लोअर बाज़ार एक संकरी सी सड़क पर था और उस सड़क के दोनों तरफ छोटी छोटी दुकानों की दो कतारें थी. सौ मीटर चलें तो दाहिनी ओर एक पक्का मकान था जिसमें आप का अपना बैंक था. आगे चलते चलें तो परचून की, जूतों की, मिर्च मसालों की वगैरा वगैरा दुकानें मिलती जाएँगी. ज्यादा एक्टिव बाज़ार नहीं था सोया सोया सा था. इसी तरह ब्रांच में भी ग्यारह बजे से पहले शांति रहती थी. हाँ महीना शुरू होते ही पेंशन लेने वाले लाइन लगा लेते थे और तब छोटी सी ब्रांच और छोटी लगने लगती थी.
ज्यादातर पेंशन लेने वाले पुरुष थे जो आसपास के गाँव से आते थे. कुछ महिलाएं भी पेंशन लेने आती थीं. इनमें चन्द्रो भी थी. पिछले साल जब यहाँ ज्वाइन किया था तो तीसरे दिन ही चन्द्रो से मुलाकात हो गई थी. चन्द्रो ने केबिन के दरवाज़े पे खड़े होकर बेबाक ऊँची आवाज़ में बोली,
- साब जी को नमस्ते ! नए आए हो ?
- 'हूँ !' बोल के चन्द्रो की शकल देखी और सोचा ये कौन सी जनरल मैनेजर आ गई पूछती है नए आए हो ? तब तक उसने इंकपैड उठाकर स्लिप पर अंगूठा लगा दिया और लाल पेन उठाकर पकड़ा दिया,
- लो जी गूठा लगा दिया सही कर दो.
- आपको तो पूरी जानकारी है ?
- लो जी पन्दरा साल हो गए पिंशन लेते पूरा पता है. चलो जी नमस्ते.
गौर से देखा तो लगा चन्द्रो सत्तर के आसपास होगी. चेहरे पर झुरियां, बाल सफ़ेद पर गाल लाल और मुस्कराहट. बिना रोक-टोक बतियाना और हंसना. सात आठ मिनट ब्रांच में रही और सिर्फ उसी की आवाज़ गूंजती रही. बाद में पता लगा केशियर और ऑफिसर से कई बार लड़ चुकी थी और वो दोनों चन्द्रो से कन्नी काटते थे. हालांकि उसके नाम साढ़े चार लाख की फिक्स्ड डिपाजिट भी थी. लोअर बाज़ार ब्रांच में उन दिनों साढ़े चार लाख ठीक ठाक रकम थी.
चन्द्रो से दूसरी मुलाकात उसके गाँव में हुई. गाँव से तीन लोन के फॉर्म आए हुए थे और उन लोगों से मिलना था. पर रास्ते में चन्द्रो मिल गई और उसने मेरा ही इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया ! फिर अपने बारे में उसने बताया की फौजी की पत्नी थी. रिटायर होने के बाद फौजी मकान बनवा रहा था उसी दौरान एक्सीडेंट में उसका निधन हो गया. किसी तरह मकान पूरा कराया. मकान पर नज़र डाली तो देखा की गाँव के दूसरे मकानों से ज्यादा साफ़ और बेहतर था. दोनों का कोई बच्चा नहीं था और वो अकेली उस मकान में रह रही थी. उसे अफ़सोस था की वो बचपन में स्कूल नहीं जा पाई. चन्द्रो ने चाय के लिए पूछा पर काम करने की जल्दी थी इसलिए उसे मना कर दिया. पर ब्रांच में आइन्दा जब भी आई तो उसका काम जल्दी करवा देता था. खजांची भी खुश रहने लगा था.
सोमवार को गाँव के स्कूल के हेड मास्टर जी पधारे.
- हेड मास्टर जी आज कैसे आना हुआ ? स्कूल की छुट्टी तो है नहीं आज.
- कुछ काम से आया था. आपकी ब्रांच में चन्द्रो नाम की पेंशनर का खाता है शायद.
- हाँ है तो.
- उसका बैलेंस बता दें.
- वो क्यूँ आपको तो नहीं बता सकते. क्या आप की रिश्तेदार है ?
- हाँ रिश्तेदार तो है. है क्या थी पिचले सोमवार को उसका स्वर्गवास हो गया.
- ओ ! सुनकर अच्छा नहीं लगा. पर हरी इच्छा ! उसके खाते का बैलेंस का आपने क्या करना है ?
- जी वो चन्द्रो अपनी वसीयत लिखवा गई थी. अपना मकान, एक गाय और खाते का बैलेंस स्कूल को दान कर गई है.
- अच्छा !
- वकील की बनी हुई पक्की वसीयत है जी. मैंने भी विटनेस दी थी. दो और भी विटनेस हैं. फॉर्म वगैरा दे दो भर के सारे कागज़ लगा के आपको अगले हफ्ते दे देंगे. स्कूल का खाता भी आपके ही पास है. उसी में डाल देना बस काम आसान हो गया.
- हाँ हाँ आप पेपर्स ले लाइए कर देंगे. चन्द्रो अकेली ही थी क्या ? और कोई रिश्तेदार वगैरा नहीं थे क्या ?
- साब चन्द्रो की दो बहनें और तीन भाई हैं. और उसके घरवाले के भी भाई बहन थे परन्तु वसीयत में किसी को कुछ नहीं दिया. कहती थी की मेरे मकान के पीछे पड़ें हैं सारे. मेरा ख़याल किसी को नहीं है. किसी को भी कुछ नहीं दूँगी.
- हूँ ठीक किया. वसीयत लिख कर सबको नसीहत दे दी.
गाँव की सत्तर साल की एक अनपढ़ औरत ने सोचने पर मजबूर कर दिया. अब वसीयत भी लिखनी है और उसमें दान की व्यवस्था भी करनी है.
आपने अपनी वसीयत लिख दी क्या ?
ज्यादातर पेंशन लेने वाले पुरुष थे जो आसपास के गाँव से आते थे. कुछ महिलाएं भी पेंशन लेने आती थीं. इनमें चन्द्रो भी थी. पिछले साल जब यहाँ ज्वाइन किया था तो तीसरे दिन ही चन्द्रो से मुलाकात हो गई थी. चन्द्रो ने केबिन के दरवाज़े पे खड़े होकर बेबाक ऊँची आवाज़ में बोली,
- साब जी को नमस्ते ! नए आए हो ?
- 'हूँ !' बोल के चन्द्रो की शकल देखी और सोचा ये कौन सी जनरल मैनेजर आ गई पूछती है नए आए हो ? तब तक उसने इंकपैड उठाकर स्लिप पर अंगूठा लगा दिया और लाल पेन उठाकर पकड़ा दिया,
- लो जी गूठा लगा दिया सही कर दो.
- आपको तो पूरी जानकारी है ?
- लो जी पन्दरा साल हो गए पिंशन लेते पूरा पता है. चलो जी नमस्ते.
गौर से देखा तो लगा चन्द्रो सत्तर के आसपास होगी. चेहरे पर झुरियां, बाल सफ़ेद पर गाल लाल और मुस्कराहट. बिना रोक-टोक बतियाना और हंसना. सात आठ मिनट ब्रांच में रही और सिर्फ उसी की आवाज़ गूंजती रही. बाद में पता लगा केशियर और ऑफिसर से कई बार लड़ चुकी थी और वो दोनों चन्द्रो से कन्नी काटते थे. हालांकि उसके नाम साढ़े चार लाख की फिक्स्ड डिपाजिट भी थी. लोअर बाज़ार ब्रांच में उन दिनों साढ़े चार लाख ठीक ठाक रकम थी.
चन्द्रो से दूसरी मुलाकात उसके गाँव में हुई. गाँव से तीन लोन के फॉर्म आए हुए थे और उन लोगों से मिलना था. पर रास्ते में चन्द्रो मिल गई और उसने मेरा ही इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया ! फिर अपने बारे में उसने बताया की फौजी की पत्नी थी. रिटायर होने के बाद फौजी मकान बनवा रहा था उसी दौरान एक्सीडेंट में उसका निधन हो गया. किसी तरह मकान पूरा कराया. मकान पर नज़र डाली तो देखा की गाँव के दूसरे मकानों से ज्यादा साफ़ और बेहतर था. दोनों का कोई बच्चा नहीं था और वो अकेली उस मकान में रह रही थी. उसे अफ़सोस था की वो बचपन में स्कूल नहीं जा पाई. चन्द्रो ने चाय के लिए पूछा पर काम करने की जल्दी थी इसलिए उसे मना कर दिया. पर ब्रांच में आइन्दा जब भी आई तो उसका काम जल्दी करवा देता था. खजांची भी खुश रहने लगा था.
सोमवार को गाँव के स्कूल के हेड मास्टर जी पधारे.
- हेड मास्टर जी आज कैसे आना हुआ ? स्कूल की छुट्टी तो है नहीं आज.
- कुछ काम से आया था. आपकी ब्रांच में चन्द्रो नाम की पेंशनर का खाता है शायद.
- हाँ है तो.
- उसका बैलेंस बता दें.
- वो क्यूँ आपको तो नहीं बता सकते. क्या आप की रिश्तेदार है ?
- हाँ रिश्तेदार तो है. है क्या थी पिचले सोमवार को उसका स्वर्गवास हो गया.
- ओ ! सुनकर अच्छा नहीं लगा. पर हरी इच्छा ! उसके खाते का बैलेंस का आपने क्या करना है ?
- जी वो चन्द्रो अपनी वसीयत लिखवा गई थी. अपना मकान, एक गाय और खाते का बैलेंस स्कूल को दान कर गई है.
- अच्छा !
- वकील की बनी हुई पक्की वसीयत है जी. मैंने भी विटनेस दी थी. दो और भी विटनेस हैं. फॉर्म वगैरा दे दो भर के सारे कागज़ लगा के आपको अगले हफ्ते दे देंगे. स्कूल का खाता भी आपके ही पास है. उसी में डाल देना बस काम आसान हो गया.
- हाँ हाँ आप पेपर्स ले लाइए कर देंगे. चन्द्रो अकेली ही थी क्या ? और कोई रिश्तेदार वगैरा नहीं थे क्या ?
- साब चन्द्रो की दो बहनें और तीन भाई हैं. और उसके घरवाले के भी भाई बहन थे परन्तु वसीयत में किसी को कुछ नहीं दिया. कहती थी की मेरे मकान के पीछे पड़ें हैं सारे. मेरा ख़याल किसी को नहीं है. किसी को भी कुछ नहीं दूँगी.
- हूँ ठीक किया. वसीयत लिख कर सबको नसीहत दे दी.
गाँव की सत्तर साल की एक अनपढ़ औरत ने सोचने पर मजबूर कर दिया. अब वसीयत भी लिखनी है और उसमें दान की व्यवस्था भी करनी है.
आपने अपनी वसीयत लिख दी क्या ?
लोअर बाज़ार |
10 comments:
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/04/blog-post_22.html
वाह ऐसा कलेजा रखने वाले लोग अब कहाँ मिलते दिखते हैं। असल में चंद्रो जैसी आत्माओं के कारण ही ये धरती टिकी हुई है। उस पुण्यात्मा को हमारा भी नमन। आपके द्वारा साझा किये हुए ये वाकये कितनी प्रेरणा दे रहे हैं ये हम ही समझ सकते हैं।
हमने अपना पुश्तैनी सब कुछ अनुज को दे दिया क्यूंकि खुद का अर्जित नहीं था खुद का सर्वस्व भी देने की इच्छा है। फिलहाल नेत्र दान से लेकर देह दान तक की प्रतिबद्धता कर डाली है। जमीन मकान को भी सही हाथों में सौंप जाएंगे एक दिन
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3680 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
अजय कुमार झा धन्यवाद.
चन्द्रो जैसे लोग अब भी हैं और आगे भी होंगे ऐसा मेरा विश्वास है. आपने भी तो पुश्तैनी जायदाद अनुज को दे दिया है और देहदान की भी इच्छा रखते हैं साधुवाद. हम सभी में ये चीज़ - अच्छा करने की भावना छुपी हुई है और किसी किसी में मुखर हो जाती है.
धन्यवाद दिलबाग विर्क. चर्चा - ३६८० में उपस्थिति दर्ज करूँगा
आदरणीय हर्ष जी , एक मुद्दत के बाद आपकी सुंदर , सार्थक कथा पढ़कर बहुत अच्छा लगा | कथा जो जीवन का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती है | नायिका चन्द्रो के माध्यम से समाज को बड़ा सन्देश जाता है | जो व्यक्ति अंतिम पलों में अपने पराये में ना उलझकर समाज हित कुछ करके जाते हैं वे नमन योग्य हैं | चन्द्रो की बुद्धिमता को सलाम | लोग मंदिरों में दान देने के लिए बहुधा लालायित रहते हैं पर शिक्षा के मंदिर उपेक्षित रहते हैं | नायिका ने अपनी शिक्षा की अधूरी चाह को अनुभव कर भावी पीढ़ी की बेहतरी के लिए बहुत अच्छा कदम उठाया | सादर आभार सुंदर प्रेरक कथा के लिए |
रेणु जी ब्लॉग पर पधारने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
गाँव की अनपढ़ औरत ने भी हमें सबक सिखा दिया.
चंद्रो की सूझ बूझ सराहना से परे है संघर्षशील नारी की मार्मिक कथा. नि:शब्द करती लेखनी
धन्यवाद Anita saini. अपनी वसीयत से चन्द्रो बहुत कुछ कह गई.
धन्यवाद रेणु.
चन्द्रो जैसे पात्र भी जीवन में टकरा जाते हैं.
Post a Comment