कुछ दिनों पहले श्रीमती मेरी-थेरेज़ अपने परिवार सहित फ़्रांस से भारत भ्रमण पर आईं । श्रीमती मेरी-थेरेज़ को 14 मार्च को अचानक तेज़ सर दर्द हुआ और वे बेहोश हो गईं । उन्हे तुरंत मैक्स अस्पताल दिल्ली में दाखिल करवाया गया । डाक्टरों ने बताया की उनका दिमाग क्षति ग्रस्त हो गया था और उनके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था अर्थात ब्रेन डेड हो गया था । उनकी उम्र 68 बरस की थी.
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परिवार के लिए यह बड़ी कठिन घड़ी थी । उनके 41 वर्षीय पुत्र सेबासटियन ने माँ के बारे में बताया की वे हमेशा दूसरों की मदद करती रहती थीं । उनका इच्छा ये भी थी कि उनके प्राण त्यागने के समय उनका परिवार उनके पास ही हो.
डाक्टरों व परिवार के बीच बातचीत हुई । उनके पुत्र ने बताया की उनके लिए यह मानना कठिन था की माँ का ब्रेन डैड हो चुका था । परन्तु उन्होंने माँ की भावनाओं को देखते हुए फ़ैसला कर लिया की माँ के अंग दान कर देंगे जिससे किसी ज़रूरतमंद की मदद हो सके.
श्रीमती मेरी-थेरेज़ की एक किडनी (याने गुर्दा ) 54 वर्षीय महिला को लगाई गई जो दो साल से डायलिसिस करा रहीं थी.
दूसरी किडनी 45 वर्षीय महिला को लगाई गई जो की लगभग पांच साल से डायलिसिस की यातना झेल रहीं थी ।
उनका लीवर एक 38 वर्षीय फ़ौजी को लगाया गया जिसे liver transplant की सख़्त ज़रूरत थी
यह ख़बर पढ़ कर मन में सहानुभूति, करुणा और आदर की मिली जुली भावनाऐं आईं । पहले कभी इस बात की ओर ज़्यादा ध्यान नहीं िदया था । हां नेत्र दान कैम्प में एक बार पंजीकरण करवा दिया था । नेत्र दान का तो भारत में काफ़ी प्रचलन हो गया है परंतु अंग दान अभी इतना ज़्यादा प्रचलित नहीं हुआ है ।
अब अंग दान से सम्बन्धित जानकारी के लिए इंटरनेट पर नज़र डाली और कुछ बातें समझ में आई जो इस तरह से हैं ।
दिमाग का काम बंद कर देना या ब्रेन डेड हो जाना क़ानूनी तौर पर मृत्यु है । इस अवस्था में मशीन द्वारा रक्त संचार जारी रखा जा सकता है और अंगों का प्रत्यारोपण किसी ज़रूरतमंद के शरीर में किया जा सकता है बशर्ते मृतक के नज़दीक़ी इस बात के लिए तैयार हों ।
कुछ अंग ऐसे हैं जो एक जीवित व्यक्ति भी दान दे सकता है और इसी कारण से इस कार्य में बहुत सी शिकायत सुनी गई की अंगों का व्यापार होने लग गया है । इस पर सरकार ने 1994 में क़ानून बनाया ताकी अंग दान को बढ़ावा मिले । इस क़ानून में 2011 में संशोधन किया गया । और अब एक विस्तृत क़ानून तैयार िकया जा रहा है ।
कुछ देशों में ड्राइविंग लाइसेंस में यह शर्त डाल दी जाती है की अगर सड़क दुर्घटना में चालक की मृत्यु हो जाती है तो कुछ अंग बिना क़ानूनी अड़चन के निकाल लिए जाएँगे ।
ईरान में अंग देने वाला क़ानूनी तौर पर मुआवजा पाने का हक़दार होता है । इस व्यवस्था के कारण वहाँ अंग पाने वालों की सूची लगभग न के बराबर रहती है ओर transplant का काम काफ़ी व्यवस्थित है ।
दुनिया के सभी धर्मों में अंगदान को अच्छा ही माना गया है । प्राचीन ग्रंथों में ऋषि दधीची का वर्णन आया है जिन्होंने जीते जी अस्थियों का दान इन्द्र देवता को दिया था उन अस्थियों से बने शस्त्रों से असुरों को परास्त किया गया ।
अंग दान का भावनात्मक पहलू भी है जिसकी वजह से इतनी बड़ी जनसंख्या में से बहुत ही कम लोग अंग दान कर रहे हैं। इस विषय पर खुल कर सामाजिक चर्चा करने की ज़रूरत है । कोख किराए पर देना (surrogate mothers) और 'लिव इन' सम्बन्ध भी तो आम बात होती जा रही है और क़ानूनी तौर से भी इन को स्वीकार कर लिया गया है । तो इस बदलते समय में अंग दान की भी एक सम्मान जनक जगह होनी चाहिए ।
मैं तो गम्भीरता पूर्वक इस विषय पर विचार कर रहा हूँ की वसीहत बना दूँ की भैया मेरे प्राण त्यागने के बाद जो भी अंग वंग चाहो वो निकाल लो । अब मुझे इस बात की जानकारी तो नहीं है कि प्राण त्यागने के बाद नीली छतरी के तले कहाँ बसेरा होगा । ये भी नहीं मालूम की मैं उन्हें - जिन्होंने मेरे अंग लगा रखे हों- देख पाउँगा या नहीं । या फिर उनमें रह कर कुछ महसूस कर पाऊँगा या नहीं । जो भी हो अंग दान से किसी का तो भला होगा, कोई तो याद करेगा की किसी फन्ने खां से पाला पड़ा था !
इस विषय पर बहुत से NGO देश में कार्यरत हैं । और अधिक जानकारी के लिए इनमें से कुछ नाम नीचे लिखें हैं जिनसे सम्पर्क किया जा सकता है :
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