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Sunday, 29 July 2018

बड़ा भाई

पापा ने अपने और बच्चों के कपड़े निकाले, जूतों पर ब्रश मारा, बस्ते तैयार करवाए. उधर किचन से आवाज़ आई
- नाश्ता ले जाओ.
टोनी और बोनी ने अपने अपने परांठे गोल कर के हाथ में पकड़े और एक एक कप दूध के साथ गटक गए. फिर जूते कसे और भारी भारी बस्ते टांग लिए. अंदर से आवाज़ आई,
- चाबी संभाल ली टोनी ?
- संभाल ली संभाल ली, बस्ते में हाथ से थपथपा कर चाबी महसूस करते हुए टोनी बोला. टोनी छठी क्लास में था और बोनी तीसरी में. इसलिए चाबी की जिम्मेवारी  टोनी की रहती थी. वापसी में पहले टोनी गेट का ताला खोलता और दोनों अंदर हो जाते तो गेट बंद करके ताला लगा देता था. फिर दरवाज़े का ताला खोलता था और खोलकर दोनों अंदर आ जाते और फिर दरवाज़े पर ताला लग जाता. मम्मी पापा ने सारा प्रोसीजर समझा रखा था. किसी भी हालत में अंदर आने के बाद कोई भी घंटी बजाए, चाहे दोस्त हो, रिश्तेदार हो, गैस वाला हो या पोस्टमैन हो पर गेट का ताला नहीं खुलेगा. जब तक मम्मी या पापा घर में नहीं होंगे ताला नहीं खुलेगा.

अंदर आने के बाद जूते उतार कर और कपड़े बदल कर के टोनी ने खाना गरम करना शुरू किया.
- ओये बोनी टेबल पर बर्तन लगा दे.
- लगा दिए. क्या बना है आज?
- दाल चावल हैं और खीरे टमाटर. प्याज काटूँ?
- हाँ काट दे. भाई आज सोमेश से झगड़ा हो गया.
- तू ये बता कि तूने उसे पीटा या नहीं? पहले भी तेरे को बोला था तू सबको पेल दिया कर बस. बाद में मुझे बताया कर. बोल क्या हुआ?
- अरे यार मेरे बस्ते में से पेंसिल निकाल रहा था और साथ में बके जा रहा था की तेरे पास तो तीन तीन हैं. साथ में राजेश भी आ गया और दोनों हल्ला मचाने लगे.
- मैं तुझे बता रहा हूँ ना. किसी एक को पकड़ के दो चार मुक्के मार दे और लंच में मुझे बता देना. बस आ जाऊंगा और पीट पाट दूंगा शांति हो जाएगी. डरियो मत. जा फोन उठा ले मम्मी का होगा.

दोपहर को मम्मी ऑफिस से फोन करके जरूर पूछती खाना खा लिया? यदा कदा पापा भी हाल चाल पूछ लेते थे. अगले दिन मम्मी का फोन आया तो टोनी बोला,
- मैंने तो खा लिया है. पर बोनी ने नहीं खाया.
- फोन दे उसे
- वो तो सो रहा है.
- अच्छा ठीक ही.
शाम को मम्मी ने वापिस घर आकर पूछा तो बोनी बोला पेट में दर्द हो रहा था.
- स्कूल में भी हो रहा था?
- नहीं घर आने के बाद हुआ. अब ठीक है खाना दे दो.
- कई बार ना खाने से भी पेट में दर्द हो जाता है. तू खाना जरूर खाया कर.

अगले हफ्ते में दो बार इसी तरह हो गया. स्कूल से आने के बाद बोनी के पेट में दर्द हो गया और बोनी ने खाना नहीं खाया. मम्मी ने फ़ोन पर पूछा तो बड़े बेटे ने बताया,
- इतना बोला उसे पर उसने खाया ही नहीं. मेरा कहना तो मानता इ नईं.
मम्मी के आने के बाद बोनी ने खाना खाया और उसका पेट दर्द गायब हो गया.
मम्मी ने बात पापा को बताई. दोनों ने काफी सोच विचार किया पर पेट दर्द का कारण समझ नहीं आया. ऐसा क्या हो जाता है कि स्कूल में पेट दर्द नहीं होता पर स्कूल से आने के बाद होता है और ठीक भी हो जाता है. फैसला ये हुआ की अगली बार जब ऐसी शिकायत हो तो बच्चों के डॉक्टर से मिला जाए.

दसेक दिन बाद फिर बोनी ने शिकायत की कि पेट में दर्द हो रहा था इसलिए खाना नहीं खाया. पर अब ठीक है. शनिवार शाम को उसे चाइल्ड स्पेशलिस्ट के पास ले गए और सारा किस्सा सुनाया. डॉक्टर ने देखा भाला और कहा प्रॉब्लम तो कुछ भी नज़र नहीं आ रही.
- घर में आपके कौन कौन है?
- दोपहर को तो डॉक्टर साब ये दोनों भाई ही घर में होते हैं हम दोनों तो ऑफिस जाते हैं.
- भाई कितना बड़ा है?
- जी इस से तीन साल बड़ा है. वो छठी क्लास में है ये तीसरी क्लास में.
- खाना कैसे खाते हैं ये दोनों? मतलब दोपहर का खाना कौन बनाता है?
- खाना मैं सुबह बना जाती हूँ और बड़ा बेटा आकर गरम करता है और दोनों खा लेते हैं.
- उसकी सेहत कैसी है? ये थोड़ा पतला सा है.
- उसकी सेहत ज्यादा अच्छी है डाइट भी अच्छी है. ये खाता भी कम है और गुस्सा भी ज्यादा करता है.
- बड़ा वाला दादा टाइप का है?
- हाहाहा! दादा तो नहीं है पर क्लास में और कॉलोनी में दोस्तों से डरता नहीं है. इसको भी कहता रहता है कि डरा मत कर बल्कि पीट पाट दिया कर. बाकी मैं सम्भाल लूँगा.
- हूँ. बात समझ में आई. आप दोनों बेटों को बिठा कर समझाना. बड़े को बोलना वो बड़ा भाई है बाप नहीं है! 

बड़ा भाई छोटा भाई 


Friday, 27 July 2018

क्यूंकालेश्वर मंदिर, उत्तराखंड

उत्तराखंड के पौड़ी शहर के मुख्यालय से दो तीन किमी दूर घने जंगल की बीच एक छोटा सा पर सुंदर मंदिर है - क्यूंकालेश्वर मंदिर. मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है. इस स्थान की उंचाई लगभग 7000 फुट है. सरकारी वेबसाइट euttaranchal.com में इसे आठवीं शताब्दी का मंदिर बताया गया है जिसे आदि शंकराचार्य ने बनवाया था. हालांकि वहां जाकर इस बात की पुष्टी नहीं हो पाई. मंदिर पुरातन है और बनावट में केदारनाथ मंदिर से मिलता जुलता है.

ऋषिकेश से मंदिर की दूरी लगभग 115 किमी है. मंदिर गर्मियों में 5.30 बजे खुलता है और सर्दी में 6 बजे और शाम 6 बजे तक खुला रहता है. पार्किंग है. खाने पीने का इन्तेजाम कर के चलें.

मंदिर में लगे एक बोर्ड के अनुसार इसका निर्माण और शिव स्थापना गंगा दशहरे के दिन जून 1833 में श्री मुनि मित्र शर्मा द्वारा हुई. बोर्ड के लेख के अनुसार मंदिर 'इन्द्रकील पर्वत के दक्षिण में और बहिनकील पर्वत के पश्चिम में' है. पौड़ी बस अड्डे से अगर मंदिर की ओर जाएं तो पहले कंडोलिया देवता मंदिर है, उससे और ऊपर एक किमी चलें तो आप क्यूंकालेश्वर मंदिर पहुँच सकते हैं. रास्ता घने और सुंदर जंगल में से है पर सड़क अच्छी है इसलिए हमने तो अपनी गाड़ी दौड़ा दी.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :

घने जंगल के बीच क्यूंकालेश्वर मंदिर. ये फोटो पहले Instagram में भी डाली थी 

मंदिर का एक और दृश्य 
मंदिर में शिव- पार्वती, गणेश और राम-सीता की भी मूर्तियाँ हैं 

पूजा स्थल 

कुंड

घने जंगल से गुज़रती सड़क 

मंदिर की ओर जाती सीढ़ियों पर श्रीमति स्नेहा बगवाड़ी भट्ट - हमारी Friend, Philospher and Guide

आशीर्वाद के साथ स्वागतम 

मुख्य द्वार के पास दीवार पर बना सुंदर चित्र 

मुख्य द्वार 

मुख्य द्वार के दोनों स्तंभों पर चार चार मूर्तियों की नक्काशी की हुई है पर सभी आठों मूर्तियों के सर पर अंग्रेजी स्टाइल के मुकुट हैं 

शांत और हरे भरे जंगल में मन रमता है. पर अफ़सोस गाड़ी दिल्ली के शोर शराबे और ट्रैफिक में वापिस ले जाएगी 

यज्ञ शाला 

महंत जी का निवास 




Wednesday, 18 July 2018

गुप्तकाशी

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित गुप्तकाशी एक छोटा सा पर सुंदर शहर या कस्बा है. दिल्ली से इसकी दूरी 425 किमी है और ऋषिकेश से लगभग 180 किमी है. दिल्ली से ऋषिकेश तक मैदानी रास्ता है और उसके बाद पहाड़ी रास्ता शुरू हो जाता है. अलकनंदा के साथ साथ हरी भरी पहाड़ियों में घुमती सड़क पर गाड़ी चलाने में बहुत आनंद आता है. मंजिल सुंदर है और मंजिल तक का रास्ता भी सुंदर है.

दिल्ली > ऋषिकेश > देवप्रयाग > श्रीनगर > रुद्रप्रयाग > अगस्त्यमुनि > गुप्तकाशी.

गुप्तकाशी की ऊँचाई 1320 मीटर है और ये शहर केदार खण्ड में है और केदारनाथ से 50-55 किमी पहले है. यहाँ से केदारनाथ पैदल जाना बहुत मुश्किल काम है. पर पास ही हेलीकॉप्टर सेवा उपलब्ध है जिसमें 12-15 मिनट में केदारनाथ पहुंचा जा सकता है.

गुप्तकाशी की लोक कथा है कि पांडव महाभारत के युद्ध के बाद पश्चाताप करने और भगवान शिव का दर्शन करने यहाँ आए. परन्तु भगवान शिव मिलना नहीं चाहते थे इसलिए नंदी के रूप में यहाँ गुप्त हो गए. इसलिए स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ गया. नकुल और सहदेव ने नंदी को पहचान कर भीम की सहायता से नंदी को पकड़ने की कोशिश की पर वो एक बर्फीली गुफा में गायब हो गए. बाद में भगवान् शिव पांच अलग अलग स्थानों में अलग अलग रूपों में प्रकट हुए - कूबड़ केदारनाथ में, रौद्र मुख रुद्रनाथ में, भुजाएं तुंगनाथ में, पेट इत्यादि मध्यमहेश्वर में, और लटाएं कल्पेश्वर में. रुद्रनाथ और कल्पेश्वर चमोली गढ़वाल जिले में है. इन सभी स्थानों पर मंदिर हैं और ये सभी स्थान भी सुंदर हैं. गुप्तकाशी से केदारनाथ, उखीमठ, चोपटा और देवरिया ताल भी घूमने जा सकते हैं.
गुप्तकाशी और आसपास के कुछ फोटो:

1. गुप्तकाशी की सुबह. जिस दिन आसमान साफ़ हो तो बर्फीली चोटियों का सुंदर दृश्य नज़र आता है 

2. लगता है इनके घर में कोई धार्मिक अनुष्ठान होने वाला है. मन्दिर से धार्मिक पुस्तकें और सामग्री सादर घर ले जाई जा रही हैं 

3. गुप्तकाशी का कृषि विज्ञान केंद्र स्थानीय किसानों को खेती बाड़ी के नए तरीके समझाने की कोशिश कर रहा है. पैसे, तकनीक, साधन और ट्रेनिंग देकर सब्जी भाजी और फल उगाना सिखा रहा है. पर बदलाव की गति धीमी है. केंद्र में न्यूज़ीलैण्ड का मशहूर फल कीवी भी लगाया जा रहा है   

4. मानसून के समय इस तरह के दृश्य अक्सर देखने को मिलते हैं. नीचे घाटी गरम है इसलिए भाप ऊपर उठती है. ऊपर ठंडक पा कर बादल बनते हैं. पल पल बादलों की शक्ल सूरत बदलती रहती हैं 

5. गुप्तकाशी का नवोदय विद्यालय. दोबारा अगर स्कूल में पढ़ने जाना हो तो ये जगह बेहतरीन है  

6. गुप्तकाशी की मुख्य रोड जो केदारनाथ की तरफ जाती है 
7. गुप्तकाशी का बाज़ार अभी खुला नहीं है इसलिए सड़क पर शान्ति है  
8. जाख देवता मंदिर. मान्यता है की जाख देवता की पूजा बारिश ला सकती है. और अगर बहुत ज्यादा बारिश हो रही हो तो पूजा करने पर जाख देवता बारिश रुकवा भी देते हैं. मान्यता ये भी है की उन्होंने छत बनाने से मना किया हुआ है इसलिए उनकी मूर्ति खुले में ही रहती है और कोई दीवार या छत नहीं बनाई जाती है. गुप्तकाशी समेत ये 14 गाँव के देवता हैं  

9. देवर चौरा गाँव की महिलाएं पशुओं के लिए चारा और चूल्हे के लिए लकड़ी लाती हुई. बूंदा बांदी और 10-15 किलो के वजन के बावजूद चहरे पर मुस्कराहट है. यहाँ 'बेटी बचाओ' जैसे नारे की ज़रुरत नहीं है 

10. केदारनाथ को जाने वाली सड़क को चौड़ा किया जा रहा है. इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा ये तो समय ही बताएगा क्यूंकि ज्यादातर पहाड़ भुरभुरे से लगते हैं और भूस्खलन की आशंका बनी रहती है  

11. गुप्तकाशी के द विलेज रिट्रीट रिसोर्ट में. ये सुंदर रिसोर्ट यहाँ की एक महिला उद्यमी श्रीमति स्नेहा बगवाड़ी भट्ट चलाती हैं 

12. सड़कें बन रही हैं तो मलबा ढुलाई के लिए खच्चर भी काफी संख्या में दिखते हैं 

13. बर्फीली गंगोत्री पर्वत माला का एक दृश्य. दाहिनी ओर चौखम्बा पर्वत है जिसके तीन 'खम्बे' नज़र आ रहे हैं. चौखम्बा के चार कोनों की ऊँचाई अलग अलग है - 7138 मीटर, 7070 मीटर, 6995 मीटर और 6854 मीटर. ये पर्वत बद्रीनाथ के पश्चिम में है

14. लहराती चलती मस्त नदी मधु जो मध्यमहेश्वर से निकल कर मन्दाकिनी में मिल जाती है 

15. सुप्रभात 

16. गुप्तकाशी से नज़र आता उखीमठ



Sunday, 15 July 2018

लक्ष्मण मंदिर, देवल, उत्तराखंड

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में एक गाँव है देवल. ये गाँव पौड़ी तहसील से लगभग 15 किमी दूर एक बड़ी घाटी में है. यहाँ एक प्राचीन लक्ष्मण मंदिर है जिसे वैष्णव मंदिर भी कहते हैं. ये छोटे बड़े 12 मंदिरों का समूह है. स्थानीय लोगों में लक्ष्मण और सीता की पूजा होती है शायद इसलिए इस क्षेत्र का एक नाम सितोंस्युं भी है. इन मंदिरों की वास्तु केदारनाथ और बागेश्वर मंदिरों से मिलती जुलती है. कुछ मंदिर 12वीं और 13वीं के बने माने जाते है और कुछ 18वीं या 19वीं शताब्दी के. स्थानीय लोगों के अनुसार आदि शंकराचार्य के आने के बाद ही मंदिरों का निर्माण हुआ इसलिए सभी मिलते जुलते हैं.

बहरहाल इससे ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई. इनमें से एक बड़े मंदिर में आजकल लाउड स्पीकर और झंडा लगा हुआ है और पूजा पाठ हो रहा है. इस मंदिर समूह से लगभग 200 मीटर दूर ढलान पर एक छोटी सी नदी किनारे एक और मिलता जुलता धार्मिक स्थल बना हुआ है. इसकी दीवारों और छत पर भी काले पत्थर में सुंदर नक्काशी है. पर ये कब बना और किसलिए बना इसकी जानकारी नहीं मिली. इन छोटे बड़े मंदिरों को देख कर लगता है की पुरातत्व विभाग को और खोजबीन करनी चाहिए.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :

मंदिर समूह 

सूचना पट सुंदर हैं पर सूचना कम है 
प्रांतीय सरकार द्वारा लगाया गया सुंदर सूचना स्तम्भ  

मुख्य मंदिर

काफी मेहनत से बनाए गए सुंदर खम्बे, दरवाज़े और शिखर 

छोटा सा मंदिर 

शायद अंदर मूर्ति रही हो 

नक्काशीदार पत्थर के ढाँचे में आधुनिक लोहा 

मुख्य मंदिर में पूजा पाठ होती है 

मंदिर बहुत ऊँचे और बड़े नहीं हैं 

लक्ष्मण मंदिर से 200 मीटर दूर धरोहर का अनजाना खजाना 

प्रवेश द्वार पर नक्काशी 

दीवार और छत पर सुंदर नक्काशी 

खम्बों पर नक्काशी 

एक अलग थलग पड़े पत्थर में घड़ी मूर्ति 

कई पत्थर इसी तरह ही पड़े हुए हैं 

मंदिर परिसर में दर्शनार्थी 

देवल गाँव इस घाटी में नीचे है 

पौड़ी से देवल गाँव की ओर जाने का रास्ता कुछ इस तरह का है --




Wednesday, 11 July 2018

धारी देवी मंदिर, उत्तराखण्ड

धारी देवी मंदिर अलकनंदा नदी के बीचोबीच बना हुआ है. श्रीनगर गढ़वाल से रुद्रप्रयाग जाते हुए रास्ते में लगभग 15 किमी आगे बाईं ओर कल्यासौड़ में स्थित है. इस मंदिर में धारी देवी का ऊपर का हिस्सा स्थापित है और निचला हिस्सा कालीमठ ( 67 किमी दूर ) में है जो काली देवी के नाम से पूजा जाता है. ये मंदिर भारत के 108 शक्ति स्थलों में से एक माना जाता है और ये भी मान्यता है की धारी देवी चार धाम की रक्षक है.

इससे जुड़ी एक रोचक लोक कथा है जिसे आप मानें या ना माने. इसी अलकनंदा पर एक 330 मेगावाट का प्रोजेक्ट बनना था जिसके कारण 16 जून 2013 को मूल मंदिर गिरा दिया गया. उत्तराखंड और हिमाचल में 14 से 17 जून लगातार भारी बारिश दर्ज की गई. उधर 16 जून को ग्लेशियर के ऊपर बादल फटने की घटनाएं हुई. बादल फटने के साथ ही केदारनाथ क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आ गई. बाद में मूर्ति को 20 मीटर की ऊँचाई पर पुनर्स्थापित किया गया और प्रोजेक्ट शुरू किया गया.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

धारी देवी मंदिर

हाईवे पर बना मुख्य द्वार. दक्षिण भारत के मंदिरों से मिलता जुलता  

पूजा सामग्री बाज़ार 

मंदिर जाने के लिए बना पुल

भजन कीर्तन 
सुंदर सीनरी हो तो सेल्फी तो बनती है 

नीचे जाने का रास्ता 

मंदिर जाने का रास्ता 

जय भोले नाथ 



मंदिर में नई नवेली पहाड़ी दुल्हन 

धारी देवी मंदिर का एक और दृश्य