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Wednesday, 29 April 2020

फ़िकर नॉट यात्रा

घंटी बजी तो फोन उठाया. उधर से आवाज़ आई, 
- शेट्टी बोलता ए.
- बोलो शेट्टी. 
- चार दिन का छुट्टी आ रा भाई. दिल्ली जाएगा?
- नो नो.
- बोमडीला तवांग जाएगा ? सब अरेंज करेगा मैं. 
- जाएगा.
- मेरे को मालूम. जितना वूलेन है पैक करो. सुबह 6 बजे निकलेगा. 

शेट्टी विजया बैंक तेज़पुर( असम ) का मैनेजर था और बेलगाम का रहने वाला था पर अकेला रह रहा था. वही हाल अपुन का भी था. प्रमोशन के बाद दिल्ली से पोस्टिंग ज़ोनल ऑफिस कोलकाता हुई, वहां से रीजनल ऑफिस गुवाहाटी और वहां से तेज़पुर ब्रांच मिली.

तेज़पुर छोटा सा पर सुंदर शहर है. हरा भरा, शांत, साफ सफाई वाला और लोग भी सभ्य और मिलनसार हैं. लगभग दो साल 1987-88 वहां रहा पर उसके बाद जाने का मौका नहीं मिला. 

सुबह छे बजे शेट्टी एम्बेसडर लेकर आ गया. 
- भाई 6-7 घंटे में बोमडीला जाएगा हाल्ट करेगा. दूसरा रोज़ तवांग जाएगा हाल्ट करेगा वापिस आएगा ओके? 
- ओके. ऊपर ठंडा होगा?
- एह! वूलेन लाया? बहुत टंडा.
- लाया वूलेन लाया देखो बोटल भी लाया.   
- एह! ही ही ही हीटर! गुड बॉय! मैं भी लाया!

कुछ देर तक चाय बगानों के बीच से गाड़ी निकली फिर खुले इलाके में आ गई. भालुकपोंग से अरुणाचल की पहाड़ियां शुरू हो गईं. टिप्पी के बाद हरे भरे ऊँचे पहाड़ शुरू हो गए और रास्ता ज्यादा घुमावदार हो गया. ठंडक भी बढ़ने लगी. टेंगा नदी आ गई. कुछ देर दाएं रही, फिर बाएँ, कभी नीचे रह जाती और कभी सड़क को छूती हुई चलती. साफ़ पानी, तेज़ बहाव और पथरीले रास्ते पर उछलती और चमकदार सफ़ेद झाग बनाती इठलाती चल रही थी.  

दोपहर बाद बोमडीला पहुंचे बहुत ठंड थी. ये लगभग 8000 फुट की उंचाई पर है. छोटा सा बाज़ार था जिसमें गरम कपड़े और घरेलू चीज़ें मिल रही थी. दुकानदारनियों की शक्लें, कपड़े और भाषा बिलकुल अलग तिब्बतियों की तरह थी. ड्राईवर के सुझाव पर वूलेन बंदर टोपी भी खरीद कर पहन ली. बीस पचीस मिनट में ही ठन्ड जकड़ने लगी. अँधेरा भी होने लगा था हम बाज़ार छोड़ के होटल की तरफ हो लिए. दो दो पेग लगाए दाल-भात खाया और बिस्तर में गोल हो गए.

सुबह तवांग की ओर छोटी बस में प्रस्थान किया. असल में तवांग घुमना हो तो अप्रैल, मई या जून ठीक रहता है जबकि हम आ गए जनवरी में. 2000 फुट ऊपर तवांग में तो मौसम और बर्फीला होगा. खैर बस घों घों करती दूसरे तीसरे गियर में पचास साठ किमी चली होगी की खड़ी चढ़ाई शुरू हो गई और हिचकोले बढ़ने लगे. जंगलों में अभी भी कोहरा नज़र आ रहा था. पेंसिल जैसी संकरी, सांप की तरह बलखाती रोड पर कोई नज़र नहीं आ रहा था. उंचाई बढ़ी तो स्पीड और कम हो गई. अब केवल पहला दूसरा गियर ही लग रहा था. बैठे बैठे हिचकोले खाते लगा की दिल्ली बहुत दूर रह गई है बस सामने अभी एवरेस्ट आ जाएगा!

बस रुकी तो पता लगा की सेला आ गया है. 'से' एक दर्रा या पास या ला है इसलिए सेला कहते हैं. ऊँची ऊँची चट्टानें और उन पर बर्फ, सड़क, जमीन और पेड़ों पर भी बर्फ. कहीं कहीं स्नो जम कर आइस बन चुकी थी. तेज़ ठंडी हवा की सरसराहट कान में शूं शूं कर रही थी. 

एक खोखे में घुस के चाय और आमलेट का आनन्द लिया. जान में जान आई तो पुछा,
- शेट्टी दिल्ली वापिस पहुँच जाएगा न हम?
- एह! भाई बहुत टंडा है एक जैकेट और लेने का. देवा रे देवा बचा लो मुझे. 
मुंह खोल कर बात करने से ऐसा लगा की दांत भी ठन्डे हो जाएंगे. बस की तरफ लपके तो देखा ड्राईवर अगले पहियों पर पतली चेन चढ़ा रहा था.

- ओ तेरे की ये क्या? अब यहाँ से आगे गाड़ी पहले गियर में ही चलानी थी और ब्रेक भी नहीं लगानी थी. धीरे धीरे नीचे की तरफ बस सरकती रही और जब घाटी आई तो सांस में सांस आई. अब फौजी इलाका नज़र आने लगा. 

गाड़ी रुकी तो देखा सड़क के दूसरी तरफ बोर्ड लगा था 'फिकर नॉट कैंटीन'. अंदर गए तो देखा की कैंटीन किसी सेल्फ सर्विस रेस्तरां से कम नहीं थी. ऐसी हड्डी-मार ठण्ड में गरमा गरम दोसा और कॉफ़ी मिल जाए तो और क्या चाहिए. शेट्टी भी खुश हो गया. पर दोसा टेबल तक लाते लाते ठंडा हो रहा था. फौजी कुक ताड़ गया और बोला,
- साब यहीं आ जाओ. खड़े खड़े खा लो आप और कोई तो है नहीं यहाँ. 
अगला दोसा और कॉफ़ी चूल्हे के नज़दीक खड़े होकर खाए. गरमाइश अच्छी लगी. फौजी को सलूट मारा और फिर बैठ गए बस में.

बस का इंजन भी सर्दी का मारा नाराज़गी दिखा के ही चला. थके हारे अधसोए से तवांग पहुंचे. गाड़ी ने बाज़ार के नज़दीक उतारा और उतरते ही पता लग गया बर्फीली हवा क्या होती है. जल्दी से जैकेट खरीदी, पहनी और होटल में दाखिल हो गए. खान खाया और बिस्तर में. 

दो दो कम्बल और एक एक रजाई, एक हीटर दोनों पलंगों के बीच सर की तरफ और एक पैर की तरफ. दोनों बोतलें  भी रख ली. कपड़े उतारने का मन ना करे. केवल जूते उतारे. सॉक्स से लेकर, कोट और बंदर टोपी तक जो कुछ पहना था वैसे ही बिस्तर में घुस गए. बीच बीच में सुसू के लिए उठे तो ठण्ड लगी, ठण्ड लगी तो पेग लगाया फिर बिस्तर में. सुबह तक दोनों बोतलें फिनिश कर दी. नाश्ते के वक़्त पता लगा की रात को तापमान ज़ीरो से दो तीन डिग्री नीचे था. सुनकर फिर से कंपकंपी छुट गई! शेट्टी बोला,
- देवा रे देवा बचा लो! और कुछ मन्त्र पढ़ने लगा.
- शेट्टी ये गौतम बुद्ध का इलाका है-ॐ मणि पद्मे हूम!
- एह! बुद्धा रे बुद्धा बचा लो मुझे!

पर विशाल तवांग मोनेस्ट्री याने बौद्ध मठ पहुँच कर सारी थकावट भूल गए. आठ मीटर ऊँची बुद्ध की मूर्ती, पूरे हाल में सुंदर चित्रकारी, प्रवचन का स्थान, बच्चों का हॉस्टल वगैरा बहुत कुछ था. पर अफ़सोस उन दिनों हाथ में कैमरा नहीं था. 

चलते चलते ये भी बता दिया जाए की सबसे बड़ा बौद्ध मठ ल्हासा में है और तवांग मठ दूसरे नंबर पर है. जब दलाई लामा ल्हासा, तिब्बत में थे तो एकाध बार उन्होंने कहा था की तवांग तिब्बत का हिस्सा है. पर बाद में उन्हें वहां से भाग कर भारत में शरण लेनी पड़ी तो विचार बदल गया. चीन भी तवांग पर अपना दावा करता रहता है.

खैर वापसी फिकर नॉट रही और यात्रा यादगार रही. वहां की हाथ की बनी एक वूलेन 'प्रेयर मैट' अब भी मौजूद है. 
तवांग का तोहफा 'प्रेयर मैट'



9 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2020/04/blog-post_29.html

Unknown said...

You reminded me of a nice place & journey. Did you not visit the lakes beyond Tawang. There are 108 lakes. In January they might be frozen

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.4.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3687 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।

धन्यवाद

Harsh Wardhan Jog said...

Thanks 'Unknown'.
It was chilling weather & we were not properly prepared. Saw the Monastery & pushed off. Both Tawang & Bomdila are beautiful & unique. By now tourism must have increased with more infra I suppose.

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद दिलबाग !
चर्चा - 3687 में भी हाजरी जरूर लगेगी.

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

रोचक रही आपकी यह यात्रा। मैट वाकई बहुत सुंदर है।

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद विकास नैनवाल 'अंजान'. मैट कारीगरी का नमूना है.

A.K.SAXENA said...

यात्रा का बहुत मजेदार विस्तृत वर्डण। सर्दी का सजीव
चित्रण। वाह वाह मजा आ गया। पूरे रास्ते बोतल साथ रही
पैग के बाद पैग, फिर उसके बाद फिर एक पैग। पैग की खूब पैन्गें बड़ाईं। भाई मजा आ गया।

Harsh Wardhan Jog said...

A.K.Saxena धन्यवाद ! आप भी साथ चलते तो और मज़ा आता