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Sunday 19 April 2020

संतोषी का खाता

गाँव में बैंक की ब्रांच चलाना आसान काम नहीं है वो भी जब ब्रांच हो झुमरी तल्लैय्या की. कई बार गाँव के कस्टमर को अपनी बात समझानी मुश्किल हो जाती है और कई बार गाँव वाले की बात समझनी मुश्किल हो जाती है. इसका कारण कुछ तो अशिक्षा है और कुछ दोनों तरफ के पूर्वाग्रह. बैंकिंग की जरूरतों को सरल शब्दों में समझा पाना कौन सा आसान है ? लेकिन अगर समझा पाए तो सहयोग भी पूरा मिलता है. वर्ना तो दो साल की पोस्टिंग ख़त्म होने का इंतज़ार रहता है. 

बात असल में संतोषी की है जो बैंक में खाता खोलने आई थी. पचीस के आसपास की उम्र होगी शायद. पतली दुबली सी, हरी सलवार, लाल कमीज़ और हरी चुन्नी ओढ़े हुए थी. कपड़े कभी नए रहे होंगे पर अब उन की रंगत उड़ी हुई थी. एक हाथ में पोलीथिन की पोटली में कुछ कागज़ और दूसरे हाथ से एक मुन्ने को पकड़ा हुआ था. दोनों सकपकाए हुए दाएं बाएँ देख रहे थे. गार्ड ने पब्लिक रिलेशन स्किल दिखाते हुआ कहा,  
- के काम सै?
- खाता खुलाना. 
- फोटू फाटू ले रई ?
- हाँ रासन कारड भी अर आधार भी.
- नरूला साब वे बैठे मिल ले. 
नरूला साब के सामने चार ग्राहक और खड़े थे. निपटा कर दस मिनट बाद बोले 
- बताओ क्या काम है ?
- खाता खुलाना जी.  
- फॉर्म भर लोगी ? 
- ना जी 
- अच्छा पहले कागज़ दिखाओ क्या लाई हो ?
नरूला साब ने काग़ज़ गौर से देखे और पूछा 
- ये क्या ? राशन कार्ड में आपके पति का नाम गोपीचंद है और आधार में किशन लाल ? आपके पति का असली नाम क्या है ? अलग अलग नाम होगा तो खाता नहीं खुलेगा, हंसी दबाते हुए जैन साब बोले.
- जी नाम तो गोपी है.
- देखो आधार कार्ड ठीक करा के लाओ तो खाता खोल देंगे वरना नहीं. KYC जरूरी है. ये लो अपने कागज़ सम्भालो.
संतोषी ने कागज़ समेटे और पोलिथिन के लिफ़ाफ़े में डाल दिए. उसके चेहरे पर निराशा छा गई. अब किस से बात करे ? फिर गार्ड के पास पहुंची और शिकायत करते हुए बोली,
- वे तो खाता ई ना खोल रे. 
- के कै रे ?
- नू कै रे पहले आधार ठीक कराओ.
अब गार्ड ने कागज़ देखे और पुछा,
- ये ल्लो ! भई यो किसनलाल और गोपीचंद अलग अलग आदमी हैं तो कैसे खाता खुलेगा. पति का नाम दोनों में एक जैसा होना चाहिए. साब ठीक कै रे खाता ना खुल सके. अपना आधार ठीक कराओ.
थोड़ी देर संतोषी चुप खड़ी रही. कुछ सोच कर गार्ड से बोली, 
- साब से तो मैं कै ना पाई अर तमें सच सच बताऊँ. किसन और गोपी दोनों भाई तो हैं. गोपी मेरा देवर है. एकी माँ के बेट्टे तो हैं. सगे भाई हैं एकी मकान में रहें. कोई फरक ना ए.  
- हाहाहा ! भई तम तो दूसरे बैंक में जाओ और वहीँ खाता खुलवा लो या फेर परधान जी से मिलो. यहाँ खाता ना खुलने का. नाम ठीक होगा तभी खुलेगा. 

अगले दिन प्रधान जी का फोन आ गया,
- साब जी कल एक छोरी गई थी खाता खुलाने पर खाता खोला ही नहीं. क्या चक्कर है ? 
नरूला साब से प्रधान जी की बात करा दी पर प्रधान जी की तस्सली ना हुई बोले,
- साब जी कल बैंक आ के सारी बात बताऊंगा आपको. 

अगले दिन प्रधान जी पधारे. उनके लिए पास वाले गोकुल हलवाई से स्पेशल सेव और लड्डू मंगवाए. प्रधान जी बतियाने लगे,
- मनीजर साब संतोषी जो है उस का असली पति तो किशन लाल है यो सच्ची बात है जी. लड़का जो लाई थी वो भी उसी किशन लाल का है यो भी सच्ची बात है जी. किशन लाल तो जी जंगलात में चौकीदारी करे था. पिछली गर्मी में जब वो ड्यूटी पे गया जी तो पलट के घर नहीं आया जी. पुलिस ने, गाँव वालों ने और परिवार वालों ने पूरा जोर लगा दिया पर मिल के ना दिया जी किशन लाल. ना ही उसकी ल्हास मिली जी. अब पुलिस कै रही जी की सात साल तक का इंतज़ार करो फेर ही केस की फाइल बंद होगी जी.

- अब आप जानो संतोषी की उमर भी ज्यादा ना है और छोटा बच्चा भी है जी. संतोषी के सास ससुर और माता पिता  बैठक कराई थी. यही तय पाया की संतोषी इसी घर में रहेगी और गोपीचंद उसका आदमी रहेगा. जब कभी किशन लाल आया तब की तब देखी जाएगी. उसका कुछ इन्तेजाम तब कर दिया जाएगा. घर की चीज घर में रह जाएगी. संतोषी का बच्चा भी पल जाएगा जी.

- तो मनीजर साब आज की डेट में पति तो है जी गोपीचंद. बाकी जैसे बताओ वैसे कागज़ बनवा देता हूँ. थोड़ा बहुत पैसा संतोषी के नाम पंचायत से डलवाना है जी सो जमा हो जाएगा. 

क्या विचार है आपका खाता खोल दिया जाए ? 
संतोषी के गाँव में 

7 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/04/blog-post_19.html

A.K.SAXENA said...

Ha...ha...ha.....anutha prasang. Bank employee ki limitations apni jagah sahi hain par santoshi bhi bichari kya kare,uski bhi majboori hai. Khata to kholna hi hoga kyon ki ek time me ek hi to husband exist kar raha hai na.ha...ha...ha..very funny.

Harsh Wardhan Jog said...

A.K.Saxena जी धन्यवाद. नौकरी के थपेड़े !

अजय कुमार झा said...

सच बताऊँ तो ठीक ऐसा ही एक वाक्या हमारी अदालत के दफ्तर में लंबित है। पहली नज़र में सीधा सा लगने वाला मामला अभी तफ्तीश की गिरफ्त में है हालांकि इस बीच परिवार को दिक्कत न हो इसका इंतज़ाम कर दिया गया है किन्तु कानूनन हम ऐसा नहीं कर सकते थे इसलिए हमने नहीं किया। बात ये भी थी कि आज हमारे सामने सारी स्थिति है किन्तु कल जब हम न हों उस जगह ,प्रधान जैसे गवाह न हों तो कागज़ क्या कहेगा वो भी देखना आवश्यक है। फिर आपने क्या किया ,खाता खोला या नहीं

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद अजय कुमार झा कानून का पालन जरूरी है. बाद में ऑडिटर या कोई इंस्पेक्टर किस नज़रिए से देखेगा कहना मुश्किल है. कागज़ी कारवाई पक्की रहनी चाहिए. प्रधान या इस तरह के लोग अपना काम निकाल लेते हैं बस. मुआवजा भी मिलना था इसलिए पहले पति के साथ ही खुलना चाहिए. पुलिस के पास भी वही दर्ज है. या फिर पिता के साथ भी ठीक है.

Unknown said...

Aadhar card ke basis per khata khul sakta hai.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद Unknown