Pages

Sunday 31 December 2017

पहाड़ी मसाले

पिछले दिनों ऋषिकेश से आगे देवप्रयाग की ओर जाना हुआ. आम तौर पे तो सड़क किनारे चाय की दुकानें  नज़र आया करती थीं पर इस बार बहुत सी छोटी छोटी दुकानें दिखाई पड़ीं जिनमें पैकेट्स रखे हुए थे. गाड़ी रोक कर देखा तो स्ठानीय दालें और मसाले किलो और आधा किलो के पैक में बिक रहे थे. पहाड़ी किरयाना !

पहाड़ी खेती आसान नहीं है क्यूंकि सारा काम खुद ही करना पड़ता है ट्रेक्टर वगैरा नहीं चल सकते हैं. सिंचाई के साधन भी नहीं हैं बस मानसून भरोसे है. गाँव में जवान लोग नौकरी के लिए पलायन कर गए हैं और ज्यादातर पेंशनर और बच्चे हैं  खेती के लिए जोश कम होता जा रहा है. 

इनमें से कुछ चीज़ों  के नाम तो आप जानते ही होंगे जैसे तौर या तुर या तुड़, गहथ या गैथ, लोविया याने लोबिया, हल्दी, मिर्च वगैरा बाकियों के बारे में जो जानकारी मिली वो नीचे दी हुई है

चलिए साब सौदा हो गया 

दालें - रैश को रयास या झिलंगी भी कहा जाता है जो हलकी हरी या पीली दाल है. सुन्टा या लोविया का दूसरा नाम लोबिया भी है.
अनाज - भट्ट दो प्रकार के हैं काले और सफ़ेद. सफ़ेद भट्ट सोयाबीन ही है. तवे पर भट्ट बिना तेल के भून कर चबैने के काम आते हैं. कौणी और झंगोरा चावल हैं जिन्हें स्वांत के चावल भी कहते हैं.
मसाले - फरण एक तरह का धनिया है जो सुखा कर छौंक या तड़के में इस्तेमाल होता है. यह ऊँचाई पर ही पैदा होता है. जख्या हरी सरसों या राई की तरह है जो हरी सब्जियों में छौंक लगाने के काम आता है. कंडाली या बिच्छू बूटी हालांकि छू जाने से बुरी तरह से जलन पैदा कर देती है परन्तु इसे उबाल कर एक ख़ास अंदाज में साग की तरह पकाई भी जा सकती है.


- गायत्री वर्धन की प्रस्तुति. Contributed by Gayatri Wardhan.



Sunday 10 December 2017

Hoysaleswara Temple, Karnataka

Hoysaleswara Temple is situated in Halebeedu taluka in Hassan district of Karnataka. It is approx 220 km from Bangalore & 30 km from Hassan. Nearest railway stations are Hassan & Chikmaglur.

Average height of the town is 900 meters above sea-level & breezy weather is similar to Bangalore. Best time to visit is Oct - Mar when the humidity level is low. Halebeedu, Belur & nearby area is predominantly agricultural & village roads are not so good. Take care while driving.

Halebeedu or 'old city' in Kannada language was also known as Dorasamudra or Dwarasamudra as the fort there was situated near a huge water body. Halebeedu along with Belur - which is 16 km away, formed the capital of Hoysala empire in 12th century.

There are two temples Hoysaleshwara & Shantaleshwara which were financed by a wealthy landlord of that time named Ketamala. The temple complex was completed in the year 1121. The temples are attributed to prominent Hoysala King Vishnuvardhana Hoysala & his Queen Shantala. Hoyesaleshwara temple is dedicated to Lord Shiva.

There is a legend about the name Hoysala. It is said that Sala & his guru Sudatta Muni were performing a ritual in Vasantha Parmeshwari temple in nearby Sosevur & a tiger attacked them(some say it was a lion). Sudatta Muni gave a call of 'Hoye' to Sala who struck the tiger down. Thus began the Hoysala dynasty which ruled for 300 years with Sala as the first ruler. The scene of fight between Sala & the tiger has been carved in stone in several places & it became an emblem of the Hoysala Dynasty.


Hoyesala Emblem(This pic is from Channakesava temple Belur)
Of the Hoysala kings name of King Vishnuvardhana is very prominent. He was great patron of art & is said to have commissioned 1500 temples of which 100 have survived. Queen Shantala was an accomplished dancer.  

The capital was ransacked by armies of Delhi Sultans led by Malik Kafur. Thereafter the capital lost the importance & fell in neglect. Some photos:


The temple is built with soapstone on an star shaped elevated platform 'jagati'. Towers of the temples are missing lost perhaps to the elements.

The outer walls of the two temples have rows of exquisite & intricate sculptures 

Eight horizontal rows of friezes run along the temple for about 200 meters. These depict elephants on the bottom row for strength, lions for courage, flowers for decoration, horses for speed, another row of flowers for decoration, mythical  beast Makara & on the top is the row of Hansas. Interesting to note that in the entire length of friezes no two animals are alike

Guide uses a stick to point out small statues to visitors.  Every inch of space has been utilized for sculpting & carving of flowers, animals & human forms. Most of  these statues depict stories from Ramayana & Mahabharata

Beautiful entrance with Dwarpals ( door keepers) in full regal attire & jewellery in intricate details. Several attempts to put arms back have gone in vain 

A row of mythical beast Makara in the middle has features of elephant, lion, crocodile, mahisha, horse & peacock. Over this is a row of Hansas (swans)  

Decorated & massive Nandi bull guarding the temple

Lord Krishna has lifted the Govardhan.  Cows along with residents have taken the shelter underneath


A scene from Mahabharata. Fierce fight is on between Karan & Arjun

Dancing lady with musicians 

Demon has been beheaded

Lord Rama has shot an arrow from behind the seven trees & hit Bali

A touch of 'mithuna'

Stone carving of Abhimanu entering the Chakravuha

Bhim in angry mood has finished five elephants & their mahaouts & fighting with another

Victory of Mahishasur Mardini over the Mahishasur 
.



Friday 17 November 2017

घोड़ा गाड़ी

दिल्ली के दम घोंटू प्रदूषण के कई कारण है जिनमें से एक है ट्रकों का धुआं. पुराने ट्रक और मिलावटी डीज़ल का कमाल है ये सब. पर हमारे मेरठ के ट्रांसपोर्टर हैं मुन्ना लाल जिनकी गाड़ी ज़ीरो प्रदूषण वाली है. तड़के पांच बजे से शाम चार बजे तक माल ढुलाई करती है पर कोई प्रदूषण नहीं होता !

मुन्ना लाल की गाड़ी

मुन्ना लाल की उम्र 55 बरस की है और बचपन से ही घोड़े, गाय और भैंस से दोस्ती है. मुन्ना लाल से उनकी घोड़ा गाड़ी के विषय में बातचीत की और इस काम की इकोनॉमिक्स समझने की कोशिश की.
- मुन्ना लाल ज़रा हिसाब किताब तो बताओ अपनी गाड़ी का ? 
- लो जी लिखो बता रा मैं : 
घोड़ी - 20000
लपोड़ी - 4000 ( लपोड़ी याने जीन या काठी जो घोड़ी के पीठ पर कसी जाती है ).
बुग्गी - 10000. और जी भगवान आपका भला करे यो मत लिखियो नूं ई बता रा अक मंदिर का दान और गुड़ चने का परसाद बांट्या पांच सौ रुपे. अब आगे चलो जी रोज का चारा दाना 150 रुपे और सब्जी मंडी के चार फेरे हो गए तो मिले छ सौ रुपे. कदी कदी सादी ब्या या मेले में चली जा तो हजार रुपे भी मिल सकें.

कुल मिला कर मुन्ना लाल की दाल रोटी चल रही है ज़रा सा मक्खन की कमी है. पर ये कमी उसे नहीं बल्कि मुझे महसूस हो रही है ! बहरहाल इस गाड़ी के कई फायदे हैं : ड्राईवर का ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवाना पड़ता है, गाड़ी का कोई पंजीकरण नहीं करवाना होता है और इसका एक byproduct भी है खाद जो आजकल बड़ी कीमती है. और जी घणी अच्छी बात है की सम विषम ( odd even ) का कोई चक्कर ना है !




Saturday 11 November 2017

कुल्थी परांठा

उत्तराखंड में एक पहाड़ी दाल काफी इस्तेमाल की जाती है जिसका नाम है गैथ या कुल्थी. इस दाल के भरवां पराठे भी बनाए जाते हैं जो खाने में बड़े ही स्वादिष्ट और पौष्टिक भी होते हैं. इस दाल को लेकर एक गढ़वाली कहावत है : "पुटगी पीठ म लग जैली" याने इस दाल को खाने वाले का पेट पीठ में लग जाएगा ( चर्बी नहीं चढ़ेगी ) !

कुल्थी की दाल का परांठा 
कुल्थी की दाल के और भी नाम हैं जैसे - कुरथी, कुलथी, खरथी, गैथ या गराहट. अंग्रेजी में इसे हॉर्स ग्राम कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम है Macrotyloma Uniflorum. ज्यादातर पथरीली जमीन पर पैदा होने के कारण कुल्थी के पौधे का एक नाम पत्थरचट्टा भी है. संस्कृत में इस दाल का नाम कुलत्थिक है. दाल के दाने देखने में गोल और चपटे हैं और हलके भूरे चितकबरे रंग में हैं. हाथ लगाने से दाने चिकने से महसूस होते हैं.

कुल्थी की दाल 
परांठा बनाने की विधि : चार परांठे बनाने के लिए 250 ग्राम गैथ साफ़ कर के रात को भिगो दें. सुबह उसी पानी में उबाल लें. दाल को ठंडा होने के बाद छाननी में निकाल लें. पानी निथरने के बाद दाल को मसल लें. इसमें बारीक कटा प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया और थोडा सा अदरक कद्दूकस कर के मिला लें. नमक स्वाद अनुसार डाल कर अच्छी तरह से मिला लें. तैयार पीठी से भरवां परांठा बना लें और देसी घी से सेक लें. गरम परांठे को  चटनी और घी या मक्खन के साथ सर्व करें.


 
दाल की पीठी 


भरवें परांठे की तैयारी 

भिगोई दाल के बचे हुए पानी में निम्बू निचोड़ कर सूप बना लें. सूप टेस्टी भी होता है और फायदेमंद भी. इस दाल के साथ राजमा भी मिला कर बनाई जा सकती है.

कुल्थी के गुण : इस दाल में खनिजों के अलावा प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट प्रचुर मात्रा में होता है. इस दाल को पथरी- तोड़ माना जाता है. दाल का पानी लगातार सेवन करने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी घुल कर निकलने लग जाती है. इस का एक सरल सा उपाय है की 15-20 ग्राम दाल को एक पाव पानी में रात को भिगो दिया जाए और सुबह खाली पेट पानी पी लिया जाए. उसी दाल में फिर पानी डाल दिया जाए और दोपहर को और फिर रात को पी लिया जाए. ये दाल इसी तरह दो दिन इस्तेमाल की जा सकती है. अन्यथा भी यह किसी और दाल की तरह पकाई जा सकती है. चूँकि ये गलने में समय लेती है इसलिए रात को भिगो कर रख देना अच्छा रहेगा. कुल्थी की दाल का पानी पीलिया के रोगी के लिए भी अच्छा माना गया है. ये दाल उत्तराखंड के अलावा दक्षिण भारत और आस पास के देशों में भी पाई जाती है.


* गायत्री वर्धन के सौजन्य से   *** Contributed by Gayatri Wardhan *


Tuesday 7 November 2017

डुबकी

शादी की तैयारी हो रही थी पर इतने बड़े आयोजन में चुटर पुटर काम तो कभी ख़तम ही नहीं होते. किसी के नए कपड़े आने बाकी हैं, किसी का मोबाइल नहीं मिल रहा, किसी के जूते नहीं मिल रहे, किसी की गाड़ी लेट आई है या फिर हलवाई के मसाले रख कर भूल गए वगैरा वगैरा. रावत जी की मुस्कराहट कभी आती थी और कभी चली जाती थी. शादी ब्याह में ये सब चलता ही रहता है. रावत जी के दो बेटों की शादी हो चुकी थी और ये तीसरी शादी इन की बिटिया प्रिया की देहरादून में हो रही थी. खुश भी थे पर बीच बीच में मुस्कराहट गायब हो जाती थी. इसका कारण इंतज़ाम की दिक़्क़त नहीं थी बल्कि इसका कारण कुछ और ही था - बंगाली दुल्हा. 

सूरत सिंह रावत गढ़वाली राजपूत थे और उत्तराखंड के पौड़ी जिले के रहने वाले थे. दोनों बेटे फौज में थे और अपने अपने परिवारों सहित अलग अलग शहरों में पोस्टेड थे. अब छोटी बिटिया प्रिया ने बारवीं पास करने के बाद सॉफ्टवेयर का कोर्स किया, फिर एमबीए किया और फिर पुणे में नौकरी लग गई. बड़े भैय्या की इत्तेफाकन पोस्टिंग भी पुणे में ही थी. बड़े भाई को रहने के लिए क्वार्टर मिला हुआ था तो रावत जी को अच्छा लगा कि प्रिया फॅमिली में ही रह कर कुछ पैसे भी बचा लेगी. कुछ पैसे रावत जी ने भी बचा रखे हैं तो कुल मिलकर शादी बढ़िया हो जाएगी. पहाड़ी राजपूतों के कई रिश्ते भी आ रहे थे. कुंडली मिलाने का काम भी बीच बीच में चल रहा था हालांकि प्रिया ने अभी शादी के लिए हाँ नहीं की थी. फोन पर कुछ इस तरह से बातें होती थी : 

रावत जी - प्रिया बेटी हाल ठिक ठाक छिं ? नौकरी ठिक चलणि ? ले अपण माँ से बात कर.
मम्मी जी - प्रिया बेटा ब्यो क बारम के सोच ? रिश्ता आणा छिं पत्री भी मिलनी च. कब करण ब्यो ( प्रिया ब्याह के बारे में क्या सोचा है ? रिश्ते आ रहे हैं पत्री भी मिल रही है. कब करना है ब्याह ) ?
प्रिया - के जल्दि होणी तुमथे ? अभी निं करण ब्यो ( क्या जल्दी है तुमको ? अभी नहीं करना है ब्याह ) !
मम्मी जी - लो फोन ही काट द्या ! ब्यो मा अबेर होणी नोनी कतई न बुनी ( लो फोन ही काट दिया ! ब्याह में देर हो रही है लड़की कतई न बोल रही है ).

जनवरी में पता लगा कि प्रिया ऑफिस के किसी सुदीप्तो भट्टाचार्य नाम के लड़के को लेकर भाई के घर आई थी. वहां भाई भाभी ने सुदिप्तो की अच्छी खातिरदारी की और उसके जाने के बाद मम्मी पापा को फोन करके बता भी दिया. बस तब से ही मम्मी जी और पिता जी की परेशानी चालू हो गई थी. कुछ इस तरह के डायलॉग आपस में चल रहे थे :
- पहाड़म क्या रिश्ता नि मिलना छिं जो तू देशिम जाणी छे ( पहाड़ में रिश्ता नहीं मिला जो तू दूसरे देश में जा रही है ) ?
- बोली भाषा फरक च हमुल कण के बचाण ऊँक दगड़ी ( बोली भाषा फर्क है कैसे बातचीत होगी उनके साथ ) ? ?
- न बाबा इन ना केर ( न बाबा ऐसा न कर ) !
- वो बामण छिन हम जजमान ( वो ब्राह्मण है और हम राजपूत यजमान ) ?
- सब पहाड़म थू थू व्हे जाएल ( सारे पहाड़ में थू थू हो जाएगी ).
- कन दिमाग फिर इ नोनिक जरूर बंगालिल जादू केर द्या ( कैसे दिमाग फिर गया इस लड़की का. जरूर बंगाली ने जादू कर दिया ) !

पर प्रिया ने तो अपने फैसले की घोषणा कर दी थी. भाइयों ने भी सपोर्ट कर दिया और अब शादी होने वाली थी. शादी की गहमा गहमी में रावत जी को बीच बीच में गुस्सा आ जाता था. इस लड़की ने ये क्या किया ? बंगालियों में कैसे एडजस्ट होगी ? पेैल दिन ही ईंक टेंटुआ दबैक गदनम धोल दींण छ ( पहले दिन ही इसका टेंटुआ दबा के नदी की धार में डाल देना था ) !
मम्मी की चिंता लेन देन और पूजा पाठ को लेकर थी. पता नहीं दुल्हे की ढंग से पूजा भी की होगी या नहीं. जो भी हो अपनी मान्यताएं तो पूरी करनी थी. लड़की का हल्दी हाथ का कार्यक्रम शुरू हो गया.
रावत जी प्रिया की मम्मी से बोलते रहते,
- तू अपण बोली भाषा ठिक केर ले. यत अंग्रेजीम बच्या या बंगलीम ( तू अपनी भाषा ठीक कर ले. या तो अंग्रेजी में बात कर या बंगाली में ) !
- सुपरि चबाणी कु जाणी के बुनी ? लड़का त हमार जन हि छ पर बचाणा कि कुछ पता नि चलणु ( सुपारी चबा के जाने क्या बोलती है समधन. लड़का तो हमारे जैसा ही है पर बातचीत समझ नहीं आ रही है) ?

उधर प्रिया अपने ही चक्कर में लगी हुई थी. अग्नि के सात फेरे जितनी जल्दी ख़तम हो जाएं उतना ही अच्छा है. वरना रिश्तेदारों की टीका टिप्पणी से मम्मी और पिताजी परेशान हो जाएंगे. उसने पंडित जी को पकड़ा,
- बामण बाडा जी मंगलाचार और बेदी शोर्ट-कट म हूण चेणी. टाइम अद्धा घंटा कुल, ठीक च ( ब्राह्मण देवता मंगलाचार और फेरे शोर्ट-कट में होने हैं. टाइम आधा घंटा है केवल. ठीक है ) ?
इस पर पंडित जी ने पहले ना नुकुर तो की पर मौके की नज़ाकत देखकर तैयार भी हो गए. अपनी पोथी निकाल कर मुख्य मुख्य मन्त्रों वाले पन्नों पर कागज़ के झंडियाँ लगा दीं. फिर सभी मन्त्रों का समय जोड़ा और कहा,
- चल ठिक च अद्धा घंटम कारज व्हे जाल. तू खुस रओ ( चल ठीक है आधे घंटे में कार्य हो जाएगा. तू खुश रह ) !

फेरों का कार्यक्रम पचीस मिनट में ही निपट गया और रावत जी, मम्मी जी और प्रिया ने चैन की सांस ली. मेहमानों ने पकवानों का स्वाद लिया, लिफाफे दिए और सरक लिए. रावत जी और मम्मी जी प्रिया को बार बार धड़कते दिलों से आशीर्वाद देते रहे :
- जा बुबा, जा प्रिया, जा बेटा तू सुखी रओ !
- चिरंजीव रओ !
- हमर पहाड़ियों क नाम न खराब करीं ( हम पहाड़ियों का नाम नहीं खराब करना ) !
- खूब भलु बनि कर रओ ( खूब भली बन कर रहना ) !

प्रिया की विदाई तो हो गई पर पर दिल की बैचेनी विदा नहीं हुई. तीन महीने भी नहीं गुज़रे कि दोनों ने पुणे की टिकट कटा ली. प्रिया से मिलकर दोनों आश्वस्त हो गए. जवांई राजा से मिलकर भी तसल्ली हुई की ठीक ठाक है. जवांई बाबू ने प्रस्ताव किया की सब मिलकर कलकत्ते और खड़गपुर घूम के आते हैं और उनका घर भी देख कर आते हैं. हवाई जहाज में रावत जी और मम्मी जी पहली बार बैठे बहुत से मंदिर देखे, समुंदर देखा, पानी के जहाज में सैर की और समधी समधन से मिले. तबियत खुश हो गई.

लौट कर मम्मी जी ने रावत जी से कहा,
- जवें भलु आदिम च इन खुजाण तुमार बस म भी निं छ. सब त ठिक चलणु हम सुद्धि घबराणा छै. नोनि सुखि च.( जवाईं भला आदमी है इस जैसा खोजना तुम्हारे बस का भी नहीं था. सब ठीक चल रहा है हम यूँही घबरा रहे थे. लड़की सुखी है ).
रावत जी ने जवाब दिया,
- चल भग्यान सीधा हरिद्वार जौला और डुबकी लगौला ( चल भाग्यवान सीधा हरिद्वार चलें और डुबकी लगाएं ) !

हर हर गंगे 

गायत्री वर्धन की कलम से  *** Contributed by Gayatri Wardhan 



Friday 3 November 2017

नवम्बर का नमस्कार

पेंशन लेने वालों के लिए नवम्बर का महीना बड़े काम का महीना है जी. पेंशनर को पेंशन देने वालों को बताना पड़ता है कि हे अन्नदाता मैं हूँ और मैं ज़िंदा हूँ इसलिए हे पेंशनदाता म्हारी पेंशन जारी राखियो ! हे पेंशनदाता मैं लिख कर दे रहा हूँ :

मैं जिंदा हूँ म्हारी नमस्कार स्वीकार कर लीजो !
रजिस्टर में म्हारे नाम की हाज़री लगा दीजो !!

फारम भर दियो है और जी अंगूठा लगा दियो है !
पेंशन म्हारी इब पहली दिसम्बर को क्रेडिट कर दीजो !!

बात ये है जी कि कॉलेज की पढ़ाई ख़तम करने के बाद जब बैंक ज्वाइन किया तो कमर पतली थी, बाल काले थे और दांत पूरे थे. और भागम भाग में जवानी फुर्र हो गई और साठ साल पूरे हो गए. रिटायर होने तक अपने बैंक की सेवा की. जब बैंक से रिटायर होकर बाहर निकले तो बाल सफ़ेद थे, दांत बत्तीस में से पच्चीस बाकी थे और आँख पर मोटा चश्मा था. पर अब इतनी सेवा की तो मेवा भी तो मिलना ही चाहिए क्यों जी?

काले बाल गए और गए सफ़ेद दांत खाते में इब म्हारी फोटू बदल दीजो !
इब चश्में का नंबर छोड़ो बस ओरिजिनल नाम ही साबुत बच्या लीजो !!

जवानी तो हर ली है तैने पेंशनदाता, इब बुढ़ापे का चैन मत हर लीजो !
इब रोटी ना चबती बचे हुए दांतों से, एकाधी बियर की किरपा कर दीजो !!


पेंशन आई टेंशन गई 


Friday 27 October 2017

बौद्ध धर्म ग्रन्थ - त्रिपिटक

सिद्धार्थ गौतम का जन्म ईसा पूर्व 563 लुम्बिनी में हुआ था. उनके पिता शुद्धोधन कपिलवस्तु राज्य के राजा थे. राजकुमार का बचपन भोग विलासिता में गुज़रा और 18 वर्ष की आयु में एक स्वयंवर में उनका विवाह यशोधरा से हुआ.  पुत्र राहुल का जब जन्म हुआ तो राजकुमार सिद्धार्थ की आयु 19 वर्ष की थी. इसी आयु में एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ गौतम सत्य की खोज में परिवार और महल को छोड़ जंगल की ओर निकल पड़े. अपने समय में प्रचलित धार्मिक विचारों का अध्ययन किया, स्वाध्याय किया, तपस्या की और लगभग 35 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ.

सिद्धार्थ गौतम अब बुद्ध हो गए और उन्होंने निश्चय किया कि ज्ञान के इस मार्ग के बारे में बिना किसी भेद-भाव के राजा और रंक सभी को बताएंगे ताकि सबका कल्याण हो. बुद्ध ने अपना पहला प्रवचन वाराणसी के निकट सारनाथ में पांच शिष्यों को दिया. यह पहला प्रवचन पाली भाषा में धम्मचक्कपवत्तन या संस्कृत में धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है. पहले प्रवचन में गौतम बुद्ध ने शिष्यों को बताया कि जीवन में दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का अंत है और दुःख का अंत करने का एक रास्ता है - आष्टांग मार्ग. उन पाँचों को पूरा मार्ग बताया और वे भी गौतम बुद्ध के साथ हो लिए.

इसके बाद गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों के साथ उत्तर भारत में दूर दूर तक पैदल यात्रा की और ज्ञान का मार्ग समझाया. वर्षा ऋतु में गौतम बुद्ध और भिक्खु किसी एक जगह रह कर विश्राम करते थे और अन्य दिनों में प्रवचन और यात्राएं जारी रहती थी. यह क्रम 45 वर्ष तक लगातार चलता रहा. ईसा पूर्व 483 में कुशीनगर में जब उनकी आयु 80 वर्ष की थी उन के अंतिम शब्द थे :

हदं हानि भिक्ख्ये, आमंतयामि वो, वयधम्मा संक्खारा, अप्प्मादेन सम्पादेय

अर्थात हे भिक्खुओ, इस समय आज तुमसे इतना ही कहता हूँ कि जितने भी संस्कार हैं, सब नाश होने वाले हैं, प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो.

File:Five disciples at Sarnath.jpg
पहले पांच शिष्य - कौण्डिन्य, वप्पा, भाद्दिय्य, अस्साजी और महानामा ( विकिपीडिया से साभार)

गौतम बुद्ध ने अपने सारे प्रवचन पाली भाषा में दिए. पाली ( पालि या पाळी ) भाषा 2600 साल पहले उत्तर भारत की जनता जनार्दन की भाषा रही होगी. सभी प्रवचन लिखित ना होकर मौखिक थे और गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद इन्हें कलमबंद किया गया. उपदेशों में गद्य, पद्य, कथाएँ, संघ के नियम, टीका टिपण्णी, संवाद, प्रश्न-उत्तर और कहीं कहीं सामाजिक व भौगोलिक चित्रण भी है. बुद्ध के वचनों के अलावा त्रिपिटक में उनके निकटतम शिष्यों और उनके बाद के अरहंतों की टीका टिपण्णी भी शामिल है. इन प्रवचन को पाली में सुत्त ( सूक्त या सूत्र ) कहा जाता है और इंग्लिश में Pali Canon. इन सभी सूत्रों के संग्रह को तिपिटक या त्रिपिटक कहा जाता है.  पिटक का अर्थ है पिटारी या टोकरी और तिपिटक के तीन पिटक या भाग इस प्रकार हैं :

त्रिपिटक का पहला भाग है विनय पिटक जिसमें संघ के नियम, भिक्षुओं और भिक्षुणियों की आचार, व्यवहार और दिनचर्या सम्बंधित नियम लिखे गए हैं. इन नियमों के साथ साथ उनके आधार की भी व्याख्या की गई है ताकि संघ में रहने वाले भिक्खु और भिक्क्षुनियों में सौहार्द्र बना रहे.  इस विनय पिटक में पांच ग्रन्थ हैं:
1. पाराजिका,
2. पाचित्तिय,
3. महावग्ग,
4. चुल्ल्वग्ग और
5. परिवार.

त्रिपिटक का दूसरा भाग है  सुत्त पिटक जिसमें उपासकों के लिए मार्ग दर्शन है. इस सुत्त पिटक के पांच भाग या निकाय हैं:
1. दिघ्घ निकाय - इसमें दीर्घ या लम्बे सुत्त हैं,
2. मझ्झिम निकाय - इसमें मध्यम सुत्त हैं,
3. संयुक्त निकाय - इसमें सुत्तों का समूह या संयुक्त है,
4. अंगुत्तर निकाय - इसमें एक विषयी सुत्त से लेकर क्रमशः विषय बढ़ते जाते हैं और
5. खुद्दक निकाय - इसमें छोटे छोटे सुत्त हैं.

त्रिपिटक का तीसरा भाग है अभिधम्म पिटक जिसमें विशेष या उच्च शिक्षा दी गई है. इसमें बड़े तरीके से मन और पदार्थ या संसार का विश्लेष्ण है और दर्शन है. पिटक में सात ग्रन्थ हैं:
1. धम्म्संगिनी,
2. विभ्भंग,
3. धातुकथा,
4. पुग्गलपंजत्ति,
5. कथावत्थु,
6. यमक और
7. पट्ठान

कहाँ से शुरू करें ? 

तीनों पिटकों में कुल सुत्तों की संख्या दस हज़ार से भी ज्यादा है. ये सुत्त अब अनुवाद में ही पढ़ने होंगे या फिर पाली भाषा सीखनी होगी. अनुवाद हिंदी, इंग्लिश और बहुत सी भाषाओँ में ( चीनी, सिंहला, थाई, बर्मी अदि ) में उपलब्ध हैं.आजकल पश्चिमी देशों में बौद्ध दर्शन पर काफी अध्ययन हो रहा है इसलिए बहुत से सुत्त और सम्बंधित टीका टिपण्णी इंग्लिश में फ्री डाउनलोड में भी मिल जाएँगी.
नए साधकों या उपासकों या गृहस्थों के लिए जो की बौद्ध संघ में प्रवेश नहीं ले रहे हैं सुत्तों की इतनी बड़ी संख्या देख कर समझ में नहीं आता कहाँ से शुरू करें हालांकि सभी प्रवचनों में ज्ञान रुपी हीरे जवाहरात बिखरे पड़े हैं.  जिज्ञासु को ये भी जानकारी नहीं होती कि कौन कौन से सुत्तों में गौतम बुद्ध ने आधारभूत बातें कही हैं. कम से कम मुझे तो मैडिटेशन सीखने में और समझने में उलझन महसूस हुई थी और इसीलिये मैंने ये लेख लिखा है.

त्रिपिटक के पहले भाग याने विनय पिटक में बौद्ध संघ संबंधी नियम हैं इसलिए जिज्ञासु इसे बाद में भी पढ़ सकते हैं. इसी तरह तीसरे भाग याने अभिधम्म पिटक में उच्च शिक्षा और दर्शन है वो भी क्रमशः बाद में पढ़ा जा सकता है. दूसरे भाग या सुत्त पिटक से शुरुआत की जा सकती है. अपने अनुभव के आधार पर कुछ सुत्त चुन कर उनका परिचय दे रहा हूँ जिन्हें पढ़ कर और समझ कर आगे बढ़ने में सहायता मिल सकती है. मेरे विचार में जिज्ञासु या नए उपासक को शुरू में आत्मा, परमात्मा और पुनर्जन्म से सम्बंधित सुत्तों की पढ़ाई उलझन में डाल सकती है  इसलिए पहले विपासना मैडिटेशन पद्धति सीख ली जाए और इन्हें बाद में पढ़ लिया जाए.

* धम्मचक्कप्पवत्त्न सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - यह सुत्त गौतम बुद्ध के ज्ञान प्राप्त करने के बाद का पहला प्रवचन था जो उन्होंने अपने पांच साथी सन्यासियों को दिया और उसके बाद धम्म का चक्र चलाना शुरू हुआ. इसमें मध्य मार्ग, आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग बताया गया.

* महासतिपट्ठन्न सुत्त ( दिघ्घ निकाय ) - मन और स्वयम के शरीर को जानने, जागरूक बनाने की और मैडिटेशन की विधि के बारे में.

* सतिपट्ठन सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - मन और स्वयम को जानने और जागरूक बनाने और मैडिटेशन की विधि के बारे में.

* अभयराजकुमार सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - कैसी वाणी बोलें, कब  और किससे बोलें.

* अनंतपिण्डीकोवाद सुत्त (मझ्झिम निकाय ) - एक बीमार गृहस्थ अनंतपिंडिक को कैसे कल्याण हुआ.

* अन्नत्त-लक्खन सुत्त  ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध का दूसरा प्रवचन जिसमें 'अनात्म' के बारे में प्रश्नोत्तरी है.

* भाद्देकरात्त सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - हम वर्तमान पर ही ध्यान दें ना कि भूतकाल पर जो हमारे हाथ से निकल चुका है और ना ही भविष्य पर जो हमारे हाथ आएगा ही नहीं.

* चेतना सुत्त ( अंगुत्तर निकाय ) - मन अच्छा हो तो अच्छे काम होते जाते हैं.

* कच्चायानगोत्त सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध का कात्यायन को सम्यक दृष्टि पर उपदेश. 

* कक्चुपम्म सुत्त ( मझ्झिम निकाय ) - कैसे घृणा से दूर रहें और मित्रता का भाव रखें.

* कलह-विवाद सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - कलह, विवाद, आपसी झगड़े, स्वार्थ और घमंड कैसे पैदा होते हैं.

* करणीय मित्ता सुत्त (सन्युक्त निकाय )  - मन में करुणा, सदभाव और मित्रता सभी के लिए हो.

* नगर सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - गौतम बुद्ध ने बताया कैसे उन्होंने चार आर्य सत्य और प्रतीत्य - समुत्पाद का नियम खोजा.

* पव्वज्जा सुत्त  ( संयुक्त निकाय ) - राजा बिम्बिसार की सिद्धार्थ गौतम से मुलाकात.

* पव्वोत्तमा सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - राजा पसेनदी से गौतम बुद्ध का वार्तालाप. 

* उपझ्झात्थाना सुत्त  ( अंगुत्तर निकाय ) - पांच तथ्य जिन पर सभी को विचार करना चाहिए. 

* उपनिसा सुत्त ( संयुक्त निकाय ) - प्रतीत्य समुत्पाद से जुड़ी शर्तें.

* वित्तक्कसंथाना ( मध्यम निकाय ) - तृष्णा, द्वेष और संदेह से कैसे बचें. 


*** सबका मंगल होए ***





Saturday 14 October 2017

पिंक दुप्पट्टा

शौपिंग का अपना का फंडा सीधा है - मॉल में गए, दूकान में गए और 15-20 मिनट में जीन या शर्ट या जूते फाइनल कर दिए. पर श्रीमती के साथ ऐसा नहीं है. इस शॉप में देखो, उस शॉप में देखो. कलर देखो, कपड़ा देखो, टेक्सचर देखो, कीमत देखो और टीवी शो से स्टाइल देखो. इस वजह से महिलाओं का शौपिंग में टाइम ज्यादा लगता है. ये तो हमारे दोस्त नरूला जी का भी व्यक्तिगत अनुभव है कि श्रीमती के साथ जब शौपिंग करने जाते हैं तो शेव करके और परफ्यूम लगा कर जाते हैं. पर शौपिंग खत्म होते होते तक दाढ़ी बढ़ चुकी होती है और परफ्यूम ख़त्म हो चुकी होती है !
खैर घूमने निकले थे मेरठ की आबू लेन याने यहाँ के कनॉट प्लेस में. कई छोटी बड़ी दुकानों में नज़र मारते रहे. अचानक एक पिंक सूट पसंद आ गया. ट्राई कर लिया, पैक करा लिया और मैंने क्रेडिट कार्ड चला दिया.
- तो अब चलें ?
- अभी कहाँ चलें ? दुपट्टा भी तो लेना है. सदर में मिलेगा.
सदर की दो तीन दुकानों में से एक में सफ़ेद शिफोन का दुप्पट्टा पसंद आ गया, पैक करा लिया और मैंने क्रेडिट कार्ड चला दिया.
- तो अब चलें ?
- अभी कहाँ चलें ? कलर भी तो कराना है. आगे चौक में रंग वाले बैठते हैं वहां चलते हैं चलो.
रंगरेजवा ने थोड़े नखरे दिखाए पर फिर आधे घंटे में कर ही दिया. कैश देकर मैंने पूछा,
- तो अब चलें ?
- अभी कहाँ चलें ? अभी तो पीको करानी है. चूड़ी बाज़ार चलो.
पीको हो गई और मैंने पैसे देकर पूछा,
- तो अब चलें ?
- अभी कहाँ चलें ? आबू लेन की चाट नहीं खिलाओगे ?

तब तक रंगरेज की कारवाई देखिये :
भैया ये दुप्पट्टा कलर करना है? - कर देंगे जी. कितनी देर लगेगी ? - कल ले जाना. - नहीं भैया नहीं हमें तो अभी दिल्ली वापिस जाना है. जल्दी कर दो  - आधा घंटा तो लगी जाता है. - ठीक है हम वेट कर लेते हैं  

एक चम्मच रंग डाला बाल्टी में थोड़ा गरम पानी डाला और सफ़ेद दुपट्टा डुबो दिया 

अब दुप्पट्टे को उबलते पानी में  डाल दिया और डंडे से हिलाया पर लगता है रंग अभी नहीं मिला 

कुछ और 'मसाला' डाल कर दुप्पट्टा घुमाया. अब मिला कर देखा. हाँ अब रंग टैली हो गया. ओके है जी ओके  

रंगाई और फिर सुखाई बस निपट गया मामला 



Tuesday 10 October 2017

वाकाटीपू झील, न्यूज़ीलैण्ड

वाकाटीपू झील न्यूज़ीलैण्ड के दक्षिणी  द्वीप में है. न्यूज़ीलैण्ड छोटे बड़े द्वीपों पर बसा देश है जिसकी जनसँख्या 48.19 लाख है. यहाँ दो मुख्य द्वीप हैं उत्तरी द्वीप और दक्षिणी द्वीप और इसके अतिरिक्त छोटे बड़े 600 द्वीप हैं जिनमें से पांच टापुओं के अलावा बसावट बहुत कम है.
* न्यूज़ीलैण्ड ऑस्ट्रेलिया से 1500 किमी पूर्व में है.
* देश की राजधानी वेलिंगटन है और यहाँ की करेंसी है न्यूज़ीलैण्ड डॉलर NZD. ये डॉलर आजकल लगभग 47 भारतीय रूपये के बराबर है.
* न्यूज़ीलैण्ड का प्रति व्यक्ति GDP( nominal) 36,254 डॉलर है और PPP के अनुसार 36,950 डॉलर है. इसके मुकाबले भारत का GDP ( nominal ) का 2016-17 का अनुमानित आंकड़ा थोड़ा कम है याने प्रति व्यक्ति 1800 डॉलर है. याने हिन्दुस्तानियों को कमर कस कर मेहनत करनी पड़ेगी.
* यहाँ के मूल निवासी माओरी कहलाते हैं. जनसँख्या में इनका अनुपात 14.9 % है और सरकारी काम काज के लिए इंग्लिश के अलावा माओरी भी यहाँ की सरकारी भाषा है.
* भारत की तरह न्यूज़ीलैण्ड में भी गाड़ियां बाएं ही चलती हैं. आप अपने देसी लाइसेंस और पासपोर्ट दिखा कर कार या कारवान किराए पर लेकर खुद चला सकते हैं. गाड़ी चलाते चलाते पहुंचे वाकाटीपू झील. रास्ता भी बेहद खुबसूरत है और झील भी. ऐसा लगता है कि किसी पेंटिंग को देख रहे हैं. 
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :  

खुबसूरत पेंटिंग की तरह 

झील का एक दृश्य 

75 किमी लम्बी, 290 वर्ग किमी में फैली और 380 मीटर तक गहरी झील 

झील पर उतरती शाम 

सुंदर और शांत 

झील किनारे 

प्राकृतिक सौन्दर्य - पहाड़, पानी, पेड़ और पक्षी 

इतनीीी ऑक्सीजन ले चलता हूँ दिल्ली 
NASA False-colour satellite image of Lake Wakatipu from Wikipedia 


पूनाकैकी, न्यूज़ीलैण्ड पर फोटो ब्लॉग का लिंक है :
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/09/blog-post_29.html


पैनकेक रॉक्स, न्यूज़ीलैण्ड पर फोटो ब्लॉग का लिंक है :
http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/10/blog-post.html



Contributed by Mukul Wardhan from New Zealand - न्यूज़ीलैण्ड से  मुकुल  वर्धन की प्रस्तुति   




Saturday 7 October 2017

विपासना मैडिटेशन का आठवाँ और नौंवा दिन

मैडिटेशन के आठवें दिन आने तक आश्रम की दिनचर्या के अभ्यस्त हो गए थे. सुबह चार बजे की घंटी बजते ही बिस्तर छोड़ देना और साढ़े चार बजे की पहली मैडिटेशन क्लास से लेकर रात साढ़े नौ तक ध्यान लगाना और ठीक 10 बजे तक कुड़क जाना. ये कार्यक्रम अब पटरी पर आ गया था. पहली बार के शिविर में उकताहट और झुंझलाहट ज्यादा थी पर दूसरे शिविर में घट गई थी. फिर भी एक घंटे की ध्यान मुद्रा में पांच दस मिनट ऐसे आ ही जाते थे जिसमें मन विचलित हो जाता था. एक कारण तो शारीरिक थकावट थी. दूसरा ये सवाल बार बार मन में उठाता था कि इस वक़्त किये जाने वाली क्रियाओं में और गौतम बुद्ध के उपदेशों में सामंजस्य है या नहीं और कैसे होगा ? गोयनका जी का शाम का विडियो प्रवचन बढ़िया होता है पर कई चीज़ें उस वक़्त नहीं समझ पाया. और चूँकि वीडियो लेक्चर था इसलिए कोई प्रश्न पूछना संभव नहीं था. मुझे लगा की पढ़ कर आना चाहिए था.

गौतम बुद्ध के उपदेशों में कहा गया है की जब भी मन( या माइंड या चित्त ) में क्रोध, लोभ, द्वेष, मोह, पश्चाताप, बेचैनी, उदासी वगैरा जैसी भावनाएं आती हैं तो सांस की रफ़्तार  प्रभावित हो जाती है. साथ ही शरीर में कुछ हलचल या संवेदनाएं होने लगती हैं. ये संवेदनाएं सुखद या दुखद या neutral( असुखद-अदुखद) हो सकती हैं जैसे की सिहरन, गला भर आना, आंसू आ जाना, भय से ठंडा पसीना आ जाना, क्रोध में आँखें लाल हो जाना, रौंगटे खड़े हो जाना, चेहरे पर मुस्कान आ जाना इत्यादि. अभ्यास करते करते और बारीक संवेदनाएं भी पता चलती हैं.

अब अगर किसी सुखद संवेदना से अगर आप जुड़ते हैं तो  सुखद अनुभूति होती है और दुखद संवेदना से चिपके तो दुखद. जुड़ाव होने से शरीर में कुछ जैविक( bio-chemical) क्रियाएँ शुरू हो सकती हैं. फिर विचार बनने लगते हैं और फिर कोई कर्म शुरू होने लगता है. ये कर्म कोई न कोई नतीजा लाते हैं चाहे सुखद हो या दुखद. इस तरह से बात आगे बढ़ती जाती है. पर अगर किसी संवेदना से नहीं जुड़े तो वो संवेदना स्वत: नष्ट हो जाती है.

पर संवेदना का आने जाने का सिलसिला जारी रहता है रुकता नहीं है क्यूंकि हमारी पांच इन्द्रियां और मन कुछ ना कुछ हरकत करते रहते हैं. कभी एकांत में एकाग्र चित्त बैठ कर इस मानसिक क्रिया को देखेंगे तो लगेगा कि इस छोटी सी बात में याने संवेदना के आने और जाने में गहरा अर्थ छुपा हुआ है. यह बात पढ़ कर, सुन कर या बहस कर के नहीं बल्कि स्वयं अभ्यास करके समझनी पड़ेगी. और इस शिविर में हम यही कर रहे थे.

मान लीजिये की दस साल पहले किसी दोस्त ने आपको बुरा भला कहा था और गालियाँ दी थी और उसके बाद दोनों के रास्ते अलग अलग हो गए थे. आज वो इतने समय बाद सामने से निकला पर उसने आपको नहीं देखा ना ही कोई बातचीत हुई. उस एक क्षण में आपके अंदर क्या क्या संवेदनाएं आ सकती हैं - क्रोध, खीज, उलाहना, दुःख, ग्लानी, खुद पर दया, उस पर दया ? इन संवेदनाओं के आधार पर आप क्या क्या कर सकते हैं - गाली देना, पत्थर मार देना, अपने को कोसना, मुंह फेर लेना, सर झुका लेना, वापिस मुड़ जाना, उसे माफ़ कर देना या फिर इन सब में उलझ जाना या कुछ भी ना करना ? क्या इन संवेदनाओं में से कोई एक या सभी को चिपका लेंगे या नष्ट होने देंगे ?

आठवें दिन कुछ देर बारिश हुई तो देखा की कैंपस में खड़ी अपनी कार भी बारिश में धुल रही है. बहुत धूल जम गई थी गाड़ी पर चलो ये काम ठीक हुआ. मौसम भी ठंडा और सुहाना हो गया था. उसके बाद जब ध्यान में बैठे तो काफी देर बाद मन में ख्याल आया कि गाड़ी ग्यारह दिन तक चली नहीं है और बैटरी भी पुरानी है तो स्टार्ट ना हुई तो ? बैटरी बैठ गई तो ? फिर मन बनाया की जो ऑफिस चला रहे हैं उनके पास पर्स, मोबाइल और चाबियाँ जमा हैं उनसे निवेदन कर के चाबी ले कर एक बार स्टार्ट कर लूँ ताकि बैटरी चार्ज हो जाए और वापसी में दिक्कत ना हो. या वो ही एक बार स्टार्ट कर दें. वैसे भी आश्रम शहर से दूर जंगल में था. जब ऑफिस पहुंचा तो मान्यवर ने बात करने से ही मना कर दिया वो भी इशारे में होंटों पर ऊँगली रख कर. खैर ग्यारहवें दिन गाड़ी चालू करने में कोई परेशानी नहीं हुई.
पर इस छोटी सी घटना पर विचार करें तो लगेगा की मन कैसे कैसे विचलित हुआ ? किस तरह से मन में संवेदनाएं जागी ? हम करने क्या आए थे और विचार कहाँ कहाँ और कैसे कैसे दौड़ते रहे ? मन के बारे में गौतम बुद्ध ने ( त्रिपिटक > सुत्त पिटक > खुद्दक निकाय के धम्मपद में ) कहा है:

फंदनं चपलं चित्तं दुरक्खं दुन्निवारयं I
उजुं करोति मेधावी उसुकारो'व तेजनं II

अर्थात चित्त क्षणिक है, चपल है, इसे रोके रखना कठिन है और निवारण करना भी दुष्कर है. ऐसे चित्त को मेधावी पुरुष उसी प्रकार सीधा करता है जैसे बाण बनाने वाला बाण को.
 
तो शिविर में हम मन को सीधा करने की कवायद कर रहे थे. मन को अनुशासन में लाना आसान नहीं है साहब. लगातार और कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. कई बार ऐसा भी लगा कि अगर ध्यान लगाते हुए किसी मूर्ती या मन्त्र का सहारा होता तो शायद काम आसान हो जाता पर फिर वो विपासना से अलग रास्ता हो जाता.
नौंवे दिन कुछ हल्कापन रहा शरीर में भी और मन में भी. शायद इसलिए कि अंतिम याने दसवां दिन नज़दीक आ गया था और ग्यारहवें दिन छुट्टी मिलनी थी. मन में छुट्टी का विचार आया तो संवेदना जागी - सुखद संवेदना ! चिपकाव ! शरीर में कुछ हरकत हुई याने मुस्कराहट आ गई. इस संवेदना से जुड़ा विडियो चल पड़ा ! घर परिवार की याद आ गई अर्थात कितना मोह था ! ये सुखद संवेदना कब तक रहेगी ?

सुखदायी प्रकृति 



Wednesday 4 October 2017

जिनेवा, स्विटज़रलैंड

स्विट्ज़रलैंड लगभग चौरासी लाख की आबादी वाला देश है जो ऐल्प्स के बर्फीले पहाड़ों में बसा हुआ है. देश का 60% भाग इन्हीं पहाड़ों में है. यह देश चारों ओर से दूसरे देशों - इटली, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया और लिकटेंस्टीन से घिरा हुआ है. देश का कोई सागर तट नहीं है शायद इसीलिए यहाँ जल सेना नहीं है. स्विट्ज़रलैंड में तीन राजभाषाएँ - फ्रेंच, जर्मन, इटालियन चलती हैं और चौथी सह भाषा रोमान्श भी इस्तेमाल की जाती हैं.

स्थानीय करेंसी का नाम स्विस फ्रैंक है और आजकल एक स्विस फ्रैंक लगभग 67 रूपए का है. वर्ष 2016 के अनुमान के अनुसार प्रति स्विस व्यक्ति आय GDP( सामान्य ) के अनुसार 78245 अमरीकी डॉलर है और इसके मुकाबले भारत की 2016-17 अनुमानित प्रति व्यक्ति आय GDP( सामान्य ) पर आधारित फ़ॉर्मूले के अनुसार 1800 अमरीकी डॉलर है.

देश की राजधानी बर्न है और इसके अलावा जिनेवा एक महत्वपूर्ण शहर है. यह शहर जिनेवा झील के किनारे है और इसकी आबादी लगभग दो लाख है. जिनेवा या जनीवा( फ्रेंच में जेनेव और जेर्मन में जेन्फ़ ) में संयुक्त राष्ट्र संगठन UNO के बहुत से कार्यालय हैं जिसके कारण यहाँ बहुत सी गैर सरकारी संस्थाएं काम करती हैं. सारा साल तरह तरह के पोस्टर और तस्वीरें संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय के सामने लगी रहती हैं.
प्रस्तुत हैं कुछ फोटो :


संयुक्त राष्ट्र संघ कार्यालय और सामने साढ़े तीन टांग की कुर्सी - ये कुर्सी 39 फुट ऊँची है और साढ़े पांच टन लकड़ी से बनी है.  इस कुर्सी का आईडिया Paul Vermeulen का था जिसे स्विस आर्टिस्ट Daniel Berset ने डिजाईन किया और कारीगर Loius Geneve ने तैयार किया. इसका उद्देश्य ये जताना था कि लैंड माइंस या बारूदी सुरंगों और क्लस्टर बम का उपयोग बंद किया जाए. विरोध जताने के लिए अगस्त 1997 में तीन महीने के लिए लगाई गयी थी परन्तु तब से हटाई नहीं गयी 

संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के आगे भारत सम्बन्धी पोस्टर - 1. AFSPA के विरोध में, 2. दलितों द्वारा मैला ढोने के विरोध में और 3. महिलाओं पर हिंसा के विरोध में 

बच्चों से कराई जाने वाली मजदूरी के विरोध में और पीने का पानी ना मिलने पर पोस्टर    

आज़ाद बलूचिस्तान का पोस्टर 

Reformation Wall के सामने सेल्फी 

आर्ट गैलेरी 

मोन्त्रेऔ में एक कलाकृति 

चर्च 
जिनेवा झील और पीछे किला - Chateau de Montreaux

झील का एक दृश्य 

शुभ प्रभात 


इससे पहले प्रकाशित 'लेमन झील, स्विटज़रलैंड' पर फोटो ब्लॉग इस लिंक पर है :

http://jogharshwardhan.blogspot.com/2017/09/blog-post_14.html


Contributed by Yash Wardhan from Geneva. जिनेवा से यश वर्धन  की प्रस्तुति