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Monday, 30 May 2016

दांत का दर्द

ब्रांच में तीन कैशियर केबिन थे. महीने के शुरू में तीनों खजांची बिज़ी रहते थे और महीना ख़तम होते होते एक ही कैशियर रह जाता था. नौकरी वालों के जीवन के महीने यूँ ही गुज़रते हैं - पहली तारीखों में बहार आ जाती है और महीने के अंत में सूखा पड़ जाता है.

ऐसे सूखे के दिनों में कई बार कलम सिंह कैशियर बैठ जाते थे. बहुत पहले कलम सिंह बैंक में चपड़ासी भरती हुए फिर दफ्तरी बन गए और अब कैशियर भी बन गए हैं. उत्तराखंड से आये पर अब दिल्ली में जम गए हैं. कैशियर बनने का मौका तभी मिलता है जब कोई दूसरा कैशियर छुट्टी पर हो लेकिन कैशियर केबिन में बैठने का कुछ एक्स्ट्रा पैसा भी मिल जाता है जो सूखे के दिनों में गला तर कर देता है. रिटायर होने में अभी एक साल है तो क्यूँ न मौके का फायदा उठाया जाए ?

फायदा उठाने की एक और कोशिश की कलम सिंह ने. शनिवार को कैशियर केबिन में हाजरी लगा दी. हालांकि शुक्रवार को ही दांतों के डॉक्टर को मिलकर आए थे जनाब. डॉक्टर ने कहा था की दर्द ठीक हो जाए और मसूढ़े की सूजन घट जाए तो दांत को निकाल देंगे. आज सुबह ही गोली खाई पर हल्का दर्द अब भी था और बायां गाल सूजा हुआ था. गोलियां और डॉक्टर का परचा जेब में ही रक्खा हुआ था ताकि वापसी में डॉक्टर से मिलते हुए जाना है. कलम सिंह ने सोचा सिर्फ आधे दिन का काम है और शनिवार + इतवार के पैसे भी मिलेंगे क्या दिक्कत है? दवा दारु के पैसे तो निकल आएँगे.

कैशियर केबिन में कलम सिंह बैठे ही थे कि इण्टरकॉम बजा. साब ने कहा की दस हज़ार भिजवाता हूँ एक नया पैकेट निकाल कर रख लो. कलम सिंह ने नया पैकेट सामने काउंटर पर रख लिया. तब तक दांत में फिर से दर्द बढ़ने लगा और बैचैनी बढ़ गयी. तीन कस्टमर पेमेंट लेने आ गये. दो को भुगतान कर के जेब में हाथ मारा और गोलियों का पत्ता निकाल कर काउंटर पर रख लिया. पर गिलास में पानी नहीं था. इस बीच तीसरे कस्टमर को भी पेमेंट कर दी और गिलास उठा लिया. दर्द और तेज़ हो रही थी.

जल्दी जल्दी केबिन का पिछला दरवाज़ा खोला जहाँ बड़ा जग रखा हुआ था उसमें से गिलास भर लिया. फिर गिलास काउंटर पर रक्खा और जल्दी से गोली का पत्ता खोला और एक गोली निकाल कर मुंह में डाली. गोली गटक के नज़र मारी तो काउंटर साफ़ ?
- ओह ये क्या ? दस हज़ार का नया पैकेट कहाँ गया ? कौन ले गया ?
दर्द और घबराहट में कलम सिंह ने चिल्लाने की कोशिश की,
- ली-गे, ली-गे, ली-गे (ले गया, ले गया, ले गया) !
पर आवाज़ गले के बाहर ही नहीं निकल पाई.

सावधानी हटी दुर्घटना घटी  

1 comment:

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/05/blog-post_40.html