दिल्ली से कोटद्वार लगभग 220 किमी की दूरी पर है. इसे गढ़वाल का एक प्रवेशद्वार भी कहा जा सकता है और इस द्वार से पौड़ी, लैंसडाउन और श्रीनगर पहुंचा जा सकता है. खोह नदी के किनारे हिमालय की तलहटी में बसा शहर है कोटद्वार. यहाँ का रेलवे स्टेशन 1890 में बनाया गया था जहां आकर रेलवे लाइन खत्म हो जाती है.
यहाँ के मुख्य बस अड्डे से 14 किमी दूर कण्व ऋषि आश्रम है चलिए घूमने चलते हैं. यह आश्रम एक गैर सरकारी संस्था ने बनाया है जिसे जंगल में से 0.364 हेक्टेयर जमीन दी गयी थी. आश्रम मालिनी नदी के बाएँ तट पर घने जंगल के बीच है. बहुत सुंदर हरी भरी जगह है जहाँ कलकल करती मालिनी नदी की आवाज़ सुनाई देती रहती है.
मान्यता है की हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत शिकार करते हुए भटक गए और कण्वाश्रम जा पहुंचे. कण्व ऋषि तीर्थ यात्रा पर थे. शकुन्तला ने जिसे ऋषि ने बेटी की तरह पाला था, दुष्यंत की आवभगत की. उनका गन्धर्व विवाह हुआ. दुष्यंत ने वापिस जाते हुए शकुन्तला को अंगूठी पहनाई और कहा की हस्तिनापुर आकर मिले. पर अंगूठी एक दिन नदी में गिर गई और उसे मछली निगल गई. जब शकुन्तला राजा से मिली तो उसने पहचाना ही नहीं. उधर मछली वाले ने अंगूठी बेचने की कोशिश की तो पुलिस ने पकड़ कर राजा के सामने पेश किया. राजा ने अंगूठी देखी तो सब याद आ गया. शकुन्तला की खोज की गई और राजा दुष्यंत ने उसे अपनी रानी बना लिया. बालक भरत पैदा हुआ जो बाद में चक्रवर्ती राजा बना और उसी के नाम पर भारतवर्ष बना.
कालीदास ने इस पर सात अंकों का नाटक लिखा जिसकी वजह से किस्सा और लोकप्रिय हो गया. कालिदास का जन्म कहाँ हुआ था ये तो तय नहीं है पर वे चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहे अर्थात चौथी शताब्दी के आसपास ही जन्मे थे. पुरातत्व विभाग याने ASI की तरफ से यहाँ कोई बोर्ड या नोटिस नहीं लगा है की कण्व ऋषि, शकुन्तला या भरत का जन्म यहीं हुआ था या वे यहीं रहा करते थे.
बहरहाल सुंदर स्थान है पर कोई पब्लिक टॉयलेट या रेस्टोरेंट की सुविधा नहीं है. सैलानी कम आते हैं. पास में नदी के दूसरी तरफ एक सरकारी और एक प्राइवेट होटल हैं जहां रुका जा सकता है. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
यहाँ के मुख्य बस अड्डे से 14 किमी दूर कण्व ऋषि आश्रम है चलिए घूमने चलते हैं. यह आश्रम एक गैर सरकारी संस्था ने बनाया है जिसे जंगल में से 0.364 हेक्टेयर जमीन दी गयी थी. आश्रम मालिनी नदी के बाएँ तट पर घने जंगल के बीच है. बहुत सुंदर हरी भरी जगह है जहाँ कलकल करती मालिनी नदी की आवाज़ सुनाई देती रहती है.
मान्यता है की हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत शिकार करते हुए भटक गए और कण्वाश्रम जा पहुंचे. कण्व ऋषि तीर्थ यात्रा पर थे. शकुन्तला ने जिसे ऋषि ने बेटी की तरह पाला था, दुष्यंत की आवभगत की. उनका गन्धर्व विवाह हुआ. दुष्यंत ने वापिस जाते हुए शकुन्तला को अंगूठी पहनाई और कहा की हस्तिनापुर आकर मिले. पर अंगूठी एक दिन नदी में गिर गई और उसे मछली निगल गई. जब शकुन्तला राजा से मिली तो उसने पहचाना ही नहीं. उधर मछली वाले ने अंगूठी बेचने की कोशिश की तो पुलिस ने पकड़ कर राजा के सामने पेश किया. राजा ने अंगूठी देखी तो सब याद आ गया. शकुन्तला की खोज की गई और राजा दुष्यंत ने उसे अपनी रानी बना लिया. बालक भरत पैदा हुआ जो बाद में चक्रवर्ती राजा बना और उसी के नाम पर भारतवर्ष बना.
कालीदास ने इस पर सात अंकों का नाटक लिखा जिसकी वजह से किस्सा और लोकप्रिय हो गया. कालिदास का जन्म कहाँ हुआ था ये तो तय नहीं है पर वे चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहे अर्थात चौथी शताब्दी के आसपास ही जन्मे थे. पुरातत्व विभाग याने ASI की तरफ से यहाँ कोई बोर्ड या नोटिस नहीं लगा है की कण्व ऋषि, शकुन्तला या भरत का जन्म यहीं हुआ था या वे यहीं रहा करते थे.
बहरहाल सुंदर स्थान है पर कोई पब्लिक टॉयलेट या रेस्टोरेंट की सुविधा नहीं है. सैलानी कम आते हैं. पास में नदी के दूसरी तरफ एक सरकारी और एक प्राइवेट होटल हैं जहां रुका जा सकता है. कुछ फोटो प्रस्तुत हैं:
घने पहाड़ी जंगल के बीच बना हुआ है कण्व आश्रम. बहुत सुंदर जगह है |
कण्व आश्रम के बीच बड़ा चबूतरा है जिस पर इन पांच की मूर्तियाँ बनी हुई हैं - कण्व ऋषि, कश्यप ऋषि, राजा दुष्यंत, शकुन्तला और बालक भरत |
कण्व ऋषि. बताया जाता है कि यहाँ ऋषि द्वारा बहुत बड़ा गुरुकुल चलाया जाता था |
कश्यप ऋषि भी यहाँ गुरुकुल में शिक्षा देते थे |
राजा दुष्यंत और रानी शकुन्तला |
बालक भरत शेर के दांत गिनते हुए |
मालिनी नदी पर बना पुल |
नोटिस बोर्ड |
रामानंद जी पिछले पच्चीस सालों से यहीं आश्रम में रहते हैं और ऋषि - मुनियों, दुष्यन्त - शकुंतला के बारे में काफी जानकारी देते हैं |
6 comments:
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2019/10/blog-post_26.html
Bahut khub - Shakuntala-Dushyant ki rochak jankari. Nice photography.
धन्यवाद सक्सेना जी.
सुन्दर घुमक्कड़ी। शहर की भीड़ भाड़ से दूर बसे इस आश्रम में मौका लगा तो जरूर जाया जायेगा। सुन्दर तस्वीरों ने उधर जाने के प्रति उतुस्कता जगा दी है। आभार।
धन्यवाद विकास
आश्रम तो सुंदर है पर जाने का रास्ता अच्छा नहीं है. आश्रम से कुछ ऊपर मालिनी नदी पर एक छोटा बराज है. पैदल जाना होगा और शाम ढलने से पहले वापिस आना होगा. फिलहाल तो पेड़ औत पत्थर गिरने से रास्ता लगभग बंद था. वो भी सुंदर जगह है.
शुभकामनाएं
Very nice 👍 Vijay Nishchal
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