|
1. अहिल्या वाड़ा का गेट. यहाँ महारानी अहिल्या बाई होल्कर का निवास, राज दरबार और मंत्रालय हुआ करते थे. ये किला नर्मदा के किनारे महेश्वर में बना हुआ है |
|
2. राजवाड़े का द्वारपाल आपके स्वागत के लिए तैयार है. किले का निर्माण 1767 के आसपास हुआ था |
अहिल्याबाई होल्कर मराठा महारानी थी जिन्होनें 1765 से 1796 तक मालवा प्रदेश पर शासन किया. उन्होंने महेश्वर को होल्कर वंश की राजधानी बनाया. प्रसिद्द मराठा सूबेदार मल्हारराव होल्कर के बेटे खांडेराव होल्कर से उनकी शादी हुई. मल्हारराव मालवा के पेशवा बालाजी बाजी राव की सेना में उच्च पद पर थे. अहिल्याबाई ने पति की मृत्यु के बाद होल्कर वंश का राजपाट अपने हाथ में ले लिया. शासन को व्यवस्थित किया और न्याय पद्धति में सुधार किया. अहिल्याबाई ने न केवल अपने राज्य में बल्कि भारत के बहुत से स्थानों में, मन्दिर, धर्मशालाएं, कुँए - बावड़ियां, गरीबों के लिए अन्न क्षेत्र वगैरह बनवाए. इस कारण से इन्हें देवी, राजमाता या 'दार्शनिक महारानी' भी कहा जाता था.
अहिल्याबाई ने 1767 में अपने मालवा राज्य की राजधानी नर्मदा के किनारे
महेश्वर को बनाया. यह स्थान इंदौर से लगभग 95 किमी दूर है और ओम्कारेश्वर से लगभग 70 किमी है. प्राकृतिक रूप से सुन्दर जगह है और सुरक्षित भी. अपने घाट और माहेश्वरी साड़ियों के लिए ये एक प्रसिद्द शहर है. पर गर्मी काफी पड़ती है इसलिए मानसून के बाद जाना अच्छा रहेगा.
अहिल्याबाई की जीवन कथा बड़ी रोचक और नाटकीय है. इनका जन्म 1725 में अहमदनगर ( इस शहर का नाम बदल कर अहिल्यानगर कर दिया गया है ), महाराष्ट्र में हुआ था. कहावत है की मल्हारराव पुणे जाते हुए रास्ते में चौंडी गांव में रुके. वहां मंदिर में अहिल्या सेवा कर रही थी. बड़े ध्यान से उसे देखते रहे और फिर उसे वो अपने साथ घर ले आए. घर ला कर बेटे खांडेराव से 1733 में उसकी शादी करवा दी. 1745 - 48 में पुत्र मालेराव और पुत्री मुक्ताबाई का जन्म हुआ. 1754 में पति खांडेराव की मृत्यु हो गई.
लोक कथा के अनुसार ससुर मल्हारराव ने अहिल्या को सती होने से रोका और राजकाज सिखाया. पर 1766 में मल्हारराव का स्वर्गवास हो गया. पुत्र मालेराव दिमागी तौर पर कमजोर था और उसकी मृत्यु 1767 में हो गई. इसके बाद अहिल्या ने राजगद्दी सम्भाल ली. रानी को कमजोर मान कर अराजकता फैलने लगी. अहिल्याबाई ने कमर कस के तलवार उठा ली और डाकू लुटेरों का सफाया कर दिया. सीमाएं सुरक्षित करने के बाद न्याय व्यवस्था में सुधार किया. विधवा महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी. अहिल्याबाई ने विधवा विवाह कराए. कपडा उद्योग का विस्तार किया ताकि लोगों को रोज़गार मिले और व्यापार में वृद्धि हो. महिलाओं को भी काम दिलवाया. खेती की ओर भी ध्यान दिया. अफीम की खेती पर शिकंजा कस दिया. इस सब से होल्कर राज्य की आमदन बढ़ने लगी.
महिला का राजगद्दी पर बैठना बहुत से लोगों को पसंद नहीं आया. इसका तोड़ ये निकाला गया कि राज्य के हर आदेश पर शिव लिंग की मोहर लगाई जाने लगी और साथ ही ये भी लिखा जाने लगा कि 'भगवान् शिव का आदेश है कि .....'. इसी तरह दरबार लगाने से पहले हर रोज़ तीन ब्राह्मण नर्मदा के बालू से एक हजार शिव लिंग बनाते और फिर नर्मदा में बहा देते. इस कार्य का भी सकारत्मक प्रभाव पड़ा.
स्वयं अहिल्याबाई बड़ी सादगी से रहती और उनके रहने का महल या राजवाड़ा भी बहुत तड़क भड़क वाला नहीं था. अहिल्याबाई दान पुण्य के काम बहुत करती थी. केदार नाथ से रामेश्वरम तक 29 शहरों में मंदिर, धर्मशाला बनवाईं, कुँए और बावड़ियां खुदवाईं और गरीबों के खाने की व्यवस्था के लिए 'अन्न क्षेत्र' बनाए. 1795 में अहिल्याबाई का स्वर्गवास हो गया.
अहिल्याबाई का नाम तो सुना था पर उनके द्वारा किये गए सामाजिक बदलाव के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी जितनी महेश्वर किले में जा कर और गाइड से बात करके प्राप्त हुई. आजकल देवी अहिल्याबाई के नाम पर बहुत सी संस्थाएं स्कूल, कॉलेज और विश्विद्यालय चलाए जा रहे हैं.
महेश्वर में निमाड़ी भाषा बोली जाती है. यह मराठी, गुजराती और हिंदी का मिश्रण है. निमाड़ी कहावतें देखिये -
- खाया बिना रयि जाणू पण कया बिना नी रयणु अर्थात खाए बिना तो रहा जा सकता है पर कहे बिना नहीं !
- लाव लुटी जाव खुटी अर्थात लूट की कमाई वैसे ही जाएगी
किले और राजवाड़े की कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.