मैसूर एक सुंदर शहर है जिसका नाम अब मैसूरू हो गया है. मैसूरू शहर के बीच एक सुंदर चर्च है संत फिलोमेना चर्च. इस चर्च का पूरा नाम 'संत जोसेफ़ और संत फिलोमेना कैथेड्रल' Cathedral of St. Joseph and St. Philomena है.
यह चर्च एशिया में दूसरा सबसे बड़ा चर्च माना जाता है. इस चर्च की नींव मैसूर के महाराजा ने 28 अक्टूबर 1933 को रखी थी. फ़्रांसिसी वास्तुकार डेली ने इस चर्च का डिजाईन नियो गोथिक शैली में तैयार किया. इस डिजाईन का आधार था जर्मनी के शहर कोलोन का कोलोन कैथेड्रल. हॉल में 800 लोगों के बैठने का इन्तेजाम है. खिड़कियों में रंगीन शीशे लगे हुए हैं जिन पर जीसस क्राइस्ट की जीवनी में से कुछ दृश्य अंकित हैं. अंदर सुंदर मूर्तियाँ हैं और कुछ की वेशभूषा स्थानीय यानि भारतीय है.
लश्कर मोहल्ला, अशोका रोड पर स्थित ये चर्च सुबह पांच बजे से शाम छे बजे तक खुला है और कोई टिकट नहीं है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
यह चर्च एशिया में दूसरा सबसे बड़ा चर्च माना जाता है. इस चर्च की नींव मैसूर के महाराजा ने 28 अक्टूबर 1933 को रखी थी. फ़्रांसिसी वास्तुकार डेली ने इस चर्च का डिजाईन नियो गोथिक शैली में तैयार किया. इस डिजाईन का आधार था जर्मनी के शहर कोलोन का कोलोन कैथेड्रल. हॉल में 800 लोगों के बैठने का इन्तेजाम है. खिड़कियों में रंगीन शीशे लगे हुए हैं जिन पर जीसस क्राइस्ट की जीवनी में से कुछ दृश्य अंकित हैं. अंदर सुंदर मूर्तियाँ हैं और कुछ की वेशभूषा स्थानीय यानि भारतीय है.
लश्कर मोहल्ला, अशोका रोड पर स्थित ये चर्च सुबह पांच बजे से शाम छे बजे तक खुला है और कोई टिकट नहीं है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:
ये दो मीनारें 175 फुट ऊँची हैं |
बड़ी और ऊँची खिडकियों में रंगीन शीशे हैं |
पत्थरों का सुंदर उपयोग |
शिलालेख |
ऊँचे ऊँचे दरवाज़े |
फ्लोर प्लान देखा जाए तो एक क्रॉस की तरह है |
नियो गोथिक शैली |
मुख्य चर्च के पीछे ऐसे दो स्मारक हैं |
सैलानी |
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