हमारे चीफ साब का दावा था कि वे उड़ती चिड़िया के पंख कतर देते हैं. कभी-कभी कहते थे वे उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेते हैं. जबकि हमें लगता था कि चश्में के मोटे लेंस में से चीफ साब को चिड़िया और कौव्वे का फर्क भी नहीं पता लगता होगा. ये बड़े साब लोग बड़ी-बड़ी डींग फेंकते हैं भाईजी. जितना बड़ा साब उतनी बड़ी डींग हांक देगा और आपको सुननी भी पड़ेगी.
हमारे चीफ साब ने कुछ दिन पहले ही ब्रांच ज्वाइन किया था. ब्रांच बड़ी है और दिल्ली मैं है इसलिए महिला कर्मचारी काफी हैं. एक तो साब की राशि महिलाओं से कम मेल खाती है और दूसरे महिला मंडल ने चीफ साहब का नामकरण सर्व सम्मति से 'गोलू' कर दिया था. आप तो सब समझते हैं कि ये नामकरण तो सब प्यार मोहब्बत की बातें हैं. ज्यादातर अपने तक ही सीमित रहती हैं. सबको नहीं बतानी होती.
चीफ साब के सिर के बाल डींगें मारते-मारते उड़ गए थे. बस किनारे किनारे बालों की एक झालर सी बची हुई थी जिसे बड़े अहतियात से संवारते रहते थे. रंग सांवला, कद 5' 2", कमर का बड़ा सा घेरा है जिसे बेल्ट ने मुश्किल से संभाला हुआ था. असल में बियर के शौकीन थे इसलिए शायद गोल मटोल हो गए थे.
चीफ साब केबिन के शीशे से बाहर हॉल में नज़र डालते तो बड़बड़ाने लगते. उधर महिला मंडल में से कोई अंदर नज़र डालती तो वो भुनभुनाने लगती. कुछ इस तरह का वार्तालाप चलता था शीशे के आर पार :
- बाल कटा कर आ गई है काम-धाम कुछ करना नहीं है.
- काम-धाम है नहीं गोलू के पास बस केबिन में बैठा-बैठा ताक-झांक करता रहता है.
- ये देख लो दोनों हॉल के बीचोबीच खड़ी बतिया रहीं हैं.
- देखो गोलू बैठा-बैठा कोस रहा है. कच्चा जबा जाएगा.
- इसे देखो इतने जेवर पहन कर ऑफिस आ गई है. ये ऑफिस है या यहाँ पर फैशन शो हो रहा है?
- देखो गोलू कैसे घूर-घूर कर देख रहा है. जरा कोई अच्छी सी चीज़ पहन कर आ जाओ बस गोलू घूरने लगता है.
- ये तो बस सीट पर बैठी-बैठी बाल ही संवारती रहती है.
- गोलू गंजा हो चूका है पर फिर भी अपनी झालर को ही कंघी करता रहता है. इसे बताओ भई कि तू टकला हो चुका है ?
- ज़रा सा काम बोला था लेकर बैठी हुई है ? दस मिनट का काम दो घंटे में ?
- काम बाद में देता है पहले पूछता है कितने मिनट में हो जाएगा. अरे कोई हम मशीन हैं क्या ?
- देख रहा हूँ ये सब तमाशा. इनके भी पर कतरने पड़ेंगे.
- घूरता रहता है हमको. इसके पर भी कतरने पड़ेंगे.
लुब्बो लुबाव ये कि १. चीफ साब किसी को वैलेंटाइन नहीं बना सके और २. केबिन का शीशा ना होता तो विश्व युद्ध की सम्भावना थी.
हमारे चीफ साब ने कुछ दिन पहले ही ब्रांच ज्वाइन किया था. ब्रांच बड़ी है और दिल्ली मैं है इसलिए महिला कर्मचारी काफी हैं. एक तो साब की राशि महिलाओं से कम मेल खाती है और दूसरे महिला मंडल ने चीफ साहब का नामकरण सर्व सम्मति से 'गोलू' कर दिया था. आप तो सब समझते हैं कि ये नामकरण तो सब प्यार मोहब्बत की बातें हैं. ज्यादातर अपने तक ही सीमित रहती हैं. सबको नहीं बतानी होती.
चीफ साब के सिर के बाल डींगें मारते-मारते उड़ गए थे. बस किनारे किनारे बालों की एक झालर सी बची हुई थी जिसे बड़े अहतियात से संवारते रहते थे. रंग सांवला, कद 5' 2", कमर का बड़ा सा घेरा है जिसे बेल्ट ने मुश्किल से संभाला हुआ था. असल में बियर के शौकीन थे इसलिए शायद गोल मटोल हो गए थे.
चीफ साब केबिन के शीशे से बाहर हॉल में नज़र डालते तो बड़बड़ाने लगते. उधर महिला मंडल में से कोई अंदर नज़र डालती तो वो भुनभुनाने लगती. कुछ इस तरह का वार्तालाप चलता था शीशे के आर पार :
- बाल कटा कर आ गई है काम-धाम कुछ करना नहीं है.
- काम-धाम है नहीं गोलू के पास बस केबिन में बैठा-बैठा ताक-झांक करता रहता है.
- ये देख लो दोनों हॉल के बीचोबीच खड़ी बतिया रहीं हैं.
- देखो गोलू बैठा-बैठा कोस रहा है. कच्चा जबा जाएगा.
- इसे देखो इतने जेवर पहन कर ऑफिस आ गई है. ये ऑफिस है या यहाँ पर फैशन शो हो रहा है?
- देखो गोलू कैसे घूर-घूर कर देख रहा है. जरा कोई अच्छी सी चीज़ पहन कर आ जाओ बस गोलू घूरने लगता है.
- ये तो बस सीट पर बैठी-बैठी बाल ही संवारती रहती है.
- गोलू गंजा हो चूका है पर फिर भी अपनी झालर को ही कंघी करता रहता है. इसे बताओ भई कि तू टकला हो चुका है ?
- ज़रा सा काम बोला था लेकर बैठी हुई है ? दस मिनट का काम दो घंटे में ?
- काम बाद में देता है पहले पूछता है कितने मिनट में हो जाएगा. अरे कोई हम मशीन हैं क्या ?
- देख रहा हूँ ये सब तमाशा. इनके भी पर कतरने पड़ेंगे.
- घूरता रहता है हमको. इसके पर भी कतरने पड़ेंगे.
लुब्बो लुबाव ये कि १. चीफ साब किसी को वैलेंटाइन नहीं बना सके और २. केबिन का शीशा ना होता तो विश्व युद्ध की सम्भावना थी.
साब का अंगरक्षक |
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https://jogharshwardhan.blogspot.com/2016/02/blog-post_5.html
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