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Saturday, 24 March 2018

शुक्रताल

शुक्रताल एक प्राचीन तीर्थ स्थल है जिसे शुकतीर्थ, शुक्रतीर्थ, शुकदेव पुरी और शुकतार नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है. यह स्थान मुज़फ्फर नगर, उत्तर प्रदेश में है. दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग NH-58 से लगभग 23 किमी अंदर की ओर है. गंगा किनारे बसी इस छोटी सी तीर्थ नगरी में 100 से ज्यादा छोटे बड़े मन्दिर हैं. और लगभग इतनी ही धर्मशालाएं भी होंगी. यहाँ से हरिद्वार, हस्तिनापुर और परिक्षित गढ़ लगभग 50 किमी के दायरे में हैं.  

इस ऐतिहासिक नगर से जुड़ी एक कथा प्रचलित है जो संक्षेप में इस तरह है कि राजा परिक्षित जो कि अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे, शिकार करते हुए भटक गए. भूख प्यास से व्याकुल भटक रहे थे कि एक टीले पर बैठे संत शमिक दिखाई पड़े. राजा ने नमस्कार कर ऋषि शमिक से पानी माँगा पर कोई जवाब न मिला. बार बार माँगने पर भी कोई उत्तर ना मिला तो राजा क्रोधित हो गए. गुस्से में उन्होंने एक मरा हुआ साँप उठा कर ऋषि के गले में डाल दिया. यह बात ऋषि शमिक के पुत्र ऋंगी तक पहुंची तो उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दे दिया कि सातवें दिन साँप के डसने से उनकी जीवन लीला समाप्त हो जाएगी. 

राजा परीक्षित को सूचना मिलते ही उन्होंने राजपाट अपने बेटे जन्मेजय को सौंप दिया और जंगल की ओर प्रस्थान कर दिया. यहाँ शुक्रताल के निकट उनकी भेंट ऋषि शुकदेव से हुई. राजा ने ऋषिवर से जीवन मरण सम्बन्धी अनेक प्रश्न पूछे जिनमें से दो प्रमुख थे :
- जो मनुष्य सर्वथा मृत्यु के निकट हैं उसे क्या करना चाहिए ?
- मनुष्य मात्र को क्या करना चाहिये, किसका श्रवण, किसका जप, किसका स्मरण तथा किसका भजन करे व किसका त्याग करे जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो?

उत्तर में ऋषि शुकदेव ने सात दिनों तक श्रीमद् भागवत पुराण सुनाकर राजा के प्रश्नों का उत्तर दिया और काल से भयमुक्त कर दिया. ऋषि ने कहा:
- हे राजन,
- मनुष्य सर्वथा निडर होकर वैराग्य रुपी शस्त्र से शरीर, स्त्री, पुत्र, धन के मोह को काट फेंके,
- धैर्य के साथ निर्जन और पवित्र स्थान पर बैठ ॐ का जाप करे,
- प्राणायाम से मन वश में करे,
- बुद्धि द्वारा विषयों को दूर करे और
- कर्म कल्याणकारी रूप में लगाए.
राजा परीक्षित ने नियमों का पालन करते हुए तप किया और मोक्ष को प्राप्त हुए. 

श्रीमद् भागवत पुराण में 12 स्कन्ध, 335 अध्याय और 18000 श्लोक हैं. सभी स्कंधों में विष्णु अवतारों का वर्णन है इसलिए वैष्णवी सम्प्रदाय का एक प्रमुख ग्रन्थ है. इसके लिखने के समय पर इतिहासकारों में काफी मतभेद है. शायद यह ग्रंथ 1300 ईसा पूर्व से लेकर 200 ईसा पूर्व के बीच कभी लिखा गया होगा.
शुकदेव मंदिर परिसर का विशालकाय बरगद भी उसी समय का माना जाता है.
शुक्रताल में श्रीमद्भागवत पुराण पर आधारित भागवत कथाएँ विभिन्न भाषाओं में पूरे साल ही चलती रहती हैं.
कुछ फोटो :

मूर्तिकार केशवराम द्वारा निर्मित मूर्ति की उंचाई चरणों से मुकुट तक 42 फीट 3 इंच है. इसे बनाने में एक वर्ष लगा. प्राण-प्रतिष्ठा समारोह 6 अप्रैल 1989 को संपन्न हुआ 

प्राचीन वट-वृक्ष पूरे शुकदेव मंदिर परिसर पर छाया हुआ है 

वट वृक्ष के नीचे मंदिर 

शुकदेव मुनि की काले पत्थर में मूर्ति और दाहिनी और हैं उनके शिष्य चरणदास, अलवर वाले 

संस्कृत विद्यालय का एक छात्र 
                 
संस्कृत विद्यालय का एक छात्र 








बरगद की ठंडी छाँव में दोपहर

साधू संतों का डेरा 

शिव मन्दिर 

हिंदी के अलावा कई भाषाओं में भागवत प्रवचन चलते रहते हैं 

बाज़ार का एक दृश्य 

नगर का एक दृश्य 

शांत बहती गंगा 

हनुमद्धाम में स्थापित मूर्ति. चरणों से लेकर मुकुट तक की उंचाई 65 फीट 10 इंच की है और सतह से 77 फीट. मूर्तिकार हैं केशवराम, जिला शाहडोल, मध्य प्रदेश. मूर्ति का शिलान्यास 26 मई 1986 को हुआ और 27 मई 1987 को प्राण-प्रतिष्ठा समारोह मनाया गया 

दिल्ली से मेरठ बाइपास और मुज़फ्फरनगर बाईपास होते हुए शुक्रताल लगभग 125 किमी की दूरी पर है  


5 comments:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/09/blog-post_23.html

A.K.SAXENA said...

Wah wah bahut achchi jankari. Pani maagne par koi uttar na dena aur is baat par krodhit hone par raja ki prtikriya ye hui ki unhone un par mara hua saanp fenk diya. Dekha jaaye to galti donon ki thi,par punishment/shraap kewal raja ko mila? Ye to badi nainsaafi hui bhai.chalo HARI-ikchcha.

ASHOK KUMAR GANDHI said...

Good, jab bji mauka laga to jayenge

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Gandhi ji.

Harsh Wardhan Jog said...

Thank you Saxena ji. Snake is dangerous whether live or dead!