हस्तिनापुर में लक्खी बंजारा की मूर्ति बनाई जा रही है |
हस्तिनापुर की यात्रा के दौरान पत्थर की मूर्तियाँ बनती देखी थी. एक मूर्ति के बारे में मूर्तिकार से पूछा तो उसने बताया की लक्खी बंजारे की मूर्ति तैयार हो रही है. जब पूछा की ये कौन थे तो उसने बताया की लक्खी बंजारा एक बड़े व्यापारी थे. ये मूर्ति और साथ में कुत्ते की मूर्ति दोनों की सेटिंग कर के मुज़फ्फरनगर भेजनी है. लक्खी बंजारे के बारे में इससे ज्यादा जानकारी उसे नहीं थी.
बंजारे तो शहर, गाँव-खेड़े और विदेशों में भी घूमते फिरते मिल जाते हैं. कौतुहलवश कुछ लोगों से पूछा और कुछ इन्टरनेट खंगाला तो बंजारों के बारे में काफी जानकारी मिली. इसमें से कुछ संक्षेप में आपसे शेयर कर रहा हूँ. इन्हें खानाबदोश, बाजीगर, नायक, लुहार, घुमंतू , जिप्सी, रोमा, त्सिगानी वगैरा भी कहते हैं. अस्थाई डेरा डालते हैं, छोटी मोटी चीज़ों का व्यापार करते हैं, रंग बिरंगे चटक कपड़े और चांदी के मोटे मोटे गहने पहनते हैं. कुछ दिन एक जगह रहते हैं फिर डेरा कहीं और लगाते हैं. दूर दराज जगहों पर सामान लाने ले जाने में सक्षम हैं. विश्व में इनकी संख्या तीन से चार करोड़ तक बताई जाती है. इनका मूल देश का तो पता नहीं है पर इन्हें सिन्धु घाटी की सभ्यता से भी जोड़ा जाता है. यूरोप के 'रोमा' रोमानी भाषा बोलते हैं जिसमें पंजाबी, गुजराती और राजस्थानी शब्द भी शामिल हैं. माना जाता है की लगभग एक हज़ार वर्ष पहले इन बंजारों में से कुछ लोग उत्तर पश्चिमी भारत से यूरोप की तरफ कूच कर गए थे. मजेदार बात है कि 1983 के यूरोप के रोमा महोत्सव में श्रीमती इंदिरा गाँधी भी शामिल हुई थीं. जहां तक लक्खी बंजारे का सवाल है इससे मिलते जुलते तीन नाम मिले जिनकी कहानियां कुछ इस तरह से हैं :
1. भाई लक्खी शाह बंजारा - भाई लक्खी का जन्म 04 जुलाई 1580 के दिन खैरपुर सादात, पाकिस्तान में हुआ था और निधन मालचा गाँव नई दिल्ली में 99 साल 10 महीने की उम्र में हुआ था. कहीं कहीं इनका नाम लक्खी राय भी लिखा मिलता है और वंज़ारा भी कहा जाता है. भाई लक्खी मुग़ल सेना को घोड़ों की जीन, रकाब और लगाम सप्लाई किया करते थे. बड़े ठेकेदार थे. साथ ही सामान लाने ले जाने की व्यवस्था करते थे. दिल्ली से लाहौर, पेशावर, काबुल और कंधार तक बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी में सामान आता जाता था. रास्तों में जगह जगह बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी के चालकों के आराम करने के लिए 'टांडा' बनवा रखे थे. एक समय में इनके पास लाखों नौकर चाकर थे और भाई लक्खी शाह दिल्ली के कई गाँव मसलन मालचा, रायसीना, नरेला के मालिक थे.
भाई लक्खी का बड़े व्यापारी के तौर पर तो नाम मशहूर है ही उससे भी ज्यादा नाम गुरु तेग बहादुर की सेवा के कारण है. गुरु साहिब को औरंगजेब ने 1675 में गिरफ्तार कर लिया और आदेश किया कि खुले आम गुरु साहिब का सिर धड़ से अलग कर दिया जाए और टुकड़े कर के जगह जगह टांग दिया जाए. चांदनी चौक में जहां आज सीसगंज गुरुद्वारा है वहां उन्हें ले जाया गया. भाई लक्खी अपने बेटों और बहुत से सेवादारों के साथ रुई से भरी बैलगाड़ियाँ लेकर पहुंचे. उस शाम तेज़ धूल भरी आंधी चल रही थी. बैलगाड़ियों से अलग धूल उड़ रही और शोर हो रहा था. तमाशबीन और सिपाही आंधी से बचने के लिए मुंह पर कपड़े लपेटे छुपने की कोशिश कर रहे थे. इसी कोहराम में भाई लक्खी ने अपने बेटे की सहायता से गुरु साहिब का धड़ उठा कर बैलगाड़ी में डाला और सिर भाई जगजीवन( भाई जेता ) को दे दिया. वहां से बैलगाड़ी भगाते हुए अपने घर रायसीना पहुंचे. घर में अंतिम अरदास कर के पूरे घर को आग लगा दी. भाई लक्खी ने इस तरह गुरु साहिब के मृत शरीर की दुर्गति होने से बचा लिया. इस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब है. 1680 में भाई लक्खी का देहांत हो गया.
2. लाखा बंजारा मध्य प्रदेश के सागर जिले में एक बड़ी झील है जिसे सागर झील या अब लाखा बंजारा झील कहते हैं. सागर झील कब और कैसे बनी इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. इस झील के इतिहास के तौर पर यहाँ एक किंवदंती या लोक कथा प्रचलित है. कहते हैं कि सूखा पड़ने के कारण राजा ने झील खोदने का आदेश दिया. खुदाई तो हो गई परन्तु पानी नहीं निकला.
राजा ने कई दरबारियों से पानी ना आने का कारण पता करने की कोशिश की पर कोई हल नहीं निकला. राजा ने ताल में पानी लाने वाले के लिए पुरस्कार की घोषणा भी कर दी पर कुछ हासिल ना हुआ. फिर किसी ज्ञानी व्यक्ति ने सुझाव दिया की अगर इस खुदे हुए ताल के बीचोबीच अगर कोई नया विवाहित जोड़ा झूला झूले तो पानी आ सकता है. परन्तु पानी आने के बाद जोड़ा बाहर निकल नहीं पाएगा और वहीँ डूब जाएगा. अब मसला और भी संगीन हो गया.
बात लाखा बंजारा तक पहुंची और उसने राजा के दरबार में जाकर घोषणा कर दी कि वह पानी लाने के लिए अपने नवविवाहित बेटे और बहु को झूले में बैठा देगा. तैयारी हो गई और शुभ समय देख कर सजे धजे दूल्हा दुल्हन को झूले में बिठा दिया गया. उन्होंने झूलना शुरू किया और पींग बढ़ाई. अचानक से पानी का फव्वारा फूट पड़ा. झील में पानी भर गया पर दुर्भाग्य से वे दोनों भी उसी झील में समा गए. कहानी सच है या मिथक ये तो पता नहीं परन्तु बलिदानी लाखा बंजारा एक लोक नायक के रूप में मध्य भारत और बुंदेलखंड में आज भी प्रसिद्द है.
लाखा बंजारा झील, सागर, मध्य प्रदेश |
3. लखी बंजारा पानीपत के पास एक थर्मल बिजली घर है. उसके पास ही एक गाँव है ऊंटला जहां कूकड़ा बाबा का डेरा है. कहा जाता है की पानीपत की तीसरी लड़ाई हारने के बाद मराठा जनरल सदाशिव राव भाऊ ने यहाँ के जंगलों में भटकते रहे. अंत में यहाँ जो बाबा बैठे थे उन के पास डेरा डाल दिया था. कालान्तर में जनता के सहयोग से यहाँ मंदिर बना. आसपास के गाँव में अभी भी फसल का कुछ भाग डेरे में दान दिया जाता है. अगर किसी नजदीकी गाँव में ब्याह शादी हो तो पहली थाली यहाँ डेरे में भेजी जाती है. यहीं एक कुत्ते की समाधि भी है जिसका किस्सा कुछ यूँ बताया जाता है.
लखी बंजारा एक पशु व्यापारी था. व्यापार में घाटा होने के कारण उसे पानीपत के एक सेठ से उधार लेना पड़ा. कर्ज के बदले में उसने अपना बहुत ही वफादार कुत्ता बड़े बे मन से सेठ के पास गिरवी छोड़ दिया. अचानक उस रात सेठ के घर में चोर घुस आए और चोरी हो गई. पर कुत्ते की मदद से चोर पकड़े गए और सामान बरामद हो गया.
सेठ ने कुत्ता छोड़ देने का फैसला किया और कुत्ते के गले में लखी बंजारे के नाम एक चिट्ठी बाँध दी जिसमें लिखा था - लखी बंजारे तेरे कुत्ते ने मेरा बहुत बड़ा नुकसान होने से बचा लिया है. इसलिए तेरा क़र्ज़ मैंने माफ़ कर दिया है और तेरा कुत्ता तुझे वापिस भेज रहा हूँ'. उधर लखी बंजारे ने कुत्ते को डेरे में वापिस आते देखा तो आग बबूला हो गया और उसे मार दिया. बाद में डेरे के बाबा ने कुत्ते के गले में बंधी चिट्ठी पढ़ी. चिट्ठी पढ़ कर बाबा ने कुत्ते को अमर रहने का आशीर्वाद दिया और लखी बंजारे को कुत्ते की समाधि बनाने के लिए कहा जो आज भी है.
लक्खी बंजारा का कुत्ता |
12 comments:
https://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/10/blog-post_5.html
बहुत खूब- नईं नईं रोचक कहानियां। nice information. Thanks.
Thank you Saxena ji
Bhai bahut khush yar banjara ek kshatriya community hai ashia ke sabse bade vayapari the kisi bakt lekin aaj inhe neech samjha jata hai us bakt yahi log sabke liye kahne peene kapda aadi supply karte the inki asli jaat Gor kashtriya hain Rathod parmaar jadho badtiya/vartiya chabhan aadi suryavanshi hain main bhi isi history par kaam kar raha hun
बहुत बहुत धन्यवाद Unknown. इतने जानकारी तो मुझे भी नहीं थी. आपना नाम और ईमेल लिख देते तो अच्छा था.
Sir mai bahut utsuk hu ye sb janne ke liye apna number de pll
Very mere history is presented and starting Ka pata galath hair vo. Banajra घूमते नही नही व्यापार करते अब। They are now settled farmer's, civil servants, doctors, engineers, NRI doctors , engineer, business man in India and abroad. Some still are cattle keepers. They are in politics too but only south part of India and in north part u can find in Haryana and Punjab.jo chuda बेचने और अन्य जगह दिखने vale vanjare Nahi hai अप उनको पूछो वो आपको बोलेंगे हम बंजारा नहीं है वैसा बोलेंगे।Mh Ex cm VP Singh Nayak longest serving cm of महाराष्ट्र एंड known as father of green Revolution in MH and India me Jo BAhut Sare farmers ke schemes hai unhone introduce Kiya. Ex cm sudhkar Rao Nayak of mh known as father of water revolution. History is like ocean we can't discuss here.
My name is bhukya khethavath Manoj Singh Nayak Rathod From telengana and my e mail is mannojsiinngh2578@Gmail.con
धन्यवाद bhukya khethavath Manoj Singh Nayak Rathod.
I am mukesh bhanot yu log galt sanjh te ki ham banjara hi he sabse niche he inko yu nhi pata ksastiry to ham hi he or home hi handi jat batai barhi he jai baba lakhi saha banjara ki
Batao inko ki hamara ithash kya he or ham kya he ham kon he
Dear Mukesh Bhanot thank you for your comments. I suggest that you should write complete history of Baba Lakhi Shah Banajara. I wrote after discussing with statue maker and information available in wikipedia.
आपको अपना इतिहास लिखना चाहिए.बाबा लक्खी शाह बंजारा के बारे में भी ब्लॉग लिख कर बताना चाहिए.
Post a Comment