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Saturday, 29 December 2018

गुजरी महल ग्वालियर


गुजरी महल, ग्वालियर  

आप महल देखने जाएं या किला, किस्से कहानियां जरूर सुनने को मिलेंगे. राजा लोगों के पास दौलत थी, ताकत थी और रानियों के पास समय था. ऐसे में प्यार मोहब्बत के किस्से, छोटी बड़ी घटनाएं और वारदातें होती ही रहती थीं. पिछले दिनों ग्वालियर का किला देखने गए तो वहां से नीचे देखने पर बड़ी सी इमारत नज़र आई. गाइड ने बताया कि वो बिल्डिंग गुजरी महल है. गाइड से पूछा की किले से बाहर महल क्यूँ बनाया गया था? जवाब में गुजरी महल का किस्सा उसने कुछ इस तरह सुनाया:

पंद्रहवीं सदी के आसपास ग्वालियर पर तोमर वंश का राज था. तोमर या तंवर लोग अपने को चंद्रवंशी राजपूत मानते हैं. 1486 में ग्वालियर की राज गद्दी पर मान सिंह तोमर विराजमान हुए. मान सिंह प्रतापी राजा थे. युद्ध कला में निपुण, संगीत और वास्तु में दिलचस्पी लेने वाले थे. एक दिन राजा मान सिंह अपनी टोली के साथ शिकार खेलने निकले. किले से 16 किमी दूर राई नदी के पास वाले जंगल में हर तरह का शिकार मिलता था. उसी ओर कूच कर दिया.

नदी से कुछ पहले दो गुस्सैल बैल सींग से सींग लड़ाते नज़र आए. दोनों में से कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था और बार बार एक दूसरे पर हमला कर रहे थे. दोनों बैलों ने राजा साब का रास्ता जाम कर दिया था. राजा और उनके कारिंदे वहीँ रुक कर तमाशा देखने लगे और रास्ता साफ़ होने का इंतज़ार करने लगे. तभी एक लड़की वहां आई. उसने दोनों बैलों को छुड़ा दिया. राजा उस लड़की की बहादुरी से बहुत खुश हुए. उसका रूपरंग देखकर राजा के मन में विचार आ गया कि ऐसी सुंदर और बहादुर लड़की को अपनी पटरानी बनाएंगे. संतान भी बहादुर होगी.

पूछने पर लड़की ने अपना नाम निन्नी उर्फ़ मृगनयनी बताया. सैनिक निन्नी को लेकर उसके गाँव पहुँच गए जो गूजरों का गाँव था. निन्नी के माता पिता को सारी बात बताई और दरबार में हाजिर होने को कहा. लड़की भी निडर थी और उसने संदेसा भिजवा दिया कि शादी तब करुँगी जब मेरी तीन शर्तें मानी जाएंगीं :

पहली शर्त ये कि मैं राई नदी का पानी पीकर बड़ी हुई हूँ इसलिए मुझे ता-उम्र राई का पानी पीने को मिलना चाहिए. दूसरी ये कि मैं पर्दों या बंद कमरों में नहीं रहूंगी खुली जगह में रहूंगी उसका इंतज़ाम किया जाना चाहिए और तीसरी शर्त ये कि जब भी राजा किले से बाहर जाएंगे तो मैं उनके साथ जाउंगी चाहे वो शिकार पर जा रहे हों या युद्ध करने.

राजा के फैसले से रनिवास में भी खलबली मच गई. गूजर लड़की से कैसी शादी? पर राजा मान सिंह तोमर भी अपनी बात पर डटे रहे और शादी हो ही गई. पानी के लिए नहरिया बनी और गुजरिया के लिए गुजरी महल.

इस प्रेम कथा पर वृन्दावन लाल वर्मा ने 'मृगनयनी' नाम से एक नावेल भी लिखा है जिसमें ग्वालियर का इतिहास भी विस्तार से लिखा गया है. वैसे 1922 में अंग्रेजों ने गुजरी महल को म्यूजियम बना दिया था. ग्वालियर और आसपास के इलाकों में पाई गई हजारों ऐतिहासिक वस्तुओं का संग्रह है यहाँ. म्यूजियम सुबह ग्यारह बजे से पांच बजे तक खुला है और प्रवेश के लिए टिकट है.

ग्वालियर के किले का एक दृश्य 


Wednesday, 19 December 2018

लेपाक्षी मंदिर

आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में एक जगह है लेपाक्षी. इसे बड़ा गाँव समझ लें या कस्बा. यहाँ एक सुंदर मंदिर है जिसे आम तौर पर लेपाक्षी मंदिर कहा जाता है पर वास्तविक नाम वीरभद्र मंदिर है जो सोलहवीं शताब्दी में बनाया गया था. उस वक़्त आस पास के इलाके में विजयनगर साम्राज्य था. लेपाक्षी से लगभग 40 किमी दूर पेनुकोंडा में राजा अचुत्या राय थे और लेपाक्षी में दो भाई वीरुपन्ना नायका और वीरन्ना नायका गवर्नर थे. वीरुपन्ना ने 1530 / 1540 में मंदिर का निर्माण कार्य शुरू कराया था.

बंगलुरु से लेपाक्षी की दूरी 140 किमी है और यह स्थान बंगलुरु-हैदराबाद हाईवे से बारह किमी अंदर है. ये सड़क बहुत अच्छी है इसलिए एक दिन के ट्रिप में बंगलुरु से मंदिर आना जाना हो सकता है. यहाँ आन्ध्रा टूरिज्म का इकलौता होटल और रेस्टोरेंट है इसलिए अपना इंतज़ाम करके चलना ठीक रहेगा. कोई टिकट नहीं है. हिंदी या इंग्लिश गाइड मिलना मुश्किल है. लेपाक्षी नंदी, मंदिर और गरुड़ थीम पार्क आधे किमी के दायरे में हैं और पैदल देखे जा सकते हैं. दोपहर की धूप यहाँ तीखी है और चट्टानें गरम हो जाती हैं अपना ख़याल रखें.

मंदिर बनाने की शैली द्रविड़ियन और विजयनगर जैसी है. पूरे मंदिर में खम्बों और दीवारों के एक एक इंच पर कमाल की नक्काशी है. मूर्तियों में ब्रह्मा, विष्णु, शिव, पार्वती, गंगा,यमुना, साधू संत, राजा, नृत्यांगना, संगीतकार, पशु पक्षी, फुल पत्ते इत्यादि हैं. छत पर रंगीन चित्रकारी है जो कहीं कहीं फीकी पड़ गई है.

मंदिर एक ऊँची सी चट्टान पर है जिसकी शक्ल कछुए जैसी है और इसलिए चट्टान का स्थानीय नाम कुर्म सैला है. भारत में सबसे बड़ी नंदी की मूर्ति, सबसे बड़ी नाग की मूर्ति और सबसे बड़ी गरुड़ की मूर्ति यहीं है. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. नागालिंगा: बारह फुट ऊँचा, सात फना नाग. ये मूर्ति मंदिर परिसर में ही है. मान्यता है की मुख्य मूर्तिकार की माँ खाना बना रही थी तब तक उसकी टीम ने ये नाग तराश दिया. परन्तु मुख्य मूर्तिकार की माँ इस बात पर नाराज़ हो गई कि शिवलिंग नहीं बनाया गया इसलिए मूर्ति में दरार पड़ जाएगी. शिवलिंग भी तुरंत बना दिया गया. अगर आप पास जाकर गौर से देखें तो दाएं से तीसरे और चौथे फन के बीच हल्की सी दरार है. शायद फोटो में ना नज़र आये. 

2. नागालिंगा पत्थर के पिछले भाग में गणेशजी और उनकी सवारी चूहा 

3. भारी भरकम नागालिंगा पत्थर पर शिवलिंग की नक्काशी 

4. मंदिर का सबसे पहले बना भाग - शिवलिंग. दो सौ मीटर दूर बना विशालकाय नंदी इसी शिवलिंग की ओर देख रहा है 

5. खुला मंडपम. मान्यता है कि यह मंडप राजा से बिना पूछे बनाना शुरू कर दिया गया था. पर राजा जब अपने टूर से वापिस आये तो बहुत नाराज़ हुए और निर्माण बंद करा दिया गया. वरना इस मंडप में छत होती और शिव-पार्वती की शादी होती 

6. विजयनगर शैली के खम्बे, बरामदा और आँगन. हम्पी, कर्नाटक में भी इस तरह के खम्बे देखे जा सकते हैं  

7. मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार और दीप स्तम्भ 

8. फर्श के पत्थर पर बनी भोजन की थाली. इसमें मूर्तिकार भोजन करते थे 

9. हनुमान का पाँव. इस पाँव की विशेषता है कि इस में हर समय पानी रिस रिस कर आता रहता है. मान्यता है की घायल गरुड़ के लिए हनुमान ने पाँव को पत्थर पर मार कर पानी पीने की व्यवस्था की और गरुड़ को कहा - 'ले पाखी' जिसके कारण नाम हो गया लेपाक्षी   

10. खम्बे चाहे चार मुखी हों या छे मुखी, खम्बे की हर सतह पर सुंदर नक्काशी 

11. मुख्य मंडप की छत पर रंगीन चित्रकारी 
12. छत पर राम, कृष्ण और उस समय के राजाओं से सम्बंधित चित्र हैं   

13. मंदिर में सत्तर खम्बे हैं जिनमें से ये एक खम्बा फर्श से जुड़ा नहीं है बल्कि लटक रहा है. खम्बे और फर्श के बीच से अखबार या चुन्नी को निकाला जा सकता है. अंग्रेजों ने इसे हिलाने की कोशिश की परन्तु साथ वाले दूसरे खम्बे हिलने लगे और ऐसा लगा कि छत गिर जाएगी. उसके बाद इस खम्बे से छेड़खानी नहीं की गई

14. खम्बों पर देवी देवता, संगीतकार, नृत्य और राजाओं से सम्बंधित सुंदर नकाशी 

15. भृंगी, नृत्य गुरु विभिन्न मुद्राओं में  

16. ब्रह्मा 

17. विरुपन्ना नायका  

18. गाय के एक शरीर पर तीन सिर

19. सुसज्जित लेपाक्षी नंदी. 20 फीट ऊँचा और 30 फीट लंबा. वहां लगे ASI के बोर्ड के अनुसार भारत का सबसे बड़ा नंदी  
20. पीछे गरुड़ की बड़ी मूर्ति है जहां एक थीम पार्क बनाया जा रहा है. मान्यता है की सीता को ले जाते हुए गरुड़ घायल हो कर यहीं गिरा था 
21. थीम पार्क 

22. नंदी के पास एक तालाब में गुलाबी कमल  



Sunday, 16 December 2018

सहस्त्रबाहू मंदिर ग्वालियर

सहस्त्रबाहू मंदिर ग्वालियर किले के परिसर में पूर्वी ओर है. इस मंदिर का दूसरा नाम सास बहू मंदिर भी है जो सहस्त्रबाहू का एक बिगड़ा हुआ रूप ही है. एक ही शैली के दो मंदिर पास पास हैं, एक बड़ा जिसे सास का और एक छोटा जिसे बहू का बताया जाता है.

इन्टरनेट पर इस मंदिर का इतिहास देखते समय पुरातत्व विभाग ASI की रिपोर्ट्स में से A Cunningham की रिपोर्ट भी पढ़ी. इस की कुछ रोचक लाइनें इस प्रकार हैं:

" .... On the east side of wall of antarala, the ante-chamber, there is an incomplete inscription dated in S. 1160, or A.D.1103, only ten years later than the opening of the temple. In the same place there are two other dated records of S. 1522 and S. 1540, or A.D. 1465 and A.D. 1483, which show that the temple was again used by Hindus during the sway of Tomara Rajas in fifteenth century. Early in the following century the fortress was again captured by Musalmans, and as it was afterwards used as State prison, and jealously guarded, I presume that the Hindus were once more excluded. In 1844, I resided in the fort, I found the sanctum desecreted and the floor of the ante-chamber dug out to a depth of 15 feet in search of treasure. This hole I filled up, and I afterwards propped up all cracked beams, repaired the broken plinth, and added a flight of of steps to the entrance, so that the temple is now accessible and secure, and likely to last for several centuries. ..."
यहाँ S का मतलब सम्वत है जो अंग्रेजी सन से 57 साल आगे चलता है.

मन्दिर किले के अंदर है और प्रवेश के लिए कोई अलग से टिकट नहीं है. दोपहर की तीख़ी धूप से बचें. सुबह से शाम तक खुला है.
कुछ फोटो:

1. सहस्त्रबाहु मन्दिर 
2. सहस्त्रबाहु का छोटा मन्दिर

3. छोटा और बड़ा मन्दिर पास पास ही हैं 

4. नक्काशी किया हुआ स्तम्भ

5. चबूतरे से लेकर छत तक सुंदर नक्काशी 

6. मन्दिर का एक सज्जित कोना

7. मन्दिर के चारों ओर बनी परिक्रमा
8. दीप स्तम्भ

9. चार भारी भरकम स्तम्भों पर टिकी छत

10. कुछ तोड़ा गया और कुछ समय ने जीर्ण किया

11. सुंदर और सुगढ़ मूर्तियां

12. गिरने से बचाने के लिए लगाई गई त्रिकोणीय रोक

13. छत पर की गई खूबसूरत नक्काशी

14. छत का एक और दृश्य

15. महिषासुर मर्दिनी

16. सहस्त्रबाहू मंदिर से नज़र आता ग्वालियर शहर  
17. पत्थर पर लिखा गलत नाम - सास बहू मन्दिर

18. "This temple was cleaned and stripped of chuna with which the Mahomedans had defaced it for centuries by Major J.B. Keith, November A.D. 1881 under the directions of Captain H. Cole R.E. Curator of Ancient Monuments in India" 





Tuesday, 11 December 2018

ओर्वाकल रॉक गार्डन, आन्ध्रा

ओर्वाकल एक गाँव का नाम है जो आन्ध्र प्रदेश में है. यहाँ एक सुंदर सा गुलाबी चट्टानों वाला रॉक गार्डन है जिसे Orvakal Rock Garden कहते हैं. कई जगह इसका नाम बंगलुरु और मैसूरू की तर्ज़ पर ओर्वाकल्लू-Orvakallu भी लिखा देखा था. ये रॉक गार्डन कुरनूल शहर से 20 किमी, बंगलुरु से 370 किमी और हैदराबाद से 250 किमी दूर है. अगर आप NH 44 से बंगलुरु या हैदराबाद जा रहे हैं तो ऐसी गुलाबी चट्टानें सड़क के दोनों और नज़र आएंगी. एक साइड पर बड़ी मशीनों से माईनिंग होती भी दिख सकती है.

ये आड़ी तिरछी गुलाबी चट्टानें quartz और silica की हैं जो छूने से नरम, चिकनी और चलने में फिसलन वाली हैं. इन चट्टानों का पाउडर कांच बनाने के में काम आता है. और इसलिए कम्पनियां बड़ी मशीनों से खुदाई में लगी हुई हैं. पता नहीं इस खुदाई से पर्यावरण को कोई ख़तरा है या नहीं.

बहरहाल राजमार्ग के एक तरफ आन्ध्रा टूरिज्म - APTDC, द्वारा एक हजार एकड़ में रॉक गार्डन बनाया गया है. यहाँ एक रेस्तरां, दस कॉटेज का होटल और बच्चों के झूले वगैरा लगा दिए गए हैं. दर्शकों के लिए चट्टानों के बीच से तीन किमी लम्बा घुमावदार रास्ता भी बना दिया गया है. चट्टानों के बीच पूल भी है जहां बोटिंग की जा सकती है. कुछ और काम अभी जारी हैं. अगर आप जाएं तो दोपहर की तीखी धूप से बचें. उगते और ढलते सूरज में नज़ारा बड़ा सुंदर लगता है.

सुंदर जगह होने के कारण यहाँ कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है जिनमें बाहुबली भी शामिल है. पर कुछ फ़िल्मी यूनिट यहाँ अपना कचरा और प्लास्टर ऑफ़ पेरिस भी फेंक गए जो यहाँ की चट्टानों के लिए अच्छा नहीं बताया जाता. प्रस्तुत हैं कुछ फोटो:

1. Quartz and silica rocks 

2. पैदल रास्ता 

3. अभी काम जारी है  

4. अनोखी और मजेदार शक्लों वाली चट्टानें 
5. पेड़ की जड़ों और पत्थर की जंग  

6. चट्टानों के बीच में पानी रुकता है इसलिए हरियाली भी है 

7. लोहे की नकली चिड़ियाँ लगा दी गई हैं जो जची नहीं 

8. बेंच लगे हैं आप बैठ कर सीनरी का आनन्द लें 

9. कई भरी भरकम पत्थर भी हैं 

10. ये पत्थरों का शहर है 

11. धूप बड़ी तीख़ी है यहाँ  

12. I am the master of all I survey

13. धूप छाँव

14. रेस्तरां. पत्थर की कुर्सियां, पत्थर के टेबल, पत्थर की छत और पत्थर का फर्श  

15. हरियाली और रास्ता 


16. मुसाफिर