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Sunday, 20 April 2014

चुनावी चाय पानी

पिछले साल सपरिवार राजस्थान और गुजरात में काफ़ी लम्बी कार यात्रा की । जयपुर, िचतौड़गढ़, अहमदाबाद , जूनागढ़, सासनगीर, सोमनाथ, द्वारका वग़ैरा । ज़्यादातर खाना पीना हाईवे ढाबों और रेस्तराँ में ही हुआ । खाने के साथ छाछ भी पीने को मिलती थी कभी गिलास में और कभी जग भर के । छाछ पाचक और रोचक भी लगी । बड़ा आनन्द आया छाछ पी कर । 

पर चुनाव के चलते मोदी जी ने छाछ के बजाए चाय की चर्चा बढ़ा दी । अब किसी विरोधी दल ने चाय का विरोध नहीं किया जबकी चर्चा का विरोध तो हो ही रहाहै । ऐसी कोई कोशिश नहीं की  गई िक भई चाय के बजाए छाछ पर चुनावी चर्चा कर ली जाए । चाय है तो िफरंगीयों की देन जबकी छाछ तो बस ठेठ देसी पेय है । 

पंजाब और हरियाणा में चर्चा का बढ़िया सा पेय था लस्सी । बड़े बड़े और कड़ेदार िगलासों में लस्सी लेकर चर्चा होती तो मज़ा ही कुछ और होता़ । लस्सी नमकीन और मीठी दोनों ही उपलब्ध हैं और लाभकारी भी है । इसलिए दोनों पक्षों को मज़ा देती लस्सी । 

महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, और देश के बहुत से भागों में इस मौसम में गन्ने के रस का बहुत प्रचलन हो जाता है । रस में अदरक, पुदीना, मसाला और निम्बू डाल कर रस क्या ख़ूब ज़ायक़ेदार बनता है । क़रीब क़रीब हर पार्टी को बहस करने में मािफक आता । लगभग हर पार्टी का स्वाद उसमें शामिल है । क्या कहते हो?

इस मौसम के चलते ठंडाई, आम का पना और ठंडा मीठा दूध भी कारगर हो सकता था । 

और देश के साउथ में गरमा गरम रस्सम की क्या बात । इमली और मसालेदार पेय पर ज़बान चटक हो जाती है और भाषा भी चटकारे दार हो जाती और चुनावी चर्चा भी । 

कुछ इलाक़ों में काफ़ी भी उपलब्ध है जैसे की िचकमगलूर और केरल । काफ़ी पर भी चर्चा भी  की जा सकती थी जिसमें कुछ विदेशी मेहमान भी शामिल हो जाते । 

अगर आप समंदर तट के साथ साथ गोआ, केरल और ओडीशा की ओर  चलें तो नारियल के पेड़ों की कमी नहीं है । ऐसे में नारियल पानी का उपयोग चुनावी चर्चा के लिए इतमीनान से हो सकता था । पेट भी शांत रहता और बहस भी शांति पूर्वक हो जाती । कहीं कहीं नीरा भी उपलब्ध है उसका प्रयोग भी किया जा सकता था । ताड़ी का इंतज़ाम होता तो तगड़ा प्रभाव ले आता बहस में । 

पर इन सब के बीच एक और शानदार पेय को क्यूँ भूल जाएँ ?  गोल गप्पे का पानी ! ये भी तो पूरे भारत में मशहूर है कहीं पानी पूड़ी के नाम से तो कहीं पुचके के नाम से । कई तरह के पानी उपलब्ध हैं - इमली वाला, पुदीने वाला, हींग वाला वग़ैरह ।  गोल गप्पे पर चर्चा कर लेते । कम से कम कुछ मिनटों के लिए िवरोिधयों के मुँह सी सी कर के बंद हो जाते । और कुछ देर के िलए तो शांत रहते । 

अब अगर ठंडी ठंडी बीयर का नाम ले लिया तो बस बहस  १६ मई को भी पार कर जाती । तो कथा यहीं समाप्त की जाए और प्रस्थान किया जाए । 

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