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Thursday, 12 May 2016

बिरयानी

केबिन में एक महिला आई,
- नमस्ते सर. मेरी बहन का खाता यहीं है जी. पिछले महीने बहन गुजर गई जी. तो उसका पैसा दिलवा दो जी. काउंटर पे तो मना कर रहे जी. यूँ कह रहे हैं की मैनेजर साब ही पास करेंगे.

पास बुक देखी तो आफरीन के खाते में 5.70 लाख थे. शायद कहीं नौकरी कर रही होगी क्यूंकि हर महीने सैलरी आ रही थी. खाता चेक किया तो बहुत पुराना था. ना तो कोई फोटो लगी हुई ना ही कोई नामांकन. पुरानी पुरानी ब्रांचों के दुखी करने वाले लफड़े. वैसे भी मृत मुस्लिम महिला का उत्तराधिकारी कौन होगा तय करने के लिए वकील से बात करनी पड़ेगी और मोहल्ले में भी पूछताछ करनी पड़ेगी. रीजनल मैनेजर को केस बना कर भेजना पड़ेगा. दो तीन महीने का काम हो गया ये.

और जानकारी लेने के लिए पुछा तो पता लगा,
- जी मेरी बहन आफरीन भी टीचर थी. उसकी भी शादी नहीं हुई थी जी. अठ्ठावन की थीं जी और हमारे पेरेंट्स तो बहुत पहले ही अल्लाह को प्यारे हो लिए जी. आफरीन के पैसे लेने के लिए क्या करना होगा सर?

मोहल्ले में पूछताछ की तो पता लगा की दोनों बहनें आयशा और आफरीन अकेले ही रहती थीं. उनके पिता एक टेलर थे और दो मंजिले मकान के निचले कमरे में अच्छी खासी दुकान चलाते थे. किसी सड़क दुर्घटना में उनका इन्तेकाल हो गया. अम्मा ने किसी तरह दूकान जारी रक्खी. बेटियों की मदद से जनाना कपड़ों की सिलाई जारी रही. आयशा और आफरीन ने पढ़ाई जारी रखी. शादी अब होगी तब होगी करते करते समय निकलता रहा और दोनों ही इस दौरान एमए पास कर गयीं. प्राइमरी स्कूल में दोनों ही टीचर लग गयीं. एक दिन अम्मा भी गुज़र गई. अब कौन लड़का देखे और कौन बात चलाए शादी की. शादी का समय भी खिसकने लग गया और धीरे धीरे निकल ही गया. अब आफरीन 58 बरस की हो कर गुज़र गयीं और 54 बरस की आयशा अकेली रह गयी.

मोहल्ले में दोनों की अच्छी साख थी. गरीब बच्चियों को दोनों मदद करती रहती थीं इसलिए उनकी इज्ज़त भी करते थे लोग. सारी पूछताछ करने के बाद कागज़ पत्तर समेत रिपोर्ट रीजनल मैनेजर को भेज दी. जवाब आने के बाद देखा जाएगा क्या कारवाई करनी है. पर आयशा बड़ी बैचैनी से पूछताछ करने आ जाती थी.

एक दिन टीकरी कलाँ ब्रांच का केशियर अनवर मिलने आ गया और आफरीन के केस के बारे में पूछने लगा की पेमेंट मिलने में बहुत देर हो रही है. अगर वो कुछ लिख कर दे तो क्या जल्दी मामला सेटल हो जाएगा?
- आपको तो पता होगा की केस रीजनल ऑफिस में पड़ा हुआ है. फिर भी आप मदद करना चाहते हो तो अपनी गारंटी दे दो तो काम आसान हो जाएगा. अभी तो दो तीन साल की नौकरी आपकी बकाया है. आपकी रिश्तेदारी है या जान पहचान है क्या?
- ना सर कोई रिश्तेदारी नहीं है और जान पहचान भी नहीं है बस बिरादरी की हैं. पर गारंटी मैं दे दूंगा.

दस दिन में ही पेमेंट हो गई. पेमेंट के अगले दिन ही आयशा मिठाई का डिब्बा लेकर केबिन में आई और पीछे पीछे खिसियाता और मुस्कुराता हुआ अनवर भी आ गया.
- अनवर आप तो कहते थे रिश्तेदारी भी नहीं है और जान पहचान भी नहीं है पर अब तो बड़ी नजदीकी रिश्तेदारी दिख रही है.
 - साब आयशा कहने लगी कि अम्मा को भी अकेले जाते देखा और आफरीन को भी इसलिए मैं परिवार में रहना चाहती हूँ अकेले नहीं.
- मुबारक हो. सन्डे शाम को बिरयानी तैयार रखना !

नई चूड़ियाँ


5 comments:

Anonymous said...

Excellent, salute your practical approach ❤️❤️💐💐🥂🥂

Rajinder Singh said...

Excellent Sir Ji.

Anonymous said...

Good. Prabhuji aapko jawab nahi. Aapki stories par kar lane lagta hai ki I am still in my rural branch which was near to Bualndshahr.

Harsh Wardhan Jog said...

https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/05/blog-post_12.html

Harsh Wardhan Jog said...

धन्यवाद राजिंदर सिंह।