुआरे

भारत की तटरेखा 8118 किमी लम्बी है और सागर तटों पर मछुआरों के लगभग 4000 गाँव हैं। क़रीब ढेड़ करोड़ लोग मछली पकड़ने या उससे सम्बन्धित कार्यों में लगे हुए हैं और यह ₹ 40,000 करोड़ का व्यवसाय है। इसके अलावा नदियों, तालाबों और झीलों में भी मछली उद्योग चल रहा है। 

पर छोटे किसानों या खेतिहर मज़दूरों की तरह अकेले मछुआरे या पारिवारिक मछुआरे भी बहुतायत में हैं। एक मीडियम साइज़ की मोटरबोट 20 से लेकर 50 लाख तक की हो सकती है। पर पूँजी की कमी होने के कारण छोटे मछुआरों का छोटी नावों और डोंगियाँ में ही गुज़ारा चलता है। काम आसान नहीं है पर पापी पेट का सवाल है !

भारत भ्रमण के दौरान लिए गए कुछ मछुआरों के चित्र प्रस्तुत हैं :



कोचिन तट पर चाइनीज़ फ़िशिंग नेट। कहा जाता है की हज़ारों वर्ष पूर्व चीनी व्यापारी मसालों की ख़रीद के लिए आते थे और ये नेट का जुगाड़ उन्हीं की देन है। तिकोनी बल्लियों पर नेट बाँध कर पानी में छोड़ दिया जाता है। दूसरी ओर बैलेंस रखने के लिए रस्सियों में पत्थर बाँध दिये जाते हैं। रस्सियों को नीचे खींचने से तिकोना जाल फँसी हुई मछलियों के साथ उपर आ जाता है

यह द्रश्य सागरतट पर होटल की बालकनी से लिया गया - मुरूदेश्वर, कर्नाटक 

कोचिन बैकवाटर में एक मछुआरा। मोटर बोट आती देख उसने दूर ही रहने का इशारा किया। मोटर बंद कर के और पास जा कर यह फ़ोटो ली। मोटर की आवाज और कंपन से मछलियाँ भाग सकती हैं या मछुआरे का बैलेंस बिगड़ सकता है 

कर्नाटक में तुंगभद्रा बाँध से बनी झील। मछुआरों की गोल डोंगी पर ग़ौर करें दो तीन लोग आराम से बैठ सकते हैं

डोंगी में मछुआरे

पोंडीचेरी तट पर एक मछुआरा