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Saturday 11 March 2017

खाभा फोर्ट, जैसलमेर

जैसलमेर शहर से 35 किमी दूर एक गाँव और किला है खाभा. इस गाँव खाभा से कई किस्से जुड़े हुए हैं. साथ ही किस्सों में 83 और गाँव भी हैं. इन 84 गाँव को पाली जिले से आये ब्राह्मण व्यापारियों ने 1200 के आसपास बसाया था. ये 84 गाँव जैसलमेर के बहुत बड़े इलाके में फैले हुए हैं. सभी 84 गाँव बड़े व्यवस्थित ढंग से बसाए गए थे और इनमें मंदिर, कुँए, तालाब, शमशान वगैरा भी थे. इन गाँव वासियों का काम था पशु पालन, खेती, नील, सोने और चांदी के जेवर, सिल्क, हाथी दांत और अफीम का व्यापार. ये व्यापार कराची, सिंध के रास्ते इरान, इराक, अफगानिस्तान से ऊँटों द्वारा हुआ करता था. इनमें दो प्रमुख गाँव थे खाभा और कुलधरा.

इन गाँव से टैक्स वसूली का काम जैसलमेर राज दरबार के दीवान किया करते थे. 1825 में जैसलमेर के दीवान सालेम सिंह थे जो अपनी सख्ती के कारण ज़ालिम सिंह कहलाते थे. सालेम सिंह की सात पत्नियाँ बताई जाती हैं पर फिर भी वसूली के दौरान कुलधरा के एक पालीवाल ब्राह्मण की कन्या उन्हें भा गई और गाँव प्रधान को हुक्म दिया गया की लड़की को शादी के लिए तैयार कर लें. रात को पंचायत बैठी और फैसला हुआ की 84 गाँव के सभी निवासी तुरंत जैसलमेर राज छोड़ कर चले जाएं. रातों रात सारे 84 गाँव खाली कर दिए गए. 

परन्तु बाद में बदनामी और वसूली के घाटे से बचने के लिए इन्हें वापिस लाने का प्रयास किया गया. 82 गाँव में कुछ परिवार आ भी गए परन्तु कुलधरा और खाभा में कोई वापिस नहीं आया. बताया जाता है की कुछ समय पहले सिंध, पकिस्तान से आये कुछ हिन्दुओं को यहाँ बसाया गया है. बहरहाल आजकल खाभा गाँव की आबादी लगभग 300 है.  

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पानी की कमी के कारण निवासियों का पलायन होता गया. जनसंख्या घट जाने के बावजूद टैक्स वसूली में कमी नहीं की गई जिसके कारण लोग गाँव छोड़ कर चले गए. पर इतने समृद्ध गाँव एक साथ खाली क्यूँ और कैसे हो गए यह एक पहेली है.

पर हर पर्यटक को राज दरबार के दीवान के अत्याचार और रातों रात गाँव का खाली होना कौतुहल और अचरज भरा लगता है और गाँव देखने की इच्छा भी होती है. इसीलिए देशी विदेशी पर्यटक काफी संख्या में कुलधरा और खाभा के खंडहर देखने आते हैं. कुलधरा से सम्बन्धित किस्सा इस लिंक पर देखा जा सकता है:

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/03/blog-post.html भूत प्रेतों का गाँव - कुलधरा, जैसलमेर 
खाभा के बारे में ये भी कहा जाता है कि यह गाँव नेहड़ नाम के पालीवाल ब्राह्मण को दहेज़ में दिया गया था जिसे दोबारा व्यवस्थित ढंग से बसाया गया. खाभा गाँव और किले को पर्यटन स्थल में विकसित किया जा रहा है. किला तो छोटा सा ही है पर इसमें जियोलॉजी का संग्रहालय भी बनाया जा रहा है. यह जान कर आश्चर्य हुआ की करोड़ों साल पहले यहाँ थार रेगिस्तान के बजाए समुन्दर हुआ करता था जो धीरे धीरे सात आठ सौ किमी पीछे हट गया और इस इलाके की बहती नदियाँ भी सूख गईं. अब यहाँ रह गए हैं केवल झाड़ियाँ और सूखी पीली रेत के टीले.

खाभा आने जाने के लिए जैसलमेर से सवारी आसानी से मिल जाती है. धूप यहाँ बड़ी तीखी होती है और हवा लगातार बहुत तेज़ चलती है. साथ ही खाने पीने की असुविधा है इसलिये इंतज़ाम कर के चलें. किला सुबह से शाम तक खुला है और प्रवेश शुल्क देकर देखा जा सकता है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

खाभा किला 

किले का बायाँ पक्ष

खाभा फोर्ट की बाँई दीवार  

पुनरुद्धार का काम जारी है 

पीला पत्थर जैसलमेर की विशेषता है 
पूरा बन जाने पर सुंदर नज़र आएगा  

तेज़ गर्मी और कड़ी सर्दी से बचाव के लिये छत के नीचे बल्लियाँ लगाईं गई हैं 

किले के मंदिर में महिषासुर मर्दिनी

खाभा गाँव का एक हिस्सा जहाँ थोड़े से लोग रहते हैं 

कारों के पीछे एक मंदिर और दो छतरियां भी देखी जा सकती हैं  

कभी सुव्यवस्थित गाँव रहा होगा खाभा 

'रण' ( जैसे कच्छ का रण )  को परिभाषित करता एक पोस्टर 

खुदाई में पाए गए तरह तरह के पत्थर 

प्राचीन बोल्डर या गोलाश्म 

गोलाश्म की परिभाषा 

किले के पिछली ओर की एक खिड़की से रेतीले टीलों का नज़ारा 

खाभा का इतिहास 

थार रेगिस्तान में खाभा फोर्ट जिस पर लाल झंडी लगी हुई है. किले से कांडला बंदरगाह लगभग 625 किमी दूर है   



6 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/03/blog-post_11.html

A.K.SAXENA said...

Nice information. Worth seeing place. Thanks.

Subhash Mittal said...

Well described

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Subhash Mittal ji

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Saxena ji

Unknown said...

Sunder Chitran nice