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Sunday, 28 February 2016

पुश्तैनी घर

जब मैंने आठवीं पास की तो गरमी की छुट्टियों में पहली बार गाँव गई. दिल्ली के सरकारी क्वार्टरों के मुक़ाबले गाँव बिलकुल अलग थे - हरे भरे जंगल और पहाड़, शोर मचाती बरसाती नदी, अलग तरह के पेड़ पौधे, तरह तरह की चिड़ियां और अलग तरह के मकान. चीड़ के ऊँचे ऊँचे पेड़ों का घना जंगल. हमारे छोटे से गाँव जिबलखाल में मात्र 12-14 परिवार रहते थे.

सुबह गाय बकरियाँ को चराने ले जाते थे, दोपहर को आम के पेड़ के नीचे चरपाई डालकर ठंडी हवा के साथ साथ कच्ची अम्बियों का आनंद लेते. रात को चारपाइयों में लेटे लेटे तारे देखते रहते. दिल्ली के मुक़ाबले यहाँ आसमान साफ़ था इसलिए चाँद तारे ज्यादा बड़े, ज्यादा पास और सुंदर लगते थे. बस वहाँ से आने का मन नहीं करता था.

पहले जाते थे तो दिल्ली से 9 घंटे की रेल यात्रा के बाद कोटद्वार स्टेशन आता था. वहां से बस या जीप में लैंसडाउन की ओर 20-22 किमी की पहाड़ी घुमावदार सड़कों पर हिचकोले वाली यात्रा होती थी. भरोसाखाल तक पौने घंटे में पहुँच जाते थे. उसके बाद शुरू होती पैदल यात्रा नीचे की ओर. पहले चीड़ के जंगले में से, फिर खेतों के मुंडेरों पर उतरते हुए और फिर पथरीली पगडंडियों पर चलते हुए अपने गाँव पहुँचते थे. चीड़ के जंगल में बहती ठंडी हवा की सरसराहट और एक ख़ास खुशबू अभी तक याद है.

पर अब अपनी कार से यात्रा आसान और कम समय की हो गई है. दिल्ली से मेरठ, मवाना, बिजनोर, कोटद्वार, दुगड्डा होते हुए भरोसाखाल तक सड़क अच्छी है हालाँकि 2 लेन की ही है. वहां से गाँव तक कच्ची सड़क बनी है जो और 5-7 सालों में शायद ठीक ठाक बन जाए. हाँ गाँव में बिजली और पानी की सप्लाई शुरू हो गई है. पर इस बार हमने कार ऊपर के एक होटल में ही छोड़ दी और कच्चे रास्ते से पैदल ही प्रस्थान कर दिया.

पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली में ही बैंक में नौकरी मिल गई. वहाँ हर्ष से मुलाक़ात हुई और वहीं शादी भी कर ली. हमारे दो बेटे हुए और उनके साथ भी दो तीन बार आना हुआ. उन्हें भी गाँव में बहुत मजा आया. पर माँ पिताजी के स्वर्गवास होने के बाद गाँव जाना नहीं हुआ.

समय गुज़रा और हर्ष रिटायर हो गए और मैंने भी रिटायरमेंट ले ली. अब दफ़्तर की भागदौड़ समाप्त हुई, ख़ाली समय भी था और गाँव से बहुत सी मीठी यादें जुड़ी थीं तो एक बार फिर से 25-26 साल बाद गाँव जाने का विचार बना. देख कर आएँ अपना पुश्तैनी घर कैसा है हालाँकि अब परिवार में से कोई भी वहां नहीं रहता था. पर चलो और नहीं तो सैर सपाटा ही सही और हमने कौन सी छुट्टी मंज़ूर करानी है!

चीड़ का जंगल और बीच से जाती पगडंडियाँ
हर्ष के साथ. पीछे है पुश्तैनी घर और उससे भी पीछे दिख रही है एक पहाड़ी. उस पहाड़ी का जंगल 10-12 किमी आगे जा कर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में मिल जाता है   
ज़रा अंदर का हाल भी देखा जाए

एक नज़र सामने से

लगभग 5 - 6 किमी का पैदल पहाड़ी रास्ता 

और उसके बाद ऊँची नीची पगडण्डीयां

गाँव के घर का एक नमूना. नीचे सामान और चारा रखने की जगह और ऊपर निवास. काफी पीछे एक पंचायत घर बनता नज़र आ रहा है    

खाना और चाय भाभी के साथ. भाईसाहब BSF में थे जो अब नहीं रहे. बच्चे बाहर अलग अलग शहरों में रहते हैं. एक बहु और पोता साथ रह रहा है. भाभी को फॅमिली पेंशन मिलती है. 

..... यह फोटो-ब्लॉग गायत्री वर्धन के सौजन्य से


Saturday, 13 February 2016

राजा और वज़ीर

वीरानी छोटा सा पर बड़ा खुशहाल राज था. वहां का राजा बहुत ही बुद्धिमान और बलशाली था. वह प्रजा का ध्यान रखता था और वहां की प्रजा उससे डरती भी थी और प्यार भी करती थी.

वीरानी राज के बीचों-बीच पानी का बड़ा कुआं था जिसका पानी बहुत स्वादिष्ट और मीठा था. वीरानी राज के निवासी उसी कुएं का पानी पीते थे क्यूंकि मीठे पानी का एक मात्र स्रोत वही था. और इसीलिए वीरानी के राजा और उसके वज़ीर को भी उसी कुँए का पानी रोज़ भिजवाया जाता था.

पर यह खुशहाली एक दुश्मन को पसंद नहीं आई और उसने रात के अँधेरे में कुँए में एक नशा घोल दिया. भयानक हंसी के बीच बोला 'अब जो भी इस कुएं का पानी पियेगा पागल हो जाएगा हहाहाहा'.

अगली सुबह वीरानी शहर के निवासी उस कुएं का पानी पी कर पागल होने लग गए. परन्तु सुबह का पानी राजा और उसके वज़ीर तक अभी नहीं पहुंचा था.

दोपहर होते होते वीरानी राज के गली कूचों और बाज़ार में लोग इकट्ठे होने लगे और एक दूसरे के कानों में फुसफुसाने लगे. तरह तरह के विचार सामने आने लगे:
- आज तो राजा और वज़ीर मंत्री ने अभी तक पानी ही नहीं पिया. इन दोनों का तो दिमाग हिल गया लगता है.
- इनकी तो सोच ही बिगड़ गई लगती है.
- लगता है ये दोनों पागल हो गए हैं पागल.
- तो क्या हमारी जैसी अच्छी प्रजा का राजा एक पागल होगा? क्या हमारा वज़ीर एक पागल होगा?
- कुछ उपाय तो हमें करना होगा ना?
- अगर ये नहीं सुधरे तो इन्हें उखाड़ फेंकेंगे.

उस शाम राजा ने दरबार-ए-आम लगवाया. सोने का प्याला मंगवाया, उसमें कुएं का पानी भरवाया, प्याला सारे दरबार को दिखाकर पानी गटक लिया.
राजा ने प्याला अब वज़ीर को दिया. वजीर ने भी प्याला कुएं के पानी से भरवाया. प्याला उठाकर दरबार को दिखाया और होटों से लगा कर खाली कर दिया.

दरबार में ख़ुशी की लहर दौड़ गई. वीरानी राज के निवासियों ने ख़ुशी से नाचना गाना शुरू कर दिया:
- हमारे राजा और वज़ीर ठीक हो गए!
- मुबारक हो! मुबारक हो!
- हमारे राजा ज़िंदाबाद!
- हमारे वज़ीर ज़िंदाबाद!

राजा और वज़ीर

यह किस्सा खलील जिब्रान की एक कहानी The Wise King पर आधारित है जो उनके कहानी संग्रह The Madman में प्रकाशित हुआ है. जिब्रान का अरबी नाम जिब्रान खलील जिब्रान था और उनका जन्म लेबनान में 1883 हुआ. 12 वर्ष की आयु में माता पिता के साथ न्यू यॉर्क चले गए थे और वहीं बस गए थे. उनकी मृत्यु न्यू यॉर्क में 1931 में हुई और उनकी इच्छानुसार उन्हें लेबनान में 1932 दफनाया गया. वो एक कलाकार, चित्रकार, मूर्तिकार, कवि, दार्शनिक और लेखक थे. उनकी बहुत सी रचनाओं में से विशेष हैं : The Prophet और  Broken Wings.


Tuesday, 9 February 2016

रंगीन आसमान

पिछले दिनों देहरा दून से दिल्ली वापिस आते हुए (राष्ट्रीय राजमार्ग NH- 58) पर शाम को आसमान पर हलके बादल थे और सूर्यास्त हो रहा था. मेरठ बाईपास पर कार में से बैठे बैठे लिए गए कुछ चित्र :

लाल सूरज का छोटा सा लाल गोला 

बादलों और पेड़ों के पीछे सूरज की लालिमा 

ढलती शाम का एक अलग रंग 

Friday, 5 February 2016

शीशा

हमारे चीफ साब का दावा था कि वे उड़ती चिड़िया के पंख कतर देते हैं. कभी-कभी कहते थे वे उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेते हैं. जबकि हमें लगता था कि चश्में के मोटे लेंस में से चीफ साब को चिड़िया और कौव्वे का फर्क भी नहीं पता लगता होगा. ये बड़े साब लोग बड़ी-बड़ी डींग फेंकते हैं भाईजी. जितना बड़ा साब उतनी बड़ी डींग हांक देगा और आपको सुननी भी पड़ेगी.

हमारे चीफ साब ने कुछ दिन पहले ही ब्रांच ज्वाइन किया था. ब्रांच बड़ी है और दिल्ली मैं है इसलिए महिला कर्मचारी काफी हैं. एक तो साब की राशि महिलाओं से कम मेल खाती है और दूसरे महिला मंडल ने चीफ साहब का नामकरण सर्व सम्मति से 'गोलू' कर दिया था. आप तो सब समझते हैं कि ये नामकरण तो सब प्यार मोहब्बत की बातें हैं. ज्यादातर अपने तक ही सीमित रहती हैं. सबको नहीं बतानी होती.

चीफ साब के सिर के बाल डींगें मारते-मारते उड़ गए थे. बस किनारे किनारे बालों की एक झालर सी बची हुई थी जिसे बड़े अहतियात से संवारते रहते थे. रंग सांवला, कद 5' 2", कमर का बड़ा सा घेरा है जिसे बेल्ट ने मुश्किल से संभाला हुआ था. असल में बियर के शौकीन थे इसलिए शायद गोल मटोल हो गए थे.

चीफ साब केबिन के शीशे से बाहर हॉल में नज़र डालते तो बड़बड़ाने लगते. उधर महिला मंडल में से कोई अंदर नज़र डालती तो वो भुनभुनाने लगती. कुछ इस तरह का वार्तालाप चलता था शीशे के आर पार :

- बाल कटा कर आ गई है काम-धाम कुछ करना नहीं है.
- काम-धाम है नहीं गोलू के पास बस केबिन में बैठा-बैठा ताक-झांक करता रहता है.

- ये देख लो दोनों हॉल के बीचोबीच खड़ी बतिया रहीं हैं.
- देखो गोलू बैठा-बैठा कोस रहा है. कच्चा जबा जाएगा.

- इसे देखो इतने जेवर पहन कर ऑफिस आ गई है. ये ऑफिस है या यहाँ पर फैशन शो हो रहा है?
- देखो गोलू कैसे घूर-घूर कर देख रहा है. जरा कोई अच्छी सी चीज़ पहन कर आ जाओ बस गोलू घूरने लगता है.

- ये तो बस सीट पर बैठी-बैठी बाल ही संवारती रहती है.
- गोलू गंजा हो चूका है पर फिर भी अपनी झालर को ही कंघी करता रहता है. इसे बताओ भई कि तू टकला हो चुका है ?

- ज़रा सा काम बोला था लेकर बैठी हुई है ? दस मिनट का काम दो घंटे में ?
- काम बाद में देता है पहले पूछता है कितने मिनट में हो जाएगा. अरे कोई हम मशीन हैं क्या ?

- देख रहा हूँ ये सब तमाशा. इनके भी पर कतरने पड़ेंगे.
- घूरता रहता है हमको. इसके पर भी कतरने पड़ेंगे.

लुब्बो लुबाव ये कि १. चीफ साब किसी को वैलेंटाइन नहीं बना सके और २. केबिन का शीशा ना होता तो विश्व युद्ध की सम्भावना थी.

साब का अंगरक्षक 

Thursday, 4 February 2016

सुजाता और शम्मी

मिस वी. सुजाता की पहली पोस्टिंग कनाट प्लेस शाखा में हो गई. ऐसी पहली पोस्टिंग मिलनी आसान नहीं होती जनाब. नए और आम अफसर के लिए तो पहली पोस्टिंग मोहनजोदाड़ो या झुमरी तलैय्या में होती है. फिर अगर दिल्ली मिल भी गई तो ब्रांच होगी पटपड़ गंज में या फिर नजफ़ गढ़ में. कनाट प्लेस तो बस खास-उल-खास लोगों के लिए है और जाहिर है कि मिस वी. सुजाता की पैठ दरबार-ए-खास में भी रही होगी.

पर कई बार अनहोनी पोस्टिंग भी हो जाती है. मसलन श्री शम्मी नरूला मेरिट लिस्ट में 28वें नम्बर पर थे और मिस वी. सुजाता 30वें नंबर पर. मिस वी. सुजाता को दिल्ली पोस्टिंग देनी थी इसलिए अपने शम्मी को भी दिल्ली हाथ लग गई. इस तरह के झमेले तो HRD वाले अक्सर करते रहते हैं. उसके बाद सर्कुलर निकाल देते हैं कि खबरदार किसी ने बाहर वाले से सिफारिश लगवाई तो रोहतांग दर्रे में पोस्टिंग कर दी जाएगी.

मिस वी. सुजाता सांवली, छरहरी, घुंघराले बालों वाली और बड़ी-बड़ी आँखों वाली थी. बात मुस्करा के करती और बात करने से और अंग्रेजी बोलने से पता लग गया की मिस वी. सुजाता कन्या कुमारी की तरफ से आई है. हम तो Sujata लिखते थे वो Sujatha लिखती थी. कभी-कभी कोई सरकारी सफ़ेद अम्बेसडर छोड़ने आती थी मिस वी. सुजाता को जिससे लगता था की उसके पिताश्री कोई बड़े अफसर हैं भारत सरकार में.  

अपने श्री शम्मी नरूला जी सरकारी बसों में आते थे. गेहुआं रंग, आँखों पे चश्मा और धीर-गंभीर स्वभाव. मिडल क्लास के होनहार बालक. इनकी अपनी अंग्रेजी थी - मोर्निंग जी, थैंक्यू जी, आई नो जी. श्री शम्मी नरूला जी कसौली, हिमाचल प्रदेश के रहने वाले थे जी.

दोनों ने एक ही दिन ब्रांच में ज्वाइन किया, मुस्कराए और दोनों का टांका वहीं के वहीं भिड़ गया. सफ़ेद अम्बेसडर के ड्राईवर को इश्क़ की खुशबू आ गई. खबर मिस वी. सुजाता के पिताश्री तक पहुँच गई जो पुरातन पंथी और लकीर के फ़क़ीर थे उन्होंने बहुत डांटा. तो जवाब में बिटिया ने भी ना कर दी और घर में शीत-युद्ध शुरू हो गया.

खबर श्री शम्मी की मम्मी तक भी पहुँच गई. मम्मी ने कहा : - बेटा सांवली ही सही बस तू ले आ. हम इडली डोसे ही खा लेंगे.

मिस वी. सुजाता लाइन पे नहीं आई तो पिताश्री ने एक दिन अपने पीए को बुलाया :
- बैंक के GM को फ़ोन लगाओ.
- जनरल मेनेजर साहब एक फेवर चाहिए. श्री शम्मी नरूला की ट्रान्सफर कर दो. दिल्ली के बाहर करो फ़ौरन.
- सर अभी तो एक साल भी नहीं हुआ है मुश्किल है सर. एक साल तो होने दीजिये. अफसर यूनियन हल्ला मचा देगी सर. मेरे हाथ बंधे हुए हैं सर.
- नो नो नो. अगर तुम्हारे हाथ बंधे हुए हैं तो तुम्हारा बिस्तर भी बंधवा देता हूँ. ठीक है ?
- सर सर प्लीज़ सर ! मैं कुछ करता हूँ सर.

अगले दिन श्री शम्मी नरूला की पोस्टिंग कसौली कर दी गई
 - श्री शम्मी नरूला जी आपकी पोस्टिंग आपके घर के नजदीक की जाती है. मुबारक हो ! पार्टी लो और जाओ. जल्दी फूट लो पता नहीं कहीं और ना फेंक दें !

मिस वी. सुजाता ने सोचा - पिताश्री तो नहीं ?
श्री शम्मी नरूला ने सोचा - सुसरा बना विलेन?

खैर कसौली पहुँच कर तीन महीनों में श्री शम्मी नरूला ने सेटिंग कर ली. मुख्य मंत्री के दफ्तर से एक दिन GM को फ़ोन गया :
- भई GM साब आपके बैंक से बड़ी नाराज़गी है. कुछ काम नहीं हो रहा, कोई सर्विस नहीं दे रहा बैंक. अपना सरकारी डिपाजिट निकालने से पहले मैं सोच्या त्वानूं इन्फॉर्म कर दित्ता जाए.
- सर सर सर ! की नाराज़गी हो गई सर ? माफ़ी चांदा जी कोई गलती हो गयी सर ? मैंनू सेवा दस्सो सर. आपके काम तो हर हाल में करने हैं सर.
- बड़ा काम नहीं है GM साब. अपना बच्चा है शम्मी नरूला. उसको कनाट प्लेस ट्रान्सफर कर दो या फिर मिस वी.सुजाता को यहाँ भेज दो. बस छोटा सा काम है. मुझे करके बता देना. किन्नौरी सेब की पेटी भिजवा रहा हूँ.

आजकल तो श्रीमति वी. सुजाता नरूला और श्री शम्मी नरूला बैंक से रिटायर हो चुके हैं और बेटे के साथ ऑस्ट्रेलिया में ही रहते हैं. अगर आपने वहां मिलने जाना हो तो मेरे से एड्रेस ले जाना.      

जय हो !