बैराट या विराट नगर एक प्राचीन शहर है जो अब राजस्थान के कोटपूतली-बहरोड़ जिले में है. जयपुर से विराट नगर लगभग 60 किमी की दूरी पर है. इसे बेरट या बैराठ भी कहा जाता था और ये स्थान ( विराट नगर ) प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी था. किसी समय यहाँ विराट नाम के राजा का राज हुआ करता था.
2. एक किवदंती प्रचलित है जब पांडवों को जब बारह साल का वनवास और दो साल का अज्ञात वास दे कर निष्कासित कर दिया गया था तो उन्होंने यहाँ एक वर्ष याने तेरहवां वर्ष गुप्त रूप से व्यतीत किया था. बाद में महाभारत के युद्ध में राजा विराट और उनके पुत्र अपनी सेना के साथ पाण्डवों की ओर से शामिल हुए परन्तु राजा और पुत्र मारे गए. राजा विराट की पुत्री उत्तरा से अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का विवाह हुआ था. अभिमन्यु और उत्तरा का पुत्र परीक्षित था जिसने महाभारत युद्ध के बाद राजकाज संभाला।
3. यह ऐतिहासिक जगह की चर्चा अब इसलिए भी होती है क्यूंकि यहाँ पुरातत्व विभाग की खुदाई में बुद्ध कालीन गोल मंदिर और बौद्ध विहार के पुरातन अवशेष मिले हैं और साथ ही सम्राट अशोक का एक अभिलेख यहाँ प्राप्त हुआ है. 250 BCE अर्थात सामान्य काल से 250 वर्ष पूर्व मौर्य कालीन अवशेषों के अलावा मुग़ल और राजपूत राजाओं से सम्बंधित अवशेष भी मिले हैं. मुग़ल समय में अकबर ने यहाँ ताम्बे के सिक्के ढालने की टकसाल भी लगाई थी. यहाँ बड़ी मात्रा में ताम्बे के सिक्के भी मिले हैं. यहाँ की पहाड़ियों में बड़े बड़े हलके गुलाबी रंग की चट्टानें और पत्थर हैं. इन पहाड़ियों में ताम्बे की खानें भी थीं.
4. पुरातत्व विभाग ने विराट नगर की पहाड़ी में खुदाई की थी जिसमें बौद्ध मंदिर, अशोक का शिलालेख और बौद्ध विहार के अवशेष मिले थे. सम्राट अशोक का अभिलेख कोलकाता के म्यूजियम में रखा हुआ है. जिस पहाड़ी पर यह अवशेष पाए गए उसे बीजक की पहाड़ी कहते हैं ( बीजक = अभिलेख ).
5. बुद्ध कालीन भारत में अर्थात सामान्य युग से 600 वर्ष पहले वाले युग में, उत्तर भारत में सोलह जनपद हुआ करते थे जिनमें से एक था मत्स्य जनपद या मत्स्य देश। इस मत्स्य जनपद में अलवर, जयपुर और भरतपुर के कुछ हिस्से शामिल थे. इस जनपद की राजधानी विराट नगर हुआ करती थी और इस जनपद की एक सीमा एक ओर कुरु देश की राजधानी इंद्रप्रस्थ से और दूसरी ओर शूरसेन जनपद से मिलती थी. शूरसेन जनपद की राजधानी मधुरा ( आजकल मथुरा ) थी. मत्स्य जनपद का नाम भगवान् बुद्ध के प्रवचन 'जनवसभ सुत्त' ( दिग्घ निकाय सुत्त 18 ) में भी आया है.
6. बैराट के बारे में चीनी बौद्ध यात्री हुएन त्सांग ने भी अपने संस्मरण The Great Tang Dynasty Record of the Western Regions में बैराट का जिक्र किया है. वह मथुरा जाते हुए सन 634 के आसपास यहाँ आया था. उसने लिखा है की यहाँ आठ बौद्ध विहार थे जो खस्ता हाल में थे और कुछ भिक्खु यहाँ रह रहे थे जो हीनयान बौद्ध धर्म का अध्ययन कर रहे थे. इसके अलावा हुएन त्सांग ने लिखा है की यहाँ दस देव मंदिर भी थे और एक हजार से ज्यादा देव भक्त भी रहते थे.
7. एक और ऐतिहासिक जिक्र अबू रशीद का है जिसने बताया की 1009, 1014 और 1022 में महमूद गज़नी के हमले यहाँ भी हुए और उसके सिपहसालार आमिर अली ने 1022 में खूब लूटपाट की और शहर हथिया लिया। ये बात एलेग्जेंडर कन्निंघम ने 1862-63-64 और 65 की रिपोर्ट में दर्ज की है.
8. बीजक पहाड़ी दो सौ फ़ीट ऊँची है जिस पर दो सपाट तल बनाए गए हैं. इनमें से एक तल पर गोल बौद्ध मंदिर या चैत्य बनाया गया और आसपास भिखुओं के रहने के लिए कमरे बनाए गए थे. कमरे और दीवारों के लिए बड़े साइज की पकाई हुई ईंटें इस्तेमाल की गई हैं.
9. यहाँ मिले अशोक अभिलेख को कोलकाता में रखा गया है और उसका नाम Kolkata-Bairat Minor Rock Edict III है. अभिलेख का अनुवाद इस प्रकार है जो कि इस किताब से लिया गया है:
'The Edicts of King Asoka' by Ven. S. Dhammika.
'Piyadasi, King of Magadha, saluting the Sangha and wishing them good health and happiness, speaks thus: You know, reverend sirs, how great my faith in the Buddha, the Dhamma and the Sangha is. Whatever, reverend sirs, has been spoken by Lord Buddha, all that is well-spoken. I consider it proper, reverend sirs, to advise on how the good Dhamma should last long.
'These Dhamma texts- Extracts from the Discipline, the Noble Way of Life, the fears to Come, the Poem on the Silent Sage, the Discourse on the Pure Life, Uptisa's Questions, and the advice to Rahula, which was spoken by the Buddha concerning false speech - these Dhamma texts, reverend sirs, I desire that all the monks and nuns may constantly listen to and remember. Likewise the laymen and laywomen. I have had this written that you may know my intentions'.
10. इस अभिलेख की खोज कप्तान बर्ट ने 1840 में की थी. इस अभिलेख को भब्रु या भाबरा अभिलेख भी कहा जाता था. अभिलेख की नक़ल और अनुवाद मरख़म किट्टो ने पंडित कमल कांत की सहायता से किया था. बाद में इस अनुवाद को एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल के जर्नल में भी प्रकाशित किया गया था. यहाँ पुरातत्व विभाग की खुदाई में मिट्टी के दिये, घड़े और बर्तन भी प्राप्त हुए थे. अभिलेख की भाषा प्राकृत है और लिपि ब्राह्मी।
ऐतिहासिक स्थान होते हुए भी यहाँ बहुत कम सैलानी यहाँ आते हैं. बीजक पहाड़ी ग्रामीण इलाके में है और आसपास कोई रेस्तरां नहीं है बस एक चाय की टपरी है. वैसे आप दिन में कभी भी जा सकते हैं पर कोई गाइड नहीं है. पहाड़ी पर एक मंदिर भी बना है. बनावट देख कर लगता है की बाद में बनाया गया होगा। जब हम पहुंचे तो वहां भी कोई पुजारी या अन्य व्यक्ति नहीं था. चढ़ाई चढ़ने के लिए एक रैंप - रास्ता- बना दिया गया है. दोपहर में तीखी धूप और गर्मी हो जाती है. जाने से पहले पानी की व्यवस्था कर लें.
कुछ फोटो प्रस्तुत हैं.
गोलाकार बौद्ध चैत्यगृह |
बीजक की पहाड़ी पर बौद्ध विहार के अवशेष |
यहाँ पर शायद भिक्खुओं के रहने का स्थान होगा |
सम्राट अशोक के समय की पकाई हुई ईंटें इस्तेमाल की गई हैं |
प्राचीन ईंटों का साइज अलग है |
नोटिस बोर्ड |
ऐसा लगता है चट्टान पर की बैठने की जगह बनाई हो |
आसपास ऐसी बड़ी बड़ी चट्टानें और पत्थर हैं |
आसपास की पहाड़ियां |
नोटिस बोर्ड |
भारी भरकम चट्टान जिसे स्थानीय लोग 'तोप' चट्टान कहते हैं |
चट्टानों का एक दृश्य। यहाँ स्तूप के अवशेष मिले |
सम्राट अशोक के अभिलेख की प्रति ब्राह्मी लिपि में |
'तोप' चट्टान के नीचे बना मंदिर |