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Thursday, 29 May 2014

सोने की चिड़िया कहाँ गई?

बचपन से पढ़ते और सुनते आ रहे हैं की भारतीय उपमहाद्वीप बड़ा ही सम्पन्न प्रदेश था । भारत को सोने की चिड़िया कहते थे । और यहाँ दूध घी की नदियाँ बहती थी । ज़रा सुंदर सी भाषा में कहा गया पर कहने का मतलब है की भारत धन धान्य से पूर्ण रहा होगा और ज़्यादातर लोग जीवन का आनंद ले रहे होंगे । धूम धाम से और बार बार त्योहार मनाते होंगे । क्यों क्या कहते हैं आप ?

वैसे मुझे लगता है की ये सोने की चिड़िया आजकल भी यहीं रहती है पर कुछ थोड़े से लोगों के पास क़ैद है । शायद 1000-1200 लोग होंगे जिनके घरों में इस तरह की चिड़िया के घोंसले होंगे । और नहीं तो दस बारह हज़ार लोगों के पास इस चिड़िया के अंडे ज़रूर होंगे । किसी के पास छोटे और किसी के पास बड़े अंडे होंगे । किसी के पास एक अंडा और किसी के पास कई । इसके अलावा और दस बारह हज़ार लोगों ने सोने की चिड़िया के गिरे हुए सुनहरे पंख बटोर लिए होंगे । 

शायद 3.5 करोड़ करदाताओं को छोड़ कर 120 - 22 करोड़ लोग तो ख़ुद के चुग्गे दाने के चक्कर में दिन गुज़ार देते हैं । सोने की चिड़िया की बात तो दूर रह गई ।  पर ज़रा भारत में सबसे ज़्यादा सालाना 'तनख़्वाह' लेने वालों में से टोप 10 नामों पर नज़र डालिए जिन्होंने वर्ष 2012-13 में सुनहरी चिड़ियां पाली हुई थीं :

कलानिधि मरन -------------₹ 57.01     ( करोड़  )

कावेरी कलानिधी -----------₹ 56.24

नवीन जिंदल ----------------₹ 54.98

कुमार मंगलम बिड़ला --------₹ 49.62

पवन कुमार मुंझाल ----------₹ 32.80

ब्रिज मोहन लाल -------------₹ 32.73

सुनील कांत मुंझाल ----------₹ 31.51

पी आर सुब्रामनिया राजा------₹ 30.96

सज्जन जिंदल ---------------₹ 27.50

मुरली के़. दिवी --------------₹ 26.46

इस लिस्ट में मुकेश अम्बानी ₹ 15 करोड़ की सालाना 'तनख़्वाह' ले कर 22 वें स्थान पर हैं । मुकेश इतने पैसे सन 2008-09 से ले रहे हैं हालाँकि RIL के शेयर होल्डरों ने ₹ 38.93 करोड़ की मंजूरी दे दी थी । वाह क्या बात है ! 

पर यहाँ नेताओं की बात करना बेकार है उनके पास तो सोने की चिड़िया, सोने के पिंजरों में रहती है और हीरे मोती चुगती है और पाँच सालों में बहुत से अंडे दे जाती है । 

और आपका ये पेंशनर मित्र हर्ष वर्धन जोग अंदाज़न 96,17,670 वें स्थान पर है । 

कारण ? अरे साब अपने जाल में न तो ये चिड़िया फँसी और न ही कोई अंडा हाथ लगा हालाँकि हाथ पैर मारने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी थी । निकले तो थे चिड़िया फँसाने पर कौवे, चील और गिद्ध चोंच मारने लग गए । 

हम तो उल्टे अपनी तनख्वाह में से इनकम टैक्स ही देते रहे । अब तो रिटायर हो गए तो भी इनकम टैक्स ने अभी तक पीछा नहीं छोड़ा है । पता नहीं जो टैक्स अब तक अदा किया उसका किसी ने अंडा बनाया या ओमलेट !


हम चले खोजने सोने की चिड़िया 

Tuesday, 27 May 2014

बिन दाढ़ी मुख सून

भारत के 15वें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी 

नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनते ही हम जैसे दाढ़ी वालों की बिरादरी में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है । अब कम से कम पाँच बरस तो दाढ़ी मीडिया में छाई रहेगी । और क्या जाने उससे आगे भी छाई रहे । अब विपक्ष को कौन समझाए की दाढ़ी वाले से मुक़ाबला आसान नहीं है ।

देखिए साब दाढ़ी से पर्सनालिटी तो प्रभावशाली बनती ही है पर इसके और भी बहुत से फ़ायदे हैं :

रोज़ रोज़ दाढ़ी खुरचने का टाइम बचता है । साथ ही क्रीम और ब्लेड का ख़र्चा भी बचता है । 

- दाढ़ी चेहरे पर अल्ट्रावायलेट के प्रभाव से लगभग सन् स्क्रीन क्रीम के बराबर बचाव करती है । और भी बचत !

- धूल, धूप और धुएँ से भी चमड़ी की सुरक्षा करती है । जिस तरह नाक के बाल धूल के कणों को रोकते हैं उसी तरह से दाढ़ी भी यही काम करती है । याने धूल और प्रदूषण जैसी चीज़ों से चमड़ी पर होने वाली एलर्जी से काफ़ी हद तक बचाव कराती है । 

- चूंकी धूल या धूप सीधे सीधे चमड़ी पर नहीं पड़ती तो चमड़ी की नमी भी बरक़रार रहती है । फ़ायदे ही फ़ायदे !

- और फिर मच्छरदानी का काम तो सोने में सुहागा है । 

कितने ही बम्बईया हीरो आजकल दाढ़ी बढ़ा रहे हैं अपने रोल के चक्कर में । अक्षय कुमार की खिचड़ी दाढ़ी अगली फ़िल्म गब्बर के लिए है और शाहिद कपूर काली दाढ़ी के साथ नई फ़िल्म हैदर की तैयारी में हैं । 

दाढ़ी पर शेक्सपीयर क्या कहते हैं ज़रा देखिए:

'He that hath a beard is more than a youth, and he that hath no beard is less than a man'.

दाढ़ी की चर्चा हो तो काका हाथरसी की एक सुंदर कविता याद आ रही है :

                    ‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून
                    ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून
                    व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा
                    दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत विनोबा
                    मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते
                   तो भगवान राम के क्या वे गुरू बन पाते ?

                    शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोर
                    लेनिन, लिंकन बन गए जनता के सिरमौर
                    जनता के सिरमौर, यही निष्कर्ष निकाला
                    दाढ़ी थी, इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’
                    कहं ‘काका’, नारी सुंदर लगती साड़ी से
                    उसी भांति नर की शोभा होती दाढ़ी से।

बस तो जनाब अब आप देर न करें !

अभिनेता अमिताभ बच्चन शानदार फ़्रेंचकट में 

अभिनेता प्राण एक पठान के रूप में


अब्राहम लिंकन अमेरीका के 16वें राष्ट्रपति 
आपका आज्ञाकारी


Sunday, 25 May 2014

New boss is coming

As the new PM joins office, comparisons with outgoing PM becomes inevitable. Besides both have contrasting styles & agendas & therefore the debate can be long & interesting. But hold it, I have worked with neither & am not for discussion on them here. All I know is that every time a new boss joins the office some changes occur. For good or otherwise.

That reminds me of our own Regional Office Jhumri Talliya  Every time a new boss joined working of office got derailed for a while & then got back on rails as per wishes of new boss.

Our boss had been transferred out & a new boss was to be welcomed in Jhumri Regional Office on Monday. He is coming from Head Office & none of us have had a glimpse of him earlier. Therefore office people are getting curious about the new boss. How does he look like? How does he work? And so on.

Confidential Report: You see the reputation of boss travels faster than he himself does. Officials contacted their friends in Head Office to know the CR of the new boss - his liking / disliking, his choice of colours & what not. Guptaji went to the extent of finding which flowers he liked. He was ready with appropriate bouquet for welcome.

The curiosity was put to rest when the new boss walked in to the regional office. He glanced over the staff before entering his cabin. After a while a short introductory meeting was hurriedly arranged. A standing ovation was given with thunderous clapping even from ladies. Ladies thought that new boss was safe to work with. After a week or so things started settling down.

Comparison: The comparison of new boss with old boss which is inevitable in such times, was also cooling down. People were getting to know his working style & were adjusting to it. This I presume, must be happening in your office as well. Let's have a look on changes.

Appearance: The new RM is 55+, short of hight, clean shaven, pot-bellied & having a few strands of hair standing up & dancing in the breeze of the wall fan. The office unanimously posted his nick name as The Baldy. This nomenclature as you would agree, is off the record but note that there is lot of love & affection in it.

See the earlier boss was younger, taller, thinner & hence the nick name was Jonny Walker as in old Bollywood films.

Should you decide to join as our RM, you  shall also be awarded a name which shall be equally befitting and full of love & affection. That's a promise.

Style: The Baldy differed with old boss Jonny Walker in many aspects. Whereas old boss was informal & a little less punctual to the advantage of the ladies. The Baldy is more formal & more punctual. So the citizens of Regional Kingdom got alerted & started coming in time.

With old boss Saturday was T-shirt-sports-shoes day whereas for The Baldy, office dress means full sleeves & corporate ties. Like it or not you got to follow the boss with full sleeves & official ties.

Communication: It turned out that conversation with The Baldy was easy & anyone of regional office could have a dialogue with him any time. Even crack a joke. This slowly led to team building with him as leader. Comparatively speaking the earlier boss - the younger Jonny Walker, was not so communicative & kept distance. May be we missed out some-things like cutting jokes with him.

Decisions: Jonny Walker had a quicker way of writing 'yes' or 'no' or even 'discuss' on files. And after writing yes or no or whatever he will close the file, pick up the file with both the hands & will throw in to Out basket as if he had fielded the ball & threw it to Wicket Keeper promptly.

Not so The Baldy. He would just sit on the files for days & was never in hurry to dispose off the matter. His 'In' tray always has healthy number of pending files. So dealing official had to push & prod the file through.

Conclusion: Whether incoming or outgoing, the boss is always right!

Masala King



Friday, 23 May 2014

कार मेरे द्वार

भले दिनों में सड़कें ख़ाली हुआ करतीं थीं और कार के नाम पर फ़िएट या एम्बेसडर कभी कभी दिखाई दे जाती थी । वो भी ज़्यादातर सरकारी हुआ करती थी । सन 73 में जब बैंक में नौकरी लगी तब भी कार लेने का कोई विचार नहीं आया । हाँ ये ज़रूर लगता था की चलो 3 -4 साल में एक अदद स्कूटर ले लेंगे और ज़िंदगी में क्या चाहिए क्यूँकि साइकल तो है ही अपने पास । और फिर सरकारी बसें और रेल गाड़ियाँ किस काम के लिए हैं ?

पर साब समय बड़ा बलवान है । दिसम्बर 83 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने पहली मारुति 800 की चाभी श्री हरपाल सिंह को पकड़ाई और उसके बाद तो भारत की सड़कों की रंगत ही बदल गई । शिलांग से लेकर मुम्बई और कश्मीर से कन्या कुमारी तक मारुति नज़र आने लगी । कुछ ने इसे कहा माचिस की डिबिया कुछ ने इस का नाम रखा साबुनदानी । पर देखते देखते 29 लाख साबुनदानीयां बिक गईं । 

इस मारुति के आने से पहले cc के बारे में किसे पता था की क्या बला है ये cc । फिर समझ में आया की कम cc का मतलब है डिबिया और ज़्यादा cc का मतलब है डिब्बा । 

एम्बेसडर का दरवाज़ा खोलने की एक चाभी हुआ करती थी, दूसरी चाभी स्टीयरिंग खोलने की, तीसरी ओन करने की, चौथी डिक्की खोलने वाली, पाँचवी पेट्रोल टैंक का ढक्कन खोलने वाली वग़ैरा वग़ैरा । मारूति ने ये ढर्रा ही तोड़ दिया । एक चाभी का मैजिक । 

एम्बेसडर में अगली सीट सोफानुमा थी और ड्राईवर के साथ दो तीन बड़े और चिल्लर पार्टी  भी समा जाती थी । काफ़ी सहूलीयत थी जनाब । मारूति ने अगला सोफ़ा दूर फेंक दिया और परिवार नियोजन करने में भी मदद की ! डिक्की हटा कर गाड़ी हल्की फुल्की कर दी और रफ़्तार बढ़ा दी । गाड़ी छोटी और हल्की थी इस लिए महिलाओं और नौजवानों ने इस पर जल्दी क़ब्ज़ा कर लिया । 

भारत में गाड़ियों के बारे में आँकड़े ( 2011 - 12 ) भी कुछ कम नहीं है देखिए ज़रा:
- दुनिया में भारत का छटा स्थान है गाड़ियों और कार बनाने में,
- दुनिया में भारत का पहला स्थान है तिपहिया बनाने में,
- दुनिया में भारत का पहला स्थान है ट्रेक्टर बनाने में और 
- दुनिया में भारत का दूसरा स्थान है मोटर साईकल बनाने में । 

अब तो गाड़ियों की संख्या भी बढ़ रही है और साइज़ भी । इसलिए सड़कें चौड़ी हो रहीं हैं और फुटपाथ संकरे । इसके साथ ही पार्किंग की समस्या भी विकराल रूप धारण कर चुकी है । आए दिन पार्किंग को ले कर तूतू मैंमैं के प्रेमालाप और पंगे होते रहते हैं । 

हर बार पार्किंग की  30-40 रूपए की पर्ची कटानी पड़ती है । कार सफ़ाई वाला भी नोट माँगता है । प्रदूषण का noc का ख़र्चा अलग बढ़ गया है । पर छोड़िए साब ख़र्चों को गाड़ी में बैठ कर अगर मेडम ख़ुश हुई तो बस पैसे वसूल हो गए । पहले का टोपिक हुआ करता था 'आपने गाड़ी ली की नहीं ?' और अब 'क्या करें जी पार्किंग ही नहीं मिलती' । 

किसी मैडम को परवा नहीं की तेल 70 रू लीटर मिलेगा या 200 रू गाड़ी तो रखनी ही रखनी है । 

वैसे राज़ की बात है अपन की गाड़ी तो केवल छुट्टी वाले दिन ही बाहर निकलती है । 

हमारे कई पड़ोसी तो गाड़ी निकालने के बाद उस जगह पर स्कूटर या गमले रख देते हैं ताकी वापिस आ कर गाड़ी उसी जगह पार्क कर सकें । पहले ऐसा बसों या रेल के डिब्बों में होता था कि लोग ख़ाली सीट पर अपना रूमाल रख कर सीट रिज़र्व कर लेते थे । सभी चाहते हैं की उनकी गाड़ी ठीक दरवाज़े के सामने हो । कार मेरे द्वार । अब ऊपर के फ़्लैटों वाले हैरान और परेशान रहते हैं । ऐसे में दिक़्क़त है की फ़्लैटों के आस पास जगह तो है नहीं स्कूटर रखने की भी तो गाड़ी कहाँ रक्खें ? 

पर गाड़ी से प्यार भी तो है न साब । स्टेटस सिम्बल है आख़िर । मेरा बस चले तो मैं अपनी कार को ड्राइंग रूम में पार्क कर दिया करूँ !

800 के साथ पोंडीचेरी में


Thursday, 22 May 2014

बदलता समाज बदलती मान्यताएँ

समय के साथ सामाजिक मान्यतों और रीति रिवाजों में भी परिवर्तन आ रहा है । मसलन आजकल शादी करने की उम्र लगभग 35 की ओर बढ़ रही है । 'बच्चे दो या तीन अच्छे' के बजाय 'हम दो और हमारे दो' और उससे भी आगे 'हम दो हमारा एक' का नारा बुलंद हो रहा है । पुराना फ़ार्मूला की रिटायर होने से पहले पहले बच्चों की शादियाँ कर लो अब फ़ेल हो गया लगता है ।

इसी तरह कुछ बदलाव क़ानून ने भी करवा दिए हैं । लिव-इन सम्बन्ध को क़ानूनी मान्यता मिल चुकी है । बहुत से वयस्क पुरूष और महिलाएँ बिना शादी किए साथ रह रहे हैं । सरोगेट माँ को अब क़ानूनी सहमती है और बहुत से दम्पत्ति किराए की कोख ले कर बच्चा प्राप्त कर रहे हैं । समलैंगिक विवाह की आवाज़ तेज़ हो रही है और देर सबेर मान ली जाएगी । हिजड़ों को तीसरा सेक्स मान लिया गया है । उधर डाईवोर्स भी बढ़ते जा रहे हैं । कुल मिला के आने वाले 20-25 सालों में वयस्क सम्बन्धों में काफ़ी बदलाव आने की संभावना है । किस तरह के बदलाव होंगे इसका तो अंदाज़ा लगाना भी फ़िलहाल मुश्किल है । 

1. किन्नर 
बाराखम्बा रोड, नई दिल्ली का पुराना वाक़या है जहाँ बैंक की नई शाखा का उद्घाटन होना था । औपचारिक तौर पर कार्रवाई ख़त्म होने के बाद अचानक ढोलक बजने लगी और ज़ोरदार तालियों के साथ गाना बजाना शुरू हो गया । 
महाप्रबंधक मुस्कुरा के खिसक लिए । 
उप-महा प्रबंधक -  मेहमानों को संभालो यार, और फूट लिए । 
सहायक महा प्रबंधक - यार साब को छोड़ कर आता हूँ और सटक लिए । 
मुख्य प्रबंधक ने  छोटे प्रबंधक को तलब किया - यार दे दिला के भेजो इनको बहुत शोर मचा रहे हैं । 
छोटे प्रबंधक ने चपरासी को आवाज़ दी - अरे महतो इनको भी चाय पिला दे और 500 का पत्ता दे कर रवाना कर जल्दी से ।
महतो ने चुटकी ली - साब अब ये लोग आएँ हैं तो ज़रा सा बधाई तो सुन लो बढ़िया गा रहे हैं । और आप भी तो आशीर्वाद ले लो भेजूँ आपके पास ? 
छोटे प्रबंधक गुर्राए - चल चल जो कहा है वो कर । और पेमेंट वोचर के पीछे दस्तखत करवा लेना । 
महतो ने 500 का नोट और वोचर हिजड़ों के टीम लीडर को पेश कर दिया । बस फिर क्या था मामला गरमा गया । पूरी टोली छोटे प्रबंधक पर टूट पड़ी - तू दसखत लेगा ? न तू ज़्यादा पढ़ा लिखा है ? तेरा तो दसखत हम लेंगे आजा आजा आजा । फिर जो हल्ला हुआ तो बस 500 के बजाय 700 पर ही मामला निपटा । 

आप महसूस कर सकते हैं की हिजड़ों के बारे में समाज में कुछ अच्छी धारणा नहीं है और इस का कारण उनका अशिक्षित और बेरोज़गार होना भी है । सामाजिक तिरस्कार से इनकी हालत और ख़राब ही हो रही है । पुलिस का रवैया भी ज़्यादातर इन्हें परेशान करने का ही रहा है । 

हिजड़े दूसरे नामों से भी जाने जाते हैं - खुसरे, जनखे, खोजे या किन्नर । प्राचीन ग्रंथों में 'ित्रतीय - प्रकृति' का भी ज़िक्र आया है । पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने 'ित्रतीय - प्रकृति' याने तीसरे सेक्स को क़ानूनी जामा पहना दिया और हिजड़ों को एक नई सामाजिक पहचान दे दी । कुछ समय पहले तक इन लोगों को अपने आप को पुरूष या महिला बताना पड़ता था ।  न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिये गये की इन्हें OBC का दर्जा दिया जाए और शिक्षा और रोज़गार में उचित स्थान दिया जाए । 

वैदिक ग्रंथों में भी पुरूष - प्रकृति, स्त्री - प्रकृति और ित्रतीय - प्रकृति का ज़िक्र आया है । महाभारत का  एक पात्र िशखंडी, काशी की राजकुमारी अंम्बा का दूसरा अवतार था । अम्बा के विवाह प्रस्ताव को भीष्म ने प्रतिज्ञा वश नहीं माना । अम्बा ने इस का बदला लेने का प्रण लिया और िशखंडी के रूप में जन्म लिया । महाभारत के युद्ध के दसवें दिन िशखंडी भीष्म पितामह के सामने आ खड़ा हुआ । भीष्म ने उसे अम्बा के रूप में पहचान कर हथियार नीचे कर लिए और तभी अर्जुन के तीरों की बौछार पड़ी और भीष्म वाणों की शैय्या पर आन गिरे । इस तरह अम्बा ने बदला लिया । 

पांडवों के अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में अर्जुन ने स्त्री वेश भूषा धारण कर ली थी । चाहे इसका कारण छद्म वेश रहा हो या कथा में परिहास लाने की कोशिश परन्तु ये तो ज़ाहिर हो जाता है कि त्रितीय - प्रक्रिती की जानकारी उस समय भी थी और उस पर बहुत ज़्यादा तिरस्कार या घ्रणा नहीं थी । 

पर हिजड़ों की हालत 1871 के बाद ख़राब होनी शुरू हुई जब उन्हे criminal tribe कहा जाने लगा और criminal tribes act 1871 के अंतर्गत लाया गया ।  1952 में इस एक्ट को समाप्त कर दिया गया था पर समाज में स्थान सुधरा नहीं । सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हिजड़ों के जीवन में काफ़ी बदलाव आ सकता है । ये लोग मुख्यधारा में भी शामिल हो सकेंगे । 

2. लिव-इन 
आजकल वयस्क स्त्री पुरूष का बिना शादी के साथ रहने का काफ़ी प्रचलन हो गया है । फ़िल्मी सितारों में तो पहले से भी हुआ करता था अब और बढ़ गया है । पर साब इसमें भी कई लोचे हैं और क़ानूनी स्थिती पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है । 

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले कहा की देश में लिव-इन या बिना शादी किए वयस्क स्त्री का पुरूष के साथ रहना अपराध या पाप नहीं हैं परन्तु सामाजिक तौर पर अभी भी मान्य नहीं है । लेकिन यह भी कहा कि सरकार लिव-इन सम्बन्धों को देखते हुए और सभी पक्षों का ध्यान रखते हुए सरकार नए क़ानून बनाए । 

कोर्ट की तरफ से लिव-इन क़ानूनी होने के लिए कुछ शर्तें है जिसमें यह भी शामिल है की दोनों की उम्र शादी के लायक हो, दोनों गैर शादी शुदा हों और सम्बन्ध स्वैच्छिक हों । 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा की अगर कोई महिला जानते हुए भी किसी शादी शुदा पुरूष के साथ रहती है और पुरूष कई साल बाद उसे छोड़ कर पहली पत्नी के पास वापिस चला जाता है तो लिव-इन महिला या उसके बच्चे मुआवज़े की हक़दार नहीं होंगे । बल्कि पहली पत्नी लिव-इन महिला पर मुआवज़े का दावा कर सकती है ! 

कुल मिला के िस्थती जलेबी की तरह सीधी है ! गीता दत्त का फ़िल्मी गीत याद आ गया:

" बाबूजी धीरे चलना प्यार में ज़रा सँभलना, हाँ बड़े धोखे हैं बड़े धोखे हैं इस राह में "

3. सरोगेट माँ / किराए की कोख स्थानापन्न मात्रत्व
पिछले साल फ़िल्मी सितारे शाहरुख़ खान व उनकी पत्नी गौरी खान ने घोषणा की थी कि वे दोनों एक बच्चे 'अबराम' के माता पिता हैं जिसका जन्म सरोगेट माँ की कोख से हुआ है । शाहरुख़ की शादी 1991 में हुई थी और अबराम के अलावा उनके दो बच्चे और भी हैं । इसी प्रकार अभिनेता आमिर खान और किरन राव भी सरोगेसी से बच्चा पैदा कर चुके हैं । सामाजिक और नैतिक पहलुओं को छोड़िए विचार धारा तो ऊपर से ही नीचे की ओर फ़ैशन की तरह चल पड़ती है । सरोगेसी बढ़ रही है । 

सरोगेसी क़ानूनी है याने कोई भी दम्पत्ति किसी दूसरी महिला की कोख किराए पर लेने का आपसी अनुबंध कर सकता है और शर्तों का ख़ुलासा कर सकता है । अन्य बातों के अलावा सरोगेट माँ 21 से 35 वर्ष की हो, अगर शादी शुदा है तो पति की सहमती होनी चाहिए और वह एक दम्पत्ति के लिए तीन बार से ज़्यादा भ्रूण स्थानांतरित नहीं होगा आदि । बच्चे पर सरोगेट माँ का कोई अधिकार नहीं होगा और जन्म प्रमाण पत्र पर सरोगेट माँ का नाम नहीं लिखा जाएगा । 

देर से याने 35 वर्ष से ऊपर शादी होना, पति पत्नी का व्यस्त होना, दो में से किसी का अस्वस्थ होना, सरोगेट माँ का ग़रीब होना भी सरोगेसी के कारण हो सकते हैं । ख़बरों के अनुसार सरोगेट माँ का 'पैकेज' 8 से 15 लाख तक चल रहा है । हो सकता है की आगे चल कर ये सरोगेसी से बच्चे पैदा कराना एक आम बात हो जाए ! मान लीजिए कि किसी देश में दो पुरूषों ने शादी कर ली और उनमें से एक ने बच्चा पैदा करने के लिए किसी दूसरे देश में सरोगेट माँ ढूँढी जो किसी की पत्नी है । उससे पैदा हुई संतान ने आगे चल कर लिव इन साथी ढूँढ लिया । वग़ैरह । इस सब में परिवार, संस्कार वग़ैरह का क्या स्थान होगा ये तो अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता । 

लगता है की हम वसुधैव कुटुम्बकम की ओर जा रहे हैं । पूरा संसार ही एक परिवार हो जाएगा ?

नई दिशा की ओर





Saturday, 17 May 2014

चलते चलाते

भारत की सड़कों पर चलते चलाते आपको छोटी बड़ी गाड़ियों पर कई तरह के नारे लिखें हुए मिलेंगे, चित्र बने होंगे या पोस्टर चिपके मिलेंगे । कुछ को पढ़ कर मुस्कराहट आ जाती है, कुछ को देख कर अनदेखी कर देते हैं और कभी हँसी भी आ जाती है । कुछ तो आम हैं जैसे की ' गुल्लू ते पप्पू दी गड्डी, माँ का आशीर्वाद, ok, tata, आवाज़ दो, होरन दो ' । कभी कभी कोई नई चीज़ भी दिखाई पड़ जाती है । कमरशियल गाड़ियों में ये चलन ज़्यादा है ।

नीचे दी हुई सभी तस्वीरें मोबाइल फ़ोन से कार के अन्दर से चलते चलते ही ली गईं हैं । हो सकता है बहुत बढ़िया न आई हों । चलती कार में से दूसरी चलती गाड़ी की तस्वीर कई बार अधूरी या धुंधली रह जाती है । ध्यान तो नारे या गाड़ी पर बने चित्र की फोटो लेने में रहता है परन्तु गाड़ी आगे पीछे हो जाती है ।  परन्तु मज़ा भी तो नारे पढ़ने या चित्र देखने में ही है । 

कुछ फ़ोटो प्रस्तुत हैं:


बंदे ने घोषणा कर दी है की झूले लाल जी के आशीर्वाद से वह चिंता मुक्त हो गया है


ट्रकों के चित्रकारों को बाबा भोले नाथ के चित्र बहुत प्रिय हैं । बहुत से गाड़ियों पर ऐसे चित्र मिलेंगे 


वाह पेंटर ने बड़ा ही शानदार नारा लिख दिया है नेता लोग मेहरबानी कर के इस पर ध्यान दें


दो बढ़िया से नारे लिखें हैं इस गाड़ी पर । परन्तु सोचने वाली बात है की ईमान कितने लोगों की दौलत है ?




ज्यादातर ड्राइवर इस तरह की गाड़ी को टैंकी कहते हैं और शायद गाड़ीवान को इस टैंकी से ज़्यादा प्यार है 


कोई दिलजला पेंटर रहा होगा । एक सिरे से गर्ल फ़्रेंड, पत्नी और पूरी औरत जात को ही मीठी ज़हर कह दिया
 !


रेलवे कोच, लक्ज़री कोच तो आपने सुनी ही होंगी और अब पेश है एक दूसरी तरह की कोच 


गोरी तो गोरी है गाँव की हो या शहर की हो । दूसरी बात ये है की धीरे चलो पर एक अच्छा नारा लिख दिया है जिस पर तेज़ गाड़ी चलाने वालों को ध्यान देना चाहिए  


बजा होरन निकल फ़ौरन लिख तो दिया पर रास्ता तभी मिलेगा जब ड्राइवर का मूड बनेगा


पेंटर को 'जूते' शब्द लिखना मुश्किल लगा पर जूते की तस्वीर बनानी आसान लगी ! 


पुराना खिलाड़ी है भई जो पगली को प्यार से समझा रहा है


सांई के दरबार में बड़ी सही दरख्वासत लगाई है !


हाँ जरूर मिलेंगे !


Friday, 16 May 2014

Cactus flower blooms but for two hours

My neighbour Mr Garg who is a retired civil engineer, has lots of potted plants around his house. One of them is a round Cactus planted in a small earthen pot of the size of a tumbler. This plant is two years old & had never flowered.

One day he observed a tiny pink colour bud coming out. Within two days the pink bud came up on six inch stem. The stem was like a hollow pipe. On third day the white & pink flower bloomed. Only for two hours. During the third hour it started wilting & collapsed by the evening.

Life is short for sure.

Some photos:

Once-in-two-years wonder

Proud owner displays the flower on third day

It has beautiful soft white & pink petals 

In full bloom. Notice the hollow-pipe like green stem

In the third hour it started wilting & stem started tilting

It is down to almost half-mast in fourth hour 

By sixth hour petals had wilted & hollow stem had also collapsed.

Tuesday, 13 May 2014

खटिया खड़ी है

सच्ची बात तो ये है की अपन को खाना खाना तो अच्छा लगता है लेकिन खाना बनाना बिलकुल अच्छा नहीं लगता । और खाने में कमोबेश सभी चीज़ें पसंद हैं वेज भी और नोनवेज भी । वैसे कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि जिस के बग़ैर खाना अधूरा रह जाता हो । न ही मैं कोई फ़रमाइश करता हूँ की आज फ़लाँ फ़लाँ चीज़ बनाई जाए । बहुत गरम चाय भी नहीं पीता और न ही बहुत ठंडी आईसक्रीम खाता हूँ । इस पर राम दुलारी की टिप्पणी कुछ इस तरह की होती है:

- तुम्हें तो स्वाद का पता ही नहीं चलता ।  तुम्हारे तो टेस्ट बड्स ही नहीं हैं ।

- कभी तो कुछ बोला करो की क्या खाना है और क्या नहीं । जो सामने रख िदया बस ठीक है । 

- नमक कम है या ज़्यादा ये तो बता सकते हो या नहीं ?

ऐसा नहीं है की मेरी जीभ को स्वाद का पता नहीं है । कुछ चीज़ें नापसंद भी हैं । जैसे की लौकी याने लुकिया, तोरी याने तुरई और टिंडे याने बेपसंदे । इन सब्ज़ियों पर डाक्टरों ने इतनी िसफारिशें चेप दीं हैं की इनको खाने की प्लेट में देखकर लगता है की कोई नर्स आस पास ही खड़ी है ।

वैसे तो कहावत है की दुनिया के सबसे बढ़िया खाना बनाने वाले लोग मर्द ही हैं न कि महिलाएँ । परन्तु इस तरह की कहावतों से मैं दूर ही हूँ । अरे भई जो भी बना हो जो सामने आ गया हो वो खा लो ज़्यादा मीन मेख क्या करना है । परन्तु मेरे कई दोस्त इस बात का मज़ाक़ भी उड़ाते हैं । उनके पास शहर के मशहूर रेस्तराँ, उनके ख़ास ख़ास मीनू और स्पेशल आईटम्स की लिस्ट तैयार रहती है । मसलन मटन समोसा इंडिया काफ़ी हाउस में शाम को मिलेगा, गरमा गरम छोले भटूरे खाने हों तो पहाड़ गंज चलो, क़ुल्फ़ी तो बस क़रोल बाग़ की ही खानी है, पराँठा खाने चाँदनी चौक की मेट्रो पकड़ो वग़ैरा ।

इस बात पर हमारे चोपड़ा जी की एक्सपर्ट कमेंटरी याद आ गई । रेस्तराँ में यार दोस्त बिरयानी का लुत्फ़ ले रहे थे तो चोपड़ा जी बोले: यार मीट आज कुछ अच्छी तरह गला नहीं है । लगता है की साले ने बुड्ढा बकरा काट दिया । 

ख़ैर, कभी कभी ख़ुद भी खाना बनाना पड़ ही जाता है । थोड़ा बहुत काम तो कर ही लेता हूँ गुज़ारे लायक मसलन चाय, आमलेट, दाल, रोटी । बस रोटियाँ गोल नहीं बन पाती ज़रा सा आड़ी ितरछी हो जाती हैं पर ख़ुद की बनी हों तो कोई शिकायत करे तो किससे करे ? 

पिछले दिनों राम दुलारी हमें हमारे हाल पर छोड़ कर आउट स्टेशन छुट्टी पर प्रस्थान कर गईं । फ्रिज में दो दिन का इंतज़ाम कर के रख गईं - गूँधा हुआ आटा, दाल और भिंडी की सब्ज़ी वग़ैरा । 

िडनर तो गरम ही करना था वो तो आराम से फ़िनिश हो गया । अब केवल दूध उबालना रह गया था । उसमें से एक गिलास पीने के लिए निकालना था और बस गुडनाईट । कल की कल देखी जाएगी । पोलीथिन के पैकेट खोले और एक लीटर दूध पतीले में डालकर गैस पर रख दिया । दूध उबलने में समय लगना था इस लिए टीवी के सामने बैठ गया । चुनाव समाचार देखते देखते दूध के बारे में भूल गया । दूध उबल कर गैस पर, काउन्टर पर और फ़र्श पर फैल गया । बस अपनी तो ज़मानत ज़ब्त हो गई । रात दस बजे खटिया खड़ी हो गई । 

सुबह का नाश्ता तैयार करना आसान लगता है और हो भी गया । दोपहर को सिर्फ़ दो चपातियाँ बनानी थी दाल और सब्ज़ी गरम करनी थी । सारा समान काउन्टर पर सेट कर दिया । चकला और बेलना निकाल लिया और गैस जला दी । गैस पर दाल गरम करने को रख दी । सूखे आटे का कटोरा भी निकाल लिया । दाल उम्मीद से पहले उबलने लगी । उस को बचाते बचाते सूखे आटे का कटोरा गिर पड़ा । आटा काउन्टर पर, कुछ पैंट पर, कुछ जूतों पर और बाक़ी फ़र्श पर बिखर गया ।

 खटिया फिर खड़ी हो गई । 




Saturday, 10 May 2014

आओ पैदल चलें

पैदल चलना दुनिया की सबसे आसान और शायद सबसे असरदार कसरत है । पैदल चलने में न तो न तो किसी तरह की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है और न ही किसी साजो-सामान की ज़रूरत होती है । पैदल चलना तो हमारी आपकी जन्मपत्री में शामिल है । पहले जन्मदिन से पहले ही बच्चों की पैदल चलने की तैयारी होने लगती है ।

पर आजकल इस युग में समस्या पैदा कर दी है पेट्रोल की खोज ने । कारों और गाड़ियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है और सड़कों पर फुटपाथ की जगह कम होती जा रही है । इस के अलावा और बहुत से सुख साधन आ गए हैं और पैदल चलना घटता जा रहा है । और तो और पैदल चलने के लिए मशीनों का उपयोग घर में भी होने लग पड़ा है । अब घर से बाहर पैदल बाज़ार जाना आसान नहीं रहा साहब ! 

ऐसा कहा जाता है की आधुनिक आदमी का विकास अफ़्रीका से शुरू हुआ था ।  और उस वक़्त का आदि मानव पैदल चलते चलते एशिया और यूरोप में जा पहुँचा और बसता चला गया । यह क्रिया हज़ारों साल चलती रही और शायद मानव इतिहास की सबसे लम्बी और बड़ी पैदल यात्रा रही होगी । 

अपने भारत के इतिहास में ही देखिए कितने ही उदाहरण हैं लम्बी लम्बी पैदल यात्रा चलने पर । राम को बनवास दिया गया तो वे लक्ष्मण व सीता को ले कर निकल पड़े जंगल की ओर । अयोध्या से चलते चलते लंका तक पहुँच गये । 

जगदगुरू आदि शंकराचार्य ( आठवीं शताब्दी ) ने दूर दूर तक धार्मिक यात्रा की । देश के चार कोनों में चार धाम (मठ) स्थापित करवाए - बद्रीनाथ, रामेश्वरम, द्वारका और पुरी । और पैदल तीर्थ यात्रा की प्रथा शुरू करा दी ।

गौतम बुद्ध ( 563 से 483 ईसा पूर्व ) को ही लीजिए । बौद्ध होने के पश्चात याने ज्ञान प्राप्त करने के बाद लगभग 45 वर्षों तक पैदल घूमते घूमते उत्तर भारत में लोगों में ज्ञान बाँटा । 

आजकल भी भारत में कई जगहों पर धार्मिक यात्राएं होती हैं । अगस्त के महीने में हरिद्वार की ओर कांवड़ यात्रा में लाखों लोग गंगा जल लाने के लिए पैदल यात्रा करते हैं । 

यहाँ दो चीनी पैदल यात्रियों का नाम भी देना उचित होगा । पहले फाहियान ( 337 - 422 ) लगभग सन 399 में भारत आए और 412 तक यहीं रहे । उसके बाद ह्वेन त्सांग ( 602 -  664 ) लगभग सन 630 में भारत आए और 15 साल तक विभिन्न जगहों पर रहे । 

मार्च 1930 में महात्मा गांधी ने डांडी नमक आंदोलन छेड़ िदया था । साबरमती आऋम अहमदाबाद से 390 किमी दूर डांडी तक की  पैदल यात्रा 24 दिनों में पूरी की गई । 

सन 1987 में फ़िल्मी कलाकार सुनील दत्त ने अपने 80 सहयोगियों के साथ मुम्बई से ले कर अमृतसर की 2000 किमी की शांती पदयात्रा 78 दिनों में पूरी की । 

सैर की बात चली तो उद्योगपती रतन टाटा की एक टिप्पणी याद आ गई जो की बड़ी रोचक है - अगर तेज़ चाल चलनी है तो अकेले चलो और अगर दूर तक जाना है तो किसी को साथ ले चलो । 

यूँ तो पैदल चलना, टहलना या सैर करना किसी भी समय किया जा सकता है परन्तु सुबह सूरज निकलने से पहले हरे भरे पार्क में सैर करने का आनन्द कुछ ज़्यादा है । नियमित, लम्बी और तेज़ चाल की सैर शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक है । 4 - 5 किमी की सैर से टखनों, घुटनों और जंघाओं के जोड़ मज़बूत होते हैं । इसके साथ ही शुगर कम करने और िदल को ओक्सीजन पहुँचाने में भी मदद मिलती है । सुबह की सैर से बच्चों में एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है । मन शांत हो जाता है । 

एक राज़ की बात और है की सुबह की नियमित सैर से उम्र ढलने की रफ़्तार कम हो जाती है । तो बस अब आप जान लो की सैर करोगे तो जवान रहोगे !

तो कल सुबह चलें ?

                                                                                                                                                                  File:Elephant Walking animated.gif    


( चलते रहो - चलचित्र िवकीपीडिया से साभार )



Saturday, 3 May 2014

मानसून का इंतज़ार

पहली मई को ही मेरठ का पारा ४३.१ पर पहुँच गया है तो ३० जून को कहाँ पहुँचेगा ये तो राम ही जाने । और सर जी मेरठ की बिजली सप्लाई का क्या होगा ये तो राम भी न जाने !

विश्वस्त सूत्रों की ऐसी आशंका है की ज़्यादा गरमी का कारण यह चुनाव भी है । उम्मीदवार गरमा गरमी में कुछ का कुछ बोले चले जा रहे हैं और पारा ऊँचा चढ़ता जा रहा है । १६ मई को चुनावी गरमी तो शांत हो जाएगी पर हाँ मंत्री बनने की मशक़्क़त पारा बढ़ा देगी । देखिए अब जून की गरमी क्या गुल खिलाती है । पर सरकार कोई भी आए गरमी नहीं घटा पाएगी । 

गरमी तो साब तब तक जारी रहेगी जब तक की मानसून के छींटें न पड़ें । सुना है की मानसून के िदल्ली पहुँचने की तारीख़ ३० जून है । अब मानसून भी तो साब अपनी मर्ज़ी का मालिक है चाहे तो ३० जून को आए चाहे तो न आए । कोई जवाबदेही नहीं है जी उसकी । न कोई पूछने वाला की भई क्यूँ देर कर रहा है तू बरसता क्यूँ नहीं ? और देर करने की पेनालटी लगाएँ तो िकस पे लगाएं ?

मई जून में उत्तरी भारत की ज़मीन तपने लग जाती है और पारा ४० से ४५ तक पहुँच जाता है । कहीं कहीं जैसे राजस्थान में पारा और भी उपर उठ जाता है । ज़मीन गरमाने के कारण गरम हवा ऊपर की ओर उठने लग जाती है और हवा का दबाव कम होता जाता है । परन्तु बंगाल की खाड़ी, िहंद महासागर और अरब सागर का पानी उतना गरम नहीं होता है । इस कारण वहाँ से ठंडी और नमी भरी हवाएँ उत्तर की ओर चल पड़ती है । और इस तरह मानसून शुरू हो जाता है । 

मज़े की बात ये है की ये हवाएँ हिमालय को पार नहीं कर पाती और साथ में लाए बादलों का पानी यहीं टपका जाती हैं । बढ़िया देश है भई एक तरफ़ समंदर और दूसरी तरफ़ पर्बत । 

मानसून से मिलते जुलते शब्द दूसरी भाषाओं में भी हैं जैसे मानसेओ (पुर्तगाली), मावसिम (अरबी) और मानसन (डच) । 

यह मानसून तिब्बती पठार और हिमालय के उभरने के साथ साथ शुरू हुआ लगभग ५ करोड़ साल पहले । वैज्ञानिकों का मानना है की प्रशांत महासागर का ठंडा पानी कई प्राकृतिक कारणों से  लगभग पचास लाख साल पहले िहंद महासागर में मिलना बंद हो गया और इस कारण से मानसून और प्रभावी हो गया । 

वैसे मानसून कभी एक समान और एक ख़ास समय पर नहीं आता है ।  प्रदूषण ने भी मानसून का मूड ख़राब कर रखा है । मानसून की बारिश का अंदाज़ा लगाना एक मुश्किल काम है । मौसम विभाग १८८४ से इस मानसून के चक्कर में चक्कर खा रहा है । 

पर मानसून की गड़बड़ का कोई उपाय नहीं किया जा रहा ये ठीक नहीं है । इन नेताओं को यह बात समझ में नहीं आती की पानी का इंतज़ाम बहुत ज़रूरी है । नदियों को छोटी बड़ी नहरों से जोड़ा जा सकता है । १९७२ में सिंचाई मंत्री के एल राव ने गंगा को कावेरी से जोड़ने की बात कही थी । इस नहर की लम्बाई २६४० किमी होती अगर यह नहर बनती । इंजीनियर िदनशा दस्तूर ने १९७४ में 'गारलैंड केनाल' की बात कही थी । १९८२ में National Water Development Agency  की स्थापना हुई । परन्तु अभी दिल्ली दूर है और नौकरशाही की फ़ाइलों पर धूल ज़मीं हुई है । 

मानसून लगभग १ जून से शुरू होता है और लगभग १५ अक्तूबर तक समाप्त हो जाता है । पर बारिश के आने के बाद आती है हरियाली, पशु पक्षियों की चाल और उड़ान बदलनी शुरू हो जाती है और दोपायों की धुन भी बदलने लगती है । कुछ गुमनाम शायर इस तरह से मानसून का बयान करते हैं:

"तौबा की थी मैं न पियूँगा कभी शराब,
बादल का रंग देख कर नीयत बदल गई ।"

"बूँदों से बना ये छोटा सा समंदर,
बारिश में भीगी ये छोटी सी बस्ती,
चलो ढूँढ़े बारिश में दोस्तों को,
हाथ में लेकर काग़ज़ की कशती । "

अभी तो मानसून दूर है तब तक आप लस्सी, जलजीरा, आम का पना, ठंडाई, िनम्बूपानी, बीयर वग़ैरा का आनंद लें और फुहार का इंतज़ार करें । आशा है की मानसून समय पर आ जाएगा ।

बादल और बर्फ़