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Thursday 2 March 2017

जसवंत थड़ा, जोधपुर

थार रेगिस्तान में बसा जोधपुर शहर राव जोधा ने 1459 में स्थापित किया था. दिल्ली से जोधपुर लगभग 600 किमी दूर है और जयपुर से लगभग 330 किमी. राव जोधा के वंशज महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय थे जिनका राज 1873 से 1895 तक रहा और जिनका देहांत 1899 में हुआ. उनके पुत्र महाराजा सरदार सिंह (1895 - 1911) ने पिता की याद में स्मारक बनाया जो जसवंत थड़ा के नाम से प्रसिद्ध है.

जसवंत थड़ा मेहरानगढ़ से 2 - 3 किमी दूर बाईं ओर एक बड़ी झील के किनारे है. मौसम अच्छा हो तो गढ़ से पैदल वर्ना ऑटो से जसवंत थड़ा पहुँचा जा सकता है. इस स्मारक की नींव 1900 में रखी गई और 1904 में रेजिडेंट गवर्नर ने थड़ा बनाने की मंज़ूरी दी थी. स्मारक सफ़ेद मकराना संगमरमर, लाल बालू पत्थर और गुलाबी रंग के पत्थर से मंदिर के रूप में बना हुआ है. आम तौर पर इसे जोधपुर का ताजमहल भी कहा जाता है. इस स्मारक का नक्शा मुंशी सुखलाल कायस्थ ने बनाया था और वास्तु कार थे बुद्धमल और रहीम बक्श. मंदिर के हॉल में पूर्व राजाओं और परिवार जनों की पेंटिंग्स लगी हुई हैं. इस स्मारक पर सितम्बर 1921 तक 2,84,678 रूपए की लागत आई थी. मंदिर की दीवार में कई सफ़ेद पत्थर इतने पतले लगाए गए हैं कि हॉल के अंदर में उजाला रहता है.

आम तौर पर स्मारक या पुराने मंदिरों में गाइड तरह तरह के किस्से कहानियां जरूर सुना देते हैं परन्तु स्मारक से जुड़े पूरे तथ्य कम ही बताते हैं. मसलन इमारत का क्षेत्रफल, लगाया गया पत्थर या लकड़ी, मूर्तिकार के नाम, कितना समय लगा वगैरा वगैरा. ऐसी जानकारी अगर प्रवेश टिकेट के पीछे छाप दें या अलग से किसी बोर्ड पर लिखवा दें तो स्मारक में और रूचि बढ़ जाए. पुरातत्व विभाग ऐसे प्रमाणिक तथ्य की जानकारी देना जरूरी कर दे तो अच्छा रहे. ज्यादातर ट्रस्ट ही इन जगहों को चलाते हैं. और बिना प्रशिक्षण के गाइड द्वारा दी गई जानकारी ही प्रमाणिक माननी पड़ती है.

स्मारक सुबह नौ से शाम पांच तक खुला रहता है. प्रवेश पर शुल्क है और कैमरा शुल्क देकर फोटो खिंची जा सकती हैं. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो.

राठोड़ राजपूत महाराजा जसवंत सिंह का सुंदर स्मारक 

मंदिर का एक और दृश्य 

स्मारक में प्रवेश राजस्थानी लोक संगीत के साथ 

छतरी 

चबूतरे, खम्बों, और जाली पर सुंदर कारीगरी 

काफी ऊँचा चबूतरा बनाया गया है 

लाल, गुलाबी, सफ़ेद और काले पत्थर का बढ़िया सामंजस्य  

दिवारों में जालीयां, झरोखे और पतले सफ़ेद संगमरमर के कारण मंदिर के अंदर उजाला सा रहता है  

कबूतरों ने कई जगह संगमरमर को बदरंग कर दिया है 

राजघराने के लोगों की छतरियां 

छतरियां या स्मारक 
एक छतरी के नीचे राजघराने का निशान 

पेड़ों के झुरमुट में छुपा जसवंत थड़ा

जसवंत थड़ा से मेहरानगढ़ का एक दृश्य 



2 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/03/blog-post_2.html

A.K.SAXENA said...

बहुत उम्दा जानकारी।धन्यवाद्।🙏🙏