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Wednesday, 31 January 2018

चेयरमैन

बैंक की ओर गाड़ी चल पड़ी और पिछली सीट पर बैठे चंद्रा साब ने अखबार उठा लिया. पर उठा कर अनमने मन से वापिस रख दिया. कई तरह के विचार मन में दौड़ रहे थे. इंटरव्यू अच्छा हुआ था. सिफारिश भी पहुँच गई थी और चांसेस 50:50 लग रहे थे. बस आज या कल की बात थी लाटरी खुलने में. आधे घंटे का रास्ता था घर से बैंक का और रास्ते में जितने भी मंदिर, गुरद्वारे, पीर नज़र आये सबको मन ही मन नमस्कार करते जा रहे थे. क्या पता किसका आशीर्वाद काम कर जाए.

लिफ्ट लेकर कब अपने केबिन में पहुँच गए ये ध्यान ही नहीं रहा. स्टेनो ने 'गुड मोर्निंग सर' बोला तो जवाब में मुंडी हिला दी. केबिन में बड़े टेबल पर शीशा बिछा हुआ था. शीशे के नीचे रखी एक छोटी सी मंदिर की तस्वीर थी उसे तीन बार नमस्कार किया और सिंहासन पर बिराजमान हो गए. स्टेनो को चाय भिजवाने को बोला और फाइलों में से एक उठा ली. किसी कंपनी का लोन था और उसे तीन महीने के लिए ओवरड्राफ्ट चाहिये था. साले ने माँगा भी तो क्या माँगा कहकर दस्तखत किये और चेयरमैन की तरफ भेज दी. दूसरी फाइल देखनी शुरू कर दी तब तक चाय आ गई. चाय का एक सिप लिया तो तब तक मोबाइल बज गया, कोई नया नंबर था.
- हेल्लो
- चंद्रा साब?
- जी.
- वित्त मंत्रालय से मंत्री जी का पी ए बोल रहा हूँ.
- जी जी. आदेश करें. ( मन में ठंडी हवा का झोंका सा आया. मुस्कराहट एक कान से दूसरे कान तक फ़ैल गई. बाएँ हाथ में मोबाइल था दाहिने हाथ से मंदिर को फिर से तीन बार नमस्कार किया. पेंसिल हाथ में उठा ली और छोटा पैड पास में सरका लिया शायद कुछ लिखना न पड़ जाए ).
- मंत्री जी ने याद किया है आप पौने बारह बजे आ जाएं. ठीक है सर?
- ठीक है जी. बहुत बहुत धन्यवाद.

चंद्रा साब के मन में उल्लास भर गया. सिर झुका कर मंदिर को फिर से तीन बार नमस्कार किया. दो मिनट का मौन रख कर हालात के जायज़ा लिया. बैंक के बारे में मंत्री जी कुछ पूछ लें इसकी भी मन ही मन तैयारी कर ली. आगे के लिए कहाँ भेजा जाएगा उसका जवाब भी तैयार कर लिया. फिलहाल जाने से पहले फूलों का एक बुक्के तो ले ही जाता हूँ एक कोई गिफ्ट? क्या गिफ्ट? टाइम भी नहीं है बाज़ार जाने का. हाँ गोल्डन पेन कनाट प्लेस में मिल जाएगा. चलो फिलहाल यही सही. अब पहले प्रीति को बताऊँ?
- हेल्लो प्रीति लगता है काम बन गया. किसी से अभी जिकर नहीं करना. अभी मंत्री जी ने बुलाया है मैं मिलने जा रहा हूँ. बाय.
सीट छोड़ चंद्रा साब बाहर निकले और सीधा चेयरमैन के केबिन में घुस गए. हाथ जोड़ कर साष्टांग दण्डवत की और आशीर्वाद माँगा.
- अच्छा अच्छा तो काम बन गया लगता है. ठीक है वहां से वापिस आओ तभी कुछ पार्टी शार्टी करते हैं. गुड लक.

स्टेनो को बोला गाड़ी बुलवा लो जाना है. कनाट प्लेस से गोल्डन पेन का एक सेट लिया और एक छोटा बुक्के बनवाया. ठीक टाइम से मंत्री जी के दफ्तर में हाजिरी लगा दी. पौने बारह दरवाजा खोला और मंत्री जी के घुटनों में हाथ लगाया, गुलदस्ता दिया और पेन सेट टेबल पर रख दिया. मंत्री जी ने देखा भी नहीं.
- अरे चंद्रा तुम्हारे काम के बारे में सुना है ठीक है. मैंने सोचा प्रोमोट कर के और काम लाद दिया जाए.
- हें हें हें सर जैसा भी आदेश करें सर हम तो तैयार हैं.
- मेरे से कोई बात कहनी हो या मैंने कुछ कहना होगा तो मैं सतीश को बता दूंगा. उसका मोबाइल नोट कर लो एकाध दिन में तुमसे मिल लेगा. पब्लिक में मंत्रालय के काम की तारीफ़ करते रहना और देखना कोई हड़ताल वगैरा ना होने देना. चिठ्ठी तुम्हें ये लोग तुम्हारे ऑफिस फैक्स वैक्स कर देंगे. जाओ.
- जी सर, जी सर. चन्द्रा साब ने तुरंत साष्टांग कर दिया और बाहर आ गए. पी ए को नमस्कार किया हाथ मिलाया. पी ए ने बधाई दी और बोला,
- बधाई हो चंद्रा साब मेट्रो बैंक के मालिक हो गए आप. हमारा भी ख़याल रखियेगा.
- हें हें हें. आपकी मेहरबानी है जी. लैटर तो शाम तक भेज ही देंगे?
- लैटर तो तैयार है सर. आप एक कप चाय लो हमारे साथ तब तक फैक्स और मेल आपके पुराने बैंक, नए बैंक और दूसरे विभागों में अभी कराता हूँ. आप भी जाने से पहले बैंकिंग विभाग में मिलकर जाइए. कुछ ब्रीफिंग करेंगे.
- बिलकुल ठीक मैं सचिव साब को फ़ोन कर लूँगा फिलहाल ऑफिशियल कारवाई हो जाने दीजिये. और अभी तो आप चाय मंगा रहे हैं तो पी कर ही जाऊँगा.

वापसी में पहला काम तो ये नोट कर लिया कि पी ए के घर मिठाई भेजनी है दूसरे प्रीति को कह दिया की मुम्बई की तैयारी कर ले. अगला फोन अपने चेयरमैन को मिलाया,
- हेल्लो सर!
- हाँ भई चंद्रा चेयरमैन मुम्बई जा रहे हो! मुबारक. फैक्स आ गया है आपका और आप भी आ जाओ तो पार्टी करते हैं.
पार्टियों का तो तांता ही लग गया. जैसे जैसे खबर फैली पुराने नए बैंकर साथियों, दोस्तों और रिश्तेदारों के लगातार फोन और मेसेज आने लग गए. यूनियन के और अफसरों के नेता भी मिलने आ गए.
- आपका तो काम होना ही था सर!
- बिलकुल सर पर हम आपको मिस करेंगे सर.
- आपके साथ तो दिल खोल के बात कर लेते थे.
- मेहनती ऑफिसर हो सर आप. याद करेंगे आपको.
- गुड लक सर.
बैंकिंग विभाग में मुलाकात कर ली. बहुत सी बातें पता लगीं और साथ साथ ही अपनी रणनीति तैयार करने लगे.

चंद्रा साब ने हें हें हें करके पार्टियों में मिले गिफ्ट समेटे और सबका धन्यवाद किया. नए बैंक के जनरल मेनेजरों के भी फोन आये. चन्द्र साब ने उनसे पिछले साल की बैलेंस शीट मंगवा ली ताकि जाने से पहले हालात समझ लें. कुछ ब्रीफिंग बैंकिंग विभाग में हो गई थी. उन्हें फैक्स करवा दिया की सोमवार को ज्वाइन करेंगे. पांच सितारे में कमरा बुक हो गया, गाड़ी बुक हो गई. इधर सामान भी बुक हो गया. और सोमवार से चंद्रा साब मेट्रो बैंक के नए चेयरमैन बन गए.

चेयरमैन के लिए गुलदस्ता



   

Sunday, 28 January 2018

न्यूज़ीलैण्ड यात्रा - मोराकी बोल्डर्स

नाश्ते के बाद अपना कारवां लेकर खरामा खरामा समन्दर के किनारे चल दिए. खिली धूप में पहाड़ और झील के दृश्य बहुत ही सुंदर लगते हैं. कारवां पहुंचा हेम्पडेन और उसके आगे था मोराकी. गूगल बाबा ने सूचना दी कि मोएराकी बोल्डर वाला बीच आगे है और देखा जा सकता है. अब इस नाम को इंग्लिश में तो यूँ लिखते हैं - Moeraki हिंदी में आप मोराकी या मोएराकी कह सकते हैं.

ये बोल्डर या चट्टानें भी कुदरत का एक करिश्मा हैं. बड़े बड़े गोल मटोल फुटबॉल की तरह बीच पर फैले हुए अजीब से ही लगते हैं. कुछ छोटे, कुछ बड़े, कुछ रेत में आधे दबे हुए और कुछ टुकड़े टुकड़े होकर बिखरे हुए.
यहाँ इन पर काफी रिसर्च हुई जिसमें ये पाया गया की ये बारीक चिकनी मिट्टी और बहुत महीन खनिज वाली रेत से बने हुए हैं. इनको केल्साइट ने आपस में सीमेंट की तरह जोड़ दिया है. इनकी बनावट दस लाख साल से भी पहले की है. ये पूरे कोएकोह तट पर दूर दूर तक बिखरे हुए हैं. जैसे जैसे पानी से मिट्टी कटती है ये ऊपर निकलते आते हैं.

दुनिया के 10 रहस्यमय स्थानों में से एक ये भी है.

यहाँ इन बोल्डर्स को नुक्सान पहुंचाना या इन पर लिखना मना है. ये तो हमें ठीक नहीं लगा. अरे यार कम से कम हम हिन्दुस्तानियों को 'आई लव यू' और दिल में तीर का निशान बनाने की इजाज़त तो मिलनी चाहिए थी. हम तो यहाँ ढाबा या चाय पकौड़े का खोखा बनाने को भी तैयार हैं !

अपना कारवां पार्क किया और घूमने निकल गए. तट से दूर जहां किनारा कटा फटा और गहरा है वहां इन पत्थर की फुटबॉल के अलावा पेंगुइन और सील भी नज़र आयीं. पर काफी दूर थीं. कुछ फोटो :

ये हैं गोल बोल्डर. बहुत बढ़िया गोल मटोल फुटबॉल बनी हुई हैं  

नज़दीक से देखिये 

बीच बीच में एकाध फुटबॉल पिचकी हुई है, दबी हुई है या खुल गई है 

कुदरती गेंदें. कहा जाता है की दो साल पहले इनकी संख्या बहुत ज्यादा थी  

मोराकी बोल्डर्स बीच 

बहुत बड़े इलाके में फैली हुई हैं ये गेंदें. अब इन चट्टानों पर लिखना या तोड़ना या ले जाना गैर कानूनी है  

लगातार खारे पानी  लगने से और धूप से चटकने लग गईं हैं बोल्डर 

छोटे-बड़े, आधे-अधूरे  और टूटे फूटे बोल्डर 

बोल्डर और बोल्ड-मैन

दोनों लाल लाइनों के ऊपर गौर से देखें 'सील' दिखाई पड़ेंगी . धूप सेक रही हैं 

लाल लाइन के ऊपर दो पेंगुइन हैं - सफ़ेद वाली खड़ी है और ग्रे कलर में दूसरी उसके सामने लेटी हुई है 

नाश्ते की तलाश

सुनहरी सुबह 

अपना चलता फिरता 1 bhk 




Wednesday, 24 January 2018

स्वभाव

ऑपरेशन थिएटर ले जाते हुए तीन चार मिनट लगे होंगे परन्तु इस दौरान चंद्रा साब के आँखों के आगे अपने जीवन का सारा विडियो घूम गया. बचपन, जवानी और उसके बाद का समय. चंद्रा साब कब बूढ़े हुए ? अभी तो जवान ही हैं और ये ऑपरेशन तो बस छोटा सा ही तो है, फिर से ऑफिस जाना है अभी दो साल और बतौर रीजनल मैनेजर रहना है. क्या पता इस दौरान एक और प्रमोशन भी हो जाए और पेंशन बढ़ी हुई मिले आगे ज़िन्दगी अच्छी चल जाएगी. मिलनी भी चाहिए क्या नहीं किया मैंने इस बैंक के लिए ? कितना बिज़नस बढ़ाया है मैंने इस रीजन का ? और परिवार को भी तो आगे ले आया. दोस्तों और रिश्तेदारी में इतनी धाक है किसी की ? घर में चंद्रा साब का अंदाज़ कुछ यूँ था कि मैं ही ठीक हूँ और तुम दोनों तो किसी काम के नहीं. पर पत्नी और बेटा सुनकर दाएं बाएँ हो जाते थे ताकि घर में शांति बनी रहे.

तब तक डॉक्टर ने इंजेक्शन ठोक दिया और फिर पूछा,
- कैसा फील कर रहे हैं चंद्रा साब ?
- आपका आशीर्वाद रहना...
जवाब देते देते चन्द्र जी बेहोश हो गए और डॉक्टर अपने काम पर लग गए. ऑपरेशन ठीक हो गया और चंद्रा साब स्ट्रेचर पर लेटे हुए बाहर निकले और आई सी यू में आ गए. परिवार जनों ने दूर से देख लिया. चेहरे का रंग हल्का पड़ गया था और अभी बेहोश थे. डॉक्टर के अनुसार दो घंटे बाद बात कर पाएंगे.

पहले तो उन्हें इच्छा हुई पानी पीने की पर हाथ हिल नहीं रहे थे. बड़ी कोशिश के बाद जीभ सूखे होटों पर फेरी. एकदम से उन्हें लगा की माला पानी का गिलास लेकर खड़ी है पर दूसरे ही क्षण सब कुछ गुल हो गया अँधेरा सा हो गया. कुछ मिनटों बाद हलकी सी हाय निकली और दाहिने हाथ में हरकत हुई. लगा की कुछ बोलना चाहते हैं पर फिर शांत हो गए. बेहोशी फिर हल्की हुई तो उन्हें अपनी पत्नी माला धुंधली सी नज़र आई. कुछ घबराई हुई उन पर झुक रही थी. माला पर प्यार का एक झोंका आया तो हाथ बढ़ाने की कोशिश की पर माला गायब हो गई. चंद्रा साब को लगा कि लाइट चली गयी शायद.

कुछ मिनटों बाद फिर से उन्होंने सूखे हुए होंटों से तीन चार बार जीभ लगाकर पानी पीने की कोशिश की पर कोशिश बेकार गई और अँधेरा छा गया. इस बार माला को आवाज़ दी की पानी पिला दो. होंट तो फड़के पर आवाज़ बाहर नहीं आई. अँधेरे उजाले में चंद्रा साब हिचकोले खा रहे थे. लाचारी उन्हें पसंद नहीं थी. रोब से काम करवाना पसंद था. मैं जो कह दूं वो तो होना ही चाहिए. ना का क्या मतलब. पर उतरे हुए कपड़े और दवाइयों की महक से अपने को असहाय महसूस कर रहे थे. बिस्तर से कूद कर अस्पताल से बाहर पार्क में भागने का मन हो रहा था. कुछ क्षणों के लिए घर में बना मंदिर याद आ गया. एक बार अपने ऑफिस की बड़ी सी टेबल नज़र आई पर उस पर हाथ नहीं रख पा रहे थे. बबलू की तेज़ भागती मोटर साइकिल नज़र आई तो उन्होंने हाथ उठाकर रोकने की कोशिश की पर नाकाम रहे.

धीरे धीरे होश में आ गए. छुट्टी मिली तो घर आ गए. घर में रेस्ट किया और माला - बबलू की सेवा का आनंद लेते रहे. दोनों के गौर से देखते तो सोचने लगते की दोनों कितने अच्छे हैं. मन में विचार आये की कम से कम इन दोनों से तो ढंग से बोल लिया करूँ. अब इन्हें नहीं डांटना है. दोनों ने बहुत सेवा की है. पर ये शब्द जबान पर नहीं आए और माँ बेटे से दूरी घटी नहीं. ऑफिस के लोग भी हालचाल पूछते रहे हैं. उन्होंने सोचा अब ऑफिस में भी ज़रा नरमी बरतनी है.

कुछ दिनों बाद चंद्रा साब ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया. फाइलें फिर से चालू हो गईं. दस बारह दिनों में काम नार्मल होने लग गया. अब फिर से स्टाफ को डांट पड़ने लगी. स्टाफ के हिस्से की डांट कभी कभी घर में माला को पड़ जाती और कभी बेटे को. घरेेेलू मसलों की डांट फटकार यदा कदा ऑफिस तक भी पहुँचने लग गई.

चंद्रा साब का अहंकार और गुस्सा धीरे धीरे फिर से वापिस आ गया अब वो नार्मल हो गए.

जीवन प्रवाह 


Sunday, 21 January 2018

न्यूज़ीलैण्ड यात्रा - झीलें

पहले दिन कारवां चलाने में थोड़ी दिक्कत ही रही. एक तो गाड़ी बड़ी और भारी थी दूसरे ऑटो गियर का अभ्यास नहीं था. ऑटो गियर को समझने में भी थोड़ा समय लगा. शहर के बाहर की सड़कों पर ट्रैफिक बहुत कम था इसलिए थोड़ी स्पीड बढ़ाई. स्पीड बढ़ाने से कारवाँ थोड़ा बहुत दाएं बाएँ झूलने लगा ! ओ तेरे की ! तेरा क्या होगा कारवाँ ? यही फैसला किया कि स्पीड 50 - 60 के आस पास या कम रखी जाए. मोड़ काटने में स्पीड और भी कम और सावधानी और ज्यादा रखनी पड़ी.

न्यूज़ीलैण्ड के साउथ आइलैंड का नाम माओरी भाषा में ते वाइपोनामु है. इस द्वीप में झीलें बहुत हैं. छोटी झील, बड़ी झील, चौड़ी झील, लम्बी झील, गहरी झील जिसमें छोटे जहाज़ भी चल जाएं. याने पानी ज्यादा और जमीन कम! बहारहाल जमीन पर सड़कें अच्छी हैं और रख रखाव भी अच्छा है. पर पहाड़ी इलाका होने के कारण सड़कों की चौड़ाई कम है याने सिर्फ़ दो लेन. सड़क के बीच सफ़ेद लाइन लगाकर दो लेन बना दी हैं बस. ओवरटेकिंग मना है लोग करते भी नहीं. वैसे भी हमने तो ओवरटेकिंग क्या करनी थी. वैसे हर दो चार किमी दूरी पर ओवर टेकिंग के लिए जगह बनी हुई है. इसके लिए सड़क पर निशान लगे हुए थे और किनारे पर बोर्ड भी थे जहां गाड़ी भगा कर आगे निकल सकते थे. यहाँ की ड्राइविंग में ख़तरा चालान का था क्यूंकि यहाँ जुर्माने मोटे होते हैं और वो भी डॉलर्स में. और यहाँ आपके भतीजे के दोस्त के क्लास फेल्लो के बाप को जो मंत्री है, ना कोई जानता है और ना ही परवाह करता है.

शाम को झील किनारे एक सरकारी पार्किंग में गाड़ी लगा दी. दालों के कुछ पैकेट ले गए थे. दाल बनाई, आमलेट बनाया, ब्रेड सेकी और बियर की बोतल खोल ली. बाकी सब कुछ तो महंगा है पर बियर सस्ती है. कैरोना दिल्ली में 200+ की है और यहाँ 100 की ! रात यहाँ ठंडी हैं जैसा की फोटो से अंदाज़ा लगा सकते हैं. बाहर ठण्ड में क्या जाना इसलिए गुड नाईट कर दी. सुबह गजब के नज़ारे देखने को मिले :

सुबह हो गई चलो नाश्ता ढूंढें 

झील किनारे 


मापूरिका झील 3 किमी लम्बी, 2 किमी चौड़ी और 4 मीटर गहरी है पर शांत है 

एक दिन का लाइसेंस लेकर मछली पकड़ी जा सकती हैं पर शर्तें लागू हैं और सख्ती से लागू होती हैं  


झील और सैलानी

झील का एक सुंदर दृश्य

सुबह का चिड़िया स्नान - लेक पीयर्सन में.यहाँ काफी रंग बिरंगे पक्षी दिखे. एक बात और है यहाँ  इन पक्षियों को मारने वाले परभक्षी  या predators नहीं हैं . यहाँ चिड़ियाँ सुरक्षित हैं और निडर भी हैं   

लेक पीयर्सन का एक और दृश्य

शांत सुबह 

नज़ारा देख कर सवाल उठता है - ये कौन चित्रकार है ?



- मुकुल वर्धन की प्रस्तुति  *** Contributed by Mukul Wardhan




Wednesday, 10 January 2018

न्यूज़ीलैण्ड यात्रा - क्वीन्स टाउन

पिछले नवम्बर में दो हफ़्तों का छुट्टी मनाने का मन था. दोस्तों यारों से पूछा, इन्टरनेट में खोजबीन की और फैसला किया न्यूज़ीलैण्ड जाने का. इस यात्रा का फैसला करने का एक कारण ये भी था की वहां अपने देसी ड्राइविंग लाइसेंस पर गाड़ी चलाई जा सकती है क्यूंकि वहां भी बाएं चलना होता है याने Left is right & right is wrong!

न्यूज़ीलैण्ड छोटे बड़े 600 टापुओं पर बसा देश है और आबादी पचास लाख से भी कम है. दो बड़े टापू हैं - नार्थ आइलैंड और दूसरा साउथ आइलैंड. साउथ में जनसँख्या कम है और बर्फीले पहाड़ों के बीच झीलें और जंगल बहुत हैं. इस टापू का प्राकृतिक सौन्दर्य ज्यूँ का त्यूं बनाए रखा गया है. झीलों के साथ साथ सड़कें बना दी गई हैं और घूमने के लिए बस, carvan / कारवां या कारें किराए पर मिल जाती हैं और आप खुद भी ड्राइव कर सकते हैं.

इन्टरनेट में खोजबीन की तो पता लगा की कई तरह के कारवां मिल रहे थे - दो बेड वाले, चार वाले, लक्ज़री वाले वगैरा. लगभग दस हज़ार रूपए प्रतिदिन के हिसाब से हम दोनों के लिए एक कारवां बुक करा दिया. अब होटल तो नहीं लेना पड़ेगा खाना इसी कारवां में खुद ही बना लेंगे.

एअरपोर्ट पहुंचे तो बंदा चाबी लेकर खड़ा था. नोट निकालो और चाबी ले लो. कारवां देखा करीब करीब टाटा 407 ट्रक के बराबर था. छोटा सा गुसलखाना जिसमें खड़े होकर शावर ले लो, छोटा सा टॉयलेट, छोटी सी किचन, बिस्तर, गैस, हीटर वगैरा और गाड़ी ऑटो गियर. चेक इन हो गया, अपना सामान डाला और स्टार्ट कर दिया - यात्रा शुरू !

न्यूज़ीलैण्ड है बहुत दूर ऑस्ट्रेलिया से 1500 किमी आगे पूर्व में. दिल्ली से हांगकांग और सिडनी होते हुए पूरा दिन लग जाता है पहुँचने में. यहाँ की करेंसी न्यूज़ीलैण्ड डॉलर है NZD जिसकी कीमत 47 रूपए के आसपास है. यहाँ की प्रति व्यक्ति आय 36254 अमरीकी डॉलर है जबकि भारत में प्रति व्यक्ति आय 1800 अमरीकी डॉलर है. तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की वहां का रहन सहन कैसा होगा. यहाँ के मूल निवासी माओरी कहलाते हैं और जनसँख्या में इनका अनुपात 14.9% है. इंग्लिश के अलावा माओरी भी सरकारी भाषा है. यहाँ झीलों, पर्वतों और कई शहरों के नाम माओरी में हैं जो बोलने और याद करने में कठिन लगते हैं.

आज पेश हैं कुछ फोटो जो ऊपर हाईवे पर जाते हुए नीचे क्वीन्स टाउन शहर के आस पास ली गईं :

ज़रा गौर से देखें लाल बिंदु के ऊपर एक छोटा सा हवाई जहाज़ जा रहा है 

जहाज़ अब उतरने वाला है. झील के पास रनवे भी नज़र आ रहा है. इधर पहाड़ी सड़क पर दो कारवां नीचे की ओर जा  रहे हैं

शहर का एक नज़ारा पहाड़ी हाईवे से 

बादलों के साए में शहर 

Yours truly

पहाड़, झील और जंगल 

बादल छाते ही रंगत बदल जाती है यहाँ 

शहर पर शाम उतर आई

रात में क्वीन्स टाउन का एक दृश्य 

ये रहा हमारा चलता फिरता 1 BHK फ्लैट दो हफ़्तों के लिए  



- मुकुल वर्धन की प्रस्तुति  *** Contributed by Mukul Wardhan




Sunday, 7 January 2018

Bail-in needs rethink

Recently officials of Ministry of Finance have assured that there is no likelihood of bail-in for over 98% of depositors. FM also stated in Rajya Sabha that Bail-in provision most certainly will not be used in case of a public sector bank as such a contingency is not likely to arise. There have been many assurances from government side but doubts of depositors persist.

Bail-in clause is mentioned in proposed Financial Resolution & Deposit Insurance ( FRDI ) Bill 2017 which was introduced in August 2017 in Lok Sabha. Presently the proposed bill is with Joint Committee of members of Parliament ( JPC ) & the consultations on various provisions are on with stakeholders. Recommendations of JPC might make government to revise or rephrase some of the provisions. Draft of the said bill is available on & can be downloaded from the following address on internet. For ease of reference Clause 52 on Bail-in is copy-pasted below.

http://dea.gov.in/sites/default/files/FRDI%20Bill-27092016_1.pdf

Clause 52 Bail-in
(1) Notwithstanding anything contained in section 49, any action taken by the Corporation pursuant to this section may be through a bail-in instrument or a scheme under section 48 the form and manner of which shall be specified.
(2) The bail-in instrument may contain:
(a) a bail-in provision; or
(b) a provision for the purposes of, or in connection with, any bail-in provision made by that or another instrument.
(3) A bail-in provision means any or a combination of the following: –
(a) a provision cancelling a liability owed by a covered service provider;
(b) a provision modifying, or changing the form of, a COMMITTEE DRAFT 63 liability owed by a covered service provider
(c) a provision that a contract or agreement under which a covered service provider has a liability is to have effect as if a specified right had been exercised under it.
(4) (a) for the purposes of clause (a) of sub-section (3) of this section cancelling a liability owed by the covered service provider includes cancelling a contract under which the covered service provider has a liability.
(b) for the purposes of clause (b) of sub-section (3) of this section, (i) modifying a liability owed by covered service provider includes modifying the terms or the effect of the terms of a contract under which the covered service provider has a liability. (ii) changing the form of, a liability includes, (a) converting an instrument under which the covered service provider owes a liability from one form or class to another, (b) replacing such an instrument with another instrument of a different form or class, (c) creating a new security, of any form or class, in connection with the modification of such an instrument.
(5) The Corporation may specify the liabilities, or classes of liabilities of a covered service provider, which may be subject to bail-in.
(6) In addition to the actions enumerated in sub-section (3), for Central Counter parties, the Board may, in consultation with the Appropriate Regulator also take the following actions:
(a) direct the haircutting of the collaterals and margins;
(b) direct the issuance of equity to the creditors. Explanation: For the purpose of this section, haircut shall have the same meaning as assigned to it in section 45 of this Act. COMMITTEE DRAFT 64
(7) An instrument for the purposes of this section shall not affect -
(a) any liability owed by a covered service provider to the depositors to the extent that deposits are covered by Deposit Insurance;
(b) any liability that the covered service provider has by virtue of holding client assets;
(c) any liability of original maturities upto seven days;
(d) any obligation to a central counter party;
(e) any liability, so far as it is secured;
(f) any liability owed to employees or workmen including pension liabilities of the covered service provider except for liabilities designated as performance based incentive under section 51;
(g) any transaction covered under section 47; and
(h) such other liabilities as may be specified by the Appropriate Regulator in consultation with the Corporation and the Central Government.
(8) Whenever the Corporation makes a bail-in instrument under this section it must forward such bail-in instrument along with a report to the Central Government in such form and manner as may be prescribed and such report must contain –
(a) the reasons why a bail-in instrument under this section was made;
(b) the effect of the bail-in instrument;
(c) if the bail-in instrument deviates from the requirements of section (3), then the reasons for such deviation.
(9) A copy of the report received under sub-section (8) shall be, as soon as may be after it is received by the Central Government, be laid before each House of Parliament. (10) The provisions of sub-sections (3), and (6) of section 49 shall apply to this section mutatis mutandis. Explanation I: In this section, “client assets” shall have such meaning as may be specified. COMMITTEE DRAFT 65 Explanation II: The purpose of bail-in is to absorb the losses incurred, or reasonably expected to be incurred, by the covered service provider and to provide a measure of capital for it so as to enable it to carry on business for a reasonable period and maintain market confidence in it.

What is Bail-in?
Bail-in is defined as rescuing a financial institution on the brink of failure by making its creditors and depositors take a loss on their holdings.
A bail-in is opposite of bail-out. In bail-out process, failing institution is rescued by government funds.

Bail-in by default?
Government has shown its intent that by passing FRDI Bill 2017 they will not support any failing financial service provider. And for sure they shall pass the FRDI Bill by brute majority in parliament soon. Supposing the bill gets enacted as proposed, in that case bail-in becomes a process of default. A failing financial service provider may say that all the remedies have been exhausted & still more funds are needed therefore we may now be allowed to use part of the uninsured deposits of customers! 
Of course insured deposits shall not be touched. As of now deposits of Rs. one lakh is insured by DICGC which they propose to increase this insurance now. Residual uninsured amount may be at risk. This risk may be nil, some percentage or of full uninsured amount.
An example may perhaps clarify the position: if I have deposits of say 17 lakhs in bank & insurance is say 10 lakhs then residual amount of 7 lakhs is at risk. Further this residual amount may not be touched or some percentage of 7 lakhs may be taken or full amount may be taken to bail-in the failing financial institution. Amount so taken may be compensated by issuing equity in lieu thereof, or by issuing interest bearing bonds or not at all. 
It may be mentioned that our deposits with financial institution is liability of that institution. Please pay due attention to Clause 52 article 3 which read as under:
(a) "a provision cancelling a liability owed by a covered service provider" and
(b) a provision modifying, or changing the form of, liability owed by a covered service provider.    

Is bail-in applicable to banks only?
Proposed provisions are applicable not only to banks but all 'financial service providers' meaning thereby insurance companies, NBFCs, mutual funds etc. 

What about other countries?
During last recession of 2008 a large number of governments helped banks with funds for bail-out to avoid panic like situation. However in 2013 bail-in was tried in Cyprus a member of EU. In European Union deposits up to euro one lakh was insured. Up to 48% of uninsured deposits of customers & investment of bondholders were used by failing bank to cover losses. In lieu thereof shares were issued & you can imagine value of these shares. Uninsured deposits of second largest bank Laiki of Cyprus were lost. 
The G-20 group of nations have already discussed the bail-in & the plan for passing law is at various stages in many countries. 
However the Indian financial landscape is different from that prevailing in developed world. PSBs seem safe bet now as the government holds majority shares in all of them. It needs to be done with caution.

Why the bail-in bill now?
Banking system in India is under tremendous stress of spiralling growth of NPAs. The bad assets of the banks are now in the range of nine lakh crores. To tackle this government has offered capital infusion of 2.1 lakh crores in stages to PSBs. The gap of nearly seven lakh crores remains uncovered. Where from this gap shall be covered? May be by issuing shares, by issuing bonds, by selling some assets and if it is not sufficient to mitigate losses then? Request government for funds? And in case government says no? Why not use deposits of customers to wipe out losses?
By placing the bill in Lok Sabha government is clear that henceforth they shall not provide any funds to any failing financial institution.

What about assurances?
Officials have assured that the bail-in shall be sparingly used. What is 'sparingly used' is not clear. FM has said that it may not be used in case of public sector banks. It has also been hinted that present limit of insurance of deposits which is one lakh shall be increased etc.
Elaborate procedure is proposed to be followed before any financial service provider seeks bail-in. Resolution Corporation shall be set up to oversee the bail-in & related matters.  
Increasing insurance of deposits to say 10-15 lakhs from present level of one lakh helps one feel assured.
Taking part of or full uninsured deposit for bail-in does not help one feel assured, & instruments in lieu of deposits taken like shares or bonds does not help one feel assured.
Not knowing future rates of shares thus handed over, not knowing period of repayment & rates of interest on bonds thus handed over does not help one feel assured. 

Why depositors be made to pay for losses of financial institution? Very idea of bail-in is non assuring. 

not assured 



Tuesday, 2 January 2018

जयवाण

जयवाण नाम है एक भीमकाय ऐतिहासिक तोप का जो आजकल जयपुर के किले जयगढ़ में खड़ी है.

इस तोप की ढलाई 1720 में राजा जय सिंह द्वितीय ने कराई थी. मजेदार बात ये है की इसे केवल एक ही बार ही चलाया गया. उस वक़्त राजा जय सिंह द्वितीय और दिल्ली के मुग़ल सुलतान मुहम्मद शाह भी वहां मौजूद थे.

भारी होने के कारण इस तोप को घुमाना मुश्किल था. इस काम के लिए चार हाथियों का इस्तेमाल होता था. तोप की बैरल की लम्बाई 6.15 मीटर है और तोप का वजन 50 टन है. इस में इस्तेमाल किये जाने वाला गोला 50 किलो का था और उसे फेंकने के लिए लगभग सौ किलो बारूद की जरूरत पड़ती थी. कहते हैं की पहियों पर चलने वाली ये तोप विश्व की सबसे बड़ी तोप है पर इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई.

इसका गोला जब पहली और अंतिम बार जब फेंका गया तो लगभग 35-40 किमी दूर गिरा था. हालांकि कुछ लोगों का कहना 11 किमी और कुछ का कहना 22 किमी दूर गिरा था. गोला चाकसू नामक गाँव में गिरा जो 35 किमी दूर था और वहां बड़ा गड्ढा बन गया. बाद में बारिश के पानी से तालाब बन गया 'गोला ताल'. बहरहाल गोला दागने वाला तोपची, आठ अन्य सिपाही और एक हाथी धमक या शॉकवेव से ही मर गए. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

भारी भरकम तोप जयवाण. कई जगह इसका नाम 'जय बाण' या 'जय बान' भी लिखा गया है.   

इन बड़े पहियों का व्यास 9 फुट है 

पहियों के आकार का अंदाजा इस फोटो से भी लग सकता है. अगले दो पहिये काफी ऊँचे हैं और पिछले नीचे. तोप की पूरी लम्बाई 31 फीट और 3 इंच है   

जयवाण तोप का मुहाना 11 इंच का है और मोटाई 8.5 इंच है