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Wednesday, 28 February 2018

LoU की जन्मपत्री

बैंक में हुए 11400 करोड़ के घपले के बाद LoU याने लैटर ऑफ़ अंडरटेकिंग / Letter of Undertaking की बड़ी चर्चा हो रही है. इस LoU को हिंदी में क्या कहते हैं ये तो पता नहीं था तो गूगल बाबा की सहायता से पता लगा की LoU को हिंदी में वचन-पत्र कहते हैं. यह वचन-पत्र तो बड़ा कीमती निकला और आप देख ही रहे हैं इस वचन-पत्र के कारण सारा बैंकिंग तन्त्र, जासूसी तंत्र, मीडिया तंत्र और राजनैतिक तंत्र हिल गया है.

जैसे हीरे की कदर जौहरी ही जानता है वैसे ही वचन-पत्र की कदर हीरे के व्यापारियों ने खूब पहचानी. हीरे बेशकीमती हैं और भारत में तो अब बिना तराशे या कच्चे हीरे मिलते नहीं बाहर से ही लाने पड़ते हैं. बाहर से बिना तराशे हीरे लाने के लिए विदेशी मुद्रा चाहिए और साथ ही बैंकर भी चाहिए जो हीरे आयात करने में डॉलर में लोन दे सके क्यूंकि ये सामान बड़ा महंगा है. यहाँ हीरे आने के बाद कटिंग और पोलिश करके निर्यात कर सकते हैं, जेवर बना कर निर्यात कर सकते हैं और डॉलर कमा सकते हैं. वचन-पत्र अन्तरराष्ट्रीय व्यापर में कम ही चलता है. पर भारत में रिज़र्व बैंक की तरफ से इसे मान्यता प्राप्त है. बैंक हीरे आयात करने के लिए नब्बे दिन के लिए वचन-पत्र जारी कर सकते हैं.

LoU की जन्मपत्री कुछ यूँ खुलती है :

उदहारण के लिए यहाँ देसी बैंक है जिसमें हीरा लाल का खाता है और दूसरा मान लीजिए हांगकांग में  फिरंगी बैंक है जहां मोती लाल का खाता है. देसी बैंक ने अपना भी एक खाता हांगकांग के फिरंगी बैंक में खोल रखा है जिसे नोस्ट्रो / Nostro खाता कहते हैं. इस खाते से दोनों बैंक आसानी से आपस में लेनदेन कर सकते हैं. देसी और फिरंगी बैंक आपस में स्विफ्ट / SWIFT के माध्यम से गुप्त भाषा में बतियाते रहते हैं. इस स्विफ्ट को आप एक एप्प मान लीजिये जो केवल बैंकों के लिए है जिसका इस्तेमाल बड़े ध्यान से और सतर्क रह कर करना पड़ता है.

हीरा लाल ने देसी बैंक से कहा की उसे हांगकांग के मोती लाल से एक करोड़ डॉलर के अन-तराशे हीरे खरीदने हैं और इसके लिए मोती लाल को डॉलर देने पड़ेंगे. फ़िलहाल हमारे पास में पैसे नहीं हैं. वहां से हीरे आ जाएं तो हम उन्हें जेवर बना के एक करोड़ चालीस लाख डॉलर में वापिस उसी को या किसी और को बेच देंगे. वहां से जब आपके पास सेल के पैसे आ जाएं तो आप अपने पैसे काट लेना और बाकी हमारे खाते में जमा कर देना.

देसी बैंक ने स्विफ्ट के माध्यम से फिरंगी बैंक को वचन-पत्र भेजा. वचन-पत्र में लिखा कि हमारे एक 'अच्छे ग्राहक' को एक करोड़ डॉलर के कच्चे हीरे चाहिए जो आपके ग्राहक मोती लाल के पास उपलब्ध हैं. हीरा लाल नब्बे दिन में पैसे वापिस कर देंगे वर्ना हम वचन देते हैं की हम लौटा देंगे.

जवाब में फिरंगी बैंक ने कहा कि पहले तो आप अपने सन्देश का सत्यापन कर दें. दूसरी बात हीरा लाल को हम नहीं जानते हम आपको जानते हैं और आपके नोस्ट्रो खाते में एक करोड़ डॉलर जमा कर देंगे. आप इस्तेमाल कर लें और नब्बे दिन में सूद समेत वापिस कर दें.

देसी बैंकर ने फिरंगी बैंक को धन्यवाद दिया और एक स्विफ्ट सन्देश भेजा कि हमारे नोस्ट्रो खाते से आप अपने खातेदार मोती लाल को एक करोड़ डॉलर की पेमेंट दे दें वो यहाँ हीरे भेज देगा. अब ये एक करोड़ डॉलर का लोन हो गया जिसे Buyer's Credit कहते हैं. पेमेंट हो गई और लीजिए साब हीरे आ भी आ गए. हीरों पर काम हुआ और अस्सी दिन में जेवर तैयार हो गए. समय से तैयार माल और साथ में एक करोड़ चालीस लाख का बिल भेज दिया गया. हांगकांग के व्यापारी मोती लाल ने फिरंगी बैंक में बिल के पूरे एक करोड़ चालीस लाख डॉलर जमा कर दिए. फिरंगी बैंक ने अपने पैसे + खर्चे काट कर देसी बैंक के नोस्ट्रो खाते में बाकी पैसे जमा कर दिए. देसी बैंक ने अपने पैसे + खर्चे काट कर बाकी पैसे हीरा लाल के खाते में जमा कर दिए और किस्सा ख़तम हुआ.

पर आज के सन्दर्भ में किस्सा कुछ और ही हो गया. इस पूरे क्रम में याने LoU जारी होने से बिक्री के पैसे आने तक बहुत से लोचे हो सकते हैं. असल कारण और घोटाले का तरीका तो रिपोर्ट आने के बाद ही पता लगेगा. पर मोटे तौर पर LoU की जन्मपत्री में राहू केतु का प्रकोप कुछ इस तरह से आ सकता है:

- स्विफ्ट को कोर बैंकिंग से जोड़ा नहीं गया जिससे की भेजे गए मेसेज कितने दिन और कितने डॉलर के थे इस बात का पता ही नहीं लगा. कई बैंकों ने स्विफ्ट को आंशिक तौर पर और कुछ ने पूरी तरह से जोड़ लिया है. अब रिज़र्व बैंक ने सभी बैंकों को कहा है की 30 अप्रैल तक स्विफ्ट को कोर बैंकिंग से पूरी तरह से जोड़ें.


- स्विफ्ट के लिए मेकर, चेकर और वेरिफाएर की ज़रुरत पड़ती है. हो सकता है ये सारे काम एक ही व्यक्ति करता रहे और कई सालों तक करता रहे. वैसे तीन साल के बाद ट्रान्सफर होना चाहिए. ये भी हो सकता है की एक ही व्यक्ति कई अफसरों के पासवर्ड इस्तेमाल करता रहा हो और LoU का सत्यापन भी करता रहा हो.

- LoU नब्बे दिन के बजाय मिलीभगत के कारण 365 दिनों का बनाया गया हो.

- देसी बैंक का खातेदार या फिर फिरंगी बैंक का खातेदार फर्जीवाड़ा कर रहे हों. या दोनों खातेदार मिले हुए हों और हीरों की जगह कंचे भेज रहे हों. या फिर माल सस्ता हो और कीमत ज्यादा बताई जा रही हो.

बहरहाल हीरे बहुत कीमती होते हैं और इसलिए इनके साथ जुड़ा है काला धन और काले धन से जुड़ा है फिल्म जगत और नेतागण तो फिर घपले और अपराध भी दूर नहीं हैं.


हीरों की चमक 



Wednesday, 21 February 2018

गौतम बुद्ध का सन्यास

गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसापूर्व शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वन में हुआ. उनके पिता राजा शुद्धोधन थे और माँ का नाम माया था. माँ का निधन बेटे के जन्म के सात दिन बाद ही हो गया था इसलिए पालन पोषण मौसी महाप्रजावती (जो राजा शुद्धोधन की दूसरी रानी थी) ने किया. जन्म के समय उनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था. सिद्धार्थ के जन्म के बाद राज्य के 8 प्रमुख ब्राह्मणों ने राजा से कहा कि ये बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या फिर महाज्ञानी संत. राजा की इच्छा थी की राजकुमार सिद्धार्थ आगे चल कर सम्राट बने इसलिए भविष्य में राज्य का कार्यभार सँभालने के लिए उन्हें युद्ध विद्या, हथियारों और धर्म ग्रंथों की शिक्षा दी गई. राजकुमार के लिए हर तरह की सुख सुविधा और विलासिता के प्रयोजन किये गए. 18 बरस में उनका विवाह यशोधरा से हुआ जिनकी उम्र 16 साल थी. बाद में जब पुत्र राहुल का जन्म हुआ सिद्धार्थ 28 वर्ष के थे.

राजा शुद्धोधन चाहते थे की सिद्धार्थ राजकाज चलाए और महल छोड़ कर संत न बन जाए. इसलिए राजा ने सिद्धार्थ के लिए तीन सुंदर महलों का निर्माण कराया जहाँ वे तीन अलग अलग मौसमों में रहते थे. उनकी सेवा में कोई भी बूढ़ा सेवक या बूढ़ी सेविका नहीं रखी जाती थी. सभी तरह की सुख सुविधाएं और मनोरंजन के साधन महल में ही मुहैय्या करा दिए जाते थे ताकि बाहर जाने की आवश्यकता ना पड़े. उनके पीछे एक सेवक हमेशा एक छत्र लेकर चलता था ताकि उन पर धूप या बारिश ना गिरे. पर फिर भी राजकुमार सिद्धार्थ ने एक दिन महल और परिवार त्याग दिया.

ऐसा क्यों किया एक राजकुमार ने?

एक दिन महल से बाहर राजकुमार सिद्धार्थ घूमने निकले तो उन्हें पहली बार एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई पड़ा. उसके दांत नहीं थे, बाल उड़ चुके थे और चेहरे पर झुर्रियां पड़ी हुई थी और वो लाठी लेकर चल रहा था. उन्हें लगा कि क्या मैं भी ऐसा ही हो जाऊँगा?
दूसरी बार जब राजकुमार बाहर निकले तो एक रोगी देखा. चेहरा पीला पड़ा हुआ, साँस मुश्किल से आ रही थी और चला भी नहीं जा रहा था. राजकुमार सिद्धार्थ ने सोचा क्या ऐसा सभी के साथ होता है? ऐसा क्यूँ होता है?
तीसरी बार महल से बाहर निकलने पर राजकुमार ने पहली बार एक अर्थी देखी जिसके पीछे पीछे परिजन रोते बिलखते जा रहे थे. राजकुमार सोच में पड़ गए कि क्या राजा और रंक सभी मर जाते हैं? चारों ओर दुःख फैला हुआ है और मैं विलासिता में रह रहा हूँ?
चौथी बार महल से बाहर निकले तो कमंडल लिए हुए एक प्रसन्न साधु देखा. उनके मन में विचार आया कि इस साधु की तरह से स्वतंत्र रहना कितना अच्छा है!

इन घटनाओं की देख कर सिद्धार्थ का मन बैचैन रहने लगा था. एक दिन उन्होंने रात के समय रथ निकलवाया और जंगल की ओर प्रस्थान कर दिया. जंगल के सिरे पर सिद्धार्थ ने बाल काट दिए, राजसी गहने कपड़े उतार कर चन्ना रथवान को दे दिए और उसे वापिस भेज दिया. एक कमंडल और तीन वस्त्रों में जीवन के रहस्य की खोज में निकल पड़े. उस समय उनकी उम्र 29 साल की थी.

सत्य की खोज में 


Sunday, 18 February 2018

ओसियां माता मंदिर, राजस्थान

जोधपुर से लगभग साठ किमी दूर एक जगह है ओसियां. आजकल यह एक तहसील है और वैसे थार रेगिस्तान का बहुत ही पुराना व्यापारिक और धार्मिक केंद्र रहा है. यहाँ शैव, वैष्णव और जैन मंदिर एक साथ ही बने हैं. पहाड़ी पर बने सच्चियाय माता का प्राचीन मंदिर है. सच्चियाय माता का दूसरा नाम साची या सचिया माता भी है और समाज के सभी वर्गों में इनकी मान्यता है. जोधपुर जिले का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है. यहाँ महिषासुर मर्दिनी, शिव, विष्णु, कृष्ण, अर्धनारीश्वर आदि की  सुंदर मूर्तियाँ हैं. मंदिर की लाल पत्थर वाली दीवारों पर खुबसूरत काम है. जालियां और छतों पर कमाल की कारीगरी है.

जैन मुनि श्रीमद् विजय रत्नप्रभा सुरी जी के कथानुसार चामुंडा देवी का दूसरा नाम सच्चियाय माता ही था. कहा जाता है की उनके कारण ही राजा उत्पल देव ( उपल देव ) ने जैन धर्म स्वीकार कर लिया और बलि प्रथा समाप्त हो गई. राजा उत्पल देव ने (सन 900 - 950) स्थान का काफी सुधार किया और यहाँ सौ से ज्यादा जैन मंदिरों की स्थापना हुई जिनमें से कुछ ही बचे हैं. उस समय इस स्थान का नाम उपकेसपुर था.

मंदिर सुबह पांच बजे से शाम आठ बजे तक खुला रहता है. मंदिर में मिठाई, कुमकुम, केसर धुप और चन्दन का प्रसाद चढ़ता है जो वहीँ मिल जाता है. पार्किंग की व्यवस्था है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:


मुख्य शिखर 

हर इंच पर कारीगरी 

पत्थर पर सुंदर काम  

बीच बीच में बैरिकेड लगाकर सुन्दरता घट गई है 

सुंदर जाली और नक्काशी 

सुंदर जाली और नक्काशी 
चामुण्डा देवी को समर्पित 

प्रवेश के लिए सीढ़ियाँ और आठ सुंदर तोरण 

सजीव मूर्तियाँ 

जगती या चबूतरे की नक्काशी 

इन मूर्तियों के कारण थार का खजुराहो भी कहा जाता है 

सुंदर द्वार 

राजा रानी 

महिषासुरमर्दिनी 

कमाल की मुस्कराहट 

कहानी कहते पत्थर 

अर्धनरनारीश्वर 




Wednesday, 14 February 2018

लंच के बाद आना

साउथ अफ्रीका के साथ एक दिवसीय मैच चल रहा था. भारत को जीतने के लिए दो रन चाहिए थे पर अंपायर ने 45 मिनट का लंच ब्रेक कर दिया. लंच ब्रेक के बाद जब खिलाड़ी वापिस आए तब तक अधिकाँश दर्शक जा चुके थे. भारत ने दो रन बना कर मैच जीत लिया और किस्सा खत्म हो गया. इस किस्से पर वीरेंदर सहवाग ने एक ट्वीट किया:
Umpires treating Indian batsmen like PSU Bank treat customers. Lunch ke baad aana 2:25 AM - 4 Feb 2018

अंपायर के लंच डिक्लेअर करने को सरकारी बैंक से मिला कर ट्वीट करना अजीब सा लगा. किरकिट हो या बैंक सबके अपने अपने नियम हैं. खेल या दफ्तर कितने बजे शुरू होगा, कब लंच होगा और कब कार्यकाल समाप्त होगा ये सब संस्था की काली किताब में लिख दिया जाता है और उसी पर कारवाई होती है. अब दो रन बचे हों तो लंच ना किया जाए या फिर काली किताब के कानून पर चला जाए ? इसका फैसला अंपायर ही तो करेगा ? और अगर अंपायर लंच करने को कहता है तो वैसा ही होगा. और इसका अर्थ होगा कि अंपायर ने नियम का पालन किया. पर इस लंच ब्रेक पर बात पर ज्यादातर टिप्पणियाँ ऐसी ही हुई -
- Is not this funny?
- क्या मज़ाक किया अंपायर ने!
- दो रन के लिए 45 मिनट का ब्रेक - पागल ?
अब अपने यहाँ तो नियम कानून का पालन करना कम ही प्रचलित है. उसके बजाए नियम का ना पालन करना, खिल्ली उड़ाना या फिर फिर कटाक्ष करना आम बात है. तो अगर नजफगढ़ के नवाब ने भी अंपायर की खिल्ली उड़ाई तो कोई नई बात नहीं है. बस साथ में सरकारी बैंक भी घसीट लिए ये घटिया बात की. दोनों में  क्या संबंध था? कही खेत की और सुनी खलिहान की!

अपनी 39 साल की सर्विस में ऐसा मौका नहीं आया कि दो बजे तक कस्टमर अंदर आ गया हो और उसका काम ना हुआ हो. और अब तो दो बजे वाला ब्रेक ही ख़तम हो गया. पता नहीं सहवाग को कैसे प्रोब्लम हुई. और अगर अंपायर ने या बैंकर्स ने समय से जीम लिया तो कोई हर्ज भी ना है भाई. ये बात जरूर समझ में आती है की सरकारी बैंक पंजाब नेशनल बैंक ने विराट कोहली को अपना ट्रेड मार्क राजदूत बना दिया और सहवाग को नहीं! वरना सहवाग के खाते में चार पांच करोड़ आ जाने थे. कहीं ये कारण तो नहीं था खिल्ली उड़ाने का ? जहां तक याद आता है राहुल द्रविड़ भी किसी सरकारी बैंक के ट्रेड मार्क राजदूत बने हुए थे.

सरकारी बैंकों पर तंज कसने वालों में प्रधान मंत्री मोदी भी हैं. जनवरी 2015 में बैंकर्स का 'ज्ञान संगम' हुआ जिसमें प्र. मं. ने कहा - लेज़ी बैंकर्स! अखबार में कुछ यूँ छपा था -

Calling for an end to ‘lazy banking’, Prime Minister on Saturday said he is against any political interference in functioning of banks, but supports necessary ‘intervention’ in public interest.

क्या सोच कर प्र. मं. ने बैंकर्स को आलसी बताया समझ नहीं आया. वैसे हर सरकारी पैसे खर्च करने वाली प्लान सरकारी बैंकों के माध्यम से ही होती है. इसके अलावा चाहे ज़ीरो बैलेंस के खाते हों, सब्सिडी बंटनी हो, टैक्स जमा करने हों या फिर पेंशन देनी हो सरकारी बैंकों के माध्यम से ही होता है. बैंक में किसी कर्मचारी या अधिकारी को कभी सोते नहीं देखा जबकि इसका उलट जरूर देखा है. मतलब की जिन दिनों क्लोजिंग हो या ऑडिट हो या बैलेंस शीट बननी हो बैंकर्स को 10-11 बजे रात तक काम करते देखा है. और सब छोड़िये सर जी नोटबंदी में ही देखा होगा बैंकर्स की क्या हालत हुई थी. पर साब अपनी शिकायत के अफ़साने को किसे सुनाएं . इसे यहीं ख़त्म करते हैं किसी अज्ञात शायर के लफ़्ज़ों के साथ:
एक उम्र से यही रवायत रही है,
कुसूरवारों को बेकसूरों से शिकायत रही है !


नोट बंदी के दौरान 

Sunday, 11 February 2018

सेंट फिलोमेना चर्च, मैसूर

मैसूर एक सुंदर शहर है जिसका नाम अब मैसूरू हो गया है. मैसूरू शहर के बीच एक सुंदर चर्च है संत फिलोमेना चर्च. इस चर्च का पूरा नाम 'संत जोसेफ़ और संत फिलोमेना कैथेड्रल'  Cathedral of St. Joseph and St. Philomena है.

यह चर्च एशिया में दूसरा सबसे बड़ा चर्च माना जाता है. इस चर्च की नींव मैसूर के महाराजा ने 28 अक्टूबर 1933 को रखी थी. फ़्रांसिसी वास्तुकार डेली ने इस चर्च का डिजाईन नियो गोथिक शैली में तैयार किया. इस डिजाईन का आधार था जर्मनी के शहर कोलोन का कोलोन कैथेड्रल. हॉल में 800 लोगों के बैठने का इन्तेजाम है. खिड़कियों में रंगीन शीशे लगे हुए हैं जिन पर जीसस क्राइस्ट की जीवनी में से कुछ दृश्य अंकित हैं. अंदर सुंदर मूर्तियाँ हैं और कुछ की वेशभूषा स्थानीय यानि भारतीय है. 

लश्कर मोहल्ला, अशोका रोड पर स्थित ये चर्च सुबह पांच बजे से शाम छे बजे तक खुला है और कोई टिकट नहीं है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो: 

ये दो मीनारें 175 फुट ऊँची हैं 

बड़ी और ऊँची खिडकियों में रंगीन शीशे हैं 

पत्थरों का सुंदर उपयोग 

शिलालेख

ऊँचे ऊँचे दरवाज़े 

फ्लोर प्लान देखा जाए तो एक क्रॉस की तरह है 

नियो गोथिक शैली 

मुख्य चर्च के पीछे ऐसे दो स्मारक हैं 

सैलानी 



Wednesday, 7 February 2018

नवग्रह वृक्ष

ग्रहों और वृक्षों में क्या नाता है ये ना तो मालूम था ना ही कभी जानने की कोशिश की. वृक्ष तो चाहे जैसे भी हों फायदे वाले ही होते हैं. ग्रह की जानकारी तो अखबारी भविष्य फल पढ़ पढ़ कर आ गई थी की नवग्रह होते हैं :
1. सूर्य, 2. चन्द्र, 3. मंगल, 4. बुध, 5. गुरु, 6. शुक्र, 7. शनि, 8. राहू और 9. केतु.

पिछले दिनों मेरठ बाईपास पर सुभारती मेडिकल कॉलेज जाने का मौका मिला. वहां कार पार्किंग में नवग्रह वृक्ष का बोर्ड लगा हुआ था जिस पर नौं पेड़ों के नाम लिखे हुए थे. इनमें से छे तो पहचाने हुए थे पर शमी, पिलखन और लटजीरा का पता नहीं था. आस पास माली या कोई ऐसा व्यक्ति नहीं था जो इनके बारे में बता सके और  पेड़ों पर नाम के बोर्ड भी नहीं लगे थे. खैर इन तीनों को अंदाज़े से ही पहचाना जैसे पिलखन के तने का रंग पीलापन लिए हुए है, लटजीरा के पत्ते बहुत महीन और लटों में हैं और शमी जो कुछ कुछ जामुन की तरह लगा. इस विषय पर इन्टरनेट पर खोज करने की कोशिश की पर पेड़ों के बारे में अलग अलग जवाब मिले. लगता है कि इनका याने नवगृह और उनसे सम्बंधित वृक्षों का कोई मानकीकरण नहीं है इसलिए अलग अलग साईट पर कुछ नाम अलग हैं कुछ कॉमन हैं. बहरहाल नवग्रह पेड़ों की फोटो यहाँ प्रस्तुत है:

नवगृह वृक्ष 

1. शमी 

2. पीपल 

3. बरगद 
4. गूलर

5. हर सिंगार 
6. बेल पत्र

7. अर्जुन 

8. पिलखन 

9. लटजीरा 






Sunday, 4 February 2018

न्यूज़ीलैण्ड यात्रा - झील और झरने

न्यूज़ीलैण्ड दो बड़े द्वीपों में बटा हुआ है - साउथ आइलैंड और नार्थ आइलैंड. दक्षिणी द्वीप में जनसँख्या कम है और ज्यादातर पहाड़, झीलें और फियोर्ड ( fjord / fiord ) हैं. फियोर्ड के अनुवाद के लिए हिंदी में कोई शब्द नहीं है और इंगलिश में इसका मतलब है - a long narrow inlet of the sea between steep cliffs. नीचे दिए नक़्शे में देखिये तस्मान सागर संकरे रस्ते से अंदर की ओर जा रहा है. 

दक्षिणी द्वीप की सबसे बड़ी झील 'ते अनो' याने Lake Te Aneu है. साथ ही यहाँ 'ते अनो' नाम की एक बस्ती या कहिये कस्बा भी है जिसकी आबादी 2000 से कम है. वैसे हम लोग इतनी कम आबादी वाली जगह को तो कुछ समझते ही नहीं पर यहाँ 4000 से ज्यादा टूरिस्ट के रहने का इंतज़ाम है जो यहाँ की ज्यादातर कमाई का साधन है. प्रकृति के साथ किसी को भी तरह की छेड़छाड़ नहीं करने दी गई है. जैसी सुन्दरता थी वैसी ही कायम है. चाय पकौड़े के खोखे या ढाबे नहीं बनने दिए गए हैं और ना ही कोई धार्मिक स्थल.

हम अपना किराए का Carvan लेकर ते अनो होते हुए एक फियोर्ड पर भी पहुंचे जिसका नाम था मिलफोर्ड साउंड - Milford Sound. इसका स्थानीय माओरी भाषा में नाम है पियोपियोताही - Piopiotahi. असल में पियोपियो एक चिड़िया का नाम है जो अब लुप्त हो चुकी है. इस फियोर्ड - मिल्फोर्ड साउंड का एक सिरा तस्मान सागर में मिलता है. यहाँ बहुत सी नीली और ग्रे बत्तखें देखने को मिलती हैं. जमीनी स्तनधारी जानवर नहीं के बराबर हैं. झील में पेंगुइन, मछलियाँ, डॉलफिन और सील वगैरा हैं.

वैसे तो सारा देश ही सुंदर है पर दक्षिणी द्वीप के कुदरती नज़ारे बेमिसाल हैं. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :

झील या फियोर्ड 

सफ़ेद बर्फ , काले पहाड़ और हरा जंगल 

स्वच्छ निर्मल जल 

ते अनो और मिल्फोर्ड साउंड 

कीया - तोता परिवार का सदस्य है. भारी भरकम हैं उड़ते कम हैं  

Kea ( Nestor Notabilis )

मेहमान आये हैं 

yours truly

फियोर्ड की सैर के लिए तैयार 

छोटे बड़े झरने

बहुत सारे झरने और फॉल हैं यहाँ 

पानी और सैलानी 

बोटिंग 

चट्टान पर सील धूप का आनंद ले रही हैं 

फियोर्ड का हाईवे  

हमारा चलता फिरता 1 BHK 


- मुकुल वर्धन की प्रस्तुति  *** Contributed by Mukul Wardhan